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25 October, 2018

सितम



फ़िल्म ब्लैक ऐंड वाइट है लेकिन मैं जानती हूँ कि उसने सफ़ेद ही साड़ी पहनी होगी। एकदम फीकी, बेरंग। अलविदा के जैसी। जिसमें किसी को आख़िरी बार देखो तो कोई भी रंग याद ना रह पाए। भूलना आसान हो सफ़ेद को। दरवाज़े पर खड़े हैं और उनके हाथ में दो तिहायी पी जा चुकी सिगरेट है। मैं सोचती हूँ, कब जलायी होगी सिगरेट। क्या वे देर तक दरवाज़े पर खड़े सिगरेट पी रहे होंगे, सोचते हुए कि भीतर जाएँ या ना जाएँ। घर को देखते हुए उनके चेहरे पर कौतुहल है, प्रेम है, प्यास है। वे सब कुछ सहेज लेना चाहते हैं एक अंतिम विदा में। 

मिस्टर सिन्हा थोड़ा अटक कर पूछते हैं। 'तुम। तुम जा रही हो?'। वे जानते हैं कि वो जा रही है, फिर भी पूछते हैं। वे इसका जवाब ना में सुनना चाहते हैं, जानते हुए भी कि ऐसा नहीं होगा। ख़ुद को यक़ीन दिलाने की ख़ातिर। भूलने का पहला स्टेप है, ऐक्सेप्टन्स... मान लेना कि कोई जा चुका है। 

मेरा दिल टूटता है। मुझे हमेशा ऐसी स्त्रियाँ क्यूँ पसंद आती हैं जिन्होंने अपने अधिकार से ज़्यादा कभी नहीं माँगा। जिन्होंने हमेशा सिर्फ़ अपने हिस्से का प्रेम किया। एक अजीब सा इकतरफ़ा प्रेम जिसमें इज़्ज़त है, समझदारी है, दुनियादारी है और कोई भी उलाहना नहीं है। उसके कमरे में एक तस्वीर है, इकलौता साक्ष्य उस चुप्पे प्रेम का... अनकहे... अनाधिकार... वो तस्वीर छुपाना चाहती है। 

बार बार वो सीन क्यूँ याद आता है हमको जब गुरुदत्त वहीदा से शिकायती लहजे में कहते हैं, 'दो लोग एक दूसरे को इतनी अच्छी तरह से क्यूँ समझने लगते हैं? क्यूँ?'। 

इंस्ट्रुमेंटल बजता है। 'वक़्त ने किया क्या हसीं सितम'। यही थीम संगीत है फ़िल्म में हीरोईन का। मुझे याद आता है मैंने तुमसे एक दिन पूछा था, 'कौन सा गाना सुन रहे हो?', तुमने इसी गाने का नाम लिया था... और हम पागल की तरह पूछ बैठे थे, कौन सा दुःख है, किसने दिया हसीं सितम तुम्हें। तुम उस दिन विदा कह रहे थे, कई साल पहले। लेकिन मैं कहाँ समझ पायी। 

जिस लम्हे सुख था, उस दिन भी मालूम था कि ज़िंदगी का हिसाब बहुत गड़बड़ है। लम्हे भर के सुख के बदले सालों का दुःख लिखती है। कि ऐसे ही दुःख को सितम कहते हैं। फिर हम भी तो हिसाब के इतने ही कच्चे हैं कि अब भी ज़िंदगी पूछेगी तो कह देंगे कि ठीक है, लिखो लम्हे भर का ही सही, सुख। 

तकलीफ़ है कि घटने की जगह हर बार बढ़ती ही जाती है। पिछली बार का सीखा कुछ काम नहीं आता। बस, कुछ चीज़ें हैं जो जिलाए रखती हैं। संगीत। चुप्पी। सफ़र। 

इन दिनों जल्दी सो जाती हूँ, लेकिन मालूम आज क्यूँ जागी हूँ अब तक? मुझे सोने से डर लग रहा है। कल सुबह उठूँगी और पाऊँगी कि दिल तुम्हें थोड़ा और भूल गया है। फ़ोन पड़ा रहेगा साइलेंट पर कहीं और मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। कि मैं अपने लिखे में भी तुम्हारा अक्स मिटा सकूँगी। कि मैं तुम्हें सोशल मीडिया पर स्टॉक नहीं करूँगी। तुम्हारे हर स्टेटस, फ़ोटो, लाइक से तुम्हारी ज़िंदगी की थाह पाने की कोशिश नहीं करूँगी। कि तुमसे जुड़ा मोह का बंधन थोड़ा और कमज़ोर पड़ेगा। दिन ब दिन। रात ब रात। 
अनुभव कहता है तुम्हें मेरी याद आ रही होती होगी। दिल कहता है, 'चल खुसरो घर अपने, रैन भए चहुं देस'। अपने एकांत में लौट चल। जीवन का अंतिम सत्य वही है।
आँख भर आती है। उँगलियाँ थरथराती हैं। कैसे लिखूँ तुम्हें। किस हक़ से। 
प्यार।

12 February, 2018

नालायक हीरो

'और, कैसी हो आजकल तुम?'
'बुरी हूँ। बहुत ज़्यादा। नाराज़ भी।'
'तुम बुरी हो जाओ तो बुरी का डेफ़िनिशन बदलना पड़ेगा। लेकिन तुम्हारी ऐसी ख़ूबसूरत दुनिया में कौन शख़्स मिल गया तुमको जिससे तुमको नाराज़ होने की नौबत आ गयी?'
'परी है एक'
'आब्वीयस्ली, तुम किसी नॉर्मल इंसान से तो नाराज़ हो नहीं सकती हो, परी ही होगी। तो फिर,क्या किया परी ने?'
'श्राप दे दिया है'
'अच्छा, कोई कांड ही किया होगा तुमसे। यूँही तो परी का दिमाग़ नहीं फिरेगा कि श्राप दे दे तुमको'
'नहीं, कोई कांड नहीं किया। परी ख़ुश हुयी थी मुझसे बहुत, इसलिए...'
'मतलब, परी ख़ुश होकर सराप दी तुमको? पागलखाने में मिली थी क्या उससे?'
'उफ़्फ़ो, पूरी बात सुनो। एक परी एक शाम बहुत उदास थी तो मैंने उसको अपनी बाइक पर बिठा कर बहुत तेज़ तेज़ बाइक चलायी और व्हीली भी की'
'और फिर तुमने बाइक गिरा दी और उसने तुम्हें श्राप दिया?'
'चुप रह कर पूरी कहानी सुनो, कूट देंगे हम तुमको'
'उफ़्फ़ो, इतना डिटेल में बताना ज़रूरी है?' हमको इतना पेशेंस नहीं है'
'यार, बाइक से उतरे तो हाथ एकदम ठंढे पड़ गए थे। ग्लव्ज़ पहनना भूल गयी थी। परी को मेरे ठंढे हाथों पर बहुत प्यार आया। उसने अपनी जादू की छड़ी घुमायी और ग़ायब हो गयी'
'बस? तो फिर हुआ क्या जिसका रोना रो रही हो'
'मेरे हाथ अब कभी ठंढे नहीं पड़ते हैं'
'तो ये अच्छी बात है ना, पागल लड़की!'
'हाँ। पहले कितना आसान होता था कहना, देखो, मेरे हाथ एकदम बर्फ़ हो गए हैं। अब क्या कहूँ। तुम्हें छूने को मन कर रहा है? इतनी दूर मत बैठो। पास बैठो। मेरा हाथ थाम कर'
'तो इसमें क्या है? कह दो'
'कहा तो'
'मतलब, क्या, कुछ भी! मेरा हाथ पकड़ कर क्यूँ बैठना है तुमको?'
'बस देखे ना। यही एक्स्प्लनेशन नहीं देना है हमको। हमको ख़ुद नहीं पता। पहले तुमको बस इतना कहना होता था कि मेरे हाथ ठंढे हो गए हैं। तुम कोई सवाल नहीं करते थे'
'तुम इतनी उलझी हुयी कब से हो गयी हो?'
'सुनो, बाक़ी सब कल समझाएँगे। फ़िलहाल हमको बहुत कुछ समझ नहीं आ रहा। चलो, बाइक से घूम के आते हैं'
'चलो...तुम चलाओगी कि हम चलाएँ'
'तुम रहने दो, हमारा एनफ़ील्ड चलाओगे, इश्श्श्श। बैलगाड़ी चलाने का नहीं बोल रहे। तीस का स्पीड पर चलाओगे, बेज्जती ख़राब होगा हमारा'
'तुम इतना तेज़ बाइक काहे चला रही हो?'
'कोई लड़का अगर लड़की को पीछे बिठाता है और बाइक बहुत तेज़ चलाता है तो इसका क्या मतलब निकाला जा सकता है?'
'लड़की की ट्रेन छूटनी वाली होती है या ऐसा कुछ?'
'नहीं, वो चाहता है कि लड़की डरे और उसको ज़ोर से पकड़ कर बैठे'
'अच्छा!'
'अच्छा नहीं, नालायक। पकड़ के बैठो हमको ज़ोर से। उड़ जाओगे हवा में। पागल कहीं के'
'और कोई देखेगा तो क्या कहेगा?'
'इत्ति तेज़ चला रही हूँ, कौन ना देख पाएगा रे तुमको?'
'चलो, तुम्हारा शहर है, मनमर्ज़ी करो ही। हमको यहाँ कौन पहचानता है, तुमको ही पूछेगा सब, कौन हीरो को पीछे बिठा कर एनफ़ील्ड उड़ा रही थी तुम'
'हीरो, इश्श्श, कहाँ के हीरो हो रे तुम'
'तुम्हारी कहानी के तो हैं ही। इतना काफ़ी है'
'नालायक हीरो'
'तुम्हारे हीरो हैं, नालायक तो होना ही था'
बाइक इतनी तेज़ रफ़्तार उड़ रही थी कि अब बातें अतीत में सुनायी देतीं...उसने जैसे मन में कहा, 'लव यू रे, नालायक'
मगर कुछ बातें बिना सुने भी अपना जवाब पा जाती हैं। उसे ऐसा लगा कि लड़के ने उसके कंधे पर पकड़ थोड़ी मज़बूत की और किसी बहुत जन्म पहले की बात दुहरायी, 'मी टू'।

02 February, 2018

नष्टोमोह

नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।
स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।

अर्जुन बोले -- हे अच्युत आपकी कृपासे मेरा मोह नष्ट हो गया है और स्मृति प्राप्त हो गयी है। मैं सन्देहरहित होकर स्थित हूँ। अब मैं आपकी आज्ञाका पालन करूँगा।

***
लड़की कहती है, मुझे 'मोह' हो जाता है बहुत। आसक्ति। हमेशा ऐसा नहीं था। पिछले चार साल से मैं कहानी और किरदारों के बीच ही रह रही हूँ। लोगों से बमुश्किल मिली जुली हूँ। साल का एक बुक फ़ेयर और कभी कभार का अपने दोस्तों से मिलना जुलना। एक नियमित ऑफ़िस की जो दिनचर्या होती है और काम में व्यस्त रहने का जो सुख होता है वो काफ़ी दिनों से हासिल नहीं है। 

बहुत ज़्यादा सोचने से होता ये है कि सच की दुनिया और क़िस्सों की दुनिया में अंतर महसूस होना कम हो जाता है। कहानियों के किरदार आम ज़िंदगी की तरह नहीं होते। वे हर फ़ीलिंग को बहुत ज़्यादा गहराई में महसूस करते हैं और जीते हैं, कि उनके ऐसे महसूसने का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता कहीं भी। उन्हें सिर्फ़ जितना सा लिखा गया है उतना जीना होता है। जबकि रियल ज़िंदगी में ऐसा नहीं होता। रियल ज़िंदगी में उतनी गहराई से जीने से मोह होता है। दुःख होता है। याद आती है। हम वर्तमान को जीने की जगह अतीत में जिए हुए को दुबारा रीक्रीएट करते हैं बस।

धीरे धीरे हम इस वलय में घूमने लगते हैं और भूल जाते हैं कि एक रास्ता किसी और शहर को जाता है। हम अपने सफ़र भूल जाते हैं। हम सफ़र में मिलने वाले अजनबियों के क़िस्सों की जगह रखना नहीं चाहते।

ठेस कब किस पत्थर से लग जाए कह नहीं सकते। दोष हमारा है कि हमें ढंग के जूते पहन कर चलना चाहिए ख़तरनाक सड़क पर। मैं अपने तलवे में चुभा इश्क़ का काँच कितने सालों से निकालने की कोशिश कर रही हूँ मगर सिर्फ़ हथेलियाँ लहूलुहान होती हैं...मैं आगे बढ़ नहीं पाती। इतने दुखते पैरों के साथ आगे बढ़ना मुश्किल है। तब भी जब मालूम हो कि आगे अस्पताल है और डॉक्टर शायद मुझे ठीक कर सकेंगे। उनके लिए छोटी सी बात है। किसी को आवाज़ दे कर बुलाया जा सकता है। वो भी नहीं कर पा रही।

इन दिनों सोचती हूँ, वो कौन लड़की थी जिसने तीन रोज़ इश्क़ जैसी कहानी लिखी। जिसे अपना दिल टूट जाने से डर नहीं लगता था। फिर ये कौन लड़की है कि इंतज़ार के किस अम्ल में गल चुकी है पूरी। कि उसे जिलाए रखने का, उसे बचाए रखने की ज़िम्मेदारी उसकी ख़ुद की ही थी ना।

कि मेरे पास बस मोह ही तो है कि जिसलिए मैं लिखती हूँ। चीज़ों को बचा लेने का मोह। इस सब में, थोड़ा सा ख़ुद को बचा ले जाने की उम्मीद भी।जिस दिन मोह टूटता है, मैं भी टूट ही जाती हूँ बेतरह।

कि सिवा इसके, है भी क्या ज़िंदगी में...अर्जुन ने गीता सुन कर कृष्ण से कहा कि उसका मोह नष्ट हो गया और वो लड़ने को तैयार हो गया।

मेरा मोह नष्ट हो जाए तो मैं कुछ भी नहीं लिखूँगी। और फिर, बिना लिखे, मेरा होना कुछ भी नहीं। कुछ भी नहीं तो।

09 December, 2017

धूप में छप-छप नहाता दिल के आकार के पत्तों वाला पौधा - प्यार

"दो दिन में तुम क्या सब-कुछ जान सकते हो?" फिर कुछ देर बाद हँसकर उसने मेरी ओर देखा, "यही अजीब है।" उसने कहा, "हम एक दूसरे के बारे में कितना कम जानते हैं!"
"मैंने कभी सोचा नहीं..."
"मैंने भी नहीं..." उसने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया, "इससे पहले मुझे या ख़याल भी नहीं आया था।"
"तुम्हें यह बुरा लगता है...इतना कम जानना...!"
"नहीं..." उसने कहा, "मुझे यह कम भी ज़्यादा लगता है..." वह मीता के बालों से खेलने लगी थी। 
"हम उतना ही जानते हैं, जितना ठीक है।" कुछ देर बाद उसने कहा।
"मैं यह नहीं मानता।"
"यह सच है..." उसने कहा, "तुम अभी नहीं मानोगे...पहले हम नहीं सोचते...बाद में, इट इज़ जस्ट मिज़री..."
उसका स्वर भर्रा सा-सा आया। मैंने उसकी ओर नहीं देखा। मिज़री...मुझे लगा जैसे यह शब्द मैंने पहली बार सुना है। 
"तुम विश्वास करते हो?"
"विश्वास...किस पर?" मैंने तनिक विस्मय से उसकी ओर देखा।
"वे सब चीज़ें...जो नहीं हैं।"
"मैं समझा नहीं।"
वह हँसने लगी।
"वे सब चीज़ें जो हैं...लेकिन जिनसे हमें आशा नहीं रखनी चाहिए...।"
उसका सवार इतना धीमा था कि मुझे लगा जैसे वह अपने-आप से कुछ कह रही है...मैं वहाँ नहीं हूँ।
धुंध उड़ रही थी। हवा से नंगी टहनियाँ बार-बार सिहर उठती थीं। कहीं दूर नदी पर बर्फ़ टूट जाती थी और बहते पानी का ऊनींदा-सा स्वर जाग उठता था।

- वे दिन ॰ निर्मल वर्मा 

***
इस साल के अंत में कुछ ऐसा हुआ कि पोलैंड जाने का प्रोग्राम बनते बनते रह गया।क्रैको से प्राग सिर्फ़ तीन सौ किलोमीटर के आसपास है। मैं सर्दियों में प्राग देखना चाहती हूँ। कैसल। नदी। ठंढ। मैं अपनी कहानियों में उस शहर में तुम्हारे लिए कुछ शब्द छोड़ आती हूँ। तुम फिर कई साल बाद जाते हो वहाँ। उन शब्दों को छू कर देखते हो। और मेरी कहानी को पूरा करने को उसका आख़िरी चैप्टर लिखते हो। 

साल की पहली बर्फ़ गिरने को उतने ही कौतुहल से देखते होंगे लोग? जिन शहरों में हर साल बर्फ़ पड़ती है वहाँ भी? क्या ठंढे मौसम की आदत हो जाती है? मैं क्यूँ करती हूँ उस शहर से इतना प्यार?

मैंने बर्फ़ सिर्फ़ पहाड़ों पर देखी है। समतल ज़मीन पर कभी नहीं। शहरों में गिरती बर्फ़ तो कभी भी नहीं। पहाड़ों पर यूँ भी हमें बर्फ़ देखने की आदत होती है। घुटनों भर बर्फ़ में चलना वो भी कम ऑक्सिजन वाली पहाड़ी हवा में, बेहद थका देने वाला होता है। मुझे याद है उस बेतरह थकान और अटकी हुयी साँस के बाद पीना हॉट चोक्लेट विथ व्हिस्की। वो गर्माहट का बदन में लौटना। साँस तरतीब से आना। वहाँ रेस्ट्रॉंट में कई सारे वृद्ध थे। जो बाहर जाने की स्थिति में नहीं थे। उनके परिवार के युवा बाहर बर्फ़ में खेल रहे थे। मैंने वहाँ पहली बार इतनी बर्फ़ देखी थी। स्विट्सर्लंड में। zermatt और zungfrau।

शायद मुझे जितना ख़ुद के बारे में लगता है, उससे ज़्यादा पसंद है ठंढ। दिल्ली की भी सर्दियाँ ही अच्छी लगती हैं मुझे। फिर पिछले कई सालों में दिल्ली गयी कहाँ हूँ किसी और मौसम में। 

कल पापा से बात करते हुए उनसे या ख़ुद से ही पूछ रही थी। हमें कोई शहर क्यूँ अच्छा लगता है। आख़िर क्या है कि प्यार हो जाता है उस शहर से। मुझे ये बात याद ही नहीं थी कि न्यू यॉर्क समंदर किनारे है। या नदी है उधर। पता नहीं कैसे। मैं वहाँ सिर्फ़ म्यूज़ीयम देखने गयी थी। मेट्रो से अपने होटेल इसलिए गयी कि मेट्रो और टैक्सी में बराबर वक़्त लगेगा। ये तो भूल ही गयी कि टैक्सी से जाने में शहर दिखेगा भी तो। जब कि अक्सर तुमसे बात होती रही तुम्हारे शहर के बारे में।फिर वो सारा कुछ किसी काल्पनिक कहानी का हिस्सा क्यूँ लगता रहा?

किताबों और शहरों से मुझे प्यार हो जाता है। धुंध से उठती धुन की एक कॉपी लानी है मुझे तुम्हारे लिए। पता नहीं कैसे। फिर उस कॉपी को तुम्हें देने के लिए मिलेंगे किसी शहर में। जैसे 'वे दिन' के साथ हुआ था। कुछ थ्योरीज कहती हैं कि हर चीज़ में जान होती है। पत्थर भी सोचते हैं। किताबें भी। तो फिर तुम्हारे पास रखी हुयी इस किताब के दिल में क्या क्या ना ख़याल आता होगा?

कुछ किताबें होती हैं ना, पढ़ने के बाद हम उन्हें अपने पसंदीदा लोगों को पढ़ा देने के लिए छटपटा जाते हैं। कि हमसे अकेले इतना सुख नहीं सम्हलता। हमें लगता है इसमें उन सबका हिस्सा है, जिनका हममें हिस्सा है। जो हमारे दुःख में हमें उबार लेते हैं, वे हमारे सुख में थोड़ा बौरा तो लें। 

वे दिन ऑनलाइन मंगाने के पहले सोचा था तुमसे पूछ लूँ, तुमने नहीं पढ़ी है तो एक तुम्हारे लिए भी मँगवा लेंगे। फिर तुमने सवाल देखा नहीं तो मैंने दो कॉपी ऑर्डर कर दी थी। कि अगर अच्छी लगी तो तुम्हें भी भिजवा दूँगी। इस साल कैसी कैसी चीज़ें सच होती गयीं कि पूरा साल ही सपना लगता है। कितनी सुंदर थी ज़िंदगी। कितनी सुंदर है। अपने दुःख के बावजूद। अपने छोटे छोटे सुख में बड़े बड़े दुखों को बस थोड़ी सी शिकन के साथ जी जाती हुयी। शिकायत नहीं करती हुयी। 

मुझे ट्रैंज़िट वाली चीज़ें बहुत अच्छी लगती हैं। ये सोचना कि कोई पोस्टकार्ड नहीं होगा। किसी ने उसे उठाया होगा और मेल में अलग रखा होगा, सॉर्ट किया होगा शहरों के हिसाब से। कितने लोगों के हाथों से गुज़रा होगा काग़ज़ का एक टुकड़ा, तुम्हारे हाथों तक पहुँचने के पहले। एक दोस्त को कुछ किताबें भेजी हैं। वे उसके शहर के पोस्ट ऑफ़िस के लिए बैग कर दी गयी हैं। मैं अभी से उसके चेहरे के हाव-भाव सोच कर मुस्कुरा रही हूँ। क्या उसे अच्छा लगेगा? क्या वो नाराज़ होगा? क्या मैं बहुत ज़्यादा फ़िल्मी हूँ?

इतना पता है कि मुझे ज़िंदगी को थोड़ा और ख़ूबसूरत बनाना अच्छा लगता है। दो तरह के लोग होते हैं, एक वे, जो दुनिया को वही लौटाते हैं जो दुनिया ने उन्हें दिया...एक वो जो दुनिया को वो लौटाते हैं जो वे ख़ुद चाहते रहे हैं हमेशा। मैं दूसरी क़िस्म की हूँ। मुझे अच्छा लगता है ये सोच कर कि कोई मेरे लिए फूल ख़रीदेगा। मुझे वो सजीले गुलदस्ते उतने पसंद नहीं, लेकिन ज़रबेरा, लिली, और कभी कभी कार्नेशन अच्छे लगते हैं। मैं अपने दोस्तों के लिए अक्सर फूल ख़रीद कर ले जाती हूँ। कि उन्हें अच्छा लगता है। मैं कोई कुरियर भेजती हूँ तो सुंदर पैकिजिंग करती हूँ। चिट्ठियाँ लिखने के लिए सुंदर काग़ज़ दुनिया भर से खोज कर लाती हूँ। मुझे ये सोच कर अच्छा लगता है कि मैंने किसी को कुछ भेजा तो रैंडम नहीं भेजा...कुछ ख़ास भेजा। कुछ प्यार से भेजा। कुछ ऐसा भेजा जो देख कर कोई मुस्कुराए। कि किसी को चिट्ठी लिखना इतना ख़ास क्यूँ है मालूम? कि इस भागदौड़ की मल्टी-टास्किंग दुनिया में कोई घंटों आपके बारे में सोचता रहा और काग़ज़ पर उतरता रहा क़रीने से शब्द... सलीक़े वाली अपनी बेस्ट हैंडराइटिंग में। 

और तुम्हें पता है। बहुत सालों में एक तुम्हीं हो, जिसे कहा है, एक चिट्ठी लिखना मुझे। चिट्ठी। 'वे दिन' में रायना कहती है, वे चीज़ें जो हैं तो, लेकिन उनसे आशा नहीं रखनी चाहिए। सबके पास फ़ुर्सत का अभाव है। समय बहुत क़ीमती है। उसमें भी व्यस्त लोगों का समय। लेकिन फिर भी। मैं तुमसे इतनी सी चाह रखती हूँ कि तुम मुझे एक चिट्ठी लिखोगे कभी। 

तुमने किसी को आख़िरी बार हैप्पी बर्थ्डे वाला कार्ड कब दिया था? या नए साल पर? मेरा मन कर रहा है कि बचपन की तरह काग़ज़, स्केच पेन, ग्लिटर, स्टिकर और रंग बिरंगी चिमकियाँ ख़रीद कर लाऊँ और एक कार्ड बनाऊँ तुम्हारे लिए। शायद मेरे पास कुछ अच्छे शब्द हों तुम्हारे नाम लिखने को। पता है, मैं और मेरा भाई अपने स्कूल टाइम तक अपने स्कूल फ़्रेंड्ज़ को नए साल पर कार्ड देते थे। फिर हर नए साल की सुबह दोनों अपने अपने कार्ड जोड़ते थे कि किसको ज़्यादा कार्ड मिले। फिर उन कार्ड्ज़ को डाइऐगनली स्टेपल कर के हैंगिंग सा बनते थे और कमरे की दीवार पर चिपका देते थे। मुझे वे दिन याद आते हैं। तुम मुझे मेरा बचपन बहुत याद दिलाते हो। जैसे कि पता नहीं कोई दूर दराज़ के रिश्ते में लगते हो कुछ, ऐसा। कि हमारे बचपन का कोई हिस्सा जुड़ना चाहिए कहीं। या कि हम किसी शादी में मिलें अचानक और कोई नानी बात करते करते बतला दे, अरे ऊ घोड़ीकित्ता वाली तुमरे पापा की फुआ है ना...उसी के दामाद के साढ़ू का बेटा है...ऐसे कोई तो उलझे रिश्ते जो इमैजिन करने में कपार दुखा जाए। 

हमको भागलपुरी बोलना आज तक नहीं आया ढंग से लेकिन ठीक ठाक भोजपुरी बोलने लगे थे एक समय में। संगत का असर। फिर कुछ लोग डाँटे कम, प्यार से बात ज़्यादा किए। फिर कितने नए शब्द होते हैं हमारे बीच। Kenopsia. Moment of tangency. Caramel। हर शब्द में एक कहानी। 

मैंने ज़िंदगी जितनी सच में जी है, उससे कहीं ज़्यादा याद में और कल्पना में जी है। सपने में और पागलपन में भी। मगर कितनी सारी चीज़ें जो कहीं नहीं हैं, ऐसे मेरे शब्दों में रहती हैं। कितने चैन से। कितने इत्मीनान से। 
तुम भी तो। 

ढेर सारा प्यार। 
लो आज मेरे शहर का पूरा आसमान तुम्हारे नाम। इसके सारे रंग तुम्हारे। बादलों में बनते सारे हसीन नज़ारे और नीले रंग में मुस्कुराता आसमान, सूरज, चाँद सब। 
***






एक मुस्कुराता पौधा 
जिसके दिल की आकृति वाले पत्ते 
धूप में छप-छप करते 
खिड़की पर नहा रहे हैं

ऐसे ही सुख से
मेरे दिल को सजाता है
तुम्हारा प्यार

11 November, 2017

कैरेक्टर स्केच : लड़के

कुछ लड़के ऐसे होते हैं, बिखरे से बालों वाले। कि हमेशा कोई आवारा लट माथे पे झूलती रहेगी। जब भी उनसे मिलें, दिल करता है उसे लट को ज़रा सा उँगलियाँ फिरा के उनकी सही जगह टिका दें। लेकिन उन्हें किसी ने लड़कियों की तरह तमीज़ से रहना तो सिखाया नहीं है...हँसेंगे बेलौस और लट झूल जाएगी फिर फिर। साथ में आपका मन भी ऐसे ही ऊँचे झूले पर पींग बढ़ाता जाएगा।

जैसे कुछ लड़कियों के बारे में कहते हैं ना, कि उनका मन कँवारा ही रहता है, वे औरतपने की परछाईं से भी दूर रहती हैं...वैसे ही ये कुछ लड़के भी होते हैं…कि जो गृहस्थ नहीं बने होते। उनका घर होता है, बीवी होती है, बच्चे होते हैं लेकिन वे मन से आवारा होते हैं, मुक्त। ये वो लड़के हैं जिनके लड़कपन में भाभियाँ छेड़ते हुए कहती हैं, ऐसे ही जानवर की तरह बौराते रहोगे या आदमी भी बनोगे? हमारा समाज समझता है किसी औरत के पल्ले में गांठ की तरह बंध कर इन लड़कों में ठहराव आ जाएगा। 

ये लड़के कि जिनका बचपना बाक़ी रहता है पूरा का पूरा। पितृसत्ता ने इन्हें स्त्री को अपने से कमतर समझने का ज्ञान सिखलाया नहीं होता है। पौरुष की अकड़ इन्हें हर स्त्री में भोग्या नहीं दिखाती। अक्सर ये परिवारों में बहुत सी लड़कियों के साथ पले बढ़े होते हैं। दीदियाँ, छोटी बहनें, दोस्त भी सारे दीदी के दोस्त ही। ये लड़के बड़े मासूम और दिलकश होते हैं। कि जिनसे इश्क़ करने को जी चाहता है। जिनका दिल तोड़ देने को जी चाहता है कि वे थोड़ा दुनियावी हो जाएँ। कि कविताओं से दुनिया थोड़े चलती है। लेनदेन का हिसाब। थोड़ी सौदागरी सीख लें इसी बहाने। दिल को बेच सकें सबसे ऊँची बोली लगाने वाले के चिड़ियाघर में। 

वे लड़के कि जिन्हें किसी सुघड़ औरत के हाथों ने कभी छुआ नहीं हो। वे लड़के कि जिनके सीने से लग कर कोई नदी जैसी लड़की बही नहीं हो। ऐसी लड़की जिसके लिए वे बाँहों का मज़बूत बाँध बनाना चाहें। कि जिसके लिए वे पत्थर होना चाहें...उसके इर्द गिर्द रचना चाहें सात अभेद्य दीवारों वाला किला। 

जिन्हें दुनिया की मायूसी तोड़ ना पायी हो। जिनका अच्छाई पर से भरोसा ना उठा हो। कि जो बिखरे बिखरे हों और कैसी तो उदासी बसाए चलते हों अपनी आँखों में। कि भरे पूरे घर की पूरी ज़िम्मेदारी उठाए ये लड़के जाने किस तलाश किस प्यास को ख़ुद में छुपाए रखते हैं।

वे लड़के कि जिनसे मिल कर हर औरत के अंदर की लड़की बाहर चली आए। अपने गुलाबी दुपट्टे से पोंछ देना चाहे उसके माथे का पसीना। कि जो क़रीने से रख देना चाहे उसकी कविताओं वाले पन्ने। जिसे ठीक मालूम हो उसके पसंद की कॉफ़ी और जो कहना नहीं चाहे उससे कुछ। बस। देर तक बैठी रहे उसके पास। उसके सीने पर सर रखे, उसकी धड़कन को सुनते हुए। 

लड़के जो ज़मीन, आसमान, किसी के ना हुए हों। जिनके दिल पर किसी का भी नाम ना लिखा हो। लड़के जो कोरी सलेट की तरह हों। बेपरवाह लड़के। जिन्हें ना इश्क़ से डर लगता हो ना दुनिया और समाज के किसी नियम से। जो हँस कर कह सकें उस लड़की से...तुम लिखो ना कविता…हम कभी तुमसे सवाल नहीं करेंगे। 

आज़ाद लड़के। कि जो किसी आज़ाद लड़की से मिलें तो दोनों साथ आवारा होना चाहें। जिन्हें लम्हे में जीना आता हो। जिन्हें हँसना आता हो। और जिनके दिल में हमेशा किसी टूटी फूटी सी लड़की के रहने के लिए ख़ूब ख़ूब सी जगह हो। लड़के कि जिन्हें बंद कमरों में नहीं...खुले आसमान के नीचे चूमने को जी चाहे। जिनके साथ बारिश में भीगने को जी चाहे। बिना किसी हमेशा के वादे के...प्यार करने को जी चाहे। प्यार करके भूल जाने को जी चाहे। 

बहुत रेयर होते हैं ऐसे लड़के। बहुत दुर्लभ। ध्यान रखो, अगर कहीं मिलें तो एकदम से खोने मत देना इन्हें। प्यार व्यार के झूठे फ़रेब में नहीं आना। ये लड़के दोस्ती करने के लिए बने होते हैं। उम्र भर के तुम्हारे पागलपन को निभाने के लिए। कि तुम जब रात के चार बजे किसी को तलाशना चाहोगी तुम्हारी पागल कहानियाँ सुनने के लिए, तो ये सुनेंगे। उनकी हँसी की जलतरंग में दुनिया के सबसे सुंदर गीत होंगे। 

उनसे मिलना कभी तो गले लगना। कि दुनिया का कोई अधूरापन नहीं जो उनसे मिल कर थोड़ा कम अधूरा ना लगता हो। और जो कहीं ग़लती से उन्हें प्यार हो भी जाए तुमसे…तो होने देना। प्यार कोई ऐटम बम नहीं है कि शहरों को नेस्तनाबूद कर दे। ये टेम्परेरी होगा। वापस वे लौट कर यारी में ही चले आएँगे। उन्हें जीने का स्पेस देना। हँसना। अपनी पूरी ख़ूबसूरती की धूप में उन्हें सूरजमुखी की तरह खिलने देना। उनके साथ शहरों की परिकल्पना करना। आर्किटेक्चर फ़ाइनल करना। लोगों के लिए जगह बनाना। उसके साथ होना कोई कविता। कोई नदी। 

लड़के। कन्फ़ेशन बॉक्स जैसे। उनके पास रखना अपने सारे गुनाहों का हिसाब। और रखना उनकी दोस्ती को अपने दिल में सबसे आसानी से मिल जाने वाले फ़ोल्डर में। उनके साथ बाइक ट्रिप प्लान करना। घूमना शहर। याद रखना ढाबे में खाए तवा पनीर की सब्ज़ी की रेसिपी। सफ़र के रास्ते में पड़ेगा उसका एक कमरे का घर। किसी बहुत छोटे से शहर में। किताबों और छोटे से किचन वाला घर। उसके साथ मिल कर बनाना कोई शाम तोरई की सब्ज़ी। दाल और चावल। बैठ के खाना लालटेन की रोशनी में। कोई मिसाल बनना। कोई ऐसा क़िस्सा कि जो किसी से कहा ना जाए। जिया जाए जिसे और बस कहानी में लिख कर भूल जाया जाए। 
ऐसे किसी लड़के के लिए ख़रीदना गहरे लाल रंग का बैंडाना। सिखाना उसे ठीक से बाँधना। उसके गोरे रंग पर कांट्रैस्ट करेगा टेसु का गहरा लाल रंग। बिना हेल्मेट के चलाना बाइक। देखना बालों को हल्के हल्के हवा में उड़ते हुए। देखना आँखों में भरोसा। किसी को ताउम्र ऐसे ही प्यार करने का भरोसा। किसी के साथ सफ़र में बिना प्लान के चले आने का वादा। 

मिलना उससे पलाश के खिलने के मौसम में। पूछना उससे। साल में एक बार मिलने की उम्मीद तो कर सकती हूँ तुमसे?

02 November, 2017

मौसम के नाम, प्यार

मौसम उनके बीच किसी किरदार की तरह रहता। किसी दोस्त की तरह जिसे उनकी सारी बातें पता होतीं। उन्हें कहना नहीं आता, लेकिन वे जिस मौसम का हाल पूछते थे वो किसी शहर का मौसम नहीं होता। वो किसी शहर का मौसम हो भी नहीं सकता था। वो मन का मौसम होता था। हमेशा से। 

कि पहले बार उसने क्यूँ भेजी थीं सफ़ेद सर्दियाँ? और लड़की कैसे थी ऐसी, गर्म पानी का सोता...लेकिन उसे ये कहाँ मालूम था कि ये गर्म पानी नहीं, खारे आँसू हैं...उसकी बर्फ़ ऊँगली के पोर पर आँसू ठहरता तो लम्हे भर की लड़ाई होती दो मौसमों में। दुनिया के दो छोर पर रहने वाले दो शहरों में भी तो। मगर अंत में वे दोनों एक सम पर के मान जाते। 

बीच के कई सालों में कितने मौसम थे। मौसम विभाग की बात से बाहर, बिगड़ैल मौसम। मनमानी करते। लड़की ज़िद करती तो लड़के के शहर में भी बारिश हो जाती। बिना छतरी लिए ऑफ़िस गया लड़का बारिश में भीग जाता और ठिठुरता बैठा रहता अपने क्यूबिकल में। 'पागल है ये लड़की। एकदम पागल...और ये मौसम इसको इतना सिर क्यूँ चढ़ा के रखते हैं, ओफ़्फ़ोह! एक बार कुछ बोली नहीं कि बस...बारिश, कोहरा...आँधी...वो तो अच्छा हुआ लड़की ने बर्फ़ देखी नहीं है कभी। वरना बीच गर्मियों के वो भी ज़िद पकड़ लेती कि बस, बर्फ़ गिरनी चाहिए। थोड़ी सी ही सही।' कॉफ़ी पीने नीचे उतरता तो फ़ोन करता उसे, 'ख़ुश हो तुम? लो, हुआ मेरा गला ख़राब, अब बात नहीं कर पाउँगा तुमसे। और कराओ मेरे शहर में बारिश' लड़की बहुत बहुत उदास हो जाती। शाम बीतते अदरक का छोटा सा टुकड़ा कुतरती रहती। अदरक की तीखी गंध ऊँगली की पोर में रह जाती। उसे चिट्ठियाँ लिखते हुए सोचती, ये बारिश इस बार कितने दिनों तक ऐसे ही रह जाएगी पन्नों में। 

***

ठंढ कोई मौसम नहीं, आत्मा की महसूसियत है। जब हमारे जीवन में प्रेम की कमी हो तो हमारी आत्मा में ठंढ बसती जाती है। फिर हमारी भोर किटकिटाते बीतती है कि हमारा बदन इक जमा हुआ ग्लेशियर होता है जिसे सिर्फ़ कोई बाँहों में भींच कर पिघला सकता है। लेकिन दुनिया इतनी ख़ाली होती है, इतनी अजनबी कि हम किसी को कह नहीं सकते...मेरी आत्मा पर ठंढ उतर रही है...ज़रा बाँहों में भरोगे मुझे कि मुझे ठंढ का मौसम बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता। 

लड़की की सिसकी में डूबी आवाज़ एक ठंढी नदी होती। कि जिसमें पाँव डाले बैठे रहो तो सारे सफ़र में थरथराहट होगी। कि तुम रास्ता भूल कर अंधेरे की जगह रौशनी की ओर चले जाओगे। एक धीमी, कांपती रौशनी की लौ तक। सिगरेट जलाते हुए जो माचिस की तीली के पास होती है। उतनी सी रौशनी तक। 

बर्फ़ से सिर्फ़ विस्की पीने वाले लोग प्यार करते हैं। या कि ब्लैक कॉफ़ी पीने वाले। सुनहले और स्याह के बीच होता लड़की की आत्मा का रंग। डार्क गोल्डन। नीले होंठ। जमी हुयी उँगलियाँ। तेज़ आँधी में एक आख़िरी बार तड़प कर बुझी हुयी आँखें।

वो किसी संक्रामक बीमारी की तरह ख़तरनाक होती। उसे छूने से रूह पर सफ़ेद सर्दियाँ उतरतीं। रिश्तों को सर्द करती हुयीं। एक समय ऐसा भी होता कि वो अपनी सर्द उँगलियों से बदन का दरवाज़ा बंद कर देती और अपने इर्द गिर्द तेज़ बहती बर्फ़ीली, तूफ़ानी नदियाँ खींच देती। फिर कोई कैसे चूम सकता उसकी सर्द, सियाह आँखें। कोई कैसे उतरते जाता उसकी आत्मा के गहरे, ठंढे, अंधेरे में एक दिया रखने की ख़ातिर।

लड़की कभी कभी unconsolable हो जाती। वहाँ से कोई उसे बचा के वापस ला नहीं पाता ज़िंदगी और रौशनी में वापस। 
हँसते हुए आख़िरी बात कहती। एक ठंढी हँसी में। rhetoric ऐसे सवाल जिनके कोई जवाब नहीं होते।
'लो, हम मर गए तुम पर, अब?'

***
'मुख़्तसर सी बात है, तुमसे प्यार है'

सबको इस बात पर आश्चर्य क्यूँ होता कि लड़की के पास बहुत से अनकहे शब्द हुआ करते। उन्हें लगता कि जैसे उसके लिए लिखना आसान है, वैसे ही कह देना भी आसान होता होगा। ऐसा थोड़े होता है।

कहने के लिए आवाज़ चाहिए होती है। आवाज़ एक तरह का फ़ोर्स होती। अपने आप में ब्लैक होल होती लड़की के पास कहाँ से आती ये ऊर्जा कि अपने ही प्रचंड घनत्व से दूर कर सके शब्द को...उस सघनता से...इंटेन्सिटी से...कोई शब्द जो बहुत कोशिश कर के बाहर निकलता भी तो समय की टाइमलाइन में भुतला जाता। कभी अतीत का हिस्सा बन जाता, कभी भविष्य का। कभी अफ़सोस के नाम लिखाता, कभी उम्मीद के...लेकिन उस लड़के के नाम कभी नहीं लिखाता जिसके नाम लिखना चाहती लड़की वो एक शब्द...एक कविता...एक पूरा पूरा उपन्यास। उसका नाम लेना चाहती लेकिन कहानी तक आते आते उसका नाम कोई एक अहसास में मोर्फ़ कर जाता।

लड़की समझती सारी उपमाएँ, मेटाफर बेमानी हैं। सब कुछ लिखाता है वैसा ही जैसा जिया जाता है। कविताओं में भी झूठ नहीं होता कुछ भी।

सुबह सुबह नींद से लड़ झगड़ के आना आसान नहीं होता। दो तीन अलार्म उसे नींद के देश से खींच के लाना चाहते लेकिन वहाँ लड़का होता। उसकी आँखें होतीं। उसकी गर्माहट की ख़ुशबू में भीगे हाथ होते। कैसे आती लड़की हाथ छुड़ा के उससे।

सुबह के मौसम में हल्की ठंढ होती। जैसे कितने सारे शहरों में एक साथ ही। सलेटी मौसम मुस्कुराता तो लड़की को किसी किताब के किरदार की आँखें याद आतीं। राख रंग की। आइना छेड़ करता, पूछता है। आजकल बड़ा ना तुमको साड़ी पहनने का चस्का लगा है। लड़की कहती। सो कहो ना, सुंदर लग रही हूँ। मौसम कहता, सिल्क की साड़ी पहनो। लड़की सिल्क की गर्माहट में होती। कभी कभी भूल भी जाती कि इस शहर में वो कितनी तन्हा है...वो लड़का इतना क़रीब लगता कि कभी कभी तो उदास होना भी भूल जाती।

कार की विंडो खुली होती। उसका दिल भी। दुःख के लिए। तकलीफ़ के लिए। लेकिन, सुख के लिए भी तो। सुबह कम होता ट्रैफ़िक। लड़की as usual गाड़ी उड़ाती चलती। किसी रेसिंग गेम की तरह कि जैसे हर सड़क उसके दिल तक जाती हो। गाना सुनती चुप्पी में, गुनगुनाती बिना शब्द के।

लड़की। इंतज़ार करती। गाने में इस पंक्ति के आने का। अपनी रूह की उलझन से गोलती एक गाँठ और गाती, 'मुख़्तसर सी बात है, तुमसे प्यार है'


और कहीं दूर देश में अचानक उसकी हिचकियों से नींद खुल जाती...ठंढे मौसम में रज़ाई से निकलने का बिलकुल भी उसका मन नहीं करता। आधी नींद में बड़बड़ाता उठता लड़का। 'प्यार करने की तमीज़ ख़ाक होगी, इस पागल लड़की को ना, याद करने तक की तमीज़ नहीं है'

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