वो बड़ी मुस्तैदी से तैयार हो रहा है, शरीर के हर अंग पर एक एक करके पिस्तौल बंधे जा रहा है। नौजवान है, यही कोई २० साल का होगा। चेहरे पर एक सख्ती...भावशून्यता...पर अगर आप करीब से देखेंगे तो उसकी आंखों में एक चमक है। एक जिजीविषा जो किसी भी २० साल के लड़के में होनी चाहिए, एक आग...उसकी आंखों में भी नज़र आती है।
पर वो मशीन की तरह तैयार होते जाता है, अपने बैग में एक एक करके ग्रेनेड रख रहा है...साधारण सा दिखने वाला ये बैग, मौत का फरमान बन सकता है किसी भी वक्त। ऐसे ही बैग में हमारे देश के लाखों २० साल के लड़के किताबें और उन किताबों में जाने किसके किसके सपने लेकर घूमते हैं। खिड़की से तिरछी धूप आ रही है कमरे में, गुनगुनी , नर्म जाड़े की धूप।
वो कोई गीत गुनगुना रहा है, बहुत दर्द है उसकी आवाज में, शायद कोई विरह का गीत है। किससे इतनी दूर चला आया है ये लड़का जो इससे इतनी दूर होकर भी इसकी रूह से गीत बन कर उभर रहा है। क्या माँ बाप, क्या कोई सांवली, बड़ी बड़ी आंखों वाली लड़की है...मालूम नहीं। बालों में जेल लगता है, और बड़ी अदा से कंघी करता है, चेहरे पर फेयर एंड हैन्ड्सम लगता है। एक्स का deodrant, बिल्कुल जैसे दूल्हा बनने जा रहा हो।
फ़ोन बजता है...माँ दा लाडला बिगड़ गया...रिन्गटोन जैसे एक पल के लिए खामोशी को छिन्न भिन्न कर देता है। "तैयार हो?" उधर से पुछा जाता है, "हाँ", एक छोटा सा जवाब।
अपने पॉकेट से एक बटुआ निकलता है...उसमें एक पुराणी तस्वीर है, जर्द और पीली पड़ी हुयी। माँ, पिता और छोटी बहन के साथ वो। उसकी आंखों के आगे एक दहकता मंज़र आ जाता है, चरों तरफ़ आग कि लपटें...चीख पुकार। और फ़िर एक सन्नाटा...जिस सन्नाटे से उसे असद चाचा उठा कर ले आए थे। उस दिन से वही उसके रहनुमा है, माँ पिता से ज्यादा प्यार दिया उन्होंने, उसे तालीम दिलाई, अपने साथ के लोगों से मिलवाया। और आज वो उनके बेटे से भी बढ़कर है। इसलिए तो आज उसे ये शहादत का मौका मिला है, काफिरों पर कहर ढाएगा वो आज। वही काफिर जिन्होंने उसे उसके परिवार से अलग किया। आज उसके बदले का दिन है।
मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर अंधाधुंध गोलियां चलता है वो...और तेज़ी से ग्रेनेड फेकते हुए वहां से भागता है...पर पुलिस की गाड़ी पीछा करने लगती है...सायरन कि आवाज बड़ी तेज़ी से उसका पीछा कर रही है...वह भागता है, इतनी तेज़ जितना कि कभी नहीं bhaaga था। संकरी गलियों में, घरों के सारे दरवाजे बंद हैं, सारे दरवाजे खटखटाता है...कोई सुनवाई नहीं।
एक दरवाजे पर जैसे ही हाथ लगता है कि खुल जाता है, सांझ के गहराते अंधेरे में वो हर दिशा में गोली चलता है...बिना देखे हुए...बिना सोचे हुए...एक ही क्षण में उसके चारों तरफ़ लाशें गिर जाती हैं। वो चैन की साँस लेता है, दरवाजा बंद करता है और गले में पड़े ताबीज को चूमता है। घर के अन्दर बढ़ता है कि तभी अजान की आवाज आती है। वजू करके वह कमरे में नमाज पढने बैठा है...
कमरे में एक ही दिया जल रहा है...वह जैसे ही अपने दायीं तरफ़ देखता है....एक चीख उसके गले में ही घुट जाती है ...
पूजाघर में बाकी देवताओं के साथ एक और तस्वीर लगी थी जिसमें उसके माता पिता और वो ख़ुद था...उसपर भी फूलों की एक माला टंगी हुयी थी, तस्वीर के नीचे कई राखियाँ सजी हुयी थी.
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ReplyDeletebahut sunder kahani..akhari para na kehte huey bhi bahut kuch keh gaya..
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Kahane me thori jalbajee lagati hai.
बहुत सुन्दर और मार्मिक कहानी लिखी है।काश! ऐसे नौजवान इन बातों को समझ पाते ।
ReplyDeleteकाश! ऐसे नौजवान इन बातों को समझ पाते ।
ReplyDeletebehad satikta se likha....aapki 3 minit ki kahani me 30 janmo ka rahsay hai bus samjhne ki jarurat hai!!
ReplyDeletebahut badia kahani!
आंखों के सामने दृश्य का आवागमन हो गया
ReplyDeleteमार्मिक और सटीक ! पर क्या ईनका कोई धरम या ईमान होता है ? ये किसी के नही होते !
ReplyDeleteराम राम !
भावना के धरातल पर आपकी कहानी बहुत ही मार्मिक है... दिल को छूती भी है... पर तर्क के नजरिये से कुछ कमी-सी रह गई है... उम्दा प्रयास है आपका...!!!
ReplyDeleteदिग्भ्रमितों व सही सही कहूँ तो आक्रान्ताओं को ग्लैमराईज़ करने जैसा लगा।
ReplyDeleteजिन्होंने अभी अभी हमरी माँ की अस्मत छीनी-लूटी, हमारे अपनों को लगातार मार-काट करते चले आ रहे हैं,उनके प्रति संवेदनशील होने की नहीं, उन्के विरोध में जनमानसिकता बनाने की कोशिश होनी चाहिए।यह प्रत्येक भारतवासी का नैतिक दायित्व है।
चुनना पड़ेगा कि माँ के प्रति भावना, संवेदना, मार्मिकता, दिखानी है या माँ के हत्यारों व माँ के साथ व्यभिचार करने वालों के साथ।
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ReplyDeleteपरेशानी यही है कि लोगों में भावनाएं मरती जा रहीं हैं.
ReplyDeleteऔर यह इंसान को मशीनी बना दे रही है.
@कविता जी
यह एक कहानी है और इसका पात्र वो वास्तविक आतंकी जिसने अभी हाल में मुंबई में गोली बारी की थी वह नही बल्कि एक आम भटका हुआ हिन्दुस्तानी नौजवान है कहानी में इस बात को उकेरा भी गया है.
समस्या सिर्फ़ बाहर से आने वालों से ही नही बल्कि अपने अन्दर से भी है और बाहर वाली समस्या का समाधान अंदरूनी समस्या के समाधान से अलग होना है.
यकीनन देश के अन्दर के सभी भटके हुए युवक दंड के पात्र होते हैं पर ये भटकाव रोकने की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है समाज की आख़िर क्यों कहानी के असद चाचा जैसे लोगों को मौके मिलते हैं आख़िर कैसे वो पहले पहुँच के रहनुमा बन जाते हैं प्रश्न ये भी है.
हो सकता है कि यह कहानी सही समय पर नही आई हो पर इससे इसके मायने कम से कम पढ़े लिखे और सोचने वालों के लिए तो बदल नही जाते!
AAP IAS KHANI PAR 3-4 MIN KI FILM BH BANA SAKTI HAI
ReplyDeleteये कहानी तो पुरी तरीके से चलचित्र की तरह चलती रही आँखों के सामने.. बहोत ही बढिया मार्मिक प्रस्तुति आपके द्वारा ..... बहोत खूब लिखा है आपने ... ढेरो बधाई आपको....
ReplyDeleteअर्श
पढ़कर ऐसा लगा की कोई मूवी देख कर उसका सीन याद कर रहा हूँ ! मेरा सोचना सही था आप अच्छी कहानियाँ लिख लेती हैं|
ReplyDeleteबड़ी खूबसूरती से गढी हुई कहानी. पर कविता जी से ताल्लुक तो मेरा भी है.
ReplyDeleteधन्यवाद, इस कहानी के लिए .
मार्मिक एवं प्रवाहमय कहानी.बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति की गयी है आपके द्वारा ..... ।
ReplyDeletegood composition
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ReplyDeleteमार्मिक /लिखने को कोई शब्द ही नहीं मिल पा रहे
ReplyDeletebahut sundar kahani ,
ReplyDeletedil ko choo gayi ..
badhai
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
pooja di.. I would love to see u r comment on my latest post
ReplyDeleteNew Post :- एहसास अनजाना सा.....
छोटी और मार्मिक कहानी।
ReplyDeletegood article
ReplyDeleteमुंबई वाकया आप पर अभी भी हावी है, यह मैं पिछली तमाम पोस्ट्स पढ़कर समझ रहा था मगर टिप्पणी करने से बचता रहा।
ReplyDeleteपरेशान होने से बचें। उससे दुविधा बढ़ती है। दुख तभी तक सार्थक जबतक वह सिर्फ़ झकझोर कर एक ओर हो जाए, चिपके नहीं।
जीती भी रहो और माँ का हाथ भी सिर पर बना रहे हमेशा।
शुभम।