31 March, 2012

नदी में लहरों के आँसू किसे दिखते हैं

कभी नदी से उसके ज़ख्म पूछना
दिखाएगी वो तुम्हें अपने पाँव
कि जिनमें पड़ी हुयी हैं दरारें
सदियों घिसती रही है वो एड़ियाँ
किनारे के चिकने पत्थरों पर

मगर हर बार ऐसा होता है
कि नदी अपनी लहरदार स्कर्ट थोड़ी उठा कर
दौड़ना चाहती है ऊपर पहाड़ों की ओर
तो चुभ जाते हैं पाँवों में
नए, नुकीले पत्थर
कि पहाड़ों का सीना कसकता रहता है
नदी वापस नहीं लौटती 

और दुनियादारी भी कहती है मेरे दोस्त
बेटियाँ विदाई के बाद कभी लौट कर
बाप के सीने से नहीं लगतीं

पहाड़ों का सीना कसकता है
लहरदार फ्राक पहनने वाली छोटी सी बरसाती नदी
बाँधने लगती है नौ गज़ की साड़ी पूरे साल

उतरती नदी कभी लौट कर नहीं आती
मैं कह नहीं पाती इतनी छोटी सी बात
'आई मिस यू पापा'
मगर देर रात
नींद से उठ कर लिखती हूँ
एक अनगढ़ कविता
जानती हूँ अपने मन में कहीं
पहाड़ों का सीना कसकता होगा 

परायीं ज़मीनों को सींचने के लिए
बहती जाती हैं दूर दूर
मगर बेटियाँ और नदियाँ
कभी दिल से जुदा नहीं होतीं... 

19 comments:

  1. क्या लिखूं इस रचना पर कमेन्ट? निशब्द हूँ!!

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  2. परायीं ज़मीनों को सींचने के लिए
    बहती जाती हैं दूर दूर
    मगर बेटियाँ और नदियाँ
    कभी दिल से जुदा नहीं होतीं...

    हम,ये जीवन ,ये यात्रा ....और ये कसक ....सभी को इन्हीं रास्तों पर चलना है .....कभी पीर कहते हुए ...कभी पीर सहते हुए ...अनवरत ...
    बहुत सुंदर रचना ....
    शुभकामनायें ....

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  3. कर्तव्य और परिवार के संगम में स्मृतियों की नदी भूमि की नदी अन्दर ही अन्दर बहती है।

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  4. परायीं ज़मीनों को सींचने के लिए
    बहती जाती हैं दूर दूर
    मगर बेटियाँ और नदियाँ
    कभी दिल से जुदा नहीं होतीं...

    सच मे निःशब्द कर देती है आपकी रचना।

    आपके संदर्भ के साथ आपकी इस कविता की अंतिम पंक्तियों को अपना फेसबुक स्टेटस बना रहा हूँ।

    सादर

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    Replies
    1. शुक्रिया यशवंत जी...

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  5. waah bahut sunder rachna ....:)badhai

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  6. ठीक क्र्हती हो पूजा ....
    बेटियाँ और नदियाँ
    कभी दिल से जुदा नहीं होतीं...
    शुभकामनाएँ!

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  7. क्या बोले अब सजल नयन!

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  8. आई मिस यू पापा'........................................................................................................................................................................................................................................................

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  9. वाह..समय की monodirectional tendency और उसमें फंसे कुछ नाज़ुक रिश्तों की इससे बेहतर तस्वीर नहीं देखि..बेहतरीन नज़्म !!

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  10. बहुत शानदार और जानदार लेखन है तुम्हारा। बधाई।

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  11. bahut bhavnamayi hai rachna...............

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  12. पापा...आपकी ,याद आ रही है.

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  13. नदी बहाना किया और क्या-2 कह दिया...

    बेटियाँ विदाई के बाद कभी लौट कर
    बाप के सीने से नहीं लगतीं

    बहुत अच्छी लगी कविता...

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  14. एक ही शब्द बचा अब तो गज़ब ... :)

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  15. मैं कह नहीं पाती इतनी छोटी सी बात
    'आई मिस यू पापा'

    सब जानते हैं कि पत्थर के दिल नहीं होता लेकिन ऐसा पता
    नहीं था कि पूजा जी का दिल भी बेटी बनकर इतना
    मचलता है . यहाँ दिखी आपकी खुबसूरत सूरत के संग
    आपकी खुबसूरत सीरत . लाजवाब अनमोल .

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