05 April, 2012

खेतों में उगा दूं मैं तेरे खतों की फसलें

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रहने दो न यार...कहीं एक कोने में पड़ी रहेगी...तुम कब से परफेक्शन के चक्कर में पड़ने लगी...अनगढ़ है...थोड़ी कच्ची है. पर एक मन कहता है...इस उम्र में बचपना शोभा नहीं देता...मन माँ की कही एक बात भी खींच के लाता है...ज्यादा कच्चा आम खाओगी तो पेट में दर्द होगा...फिर भी मन नहीं मानता. इसे किसी कागज़ में लिख कर बिसरा देने को जी नहीं चाहता...कभी कभी कैसा अनुराग हो जाता है अपने लिखे से...की जैसे वसंत में फूटती पेड़ के नयी कोपल हो या घर में लगाये कलमी गुलाब में आता पहला फूल...

ग़ज़ल, नज़्म या उसके जैसा कुछ भी अब नहीं लिखती...वो एक बेहद मुश्किल विधा है मेरे लिए...मुझे लगता है कि जो लोग ग़ज़ल लिखते हैं वो नैसर्गिक रूप से उसी फॉर्म में उन्हें इमैजिन करते होंगे. मैं छोटी सी छेनी लेकर बैठी हूँ कि इसे थोड़ा सुधार सकती हूँ क्या...पर तभी लगता है की ये पत्थर के प्रतिमा नहीं हाड़-मांस की एक नन्ही सी बच्ची है...इसे दर्द होगा. वैम्पायर बेबी की तरह जो कभी बड़े नहीं होते...उम्र में फ्रीज हो जाते हैं...उनका बचपना जब बुरा लगता है तब भी नहीं जाता. तो लिखे में जितना कच्चापन है मुझमें उतनी ही जिद...कि ग़ज़ल लिखना नहीं सीखूंगी...मीटरबाजी नहीं करुँगी...तो सिंपल ये बचता है कहना कि कृपया इसे ग़ज़ल न समझें...इसे कुछ भी न समझें...ये पोस्ट इग्नोर कर दें...क्यूंकि मैं इसे छूने वाली नहीं.

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लहरों पे कश्तियाँ ले चाँद उतर जाए
लिख जाए साहिलों पे तेरा नाम इन्किलाब 

जिस्म से खुरच दे उम्र भर की झुर्रियां 
हाथों की लकीरों से तेरा नाम इन्किलाब 

शहर शहर दरख्तों पर विषबेल लिपट जाए
खो जाए जो लिक्खा था तेरा नाम इन्किलाब 

खेतों में उगा दूं मैं तेरे खतों की फसलें 
सुनहरी बालियों में झूमे तेरा नाम इन्किलाब 

टेसू का जंगल है और मुट्ठी भर इमली भी
तेरे होटों से भी मीठा तेरा नाम इन्किलाब 

हम इश्क में फ़ना हों तो इसमें रिहायी कैसी 
हमें इश्क जिंदगी है तेरा नाम इन्किलाब 

5 comments:

  1. कल्पना जब शब्दों में आ ऐसे विखरती है, कोई और नाम मन ही कौंधता ही नहीं है।

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  2. घर में लगाये कलमी गुलाब में आता पहला फूल...
    बचपन की कुछ बातें याद आ गयी इस पंक्ति को पढ़... ग़ज़ल खूबसूरत है...और अगर अनगढ़ है तो शायद इसलिए भी ज्यादा खूबसूरत है...
    नया हेडर तो और भी खूबसूरत है... :)

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  3. अच्छा किया कि कह दिया -ये गज़ल नहीं है.............वरना मीटर का पाठ पढ़ा देते :-)

    but expressions are in perfect measurement!!!

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  4. बहुत खूबसूरत है कविता. इन्किलाब जिंदाबाद. कभी कभी लगता है तुम भी वेम्पायेर बेबी की तरह ही हो. इसी तरह सुखी बनी रहो.

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  5. दुनियां जाये ......में! हम तो जो दिल में आएगा वोही लिखेंगे ...बिंदास!
    एक मेरी तरफ़ से .....चल जाये तो दौड़ा देना..नही तो भगा देना...
    लहरों का मूड हो जाये खराब
    समंदर में आ जाये सैलाब
    बचेगा सिर्फ वो ही.....
    जिसपे लिखा, तेरा नाम इन्कलाब ...

    खुश रहो !बिंदास...

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