इक दुआ सी कैसी
कल शाम तेरी याद आई
कि जिंदगी फ़िर से...जिंदगी लगने लगी
एक लम्हे को छुआ जब
तेरे लबों की तपिश ने
बादलों में फ़िर से...आग सी लगने लगी
तनहाइयों के घर में
डाले थे कब से डेरा
तेरा नाम लिया जैसे...चहलकदमी होने लगी
टूटा हुआ था मन्दिर
रूठे थे देव सारे
जिस दिनसे तुझे माँगा...फ़िर बंदगी होने लगी
तुम सामने हो कब तक
यूँ होश सम्हालें हम
एक नज़र ही देखा...दीवानगी होने लगी
मर ही गए थे हम तो
यूँ तुमसे दूर रह कर
तुम आ गए हो फ़िर से...जिंदगी होने लगी
sahi flow..sahi emotions
ReplyDeleteसुन्दर रचना है।बधाई\
ReplyDeleteachhi rachna..
ReplyDeleteaapki sari kavitayen bahut achhi hoti hain...
'तुम्हारे बिना' was also good
टूटा हुआ था मन्दिर
ReplyDeleteरूठे थे देव सारे
जिस दिनसे तुझे माँगा...फ़िर बंदगी होने लगी
बहुत बढिया।
"इक दुआ सी कैसी
ReplyDeleteकल शाम तेरी याद आई
कि जिंदगी फ़िर से...जिंदगी लगने लगी"
वाह, सच है, किसी कि याद भी जिन्दगी रौशन कर जाती है। बहुत सुन्दर लिखा है आपने।
सुन्दर...सुन्दर....सुन्दर...
ReplyDeleteमर ही गए थे हम तो
ReplyDeleteयूँ तुमसे दूर रह कर
तुम आ गए हो फ़िर से...जिंदगी होने लगी
क्या खूब ? आज तो लाजवाब रचना है !
राम राम !
एक लम्हे को छुआ जब
ReplyDeleteतेरे लबों की तपिश ने
बादलों में फ़िर से...आग सी लगने लगे
खूब डट कर लिखो मुझे उम्मीद है कि और भी अच्छा होगा प्यार पर भी लिखो मगर आज़मा के देखो कभी प्यार से हटकर लिखो। आपकी ये बात बेहद अच्छी लगी कि आप नियमों के साथ चलती हैं।
"टूटा हुआ था मन्दिर
ReplyDeleteरूठे थे देव सारे
जिस दिनसे तुझे माँगा...फ़िर बंदगी होने लगी"
किसी के प्रति अनुरक्ति स्वतः ही ईश्वर की तरफ़ उन्मुख कर देती है, और फ़िर जब ईश्वर उस अनुरक्ति को आत्मसात करने का गहरा भाव हमारे भीतर भर देता है, तब वह अनुरक्ति ही ईश्वरत्व का रूप हो जाती है .
रचना के लिये धन्यवाद.
गहराई तक अपना असर छोड़ती ..........एक सुंदर सी कविता.
ReplyDeleteराजीव महेश्वरी
मर ही गए थे हम तो
ReplyDeleteयूँ तुमसे दूर रह कर
तुम आ गए हो फ़िर से...जिंदगी होने लगी
bahut sundar.. bahut din baad purani pooja ji dikhi :-)
काफ़ी रूहानी है..
ReplyDeleteतुम आ गए हो फ़िर से...जिंदगी होने लगी
ReplyDeleteदिल छु देने वाली लाइन
बहुत बढ़िया भाव पूर्ण
ReplyDeleteथोड़ा सा रूमानी हो गये .......आज तो आप
ReplyDeleteKal raat me hi dekha tha, magar na to padha aur na hi tipiyaya.. kyonki kal padhta to vo mahsoos nahi karta jo abhi kar raha hun.. kal kahani jaise padhta aur abhi kavita ko mahsoos kar raha hun.. shbdon ka anokha khel sajaya hai tumne..
ReplyDeletecomments padhne ke baad "Thoda sa rumani ho jaaye" cinema yaad aa raha hai.. :)
जिंदगी होने लगी..bahut khuub..
ReplyDeleteकुछ पंक्तियां तो बेहद अच्छी बन पड़ी हैं खास कर टूटा हुआ था मन्दिर
ReplyDeleteरूठे थे देव सारे
जिस दिनसे तुझे माँगा...फ़िर बंदगी होने लगी
बहुत सुंदर
बहुत अच्छा है.
ReplyDeleteVery nice.
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