आज भी याद है
वो चूडियों की खनक
जब सिल्ली पर
बादाम की चटनी पीसती थी
एक लय थी उसमें...खन खन खन सी
या जब रात को चुपके से
देखने आती थी की मैं पढ़ रही हूँ
या सो गई
दबे पाँव आने पर भी
पायल थोडी सी बोल ही देती थी...
सुबह जब तक
पॉँच बार आवाज न लगाये
उठने का सवाल ही नहीं उठता था
बिना डांट खाए
रोटी गले से नहीं उतरती थी...
याद है अब भी मुझको
शादी वगैरह में जाने पर
कैसे हुलस के गीत गाती थी तुम
सब तुम्हारे आने का इंतज़ार किया करते थे...
सरस्वती पूजा, दशहरा और दिवाली की आरती
तुमसे ही तो सुर मिलाना सीखा था
शंख की ध्वनि...और वो घंटियाँ
आज बैठती हूँ
अचानक से मेरी चूडियाँ बोल उठती हैं
लगता है सामने दरवाजे से तुम आ जाओगी
लेकिन...बिखर जाता है सन्नाटा
तुम्हारे बिना घर चुप हो गया माँ...
शब्दों को आपने इतने सुंदर ढंग से पिरोया है और क्यों हो जब माँ की बात होती है. हर माँ को नमन. आभार.
ReplyDeleteखेद है बीच में क्यों के बाद एक "न" छूट गया.
ReplyDeleteक्या कहूं.. कविता बहुत मार्मिक है.. किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आंखें नम कर सकती है..
ReplyDeleteयाद है तुम्हीं ने एक बार मुझे कहा था कि यादों को पड़े रहने देना चाहिये, मगर मेरे मुताबिक ऐसी यादों को हमेशा याद करते हुये जीना चाहिये.. उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिये..
आज बैठती हूँ
ReplyDeleteअचानक से मेरी चूडियाँ बोल उठती हैं
लगता है सामने दरवाजे से तुम आ जाओगी
लेकिन...बिखर जाता है सन्नाटा
तुम्हारे बिना घर चुप हो गया माँ...
भावुक कर गई आपकी ये रचना। पहले भी शायद आपने माँ को याद किया था किसी रचना में। वैसे माँ की जगह कोई दुसरा नही ले सकता। माँ तो माँ होती हैं मैं अक्सर यही कहता हूँ। माँ, बाप का साया ही बहुत हिम्मत देता हैं। वैसे पी डी जी सही कह रहे है यादों को याद करते हुए जीना चाहिए।
मां की यादे बहुत गहरी होती है और जीवन भर वैसी ही ताजी रहती हैं ! बहुत मुश्किल होता है उनको भूल जाना ! चाहे हम उम्र के किसी भी पडाव पर पहुंच जायें !
ReplyDeleteराम राम !
बहुत दिल को छु लेने वाला लिखा है आपने माँ पर
ReplyDeleteमैं मां के प्रति व्यक्त की गयी इन पंक्तियों के लिये कुछ भी व्यक्त नहीं करना चाहता.
ReplyDeleteआपकी संवेदना से दो चार होकर मन अपने आप को इन पंक्तियों से व्यतीत नहीं करना चाहता.
आपकी इस रचना के लिये धन्यवाद.
आज बैठती हूँ
ReplyDeleteअचानक से मेरी चूडियाँ बोल उठती हैं
लगता है सामने दरवाजे से तुम आ जाओगी
लेकिन...बिखर जाता है सन्नाटा
तुम्हारे बिना घर चुप हो गया माँ...
दिल को छूती हुयी कविता
आस पास बिखरे हुवे लम्हों को बहुत सहेज कर जैसे माला मैं पिरो दिया हो
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है...
ReplyDelete---------------
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
bahut khoob
ReplyDeleteantim do panktiyaan to aankhen bhigo gayi puja.
isi tarh nirantar likhte rahiye.
www.merakamra.blogspot.com
आज भी याद है
ReplyDeleteवो चूडियों की खनक
जब सिल्ली पर
बादाम की चटनी पीसती थी
एक लय थी उसमें...खन खन खन सी
या जब रात को चुपके से
देखने आती थी की मैं पढ़ रही हूँ
या सो गई
दबे पाँव आने पर भी
पायल थोडी सी बोल ही देती थी...
वाह वाह बहुत बढ़िया लिखा है।
माँ..............क्या कहूँ.......!!??
ReplyDeleteवाहवा बढ़िया कविता है जी, साधुवाद स्वीकारें.
ReplyDeleteआपकी कविता वाकई दिल को छूती है। ..और इस टिप्पणी को भी दिल से निकली टिप्पणी ही माना जाए।
ReplyDeleteपायल थोडी सी बोल ही देती थी...AACHI KAVITA H AAPKI
ReplyDeleteAGAR MAA HOTE AAJ TOH KYA HOTA....EIN BAATO PAR BH LIKHO KABHI
RISHTO K DHAGGE MAT NIKALO..YEH RISHTE KA LIBAAS PURANA H....TUM MAA K LIBAAS KA EK TUKDA H.....KEEP WRITING...ROZ KUCH NAYA LIKHTE H AAP..
ROZ AAPKE BLOG PAR KUCH DEER THARANE KA MAAN KARTA H....
पायल थोडी सी बोल ही देती थी...AACHI KAVITA H AAPKI
ReplyDeleteAGAR MAA HOTE AAJ TOH KYA HOTA....EIN BAATO PAR BH LIKHO KABHI
RISHTO K DHAGGE MAT NIKALO..YEH RISHTE KA LIBAAS PURANA H....TUM MAA K LIBAAS KA EK TUKDA H.....KEEP WRITING...ROZ KUCH NAYA LIKHTE H AAP..
ROZ AAPKE BLOG PAR KUCH DEER THARANE KA MAAN KARTA H....
ये और बेहतर कविता वाह वाह वाह्
ReplyDeletebahut achchhi kavita .maan to vah vistaar hai ,jo poora ka poora shabdon men simat nahin pata fir bhi aapki prastuti marm ko sparsh karti hai
ReplyDeleteachchhi rachanaa ke liye sadhuvaad
बहुत सुंदर
ReplyDeleteभावनाओं की गहरायी को शब्दों में पिरोया है ... लाजबाब ....पसंद आया
ReplyDeleteअति उत्तम ...सर्वोत्तम
ReplyDeleteइसे कहते हैं शब्द चित्र. लगता है कि सब कुछ सामने घटित हो रहा है.
ReplyDeletepooja ji bahut hi sundar rachana likhi hai apne bilkul lajabab ....blog pr amantran sweekaren
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