कभी नदी से उसके ज़ख्म पूछना
दिखाएगी वो तुम्हें अपने पाँव
कि जिनमें पड़ी हुयी हैं दरारें
सदियों घिसती रही है वो एड़ियाँ
किनारे के चिकने पत्थरों पर
मगर हर बार ऐसा होता है
कि नदी अपनी लहरदार स्कर्ट थोड़ी उठा कर
दौड़ना चाहती है ऊपर पहाड़ों की ओर
तो चुभ जाते हैं पाँवों में
नए, नुकीले पत्थर
कि पहाड़ों का सीना कसकता रहता है
नदी वापस नहीं लौटती
और दुनियादारी भी कहती है मेरे दोस्त
बेटियाँ विदाई के बाद कभी लौट कर
बाप के सीने से नहीं लगतीं
पहाड़ों का सीना कसकता है
लहरदार फ्राक पहनने वाली छोटी सी बरसाती नदी
बाँधने लगती है नौ गज़ की साड़ी पूरे साल
उतरती नदी कभी लौट कर नहीं आती
मैं कह नहीं पाती इतनी छोटी सी बात
'आई मिस यू पापा'
मगर देर रात
नींद से उठ कर लिखती हूँ
एक अनगढ़ कविता
जानती हूँ अपने मन में कहीं
पहाड़ों का सीना कसकता होगा
परायीं ज़मीनों को सींचने के लिए
बहती जाती हैं दूर दूर
मगर बेटियाँ और नदियाँ
कभी दिल से जुदा नहीं होतीं...
दिखाएगी वो तुम्हें अपने पाँव
कि जिनमें पड़ी हुयी हैं दरारें
सदियों घिसती रही है वो एड़ियाँ
किनारे के चिकने पत्थरों पर
मगर हर बार ऐसा होता है
कि नदी अपनी लहरदार स्कर्ट थोड़ी उठा कर
दौड़ना चाहती है ऊपर पहाड़ों की ओर
तो चुभ जाते हैं पाँवों में
नए, नुकीले पत्थर
कि पहाड़ों का सीना कसकता रहता है
नदी वापस नहीं लौटती
और दुनियादारी भी कहती है मेरे दोस्त
बेटियाँ विदाई के बाद कभी लौट कर
बाप के सीने से नहीं लगतीं
पहाड़ों का सीना कसकता है
लहरदार फ्राक पहनने वाली छोटी सी बरसाती नदी
बाँधने लगती है नौ गज़ की साड़ी पूरे साल
उतरती नदी कभी लौट कर नहीं आती
मैं कह नहीं पाती इतनी छोटी सी बात
'आई मिस यू पापा'
मगर देर रात
नींद से उठ कर लिखती हूँ
एक अनगढ़ कविता
जानती हूँ अपने मन में कहीं
पहाड़ों का सीना कसकता होगा
परायीं ज़मीनों को सींचने के लिए
बहती जाती हैं दूर दूर
मगर बेटियाँ और नदियाँ
कभी दिल से जुदा नहीं होतीं...
क्या लिखूं इस रचना पर कमेन्ट? निशब्द हूँ!!
ReplyDeleteपरायीं ज़मीनों को सींचने के लिए
ReplyDeleteबहती जाती हैं दूर दूर
मगर बेटियाँ और नदियाँ
कभी दिल से जुदा नहीं होतीं...
हम,ये जीवन ,ये यात्रा ....और ये कसक ....सभी को इन्हीं रास्तों पर चलना है .....कभी पीर कहते हुए ...कभी पीर सहते हुए ...अनवरत ...
बहुत सुंदर रचना ....
शुभकामनायें ....
कर्तव्य और परिवार के संगम में स्मृतियों की नदी भूमि की नदी अन्दर ही अन्दर बहती है।
ReplyDeleteपरायीं ज़मीनों को सींचने के लिए
ReplyDeleteबहती जाती हैं दूर दूर
मगर बेटियाँ और नदियाँ
कभी दिल से जुदा नहीं होतीं...
सच मे निःशब्द कर देती है आपकी रचना।
आपके संदर्भ के साथ आपकी इस कविता की अंतिम पंक्तियों को अपना फेसबुक स्टेटस बना रहा हूँ।
सादर
शुक्रिया यशवंत जी...
Deleteek hi shbd...Waah!
ReplyDeletewaah bahut sunder rachna ....:)badhai
ReplyDeleteठीक क्र्हती हो पूजा ....
ReplyDeleteबेटियाँ और नदियाँ
कभी दिल से जुदा नहीं होतीं...
शुभकामनाएँ!
क्या बोले अब सजल नयन!
ReplyDeleteSo True!
ReplyDeleteआई मिस यू पापा'........................................................................................................................................................................................................................................................
ReplyDeleteवाह..समय की monodirectional tendency और उसमें फंसे कुछ नाज़ुक रिश्तों की इससे बेहतर तस्वीर नहीं देखि..बेहतरीन नज़्म !!
ReplyDeleteबहुत शानदार और जानदार लेखन है तुम्हारा। बधाई।
ReplyDeletebahut bhavnamayi hai rachna...............
ReplyDeleteपापा...आपकी ,याद आ रही है.
ReplyDeletePuja !!
ReplyDeleteनदी बहाना किया और क्या-2 कह दिया...
ReplyDeleteबेटियाँ विदाई के बाद कभी लौट कर
बाप के सीने से नहीं लगतीं
बहुत अच्छी लगी कविता...
एक ही शब्द बचा अब तो गज़ब ... :)
ReplyDeleteमैं कह नहीं पाती इतनी छोटी सी बात
ReplyDelete'आई मिस यू पापा'
सब जानते हैं कि पत्थर के दिल नहीं होता लेकिन ऐसा पता
नहीं था कि पूजा जी का दिल भी बेटी बनकर इतना
मचलता है . यहाँ दिखी आपकी खुबसूरत सूरत के संग
आपकी खुबसूरत सीरत . लाजवाब अनमोल .