सारे पहाड़ों से आवाज़ लौट कर नहीं आती...कुछ ऐसे भी पहाड़ होते हैं जिन्हें कितनी भी आवाजें दो...अपने पत्थर के सीने में सकेर कर रख लेंगे...संकरी पगडंडियों के किनारे चलती छोटी सी लड़की सोचती है...पहाड़ों के दिल नहीं होता न!
लड़की बेहद खूबसूरत थी और क्लास के लगभग सभी लड़के मरते थे उसपर...उसे मालूम नहीं था कि इकतरफा प्यार क्या होता है पर ये तब तक था जब तक उसने दार्जलिंग से नज़र आती हिमालय पर्वत श्रृंखला नहीं देखी थी. आसमान तक सर उठाये...बर्फ का मुकुट पहने, जिद्दी, अक्खड़, पत्थर सा सख्त, बारिशों में सनकी और खतरनाक मोड़ों से भरा हुआ...उसे पहाड़ से पहली ही नज़र में प्यार हो गया था. लड़की को वैसा कोई मिला नहीं था कभी...उसे सब अच्छे भले लोग मिले थे...उसने दिल में सोचा...प्रेडिक्टेबल...हाउ बोरिंग...जबकि पहाड़ का कोई नियत मूड नहीं होता...कहीं ग्लेशियर होते हैं कहीं दूर तक बिछते घास के मैदान...कहीं कंदराएं तो कहीं फूलों की घाटी.
छोटी लड़की ने चाय के बगान देखे...ढलानों पर उतरती औरतें...नाज़ुक उँगलियों से चाय की लम्बी पत्तियां तोड़ती हुयीं...उसने जाना कि दार्जलिंग के ठंढे मौसम और यहाँ की मिटटी के कारण यहाँ की चाय बेहद खुशबूदार होती है...और चाय का ऐसा स्वाद सिर्फ दार्जलिंग में उगती चाय में आता है...कांच की नन्ही प्यालियों में चाय आई...सुनहले रंग की...एकदम ताज़ी खुशबू में भीगती हुयी. लड़की ने उसके पहले चाय नहीं पी थी जिंदगी में...चाय के कप के इर्द गिर्द उँगलियाँ लपेटी...गहरी सांस ली...और पहाड़ों की गंध को यादों के लिए सहेजा...फिर पहला नन्हा घूँट...हल्का तीखा...थोड़ा मीठा...और थोड़ा जादुई...जैसे स्नोवाईट को नींद से उठाता राजकुमार. अंगूठे और तर्जनी से उसने एक चाय की पत्ती तोड़ी...बुकमार्क बनाने के लिए और वापस लौट आई. रात होटल के कमरे में बेड टी पीती लड़की अपनी डायरी में लिख रही थी...पहाड़ों के पहले चुम्बन के बारे में...और जबां पर देर तक ठहरे आफ्टरटेस्ट के बारे में भी.
उसके दोस्त उसे पहाड़ी नदी बुलाते थे...हंसती खिलखिलाती...कलकल बहती हुयी...पर लड़की घाटी के आखिरी मुहाने पर खड़ी सोच रही है कि पहाड़ तो उससे प्यार ही नहीं करता...सिर्फ पहाड़ों में बहने से कोई पहाड़ी नदी हो जाती है क्या...व्यू पॉइंट पर उसने पुकारा...पियुsssssss...कोई आवाज़ लौट कर नहीं आई...वो एक लम्हा रुकी, गहरी सांस लेते हुए फेफड़ों में हवा भरी...इस बार उसने नाम को दो अक्षरों में तोड़ा और पहाड़ों के बीच की लम्बी खाई में अपने नाम को दूर तक जाने दिया...पिssssss युsssssssss....पहाड़ ने उसका नाम वापस नहीं किया...लड़की गुस्से में पैर पटक रही थी...फिर उसने खुद के सारे नामों से पहाड़ों को टेलीग्राम भेजा...पिहू...सिली...नदी...छु.ट.की...पिया...छोटी सी लड़की का चेहरा इतनी जोर से नाम पुकारने के कारण लाल होता जा रहा था...वो हर बार एक गहरी सांस खींचती, दोनों नन्ही हथेलियों से ध्वनि तरंगों की दिशा निर्धारित करती और अपना नाम पुकारती...पहाड़ एकदम खामोश था...कितना भी उम्र का अनुभव हो उसके पाले में...प्यार से किसे डर नहीं लगता...वो भी ऐसी लड़की से.
लड़की रात को थोड़ी उदास थी...कल सुबह वापस लौटना था...उन पहाड़ों में पैदल...जीप पर और घोड़े पर उसने अनगिन नज़ारे देखे थे...वो जितना पहाड़ों को जानती उतने ही गहरे प्यार में गिरती जाती...वो उम्र भी कुछ ऐसी थी कि उसे मालूम नहीं था कि जितना देख रही हैं आँखें और जितना संजो रहा है मन सब कुछ बाद में चुभेगा. आसमान तक पहुँचते देवदार के पेड़ों से सर टिकाये उसने बहुत से ख्वाब बुने...कच्ची उम्र के ख्वाब जिनमें पहाड़ों पर बार बार लौट आने के वादे थे. निशानी के लिए उसने अपना स्कार्फ व्यू पॉइंट के पास वाले पेड़ पर बाँध दिया...उसे क्या मालूम चलना था कि हवा में उड़ते स्कार्फ से पहाड़ को गुदगुदी लगेगी...वो तो बस चाहती थी कि पहाड़ उसे कभी भूले न.
सुबह सूरज के उगने के पहले वो व्यू पॉइंट पहुँच चुकी थी...इस बार उसने अपना नाम नहीं लिया...
आई...लव...यू...फिर एक साँस भर की चुप्पी और आखिरी और सबसे खूबसूरत शब्द...
फॉर...एवर.
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उस दिन के बाद कभी जाना नहीं हुआ पहाड़ों पर...उम्र के कई पड़ाव पार कर चुकी है नन्ही सी लड़की और आजकल पहाड़ों के देश से बहुत दूर निर्जन में है...जहाँ सिर्फ मैदान है दूर दूर तक...धरती औंधी कटोरी की तरह दिखती है...लड़की आज भी सुबह सुबह ब्लैक टी पीती है...खास दार्जलिंग से लायी हुयी...कांच की प्याली में...उँगलियाँ लपेटते हुए पहली चुस्की लेती है...ओह...आई स्टिल लव द वे यु किस...उसका पति उसके चाय प्रेम से परेशान है...चिढ़ाता है...लोगों को प्यास लगती है तुम्हें चयास लगती है...लड़की कुछ नहीं कहती...सुबह की पहली चाय के वक़्त वो कहीं और होती है...किसी और समय में...पहले प्यार की कसक को घूँट घूँट जीती हुयी.
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एक पहाड़ था जहाँ लड़कियां नहीं जाना चाहती थीं...उस पहाड़ की गहरी लाल चट्टान पर यूँ तो कोई आवाज़ लौट कर नहीं आती थी...पर ठीक शाम जब बादल घर लौटने लगते थे...एक गुलाबी स्कार्फ हवा में हलके हिलने लगता था...अलविदा कहता हुआ...उस वक़्त पहाड़ों को किसी भी नाम से पुकारो...वो एक ही नाम लौटाता था...
पिssssssss युssssssss...
पिssssssss युssssssss...
पिssssssss युssssssss...