एक पूरा हफ्ता...और करने को कुछ नहीं
एडिटिंग शनिवार को होनी है।
इस बार फ़िल्म बाने के मैंने बहुत कुछ सीखा...और सबसे जरूरी था एक टीम की तरह काम करते हुए एक दूसरे पर भरोसा करना। जब किसी को कोई बात समझ नहीं आ रही तो उसकी मदद करना, उसे समझाना की वो काम को कैसे बेहतर कर सकती है...न की ख़ुद ही करने लग जाना की तुमसे नहीं हो पायेगा।
ये पहली बार हुआ है कि मैंने कैमरा फेस किया है...मुझे बहुत मज़ा आया मगर फ़िर भी हर शॉट में लगता था कि पता नहीं कोम्पोसिशन कैसी है, लाइट angles सही हैं या नहीं। काफ़ी टेंशन होती रही की फ़िल्म actually स्क्रीन पर लगेगी कैसी??!!!
रात को शूट करना बहुत मुश्किल होता है, इसलिए अधिकतर फिल्में दिन में शूट होती हैं और फिल्टर लगाये जाते हैं कैमरा पर। मुझे थोड़ा बहुत अंदाजा तो था कि दिक्कत होगी मगर इतनी होगी नहीं सोच पायी थी। हर शॉट के लिए लाइट को हटाना पड़ता था, कैमरा अलग जगह रखना पड़ता था, और इस सब के साथ ये भी ध्यान रखना पड़ता था कि ऐसा तो नहीं हो रहा कि परछाई दूसरी तरफ़ आ रही है।
सबसे मुश्किल तो ये था कि कैमरा में अच्छी इमेज आए इसके लिए लाइट कैमरा के पीछे और हमारी बिल्कुल आंखों पर पड़ रही थी...पर उसमें भी बिल्कुल आराम से dialog बोलना...हँसना गप्पें करना। एक अलग तरह का अनुभव था।
खैर शूटिंग ख़त्म हुयी...अब रिजल्ट का इंतज़ार है.
kahe ki shooting kar aayi aap? :-)
ReplyDeletechaliye hame bhi result ka intezaar rehega....
ReplyDeleteशायद यही काम बहुत बोरिन्ग लगता है पर जो टेकनिशियन हैं और अपने काम मे डूब कर काम करते है उनको इन बातो की तरफ़ ध्यान देने की फ़ुर्सत कहां ?
ReplyDeleteलगता बोरिन्ग है पर मुझे तो मजा आता था ! फ़िल्म बनाते हुये एक स्रुजन जैसी अनुभुति रही है हमेशा ! चाहे आप प्रोडय़ुसर, आर्टिस्ट, डायरेक्टर या किसी भी रूप मे फ़िल्म से जुडे हों !
आपकी फ़िल्म का इन्तजार है !
राम राम !
कैमरा फ़ेस करना रोमांचक तो रहा ही होगा .अनुभव भी गजब का होगा .
ReplyDeleteरिजल्ट आ जाने दीजिये. फ़िर कुछ कहा जा सकता है . रिजल्ट का इन्तजार आपके साथ साथ इस पूरी ब्लोग कम्युनिटी को है .
मस्त.. लगता है तुम्हारी भूतिया सिनेमा जल्द ही देखने को मिलने वाली है.. वैसे भूत तुम्ही हो ना? ;)
ReplyDeleteअब फ़िल्म दिखा दो यार !
ReplyDeleteआपकी फ़िल्म का इन्तजार है !
ReplyDeletearsh
"जब किसी को कोई बात समझ नहीं आ रही तो उसकी मदद करना, उसे समझाना की वो काम को कैसे बेहतर कर सकती है...न की ख़ुद ही करने लग जाना की तुमसे नहीं हो पायेगा।"
ReplyDeleteबिल्कुल सही|बहुत आगे जाइएगा|
पता नहीं क्यों पूजा पर आपका ब्लॉग देख कर और थोड़ा पढ़ कर कॉलेज के दिनों में पढ़ा नॉवल मुझे चांद चाहिए जोर जोर से याद आ रहा है..दिल्ली की गलियां, सपने आदि आदि..
ReplyDeleteअब फ़िल्म दिखा दो यार !
ReplyDeleteअरे आपसे ज्यादा हम सबको इंतज़ार है....रिज़ल्ट का.....सच.......!!
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