घर
ये एक शब्द जाने कैसे
अजनबी, अछूता सा हो गया है
वो घर जहाँ शीशम के पेड़ थे
आसमान तक जाती झूले की पींगें थी
क्यारियों में लगी रजनीगंधा थी
कुएं में छप छप nahata चाँद था
पोखर में उछलते कूदते मेंढक थे
बारिशों में कागज़ की नाव थी
धूप में अमरुद का पेड़ था
छोटी सी चारदीवारी थी
जिसे सब फांद जाते थे
खूब सारे पीले फूलों से ढका पेड़ था
गुलमोहर के फलों की तलवारें थी
बालू के घरोंदे थे
गिट्टी के पहाड़ और किले
बुढ़िया कबड्डी थी
खाली खाली सड़क थी
हाफ पेडल साईकिल थी
११ सालों में बड़ा हुआ बचपन था
जो ६ सालों से खोया हुआ है...
जाने कैसी कैसी यादों ने आ घेरा, शब्द कबड्डी खेलने लगे, परेशान हो गई मैं। इस पोस्ट की पोटली में बाँध दिया, अब शायद इनकी शरारत थोडी कम हो।
आज से महेन के ब्लॉग चित्रपट पर भी लिख रही हूँ। फिल्मों को एक अलग नज़र से देखने का शौक़ वो भी रखते हैं उन्होंने अपने कारवां में साथ चलने का आमंत्रण दिया...और हम चल पड़े। अलग सी फिल्मों के बारे में बहुत अच्छी जानकारी है इस नवोदित ब्लॉग पर।
बहुत सरस रचना पेश की है
ReplyDeleteघर......दो अक्षर और पूरा संसार
ReplyDelete"चित्रपट" से रूबरू करवाने का शुक्रिया
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteरामराम !
मैं अक्सर आती हुईं तुम्हारे ब्लोगों पर, इतनी छोटी सी उमर, तुम्हारा बड़प्पन और शब्द भाव मुझे छु जाता है, तुम्हारे भीतर छुपा तूफान मुझे हिलकोरे देता है इस आपा-धापी की दुनिया में भी तुम जिन्दगी और अपने आप से कितना करीब हो यह सब मुझे खुश कर देता है :-)
ReplyDeleteघर, कुएं में नहाता चाँद, अमरुद का पेड़, बालू के घरोंदे, गिट्टी के पहाड़ और किले, बुढ़िया कबड्डी, हाफ पेडल साईकिल..
ReplyDeleteक्या क्या लिख दी हो? फिर से नौस्टेल्जिक हुआ जा रहा हूं.. क्या एक और पोस्ट मुझसे लिखवाने का इरादा है? :)
वैसे मैं पहले भी तुम्हारे प्रोफ़ाईल में देखा था उस ब्लौग का नाम, मगर कभी गया नहीं था.. अभी जाकर देखता हूं.. मैं आमतौर से दो सिनेमा आधारित ब्लौग देखता हूं.. एक चव्वनी चैप और दूसरा सिनेमा-सिनेमा.. अगर ये भी पसंद आया तो ये भी जुड़ जायेगा.. :)
yaar tussi...to maltitalented ho...wahhh kya baat hai....1 blog pada chha laga...dusra pada wahh teesra pada very good...choutha to kamal...and many more....kaise yaar.....
ReplyDeleteheads of you...???
Keep it up....
क्या खूब लिखा है पूजा आपने, बहुत गहरा, बहुत भावपूर्ण.
ReplyDeleteपहली बार आया, कविता पढ़ी या भावः मगर दिल की गहराई से छूती हुई निकली.
ReplyDeleteआपको बधाई
Achha likhti hain aap..Kahin padha tha ki yaadein bhi bahut azeeb hoti hain- Purani dukh bhari baaton pe hansati hain aur purani khushiyon ke yaad aane per rulati hain..Aapne mujhe phir se likhne ke liye prerit kiya hai..Dhanywaad..
ReplyDeleteएक और बात, आपके विचार पढ़कर मुझे लगा की मुझे अपने ब्लॉग को एक पुनरजन्म देना चाहिए और रातों रात मैंने उसे वास्तविकता देने की कोशिश की है। धन्यवाद मेरी Inspiration बन्ने के लिए।
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