20 January, 2010

उलझनें

जिंदगी बेतरह लम्बी फिल्म है
जिसके पात्र अचानक से कहीं चले गए हैं
और मैं स्टेज पर मौन हूँ
अकेली भी हूँ, और कहने को कुछ ढूंढ रही हूँ

फिल्म विथिन अ फिल्म
जब शब्द ना हों तो मुझे बहुत परेशानी होती है
ये शब्द ही इस दुनिया से जुड़े तंतु हैं
अचानक से माईम आर्टिस्ट कैसे बन जाऊं मैं

मैं चाहती हूँ कोई समझे
कि मैं क्यों बाईक ८० पर चलाती हूँ
कभी कभी
और गाने क्यों सुनती हूँ अँधेरे कमरे में
क्यों साफ़ करने लगती हूँ अलमारियां
क्यों बाल्टी भर कपड़े धो डालती हूँ

क्या ये मौन पात्र नहीं हैं
जिंदगी की फिल्म के फ्रेम का हिस्सा
जब बोलती नहीं हूँ
कलम भी नहीं चलती है

जब सोच में शब्द नहीं होते हैं
कोहरे में छिपे दृश्य होते हैं बस
इन्हें किसी कैनवास पर उतार दूं शायद
क्या मुझसे पेंटिंग हो पाएगी?

रंगों को देखती हूँ तो अचानक से
सब ब्लैक वाईट और ग्रे में बदल जाते हैं
अचानक से मैं खो देती हूँ अपनी आँखें
क्या रंगों को छू कर अलग रंगों का पता चल सकता है?

संगीत अपनी लय खो देता है
मुझे वक़्त का आभास होना बंद हो जाता है
इसलिए ताल नहीं दे सकती मैं
तीनताल, दादरा, कहरवा, दुगुन, तिगुन
सब अनजान हो जाते हैं मेरे लिए
खोयी हुयी दुनिया के खोये शब्द

मैं सृजन करना चाहती हूँ
शायद माँ बनना भी चाहती हूँ
ताकि अपने बच्चे की ऊँगली पकड़ कर
मैं अपनी दुनिया वापस पा सकूँ

जब कोई किरदार नहीं रहे मेरी फिल्म में
मैं एक किरदार पैदा करना चाहती हूँ

औरत हूँ मैं, जिंदगी जन्म दे सकती हूँ
और उसके इर्द गिर्द काट सकती हूँ बाकी समय
बिना गिने हुए, बिना देखे हुए

सिर्फ छू कर...

राधा का भी प्रेम था, यशोदा का भी
कृष्ण ने दोनों को बिछोह दिया


मैं अपने कृष्ण को कहाँ ढूंढ रही हूँ...

---------------------------------------------------------
मुझे लगता है मैं पागल हो जाउंगी बहुत जल्दी।

12 comments:

  1. मैं सृजन करना चाहती हूँ
    शायद माँ बनना भी चाहती हूँ
    ताकि अपने बच्चे की ऊँगली पकड़ कर
    मैं अपनी दुनिया वापस पा सकूँ


    --सभी मनोकामना पूर्ण हों..अनेक मंगलकामनाएँ...


    रचना बहुत भावपूर्ण है.

    ReplyDelete
  2. रचना सुंदर और भावपूर्ण है।

    पर जाने क्यों लगता है आप अंदर कहीं गहरे बहुत उदास हैं। मन होता है आप को एक जादू की झप्पी दे कर आपके दर्द को पिघला दें और आप एक्दम से खिलखिलाती पूजा बन जायें। पर आपको शायद आपके आस पास ही किसी की झप्पी की ज़रूरत है।

    कुछ ज्यादा ही लिबर्टी ले ली है। बुरा मत मानियेगा।

    ReplyDelete
  3. बच्चे बहुत देर उदास नहीं रहने देते…… …

    ReplyDelete
  4. सृजन की चाह रखने वाला पागल नही हो सकता पूजा....!!

    ReplyDelete
  5. "क्या रंगों को छू कर अलग रंगों का पता चल सकता है?"

    अभी से ऐसी सोच और विचार लगता है जैसे मन की गागर को कविता में उड़ेल दिया है - बेहद खुबसूरत और भावना से सराबोर अभिव्यक्ति - हार्दिक शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  6. तथास्तु

    अंतिम पंक्ति को छोडकर

    ReplyDelete
  7. सभी एक ही हालत से गुज़र रहे हैं.. वाकई यह पागल होने के ही दिन हैं...

    ReplyDelete
  8. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  9. अकेली तुम नहीं ...आत्मा की आवाज़ बांटने वाले सभी पागल हुए जाते हैं...

    ReplyDelete
  10. बेहद खूबसूरत...

    ReplyDelete
  11. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    Sanjay kumar
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...