कुछ भी सच नहीं है
जब तक कि तुमने नहीं देखी हैं मेरी आँखें
तुम प्यार से भरे हो
इसलिए मृत्युगीत में सुनते हो उम्मीद
मुझे नफरत हो गयी है
सिर्फ त्योहारों पर घर आने वाली खुशियों से
घर की देहरी पर पहरा देता है नज़र्बट्टू
इसलिए उदासियाँ नहीं जा पाती हैं मेरे दिल से दूर
तुमसे बात करती हूँ तो यादों के सब गाँव डूब जाते हैं
वसंत के विथड्रावल सिम्पटम्स जीने नहीं देते हैं
गुलमोहर और अमलतास को कागज़ में रोल कर सुलगा दो
पागल होने का कोई सही मौसम नहीं होता
इस जून मॉनसून ब्रेक होने के पहले चली आऊं तुम्हारे शहर?
इस बार मैं रीत गयी हूँ पूरी की पूरी
इश्क फिर भी सामने बैठा है जिद्दी बच्चे की तरह हथेली खोले हुए
खुदा के रजिस्टर में नाम रैंडम अलोट हुए थे
किसी की गलती नहीं थी कि हमें प्यार हुआ एक दूसरे से ही
मुझे बाँहों में भर कर चूमते रहो मेरे मर जाने तक
उदासियों को स्मृति के पहरे से मुक्तकर लहरों से अपना सच्चा संबंध जोड़ लीजिये पूजाजी।
ReplyDeletePuja Puja Puja ..... कोई बुरा न माने तो कह दूँ तुम लाज़वाब हो यार ..
ReplyDeleteबहुत serious type नहीं हूँ मैं ..क्या करूँ ... इसलिए कहे ही देती हूँ ....
क्या बच्चे की जान लेकर मानोगी यार :PPPPPPPP
मत लिखा करो... इत्ता सुंदर मत लिखा करो .. खाना पीना सब हराम हो जाता है
muahhhhhh LOVE ur writingsss Puja ...... gr8888
इस बार मैं रीत गयी हूँ पूरी की पूरी ...
ReplyDeleteकुछ नया नया सा लगा :)
pratibha- beautiful...
ReplyDeleteकितनी बार तो लिख चुका हूँ ये बात, एक बार और सही की मैं "स्पीचलेस" हूँ!!!!
ReplyDeleteलिख तो ऐसे रहे हो जैसे टोनी स्टार्क दुनिया के सामने कुबूल रहा हो...मैं आयरन मैन हूँ ;) ;) :-P :-P
Deleteइस बार मैं रीत गयी हूँ पूरी की पूरी
ReplyDeleteइश्क फिर भी सामने बैठा है जिद्दी बच्चे की तरह हथेली खोले ह...............sunder ...sunder bas sunder
मुझे नफरत हो गयी है
ReplyDeleteसिर्फ त्योहारों पर घर आने वाली खुशियों से
ओह ग्रेट ! बहुत सुंदर .. प्रतीकों के तो क्या कहने
लगता है प्रवीण जी का समर्थन करना होगा. केरल में अभी बारिश शुरू होने वाली है.
ReplyDeleteकुछ कर गुजरने को मौसम नहीं मन चाहिए. (शायद रमानाथ मिश्र जी की पंक्ति है)
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी प्रस्तुति दिल को छू गयी।
ReplyDelete:)...kuch kahne ka mn nahi hai.....
ReplyDeletebeautiful...
ReplyDeleteलहरों को ठहरते देखा है कभी?
ReplyDeleteनहीं न!
सचमुच, ठहरना लहरों का
कम नहीं है किसी मौत से
वे तो तभी अच्छी लगती हैं
जब उछलती हैं
अपनी सम्पूर्ण जिजीविषा के साथ
बहा ले जाती हैं अपने साथ
किनारे के अवसादों को
और विसर्जित कर देती हैं उन्हें
समुद्र की अतल गहराई में।
यादें यदि इतनी ही अच्छी होतीं
तो क्यों बुलाते भगवान
अपने पास
बिसराने यादों के ज़ख़ीरे!
तुम्हें नदी नहीं
समुद्र बनना होगा।
कौन समझाए "बिंदास" को
ReplyDeleteठहाके में उड़ा दे उपहास को :-)
खुश रहो !
शुभकामनाएँ!
bahoot sunder!
Deletebahut alag si rachna
ReplyDeleteमुझसे मत कहो कि मैं कितनी अच्छी हूँ
ReplyDeleteमुझे बाँहों में भर कर चूमते रहो मेरे मर जाने तक...
लाजवाब मानना पड़ेगा आपकी लेखनी को