इससे अच्छा तो तुम मेरे कोई नहीं होते
गंध...बिसरती नहीं...मुझे याद आता है कि जब उसके सीने से लगी थी पहली बार...उदास थी...क्यूँ, याद नहीं. शायद उसी दिन पहली बार महसूस हुआ था कि हम पूरी जिंदगी साथ नहीं रहेंगे. एक दिन बिछड़ना होगा...उसकी कॉटन की शर्ट...नयेपन की गंध और हल्का कच्चापन...जैसे आँखों में कपास के फूल खिल गए हों और वो उन फाहों को इश्क के रंग में डुबो रहा हो...गहरा लाल...कि जैसे सीने में दिल धड़कता है. आँखें भर आई थीं इसलिए याद नहीं कि उस शर्ट का रंग क्या था...शायद एकदम हल्का हरा था...नए पत्तों का रंग उतरते जो आखिरी शेड बचता है, वैसा. मैंने कहा कि ये शर्ट मुझे दे दो...उसने कहा...एकदम नयी है...सबको बेहद पसंद भी है...दोस्त और घर वाले जब पूछेंगे कि वो तो तुम्हारी फेवरिट शर्ट थी...कहाँ गयी तो क्या कहूँगा...मैंने कहा कि कह देना अपनी फेवरिट दोस्त को दे दिया...पर यु नो...दोस्त का इतना हक नहीं होता.
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तुम मुझे अपने घर में किरायेदार रख लो
और फिर लौट आने को...मन की दीवार पर पेन्सिल से लिखा है...शायद अगली दीवाली में घर पेंट होगा तो इसपर भी एक परत गुलाबी रंग की चढ़ जायेगी...पर तब तक की इस काली लिखावट और उसके नीचे के तुम्हारे इनिशियल्स से प्यार किये बैठी हूँ. तुम्हें लगता है कि पेन्सिल से लिखा कुछ भी मिटाया जा सकता है...पागल...मन की दीवार पर कोई इरेजर नहीं चलता है...तुम्हें किसी ने बताया नहीं?
सुनती हूँ कि तुम्हारे घर में एक नन्हा सा तुम्हारा बेटा है...एक खूबसूरत बीवी है...बहुत सी खुशियाँ हैं...और सुना ये भी है कि वहां एक छोटा सा स्टडी जैसा कमरा खाली है...अच्छे भरे पूरे घर में खाली कमरा क्या करोगे...वहां उदासी आ के रहने लगेगी...या कि यादें ही अवैध कब्ज़ा कर के बैठ जायेंगी. इससे तो अच्छा मुझे अपने घर में किरायेदार रख लो...पेईंग गेस्ट यु सी. मेरा तुम्हारा रिश्ता...कुछ नहीं...अच्छा मकान मालिक वो होता है जो किरायेदार से कम से कम मेलजोल रखे.
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कितने में ख़रीदा है सुकून?
खबर मिली है कि पार्क की एक बेंच तुमने रिजर्व कर ली है...रोज वहां शाम को बैठ कर किसी लड़की से घंटों बातें करते हो. अब तो रेहड़ी वाले भी पहचानने लगे हैं तुम्हें...एकदम वक़्त से मुन्गोड़ी पहुंचा देते हैं और मूंगफली भी...और चिक्की भी...ऐसे मत कुतरो...किसी और का दिल आ गया तो इतनी लड़कियों को कैसे सम्हालोगे?
दिल्ली जैसे शहर में कुछ भी मुफ्त तो मिलता नहीं है. सुकून कितने में ख़रीदा वो तो बताओ...अच्छा जाने दो...उस पार्क के पुलिसवाले को कितना हफ्ता देते हो रोज़ वहां निश्चिंत बैठ कर लफ्फाजी करने के लिए. ठीक ठीक बता दो...मैं पैसे भिजवा दूँगी...किसी और से बात करने के लिए क्यूँ? खुश रहते हो उससे बात करके...ये भी शहर ने बता दिया है...अरे दिल्ली में मेरी जान बसती है...तुम में भी...तुम्हारा सुकून इतने सस्ते मिल रहा है...किसी और के खरीदने के पहले मैं खरीद लेती हूँ...आखिर तुम्हारा पहला प्यार हूँ.
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सारे तारे तुम्हारी तरफदारी करते हैं
तुम तो बड़े वाले पोलिटिशियन निकले, सारे सितारों को अपनी साइड मिला लिया है...ऐसे थोड़े होता है. एक सूरज और एक चाँद...ऐसे तो मेरा केस बहुत कमजोर पड़ जाएगा...तुमसे हार जाने को तो मैं यूँ ही बैठी थी तुम खामखा के इतने खेल क्यूँ खेल रहे हो...जिंदगी भले शतरंज की बिसात हो...इतना प्यार करती हूँ कि हर हाल में तुमसे 'मात' ही मिलनी थी. चेकमेट क्यूँ...प्लेमेट क्यूँ नहीं...मुझे ऐसे गेम में हराने का गुमान पाले हुए हो कि जिसमें मेरे सारे मोहरे कच्चे थे. इश्क के मैदान में उतरो...शाह-मात जाने दो...गेम तो ऐसा खेलते हैं कि जिंदगी भर भूल न पाओ मुझे.
लोग एक चाय की प्याली में अपना जीवनसाथी पसंद कर लेते हैं...तुम्हारी तो शर्तें ही अजीब हैं...सारी चालें देख कर प्यार करोगे मुझसे?
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कैन आई काल यू 'हिकी'?
तुम्हारे दांतों से जो निशान बनते हैं उन्हें गिन कर मेरी सहेलियां अंदाज़ लगाती हैं कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो. अंदाज़ तो ये भी लगता है कि इसके पहले तुम्हारी कितनी गल्फ्रेंड्स रही होंगी...ये कोई नहीं कहता. हिकी टैटू की तरह नहीं होता अच्छा है...कुछ दिन में फेड हो जाता है. तुम्हारा प्यार भी ऐसा होगा क्या...शुरआत में गहरा मैरून...फिर हल्का गुलाबी...और एक दिन सिर्फ गोरा...दूधधुला...संगेमरमर सा कन्धा...अछूता...जैसे तुमने वाकई सिर्फ मेरी आत्मा को ज़ख्म दिए हों.
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उनींदी आँखों पर तुम्हारे अख़बार का पर्दा
यु नो...आई यूज्ड तो हेट टाइम्स आफ इंडिया...पर ये तब तक था जब तक कि हर सुबह आँख खोलते ही उसके मास्टहेड की छाँव को अपनी आँखों पर नहीं पाती थी...तुम्हें आती धूप से उठना पसंद था...और मुझे आती धूप में आँखें बंद कर सोना...धूप में पीठ किये खून को गर्म होते हुए महसूसना...पर तुम्हारी शिकायत थी कि तुम्हें सुबह मेरा चेहरा देखना होता था...तो तुमने अख़बार की ओट करनी शुरू की.
आज अर्ली मोर्निंग शिफ्ट थी...सुबह एक लड़का टाइम्स ऑफ़ इण्डिया पढ़ रहा था...तुम्हें देखने की टीस रुला गयी...मालूम है...आज पहली बार अख़बार के पहले पन्ने पर तुम्हारी खबर आई थी...बाईलाइन के साथ...अच्छा तुम्हें बताया नहीं क्या...तुमसे ब्रेकऑफ़ के बाद मैंने टाइम्स ऑफ़ इण्डिया...सबस्क्राइब कर लिया था.
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सिक्स्थ सेन्स हैज नो कॉमन सेन्स
मेरी छठी इन्द्रिय को अब तक खबर नहीं पहुंची है कि मैं और तुम अलग हो गए हैं...कि अब तुम्हारे लिए दुआएं मांगने का भी हक किसी और का हो गया है. किसी शाम तुम्हारा कोई दर्द मुझे वैसे ही रेत देता है जैसे तुम्हारे जिस्म पर बने चोट के निशान. मैं उस दोस्त क्या कहूँ जो मुझे बता रहा था कि पिछले महीने तुम्हरा एक्सीडेंट हुआ था...कह दूं कि मुझे मालूम है? वो जो तुम्हारी है न...उससे कहो कि तुम्हारा ध्यान थोड़ा ज्यादा रखे...या कि मैं फिर से तुम्हारा नाम अपनी दुआओं में लिखना शुरू कर दूं?
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आखिरी सवाल...डू यू स्टिल रिमेम्बर टू हेट मी?
गंध...बिसरती नहीं...मुझे याद आता है कि जब उसके सीने से लगी थी पहली बार...उदास थी...क्यूँ, याद नहीं. शायद उसी दिन पहली बार महसूस हुआ था कि हम पूरी जिंदगी साथ नहीं रहेंगे. एक दिन बिछड़ना होगा...उसकी कॉटन की शर्ट...नयेपन की गंध और हल्का कच्चापन...जैसे आँखों में कपास के फूल खिल गए हों और वो उन फाहों को इश्क के रंग में डुबो रहा हो...गहरा लाल...कि जैसे सीने में दिल धड़कता है. आँखें भर आई थीं इसलिए याद नहीं कि उस शर्ट का रंग क्या था...शायद एकदम हल्का हरा था...नए पत्तों का रंग उतरते जो आखिरी शेड बचता है, वैसा. मैंने कहा कि ये शर्ट मुझे दे दो...उसने कहा...एकदम नयी है...सबको बेहद पसंद भी है...दोस्त और घर वाले जब पूछेंगे कि वो तो तुम्हारी फेवरिट शर्ट थी...कहाँ गयी तो क्या कहूँगा...मैंने कहा कि कह देना अपनी फेवरिट दोस्त को दे दिया...पर यु नो...दोस्त का इतना हक नहीं होता.
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तुम मुझे अपने घर में किरायेदार रख लो
और फिर लौट आने को...मन की दीवार पर पेन्सिल से लिखा है...शायद अगली दीवाली में घर पेंट होगा तो इसपर भी एक परत गुलाबी रंग की चढ़ जायेगी...पर तब तक की इस काली लिखावट और उसके नीचे के तुम्हारे इनिशियल्स से प्यार किये बैठी हूँ. तुम्हें लगता है कि पेन्सिल से लिखा कुछ भी मिटाया जा सकता है...पागल...मन की दीवार पर कोई इरेजर नहीं चलता है...तुम्हें किसी ने बताया नहीं?
सुनती हूँ कि तुम्हारे घर में एक नन्हा सा तुम्हारा बेटा है...एक खूबसूरत बीवी है...बहुत सी खुशियाँ हैं...और सुना ये भी है कि वहां एक छोटा सा स्टडी जैसा कमरा खाली है...अच्छे भरे पूरे घर में खाली कमरा क्या करोगे...वहां उदासी आ के रहने लगेगी...या कि यादें ही अवैध कब्ज़ा कर के बैठ जायेंगी. इससे तो अच्छा मुझे अपने घर में किरायेदार रख लो...पेईंग गेस्ट यु सी. मेरा तुम्हारा रिश्ता...कुछ नहीं...अच्छा मकान मालिक वो होता है जो किरायेदार से कम से कम मेलजोल रखे.
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कितने में ख़रीदा है सुकून?
खबर मिली है कि पार्क की एक बेंच तुमने रिजर्व कर ली है...रोज वहां शाम को बैठ कर किसी लड़की से घंटों बातें करते हो. अब तो रेहड़ी वाले भी पहचानने लगे हैं तुम्हें...एकदम वक़्त से मुन्गोड़ी पहुंचा देते हैं और मूंगफली भी...और चिक्की भी...ऐसे मत कुतरो...किसी और का दिल आ गया तो इतनी लड़कियों को कैसे सम्हालोगे?
दिल्ली जैसे शहर में कुछ भी मुफ्त तो मिलता नहीं है. सुकून कितने में ख़रीदा वो तो बताओ...अच्छा जाने दो...उस पार्क के पुलिसवाले को कितना हफ्ता देते हो रोज़ वहां निश्चिंत बैठ कर लफ्फाजी करने के लिए. ठीक ठीक बता दो...मैं पैसे भिजवा दूँगी...किसी और से बात करने के लिए क्यूँ? खुश रहते हो उससे बात करके...ये भी शहर ने बता दिया है...अरे दिल्ली में मेरी जान बसती है...तुम में भी...तुम्हारा सुकून इतने सस्ते मिल रहा है...किसी और के खरीदने के पहले मैं खरीद लेती हूँ...आखिर तुम्हारा पहला प्यार हूँ.
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सारे तारे तुम्हारी तरफदारी करते हैं
लोग एक चाय की प्याली में अपना जीवनसाथी पसंद कर लेते हैं...तुम्हारी तो शर्तें ही अजीब हैं...सारी चालें देख कर प्यार करोगे मुझसे?
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कैन आई काल यू 'हिकी'?
तुम्हारे दांतों से जो निशान बनते हैं उन्हें गिन कर मेरी सहेलियां अंदाज़ लगाती हैं कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो. अंदाज़ तो ये भी लगता है कि इसके पहले तुम्हारी कितनी गल्फ्रेंड्स रही होंगी...ये कोई नहीं कहता. हिकी टैटू की तरह नहीं होता अच्छा है...कुछ दिन में फेड हो जाता है. तुम्हारा प्यार भी ऐसा होगा क्या...शुरआत में गहरा मैरून...फिर हल्का गुलाबी...और एक दिन सिर्फ गोरा...दूधधुला...संगेमरमर सा कन्धा...अछूता...जैसे तुमने वाकई सिर्फ मेरी आत्मा को ज़ख्म दिए हों.
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उनींदी आँखों पर तुम्हारे अख़बार का पर्दा
यु नो...आई यूज्ड तो हेट टाइम्स आफ इंडिया...पर ये तब तक था जब तक कि हर सुबह आँख खोलते ही उसके मास्टहेड की छाँव को अपनी आँखों पर नहीं पाती थी...तुम्हें आती धूप से उठना पसंद था...और मुझे आती धूप में आँखें बंद कर सोना...धूप में पीठ किये खून को गर्म होते हुए महसूसना...पर तुम्हारी शिकायत थी कि तुम्हें सुबह मेरा चेहरा देखना होता था...तो तुमने अख़बार की ओट करनी शुरू की.
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सिक्स्थ सेन्स हैज नो कॉमन सेन्स
मेरी छठी इन्द्रिय को अब तक खबर नहीं पहुंची है कि मैं और तुम अलग हो गए हैं...कि अब तुम्हारे लिए दुआएं मांगने का भी हक किसी और का हो गया है. किसी शाम तुम्हारा कोई दर्द मुझे वैसे ही रेत देता है जैसे तुम्हारे जिस्म पर बने चोट के निशान. मैं उस दोस्त क्या कहूँ जो मुझे बता रहा था कि पिछले महीने तुम्हरा एक्सीडेंट हुआ था...कह दूं कि मुझे मालूम है? वो जो तुम्हारी है न...उससे कहो कि तुम्हारा ध्यान थोड़ा ज्यादा रखे...या कि मैं फिर से तुम्हारा नाम अपनी दुआओं में लिखना शुरू कर दूं?
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आखिरी सवाल...डू यू स्टिल रिमेम्बर टू हेट मी?
आज का प्यार ...आज का बेहतरीन लिखने का अंदाज़ !
ReplyDeleteलेखनी को !
शुभकामनाएँ!
बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर!
ReplyDeleteपूजा जी ! आपके ब्लॉग को पढ़ना अब शुरू किया है पिछली पोस्ट्स भी समय समय पर पढ़ता रहूँगा।
सादर
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteपूजा...ये क्या क्या लिख दिया यार. बहुत भावुक हो गयी मैं !
ReplyDeleteअच्छा हुआ न पल्लवी...अब कोई तोडू सा सेंटी पोस्ट लिख मार :) :)
Deletegazab ka lekhan hai aapka nishabd karti hai aapki har ek rachna mujhe behtreen lekhan best wishes ....
ReplyDeletePratibha Tomar....aapka blog abhi padhna shuru kiya...kamaal likhti ho...likhti kya ho...palo ko jinda kar deti ho..lov u
ReplyDeleteहर बार की तरह बेहतरीन प्रस्तुति....दिल को छुने वाले ब्लॉग
ReplyDelete'युग्म' वाले जगदीश गुप्त याद आए.
ReplyDeleteकोई भी टिप्पणी झूठी पड़ती सी लगेगी यहां, सो बस सहेज लिया है दुहरा कर पढ़ने के लिए.
एक एक दृश्य, किसी फिल्म की कहानी का, धीरे धीरे गाढ़ा होता हुआ, अन्त क्या होगा, यहाँ अन्त से कहानी का निर्णय जो होता है।
ReplyDelete७० साल क इस बूढ़े को तुम्हारी लेखनी से इश्क हो गया, वैसे मेरे पास कमरे ही कमरे हैं, सब खाली खाली.
ReplyDelete:) :)
Deleteवाह पूजा.. बेहतरीन लिखा है आपने.. अपने आस पास की घटती घटनाओं को इतनी सरलता से लिखा है की भेदती हैं दिल को..
ReplyDeleteआगे भी पढ़ता रहूँगा.. अच्छी लेखनी के लिए शुभकामनाएं..
कथ्य का एक निराला अंदाज!!
ReplyDeleteनिरामिष पर - पश्चिम में प्रकाश - भारत के बाहर शाकाहार की परम्परा
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
wah kaya likha hae..baar baar padne ko ji cahta hae
ReplyDeleteऐसा कुछ भी नहीं जिसे अंडरलाइन करके पास नहीं रखा जा सके ,रोज़ पढने के लिए | बहुत अच्छा लिखा |
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteखुद भटकते हैं डगर, आरोप लगते हैं मगर
ReplyDeleteआपका मौन छलता है, बताओ क्या करें
शाम कत्ल हुआ सूरज का घाटियों के पीछे
दाग पुतलियों पर मिलता है, बताओ क्या करें
जिंदगी की आपाधापी में डूबते उतराते.यादों की खुबसूरत
ReplyDeleteदास्ताँ दरख़्त के सीने में खुदे 'आई लव यू' जिसमे खोने को जी मचल जाये .........
बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर
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