कुछ दिन पहले पीडी से बात कर रही थी, उसने फिल्मों के बारे में कुछ और जानने की इच्छा जाहिर की। अब वैसे तो हम इस तरह का ज्ञान बांटने में पहले से ही दो कदम आगे रहते हैं...पर इस बार समस्या थोडी जटिल थी। फ़िल्म बनाना आसान है, ऐसे बहुत director हैं जिन्होंने बिना कहीं से कुछ पढ़े अच्छी फिल्में बनाई हैं। यहाँ पढ़े से मेरा मतलब था की कोई प्रोफेशनल कोर्स किए बगैर।
किसी भी दिशा में बढ़ने से पहले उसके बारे में जानकारी इकठ्ठा करना जरूरी होता है, इन्टरनेट आ जाने से काफ़ी आसानी हो गई है। मैंने अपने कॉलेज के समय में काफ़ी खाक छानी थी, अच्छी किताबें ढूंढ़ना अपने आपमें एक महान कार्य होता है :) और उसपर भी जब आप पटना जैसे शहर में रह रहे हों। साल भर पुस्तक मेला का इंतज़ार रहता था की कोई अच्छी किताब मिलेगी...और वाकई ये इंतज़ार बेकार नहीं होता था।
दिल्ली आने के बाद काफ़ी आसान हो गई चीज़ें, एक तो IIMC की विशाल लाइब्रेरी जिसमें फ़िल्म के हर पक्ष को लेकर कई किताबें थी, चाहे वो नई तकनीक हो या पुराने जुगाड़। इसके अलावा अगर कभी मन होता तो CP जा के किताबें ले आते...यहाँ बंगलोर आई तो पहली बार नेट पर ढूँढने की जरूरत महसूस की...तो पाया की हिन्दी फिल्मो का रेफेरेंस कहीं भी नहीं मिलता है। और बाकी फिल्में ढूंढ़ना काफ़ी मुश्किल भी होता है, अगर किस्मत अच्छी हुयी तब तो मिलेगी वरना बस...आसमान देख कर बारिश की उम्मीद करने वाला हाल।
आग में घी का काम किया एक और व्यक्ति ने, जिसका मुझे नाम भी नहीं पता है। हुआ ये कि मैंने फ़िल्म पर जो वर्कशॉप की थी, उसमें एक उदहारण Blair Witch Project नाम कि फ़िल्म का था...यह फ़िल्म मुझे बिल्कुल ही बकवास लगी थी, कारण किसी और दिन बताउंगी...तो बन्दे ने कह दिया कि ये बहुत अच्छी फ़िल्म थी और तुम्हें फिल्मो की पकड़ नहीं है वगैरह वगैरह...intellectuals के लिए बनाई गई थी फ़िल्म। अब ऐसे अपने मुंह मिया मिठू को तो खैर क्या कहना...पर इस बात बाटी में उसने एक बात और कह दी...कि हम हिन्दुस्तानियों को फिल्मो कि समझ नहीं है, और हमें फ़िल्म बनने नहीं आती। खास तौर से इशारा हिन्दी फिल्मों की और था...उन्होंने कुछ कुछ होता है को छोड़ कर कोई भी हिन्दी फ़िल्म नहीं देखी थी। अब ऐसे बेवकूफ लोगो को क्या कहूँ मैं...बिना ये देखे और जाने कि हमारे यहाँ कैसे फिल्में बनी है चल दिए अमेरिका का गुणगान करने।
तो मैंने सोचा कि फिल्मों पर एक श्रृंखला शुरू करुँगी...भाषा हिन्दी और इंग्लिश जो भी सही लगेगा टोपिक के हिसाब से...पर उसमें मैं कुछ उन फिल्मो का जिक्र करुँगी जो हमारे यहाँ बनी हैं, और उनके कुछ उन पहलुओं पर रौशनी डालूंगी जिससे हम सब रिलेट कर सकते हों।
अब चूँकि इस ब्लॉग पर इंग्लिश में नहीं लिखती हूँ, तो दूसरे ब्लॉग पर लिखूंगी...और सिर्फ़ इसी बारे में लिखूंगी। I dream ब्लॉग फिल्मों के बारे में मेरे सपनो को लेकर है। सोच रही हूँ लिखना शुरू करूँ, पर चूँकि अभी तक ऐसा कुछ मिला नहीं है पढने को , ये भी लगता है कि ऐसे मटेरिअल कि जरूरत है भी कि नहीं, मैं बिन मतलब के वक्त तो नहीं बरबाद करुँगी?
आपकी क्या राय है?
इन्तजार है आपके अनुभव पढने का !
ReplyDeleteराम राम !
इरादा तो बहुत बढ़िया है तुम्हारा.. मैंने तुम्हारे उस ब्लौग को भी अपने गूगल रीडर पर जोड़ लिया है जिससे उसकी कोई पोस्ट मुझसे चूके नहीं.. बढ़िया है.. तुम आगे बढो, कम से कम मैं तो तुम्हें जरूर पढ़ रहा हूं.. चाहे अंग्रेजी में या हिंदी में.. :)
ReplyDeleteइन अंग्रेजी दा लोगों का क्या कहें, पाश्चात्य सभ्यता के पीछे भागते हुये इन्हें पता भी नहीं होता कि भारत में क्या है.. उन्हें तो हर चीज बुरी ही लगती है यहां की.. खैर उनका ज्यादा टेंशन नहीं लेने का.. :)
इरादा तो बहुत बढ़िया है तुम्हारा.. मैंने तुम्हारे उस ब्लौग को भी अपने गूगल रीडर पर जोड़ लिया है जिससे उसकी कोई पोस्ट मुझसे चूके नहीं.. बढ़िया है.. तुम आगे बढो, कम से कम मैं तो तुम्हें जरूर पढ़ रहा हूं.. चाहे अंग्रेजी में या हिंदी में.. :)
ReplyDeleteइन अंग्रेजी दा लोगों का क्या कहें, पाश्चात्य सभ्यता के पीछे भागते हुये इन्हें पता भी नहीं होता कि भारत में क्या है.. उन्हें तो हर चीज बुरी ही लगती है यहां की.. खैर उनका ज्यादा टेंशन नहीं लेने का.. :)
you should must write..after all if you know something u should have to spread it..don't bother about others..knowledge always does matter..
ReplyDeleteEven i m interested to read all about that..So just start writing..
चलिये इँतज़ार करने वालो की लाईन मे हम भी शामिल हो रहे है.
ReplyDeleteमहेन ने अपने ब्लॉग पर जिन इरानियन फिल्मो का जिक्र अभी कुछ दिन पहले किया है उनमे से दो फिल्म मैंने देखी है.....कम पैसो में इतना अच्छा सवेदनशील सिनेमा मैंने कम ही देखा है....भारतीय सिनेमा में श्याम बेनेगल ओर गोविन्द निहालनी भी कम बजट में ऐसी फिल्म देने वाले लोग है.तुम उन इरानियन फिल्मो को देखना...
ReplyDeleteआपकी शुभेच्छा और हमारी शुभकामनाएँ... बात तो सौ फीसदी सही है की बाकी के दुनिया वालों ने कभी क़द्र ही नहीं की... ना तो भारतीय फिल्मों की और ना ही साहित्य की... वरना, बात कुछ और ही होती...!!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया! शुभकामनाएँ!
ReplyDelete---------------
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
vaise aapka irada nek hain...kabhi kabhi main bhi aisa sochta hoon...par pura blog dedicate karne ka socha nahin...mere blog par rock on movie ke upar ek post likhi thi maine...jo dil se nikla...likh diya...shayad aapke reference ke kaam aaye...
ReplyDeleteहमारी राय..............?? अरे आप काम तो शुरूं करें...कहीं ऐसा न हो हम भी इस काम आपके साथ आ जुडें..!!
ReplyDeletePrashant Bhaiya ka naam sunke is post mein ruchi badh gayi thi meri :)
ReplyDeletefir laga jaise apne hi vichaaro ko padh raah hoon..technica field ke logo ko to aas paas sirf aise log milte hai jo ye maan chuke hai ki "hollywood" humse bahut "superior cinema" hai,jo main kabhi maan nahi paaya...jo is baat ko koste hai ki ahaan ki filmo mein gaane bhare rehte hai wo ye nahi jante ki bina gaano ki bhi behatraeen movies bani hai yahaan...aur jo shaandaar films hai,wahan gaano ne iski khoobsoorati ko badhaya hi hai...aisa asar wo apne film mein paida karke dikhaa de :)
zaroorat hai ki log cinema making ko kala se jodke dekhe aur baad mein manoranjan se....pratibha to bhaarat meina aisi hai ki kalaa aur kalaakar mein to hum kisise pichhadne waale nahi
काहे कू सोच करे मन पूजा
ReplyDeleteसोच करे से का कर लेगी..
जान कूँ देत अजान कूँ देत
जहान कूँ देत सो तौऊ कूँ देगी
जब दाँत न थे तब दूध दयो
अब दाँत दये तो का अन्न ना देगी
माता रानी सब देगी..
पाठक भी देगी और हौसला भी
आप लिखियेगा.
अपुन भी पढेगा..
और संग संग बढेगा..