बहुत दिन हुआ चिरकुटपंथी किये हुए...उसपर आज तो दिन भी ऐसा है कि भले से भले इंसान के अन्दर चिरकुटई का कीड़ा कुलबुलाने लगे...हम तो बचपन से ये दिन ताड़ के बैठे रहते थे कि बेट्टा...ढेर होसियार बनते हो...अभी रंग सियार में बदलते हैं तुमको. तो आज के दिन को पूरी इज्ज़त देते हुए एक घनघोर झुट्ठी पोस्ट लिखी जाए कि पढ़ के कोई बोले कि कितना फ़ेंक रहे हो जी...लपेटते लपेटते हाथ दुखा गया...ओझरा जाओगे लटाइय्ये में...और हम कहते हैं कि फेंका हुआ लपेटिये लिए तो फेंकना बेकार हुआ.
खैर आज के बात पर उतरते हैं...ई सब बात है उ दिन का जब हम बड़का लवगुरु माने जाते थे और ऊ सब लईका सब जो हमरा जेनुइन दोस्त था...मतबल जो हमसे प्यार उयार के लफड़ा में न पड़ने का हनुमान जी का कसम खाए रहता था ऊ सबको हम फिरि ऐडवाइस दिया करते थे कौनो मुहब्बत के केस में. ढेरी लड़का पार्टी हमसे हड़का रहता था...हम बेसी हीरो बनते भी तो थे हमेशा...टी-शर्ट का कॉलर पीछे फ़ेंक के चलते तो ऐसे थे जैसे 'तुम चलो तो ज़मीन चले आसमान चले' टाइप...हमसे बात उत करने में कोईयो दस बार सोचता था कि हमरा कोई ठिकाना नहीं था...किसी को भी झाड़ देंगे...और उसपर जबसे एक ठो को थप्पड़ मारे थे तब से तो बस हौव्वा ही बना हुआ था. लेकिन जो एक बार हमारे ग्रुप में शामिल हो गया उसका ऐश हुआ करता था.
एक तो पढ़ने में अच्छे...तो मेरे साथ रहने वाले को ऐसे ही डांट धोप के पढ़वा देते थे कि प्यार मुहब्बत दोस्ती गयी भाड़ में पहले कोर्स कम्प्लीट कर लो...उसपर हम पढ़ाते भी अच्छा थे तो जल्दी समझ आ जाता था सबको...फिर एक बार पढाई कम्प्लीट तो जितना फिरंटई करना है कर सकते हैं. हमारे पास साइकिल भी सबसे अच्छा था...स्ट्रीटकैट...काले रंग का जब्बर साइकिल हुआ करता था...एकदम सीधा हैंडिल और गज़ब का ग्राफिक...बचपन में भी हमारा चोइस अच्छा हुआ करता था. घर पर मम्मी पापा कितना समझाए कि लड़की वाला साइकिल लो...आगे बास्केट लगा हुआ गुलाबी रंग का...हम छी बोलके ऐसा नाक भौं सिकोड़े कि क्या बतलाएं. तो हमारे साथ चलने में सबका इज्जत बढ़ता था.
उस समय पटना में लड़की से बात करना ही सबसे पहला और सबसे खतरनाक स्टेप था...अब सब लड़की मेरे तरह खत्तम तो थी नहीं कि माथा उठा के सामने देखती चले...सब बेचारी भली लड़की सब नीचे ताकते चलती थी...हालाँकि ई नहीं है कि इसका फायदा नहीं था...ऊ समय पटना में बड़ी सारा मेनहोल खुला रहता था...तो ऐसन लईकी सब मेनहोल में गिरने से बची रहती थी...हालाँकि हमारा एक्सपीरियंस में हम इतने साल में नहीं गिरे और हमारी एक ठो दोस्त हमारे नज़र के सामने गिर गयी थी मेनहोल में...उ एक्जाम के बाद कोस्चन पेपर पढ़ते चल रही थी...उस दिन लगे हाथ दू ठो थ्योरी प्रूव हो गया कि मूड़ी झुका के चलने से कुछ फायदा नहीं होता...और एक्जाम के बाद कोस्चन पेपर तो एकदम्मे नहीं देखना चाहिए.
देखिये बतिये से भटक गए...तो लईकी सब मूड़ी झुका के चलती थी तो लईका देखती कैसे तो फिर लाख आप रितिक रोशन के जैसन दिखें जब तक कि नीचे रोड पे सूते हुए नहीं हैं कोई आपको देखेगा ही नहीं...भारी समस्या...और उसपर भली लईकी सब खाली घर से कोलेज और कोलेज से घर जाए...तो भईया उसको देखा कहाँ जाए...बहुत सोच के हमको फाइनली एक ठो आइडिया बुझाया...एक्के जगह है जहाँ लईकी धरा सकती है...गुपचुप के ठेला पर. देखो...बात ऐसा है कि सब लईकी गुपचुप को लेकर सेंटी होती है अरे वही पानीपूरी...गोलगप्पा...उसको गुपचुप कहते हैं न...चुपचाप खा लो टाइप...प्यार भी तो ऐसे ही होता है...गुपचुप...सोचो कहानी का कैप्शन कितना अच्छा लगेगा...मियां बीबी और गुपचुप...अच्छा जाने दो...ठेला पर आते हैं वापस...कोई भी लड़की के सामने कोई लईका उससे बेसी गुपचुप खा जाए तो उसको लगता है कि उसका इन्सल्ट हो गया. भारी कम्पीटीशन होता है गुपचुप के ठेला पर...तो बस अगर वहां लड़की इम्प्रेस हो गयी तो बस...मामला सेट. अगर तनी मनी बेईमानी से पचा पाने का हिम्मत है तो ठेला वाला को मिला लो...लड़की पटाने के मामले में दुनिया हेल्पफुल होती है...तो बस तुमरे गुपचुप में पानी कम...मसाला कम...मिर्ची कम...और यही सब लड़की के गुपचुप में बेसी...तो बस जीत भी गए और अगले तीन दिन तक दौड़ना भी नहीं पड़ा...
ई तो केस था एकदम अनजान लईकी को पटाने का...अगर लईकी थोड़ी जानपहचान वाली है तो मामला थोड़ा गड़बड़ा जाता है...खतरा बेसी है कि पप्पा तक बात जा के पिटाई बेसी हो सकता है...यहाँ एकदम फूँक फूँक के कदम रखना होता है...ट्रायल एंड एरर नहीं है जी हाईवे पर गाड़ी चलानी है...एक्के बार में बेड़ापार नहीं तो एकदम्मे बेड़ापार...तो खैर...यहाँ एक्के उपाय है...फर्स्ट अप्रील...लईका सब पूछा कि काहे...तो हम एकदम अपना स्पेशल बुद्धिमान वाला एक्सप्रेशन ला के उनको समझाए...हे पार्थ तुम भी सुनो...इस विधि से बिना किसी खतरे से लड़की को प्रपोज किया जा सकता है...एक अप्रैल बोले तो मूर्ख दिवस...अब देखो प्यार जैसा लफड़ा में पड़ के ई तो प्रूव करिए दिए हो कि मूर्ख तो तुम हईये हो...तो काहे नहीं इसका फायदा उठाया जाए...सो कैसे...तो सो ऐसे. एकदम झकास बढ़िया कपड़ा पहनो पहले...और फूल खरीदो...गेंदा नहीं...ओफ्फो ढकलेल...गुलाब का...लाल रंग का...अब लईकी के हियाँ जाओ कोई बहाना बना के...टेस्ट पेपर वगैरह टाइप...आंटी को नमस्ते करो...छोटे भाई को कोई बहाना बना के कल्टी करो.
ध्यान रहे कि ई फ़ॉर्मूला सिर्फ साल के एक दिन ही कारगर होता है...बाकी दिन के लतखोरी के जिम्मेदार हम नहीं हैं. लईकी के सामने पहले किताब खोलो...उसमें से फूल निकालो और एकदम एक घुटने पर (बचपन से निल डाउन होने का आदत तो हईये होगा) बैठ जाओ...एक गहरी सांस लो...माई बाबु को याद करो...बोलो गणेश भगवन की जय(ई सब मन में करना...बकना मत वहां कुछ)...और कलेजा कड़ा कर के बोल दो...आई लव यू...उसके बाद एकदम गौर से उसका एक्सप्रेशन पढो...अगर शर्मा रही है तब तो ठीक है...ध्यान रहे चेहरा लाल खाली शर्माने में नहीं...गुस्से में भी होता है...ई दोनों तरह के लाल का डिफ़रेंस जानना जरूरी है...लड़की मुस्कुराई तब तो ठीक है...एकदम मामला सेट हो गया...शाम एकदम गोपी के दुकान पर रसगुल्ला और सिंघाड़ा...और जे कहीं मम्मी को चिल्लाने के मूड में आये लड़की तो बस एकदम जमीन पे गिर के हाथ गोड़ फ़ेंक के हँसना शुरू करो और जोर जोर से चिल्लाओ 'अप्रैल फूल...अप्रैल फूल' बेसी मूड आये तो ई वाला गाना गा दो...देखो नीचे लिंक चिपकाये हैं...अप्रैल फूल बनाया...तो उनको गुस्सा आया...और इसके साथ उ लड़के का नाम लगा दो जो तुमको क्लास में फूटे आँख नहीं सोहाता है...कि उससे पांच रूपया का शर्त लगाये थे. बस...उसका भी पत्ता कट गया.
चित भी तुमरा पट भी तुमरा...सीधा आया तो हमरा हुआ...ई बिधि से फर्स्ट अप्रैल को ढेरी लईका का नैय्या पार हुआ है...और एक साल इंतज़ार करना पड़ता है बाबु ई साल का...लेकिन का कर सकते हो...कोई महान हलवाई कह गया है...सबर का फल मीठा होता है. ई पुराना फ़ॉर्मूला आज हम सबके भलाई के लिए फिर से सर्कुलेशन में ला दिए हैं. ई फ़ॉर्मूला आजमा के एकदम हंड्रेड परसेंट नॉन-भायलेंट प्रपोज करो...थप्पड़ लगे न पिटाई और लड़की भी पट जाए.
आज के लिए बहुत हुआ...ऊपर जितना कुछ लिखा है भारी झूठ है ई तो पढ़ने वाला बूझिये जाएगा लेकिन डिस्क्लेमर लगाये देते हैं ऊ का है ना ई महंगाई के दौर में कौनो चीज़ का भरोसा नहीं है. तो अपने रिक्स पर ई सब मेथड आजमाइए...और इसपर हमरा कोनो कोपीराईट नहीं है तो दुसरे को भी ई सलाह अपने नाम से दे दीजिये...भगवान् आपका भला करे...अब हम चलते हैं...क्या है कि रामनवमी भी है तो...जय राम जी की!
पूजा ! वाह: क्या बात है !
ReplyDeleteबिन पढे टिप्पणी ? अप्रैल फूल ? :-))))
खुश रहो !
haha :D :D
Deleteहमने मान भी लिया कि आपने बिना पढ़े टिप्पणी दी है :)
दिक्कत वही रही, ज्ञान देने के बजाय जीवन भर ज्ञान इकठ्ठा करने के चक्कर में पड़े रहे।
ReplyDelete:D हँसते हँसते हालत खराब है...खतरनाक पोस्ट एकदम..आज के दिन पर तो इससे बढ़िया कुच्छो नहीं हो सकता है :P..एकदम झन्नाट्टेदार टाईप...दिल खुश हो गया... :D :D
ReplyDeleteपता है सबसे मस्त बात ई होता है की अईसा लगभग पटना में हर ग्रुप में बात सब होते रहता है..
कितना कुछ याद आ गया एकदम से....ई पोस्ट के लिए तो थैंक्स बोलना ही पड़ेगा :D
Great indeed. As I said erlier, such humour can only be created by you.
DeleteAwesome Post! Pure Awesome !!
अगर प्रपोज करते ही लड़की बोल दे कि "अप्रैल फूल काहे बना रहे हो" तो लड़का शाहरुख खान बन के बोलेगा "मै सच कह रहा हूँ" | उसके बाद अगर लड़की चिल्ला दे "मम्मी, मम्मी" | बस लड़के की धर-कुट्टम्मस | "सीक्वेंस" का ध्यान रखना बहुतै ज़रूरी|
ReplyDeleteलड़की पटाने का नुस्खा बताने वाला एक और गाना है ..
http://www.youtube.com/watch?v=W1vqwwxyOFg
पोस्ट से एक पत्थर से दो चिड़िया मारी हैं, बोले तो "अप्रैल फूल और भैलेन्टाइन" एक साथ निपटाया गया है !!!!
:) :) :) :)
चकाचक पोस्ट !!!!
...जय राम जी की!
ReplyDeleteमस्त है लहर आज तो:)
May the benifits of this post reach out to everyone!!!:))
:D
ReplyDeleteJhooth ho ya sachhi.. idea h to jabardast :D
हमलोग अल्टरनेट विकल्प रखते थे... मान जाती थी तो ठीक है .. नहीं अगर गुस्सा भी हो जाती थी तो हमहीं हंसकर कहने लगते - "दीदी डर गयी... दीदी को गुस्सा आ गया".... ऐसा है दीदी कि हम एक लड़की को प्रोपोज करने का मन बना रहे थे तो कम्फर्ट होने के लिए तुमसे कह रहे थे.... वहां नर्वस कम रहेंगे....फिर आज अप्रैल फूल भी है सो सोचा तुमको मुर्ख बना दें... फिर वो भी घुल मिल कर बहुत सारे फंडे देती थी जिसे हम उस पर इम्प्लीमेंट कर उसको पटा लेते थे.....
ReplyDeleteलेकिन अब ये भी पिटा हुआ प्लान है... खैर... दुनिया जितनी आधुनिक होगी हम अत्याधुनिक होते रहेंगे...
प्रोपोज करने कि दर हमारी इतनी तेज़ थी कि हाट बाज़ार में लड़की तो हमें क्या घूरेगी उसकी मम्मी ही हमें ज्यादा घूरा करतीं...
वो भी एक दौर था, ये भी एक दौर है.
को पढ़े इत्ता गप्प:)
Deleteaap padh gaye naa :) aur kya chahiye... :):)
Deleteबाकी तो ठीक है लेकिन ई दुई ठो टाइप के लाल में डिफ़ेरेन्स करने वाला स्टेप बड़ा खतरनाक है :)
ReplyDeleteNahi Abhishek 'Anubhav' ki baat hai.
Delete:) :)हम तो थ्योरी पढ़ा के फूट लेते है हियाँ से :)
Deleteत इहाँ प्रैक्टिकल कहाँ संभव है?:)
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Delete:)
Deleteकह दो कि ये सब झूठ है... ओसे आज के दिन इत्ता सब कुछ कौन पढने जाए भला... न जी न... ये सब कौन पढ़े.... सीता राम..... सीता राम.... :P
ReplyDeleteआज ही सीख-सिखा लीजिएगा?
ReplyDeleteअइहो दादा .....!! अप्रील फूल के दिन लइकन के अइसन ज्ञान की बात..ओ भी मुफ्फत्त... भइल बवाल .!!! :)
ReplyDeleteअच्छा लगा अप्रैल फूल के बहाने लकड़ी पटाने का तरीका। हम लोग तो राखी को ही अब तक ऐसे एक दिन में शुमार करते थे।
ReplyDeleteजय हो जय हो!
ReplyDeleteई सब पचास साल पहिले कोनो नहीं बताया.
ReplyDeleteपचास साल पहले तो हम भी नहीं थे आपको बताने के लिए ;-) इसलिए गड़बड़ हो गया :-)
Deletepadne me achha laga.... bahut sundar likhte hain aap.....aapne ek naya shauk laga diya hame... blogs padne ka... nice.. keep it up
ReplyDeleteजय हो! फ़िर से जय हो! सब आइडिया टाइम निकल जाने पर ही मिलता है। :)
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