28 January, 2010

उससे कह कभी मेरे गाँव भी आये...

ए खुदा!
सुना है तेरे गाँव में
एक ऐसा फ़रिश्ता है
जो मरहम से गीत गाता है
कि जिसके क़दमों की आहट से
वसंत बागों में उतर आता है

ए खुदा!
क्या कहीं कोई दरख़्त है
जिससे गले लग कर
तन्हाई ख़त्म सी हो जाती हो
कि जिसकी छाँव तले
इश्क फिर से पनपता है

ए खुदा!
कहते हैं तेरा दिल बड़ा है
तेरे दिल में मेरे लिए
बस थोड़ी सी रहमत नहीं हो सकती
जिंदगी जब मौत से मिलती हो
उस वक़्त मुझे थोड़ी सी खुशियाँ दे सकेगा

ए खुदा!
सब्र करने को, जज़्ब करने को
पल जीने, पल पल मरने को
बहुत लम्बी उम्र दिखती है
मेरे लिए दुआ मांगने
किसी को नहीं भेजा तूने

ए खुदा!
सुना है तुझे वो फ़रिश्ता
बहुत अजीज़ है
मेरी फरियाद सुन...
उससे कह कि वो गीत गाये
उससे कह कभी मेरे गाँव भी आये...

14 comments:

  1. आमीन... बहुत सुंदर रचना
    धन्यवाद

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  2. खुदा है उस पर विश्वास करो

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  3. ए खुदा!
    मिलते होंगे तुझे भी फरिश्ते
    कहना उनसे आकर मिले उसे
    पूजा है हमारी बहुत ही प्यारी
    महेकाती रहे बनके बहार हमको
    और रहे वो सदा तेरे आसरे में
    यही है दिले तमन्ना हमको !!!!!!!!

    nice!!!!!!!!

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  4. E khuda!
    Kabhi un duaon ko bhi sun jinhe kaha nahi hamne...

    Waah Behtareen!!!

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  5. हिंदी भाषा पर लगता है तुम्हारा एकाधिकार है... जब रो में होती हो तो क्या कविता, क्या लेख, क्या व्यंग और क्या संस्मरण... सारे गज़ब ढाते हैं और अपने से लगते हैं... गज्जज्ज्ब

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  6. कहीं कोई दरख़्त है
    जिससे गले लग कर
    तन्हाई ख़त्म सी हो जाती हो
    कि जिसकी छाँव तले
    इश्क फिर से पनपता है

    वाह क्या लिखा है....

    वो दरख्त मिले तो हमें भी बताना..सारी दुनिया को उसका पता बता दूंगा..

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  7. पहली तीन पंक्तियों में ही तुमने रचना को उस ऊँचाई पर खड़ा कर दिया कि आगे मैं ना भी पढू तो कुछ कमी ना लगे.. कभी कभी तुम उम्मीद से दुगना लिख बैठती हो.. यु गिटारबाज

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  8. वाह..सबके दिल की बात!!
    अगर उस फ़रिश्ते का पता मिले तो इधर भी शेयर कीजियेगा प्लीज..मेरी फ़ेहरिस्त भी काफ़ी लंबी होती जा रही है..दिनो-दिन!!

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