तारीखें वही रहती हैं
साल दर साल
वही हम और तुम भी...
बदल जाती है तो बस
जिंदगी की रफ़्तार...
खो जाती है वो फुर्सत वाली शामें
और वो अलसाई दिल्ली की सड़कें
सर्द रातों में हाथ पकड़ कर घूमना...
खो जाते हैं हम और तुम
अनजाने शहर में
अजनबी लोगों के बीच...
रह जाती है बस
एक याद वाली पगडण्डी
एक आधा बांटा हुआ चाँद
और अलाव के इर्द गिर्द
गाये हुए गीतों के कतरे...
छः मंजिल सीढियों पर रेस लगाना
रात के teen बजे पराठे खाना
और चिल्लड़ गिन कर झगड़ना
कॉफी या सिगरेट खरीदने के बारे में...
कोहरे से तुम्हें आते हुए देखना
और फ़िर गुम हो जाना उसी कोहरे में
हम दोनों का...
आज उन्ही तारीखों में
मैं हूँ, तुम भी हो...जिंदगी भी है
अगर कुछ खो गया है तो बस
वो शहर ...जहाँ हमें मुहब्बत हुयी थी
दिल्ली, तेरी गलियों का
वो इश्क याद आता है...
वाह पूजा जी शब्दों को कितना ढंग से शक्ल दी है आपने अच्छी कविता
ReplyDelete"एक याद वाली पगडण्डी
ReplyDeleteएक आधा बांटा हुआ चाँद"
"कोहरे से तुम्हें आते हुए देखना
और फ़िर गुम हो जाना उसी कोहरे में"
bahut sundar ehsaas
ReplyDeleteदिल्ली, तेरी गलियों का
ReplyDeleteवो इश्क याद आता है................
बीते हुए लम्हे....
गुजरे हुए पल.....
बिखरी हुई यादें.....
थोडी-सी कसक.....
थोडी सी-सी महक....
डूबी हुई कोई सिसकी....
कोई खुशनुमा-सी शाम.....
या दर्द में डूबा संगीत..........
सुरमई से कुछ भीने-भीने रंग.....
यादों से विभोर होता हुआ मन.......
मचलती हुई कई धड़कनें....
फड़कती हुई शरीर की कुछ नसें.....
जाने क्या कहता तो है मन....
जाने क्या बुनता हुआ-सा रहता है तन....
बहुत दिनों पहले की तो ये बातें थीं......
आज तक ये क्यूँ जलती हुई-सी रहती है....
ये आग मचलती हुई-सी क्यूँ रहती है.....
अगर प्यार कुछ नहीं तो बुझ ही जाए ना....
और अगर कुछ है तो आग लगाये ना...
बरसों पहले बुझ चुकी जो आग है....
वो अब तलक दिखायी कैसे देती है....
और हमारी तन्हाईयों में उसकी सायं-सायं
की गूँज सुनाई क्यूँ देती है....!!
प्यार अमर है तो पास आए ना....
और क्षणिक है तो मिट जाए ना......
मगर इस तरह आ-आकर हमें रुलाये ना....!!
इसे पढ़कर कुछ जानी-अनजानी, चाही-अनचाही यादों ने घेरा डाल दिया..
ReplyDeleteकविता बहुत सुंदर..
एक बात कहनी भूल गया.. आपने भी आधे चांद की बात कहकर कहीं किसी के चांद कि चोरी तो नहीं कर ली ना? विस्तार से ई-मेल में बताता हूं.. क्योंकि मैं बेकार का ब्लौग जगत में एक और बहस नहीं चाहता हूं.. ;)
ReplyDeleteवैसे जिसके लिये लिखा है वो शायद समझ जायेंगे.. :)
बहुत अच्छी कविता किसी के एक मुकतक के साथ बधाई....
ReplyDeleteदिल में अपने कोई बोझ न भारी रखिए,
जिंदगी जंग है,इस जंग को जारी रखिए।
शहर नया है दोस्त बन रखिए,
दिल मिले न मिले हाथ मिलाए रखिए।
ऐसी लेने पढ़कर चाहे-अनचाहे यादें घेर लेती हैं.
ReplyDeleteफ़िल्म के लिए शुभकामनायें !
बेहद सुन्दर रचना ! पुरानी यादों को खंगालती हुई !
ReplyDeleteराम राम !
एक याद वाली पगडण्डी
ReplyDeleteएक आधा बांटा हुआ चाँद
और अलाव के इर्द गिर्द
गाये हुए गीतों के कतरे...
छः मंजिल सीढियों पर रेस लगाना
रात के teen बजे पराठे खाना
और चिल्लड़ गिन कर झगड़ना
कॉफी या सिगरेट खरीदने के बारे में...
कोहरे से तुम्हें आते हुए देखना
और फ़िर गुम हो जाना उसी कोहरे में
हम दोनों का...
आज उन्ही तारीखों में
मैं हूँ, तुम भी हो...जिंदगी भी है
अगर कुछ खो गया है तो बस
वो शहर ...जहाँ हमें मुहब्बत हुयी थी
दिल्ली, तेरी गलियों का
वो इश्क याद आता है...
puja !YOU are at your best when you write in this flow.....rather very honestly...i am fan of parveen shaaqir too..who said ...
चाँद ..
एक से मुसाफिर हैं
एक सा मुक़द्दर हे
मैं ज़मीन पर तनहा
ओर वोह आसमान में
keep flowing .you are awesome today.
वाह शब्दों से क्या सुर बाधा हैं। कई बार पढ गया।
ReplyDeleteछः मंजिल सीढियों पर रेस लगाना
रात के teen बजे पराठे खाना
और चिल्लड़ गिन कर झगड़ना
कॉफी या सिगरेट खरीदने के बारे में...
कोहरे से तुम्हें आते हुए देखना
और फ़िर गुम हो जाना उसी कोहरे में
हम दोनों का...
पुरानी यादों में ले जाता हुआ। अदभुत।
छः मंजिल सीढियों पर रेस लगाना
ReplyDeleteरात के teen बजे पराठे खाना
और चिल्लड़ गिन कर झगड़ना
कॉफी या सिगरेट खरीदने के बारे में...
कोहरे से तुम्हें आते हुए देखना
और फ़िर गुम हो जाना उसी कोहरे में
बहुत ही सुंदर रचना है !!!
"रह जाती है बस
ReplyDeleteएक याद वाली पगडण्डी
एक आधा बांटा हुआ चाँद
और अलाव के इर्द गिर्द
गाये हुए गीतों के कतरे..."
संवेदित पंक्तियां . भावना के गहरे साहचर्य के साथ लिखी गयी हैं यह.
धन्यवाद.
wow.. the only word after reading your poem.. :-) bahut sundar likha.. kuch hame bhi sikha dijiye na ki bhawnao ko shabd kaise dete hai?
ReplyDeleteमैं हूँ, तुम भी हो...जिंदगी भी है
ReplyDeleteअगर कुछ खो गया है तो बस
वो शहर ...जहाँ हमें मुहब्बत हुयी थी
दिल्ली, तेरी गलियों का
वो इश्क याद आता है...
जबरदस्त रचना
infact बहुत ज्यादा अच्छी कविता
aaj unhi tarikhon men
ReplyDeletemain hoon, tum bhi ho...jindagi bhi hai
agar kuchh kho gaya hai to bas
vo shahar ...jahan hamen muhabbat huyi thi
dilli, teri galiyon ka
vo ishk yad aata hai...
bahut hi umdaa.....outstanding :)
क्या बात है, आपने तो पुराने दिन याद दिला दिए.
ReplyDeletecommenting anything will be doing injustice to the emotions behind this...
ReplyDeleteये बात ...."बस जिन्दगी की रफ्तार बदल जाती है"..ये हमेशा तेज ही नही रहती..हमेशा स्लो भी नही चलती पर हाँ...एक सी नही रहती...कभी.!
ReplyDelete"एक याद वाली पगडण्डी
एक आधा बांटा हुआ चाँद
और अलाव के इर्द गिर्द
गाये हुए गीतों के कतरे."
सर्द मौसम में दूर तक दिखता भी नही तो बस दो ही ...! गाये हुए गीतों के कतरे...ये लाईन ..! उन कतरों में कितना कुछ सिमटा पड़ा है ना..सोचता हूँ, जबतक दिल्ली में हूँ और कैम्पस में हूँ..ओढ़-बिछा लूं..हर वक़्त को..!
पूजा जी को आपको खूब सारा थैंक्स..! और हाँ..सागर भाई..तू तो यार..कमालहै..! पता है होगी ये लोगों के लिए कविता...अगर मै गलत नही हूँ तो मेरे लिए तो यह सुबहो-शाम की अलमस्ती है... तो क्या हुआ..पी.एच.डी. की सिनोप्सिस दो बार प्रेजेंट कर चूका हूँ पर फिर भी अभी अप्रूव्ड नही हुई.....:)