ए खुदाया दिल मेरा ये क्या चाहता है
बस इक उस के जैसा दूसरा चाहता है
जख्म कितने मिलें मुझको परवा नहीं
उसके होठों पे मेरी दुआ चाहता है
कब रही जिंदगी अपने अरमानों सी
मौत वो एक हसीं ख्वाब सा चाहता है
हर शख्स से कुछ मिलता है उसका तसव्वुर
वो अपनी आँखों में पर्दा नया चाहता है
बहुत दिन हुए तेरा नाम होठों पे आये
बीता अरसा अब धड़कनें सुनना चाहता है
कल खोले थे मैंने डायरी के पन्ने
हर लफ्ज़ अब ग़ज़ल बनना चाहता है
तुम पुकारो नहीं फिर भी लौट आऊं मैं
कोई ऐसी वजह ढूंढना चाहता है
कतरे कतरे में बिखरा हुआ इश्क है
दिल्ली में वैसे ही बिखरना चाहता है
nice one
ReplyDeleteशब्द न थे मेरे पास बस सुपर्ब
ReplyDeleteवाह ! क्या बात है पूजा जी बहुत ही अच्छा लिखती है आप,शब्द नही मिल रहे मुझे आपके लिए, खुदा करे आप ऐसे ही लिखती रहे और चमकती रहे !
ReplyDelete!!अथ चाहिए-चाहिए!!
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!!इति पाइए-पाइए!!
डायरी और दिल्ली वाले शेर ख़ास अच्छे लगे। मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया और आपकी टिप्पणी ने भी दिल जीत लिया। अपना ब्लॉग समझ जब चाहो आ जाना।
ReplyDeleteदिलकश सी गजल वाकई...!
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDelete"हर शख्स से कुछ मिलता है उसका तसव्वुर
ReplyDeleteवो अपनी आँखों में पर्दा नया चाहता है"
ये शानदार रही । आभार गज़ल के लिये ।
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeleteSanjay kumar
http://sanjaybhaskar.blogspot.com