'और, कैसी हो आजकल तुम?'
'बुरी हूँ। बहुत ज़्यादा। नाराज़ भी।'
'तुम बुरी हो जाओ तो बुरी का डेफ़िनिशन बदलना पड़ेगा। लेकिन तुम्हारी ऐसी ख़ूबसूरत दुनिया में कौन शख़्स मिल गया तुमको जिससे तुमको नाराज़ होने की नौबत आ गयी?'
'परी है एक'
'आब्वीयस्ली, तुम किसी नॉर्मल इंसान से तो नाराज़ हो नहीं सकती हो, परी ही होगी। तो फिर,क्या किया परी ने?'
'श्राप दे दिया है'
'अच्छा, कोई कांड ही किया होगा तुमसे। यूँही तो परी का दिमाग़ नहीं फिरेगा कि श्राप दे दे तुमको'
'नहीं, कोई कांड नहीं किया। परी ख़ुश हुयी थी मुझसे बहुत, इसलिए...'
'मतलब, परी ख़ुश होकर सराप दी तुमको? पागलखाने में मिली थी क्या उससे?'
'उफ़्फ़ो, पूरी बात सुनो। एक परी एक शाम बहुत उदास थी तो मैंने उसको अपनी बाइक पर बिठा कर बहुत तेज़ तेज़ बाइक चलायी और व्हीली भी की'
'और फिर तुमने बाइक गिरा दी और उसने तुम्हें श्राप दिया?'
'चुप रह कर पूरी कहानी सुनो, कूट देंगे हम तुमको'
'उफ़्फ़ो, इतना डिटेल में बताना ज़रूरी है?' हमको इतना पेशेंस नहीं है'
'यार, बाइक से उतरे तो हाथ एकदम ठंढे पड़ गए थे। ग्लव्ज़ पहनना भूल गयी थी। परी को मेरे ठंढे हाथों पर बहुत प्यार आया। उसने अपनी जादू की छड़ी घुमायी और ग़ायब हो गयी'
'बस? तो फिर हुआ क्या जिसका रोना रो रही हो'
'मेरे हाथ अब कभी ठंढे नहीं पड़ते हैं'
'तो ये अच्छी बात है ना, पागल लड़की!'
'हाँ। पहले कितना आसान होता था कहना, देखो, मेरे हाथ एकदम बर्फ़ हो गए हैं। अब क्या कहूँ। तुम्हें छूने को मन कर रहा है? इतनी दूर मत बैठो। पास बैठो। मेरा हाथ थाम कर'
'तो इसमें क्या है? कह दो'
'कहा तो'
'मतलब, क्या, कुछ भी! मेरा हाथ पकड़ कर क्यूँ बैठना है तुमको?'
'बस देखे ना। यही एक्स्प्लनेशन नहीं देना है हमको। हमको ख़ुद नहीं पता। पहले तुमको बस इतना कहना होता था कि मेरे हाथ ठंढे हो गए हैं। तुम कोई सवाल नहीं करते थे'
'तुम इतनी उलझी हुयी कब से हो गयी हो?'
'सुनो, बाक़ी सब कल समझाएँगे। फ़िलहाल हमको बहुत कुछ समझ नहीं आ रहा। चलो, बाइक से घूम के आते हैं'
'चलो...तुम चलाओगी कि हम चलाएँ'
'तुम रहने दो, हमारा एनफ़ील्ड चलाओगे, इश्श्श्श। बैलगाड़ी चलाने का नहीं बोल रहे। तीस का स्पीड पर चलाओगे, बेज्जती ख़राब होगा हमारा'
'तुम इतना तेज़ बाइक काहे चला रही हो?'
'कोई लड़का अगर लड़की को पीछे बिठाता है और बाइक बहुत तेज़ चलाता है तो इसका क्या मतलब निकाला जा सकता है?'
'लड़की की ट्रेन छूटनी वाली होती है या ऐसा कुछ?'
'नहीं, वो चाहता है कि लड़की डरे और उसको ज़ोर से पकड़ कर बैठे'
'अच्छा!'
'अच्छा नहीं, नालायक। पकड़ के बैठो हमको ज़ोर से। उड़ जाओगे हवा में। पागल कहीं के'
'और कोई देखेगा तो क्या कहेगा?'
'इत्ति तेज़ चला रही हूँ, कौन ना देख पाएगा रे तुमको?'
'चलो, तुम्हारा शहर है, मनमर्ज़ी करो ही। हमको यहाँ कौन पहचानता है, तुमको ही पूछेगा सब, कौन हीरो को पीछे बिठा कर एनफ़ील्ड उड़ा रही थी तुम'
'हीरो, इश्श्श, कहाँ के हीरो हो रे तुम'
'तुम्हारी कहानी के तो हैं ही। इतना काफ़ी है'
'नालायक हीरो'
'तुम्हारे हीरो हैं, नालायक तो होना ही था'
बाइक इतनी तेज़ रफ़्तार उड़ रही थी कि अब बातें अतीत में सुनायी देतीं...उसने जैसे मन में कहा, 'लव यू रे, नालायक'
मगर कुछ बातें बिना सुने भी अपना जवाब पा जाती हैं। उसे ऐसा लगा कि लड़के ने उसके कंधे पर पकड़ थोड़ी मज़बूत की और किसी बहुत जन्म पहले की बात दुहरायी, 'मी टू'।
'बुरी हूँ। बहुत ज़्यादा। नाराज़ भी।'
'तुम बुरी हो जाओ तो बुरी का डेफ़िनिशन बदलना पड़ेगा। लेकिन तुम्हारी ऐसी ख़ूबसूरत दुनिया में कौन शख़्स मिल गया तुमको जिससे तुमको नाराज़ होने की नौबत आ गयी?'
'परी है एक'
'आब्वीयस्ली, तुम किसी नॉर्मल इंसान से तो नाराज़ हो नहीं सकती हो, परी ही होगी। तो फिर,क्या किया परी ने?'
'श्राप दे दिया है'
'अच्छा, कोई कांड ही किया होगा तुमसे। यूँही तो परी का दिमाग़ नहीं फिरेगा कि श्राप दे दे तुमको'
'नहीं, कोई कांड नहीं किया। परी ख़ुश हुयी थी मुझसे बहुत, इसलिए...'
'मतलब, परी ख़ुश होकर सराप दी तुमको? पागलखाने में मिली थी क्या उससे?'
'उफ़्फ़ो, पूरी बात सुनो। एक परी एक शाम बहुत उदास थी तो मैंने उसको अपनी बाइक पर बिठा कर बहुत तेज़ तेज़ बाइक चलायी और व्हीली भी की'
'और फिर तुमने बाइक गिरा दी और उसने तुम्हें श्राप दिया?'
'चुप रह कर पूरी कहानी सुनो, कूट देंगे हम तुमको'
'उफ़्फ़ो, इतना डिटेल में बताना ज़रूरी है?' हमको इतना पेशेंस नहीं है'
'यार, बाइक से उतरे तो हाथ एकदम ठंढे पड़ गए थे। ग्लव्ज़ पहनना भूल गयी थी। परी को मेरे ठंढे हाथों पर बहुत प्यार आया। उसने अपनी जादू की छड़ी घुमायी और ग़ायब हो गयी'
'बस? तो फिर हुआ क्या जिसका रोना रो रही हो'
'मेरे हाथ अब कभी ठंढे नहीं पड़ते हैं'
'तो ये अच्छी बात है ना, पागल लड़की!'
'हाँ। पहले कितना आसान होता था कहना, देखो, मेरे हाथ एकदम बर्फ़ हो गए हैं। अब क्या कहूँ। तुम्हें छूने को मन कर रहा है? इतनी दूर मत बैठो। पास बैठो। मेरा हाथ थाम कर'
'तो इसमें क्या है? कह दो'
'कहा तो'
'मतलब, क्या, कुछ भी! मेरा हाथ पकड़ कर क्यूँ बैठना है तुमको?'
'बस देखे ना। यही एक्स्प्लनेशन नहीं देना है हमको। हमको ख़ुद नहीं पता। पहले तुमको बस इतना कहना होता था कि मेरे हाथ ठंढे हो गए हैं। तुम कोई सवाल नहीं करते थे'
'तुम इतनी उलझी हुयी कब से हो गयी हो?'
'सुनो, बाक़ी सब कल समझाएँगे। फ़िलहाल हमको बहुत कुछ समझ नहीं आ रहा। चलो, बाइक से घूम के आते हैं'
'चलो...तुम चलाओगी कि हम चलाएँ'
'तुम रहने दो, हमारा एनफ़ील्ड चलाओगे, इश्श्श्श। बैलगाड़ी चलाने का नहीं बोल रहे। तीस का स्पीड पर चलाओगे, बेज्जती ख़राब होगा हमारा'
'तुम इतना तेज़ बाइक काहे चला रही हो?'
'कोई लड़का अगर लड़की को पीछे बिठाता है और बाइक बहुत तेज़ चलाता है तो इसका क्या मतलब निकाला जा सकता है?'
'लड़की की ट्रेन छूटनी वाली होती है या ऐसा कुछ?'
'नहीं, वो चाहता है कि लड़की डरे और उसको ज़ोर से पकड़ कर बैठे'
'अच्छा!'
'अच्छा नहीं, नालायक। पकड़ के बैठो हमको ज़ोर से। उड़ जाओगे हवा में। पागल कहीं के'
'और कोई देखेगा तो क्या कहेगा?'
'इत्ति तेज़ चला रही हूँ, कौन ना देख पाएगा रे तुमको?'
'चलो, तुम्हारा शहर है, मनमर्ज़ी करो ही। हमको यहाँ कौन पहचानता है, तुमको ही पूछेगा सब, कौन हीरो को पीछे बिठा कर एनफ़ील्ड उड़ा रही थी तुम'
'हीरो, इश्श्श, कहाँ के हीरो हो रे तुम'
'तुम्हारी कहानी के तो हैं ही। इतना काफ़ी है'
'नालायक हीरो'
'तुम्हारे हीरो हैं, नालायक तो होना ही था'
बाइक इतनी तेज़ रफ़्तार उड़ रही थी कि अब बातें अतीत में सुनायी देतीं...उसने जैसे मन में कहा, 'लव यू रे, नालायक'
मगर कुछ बातें बिना सुने भी अपना जवाब पा जाती हैं। उसे ऐसा लगा कि लड़के ने उसके कंधे पर पकड़ थोड़ी मज़बूत की और किसी बहुत जन्म पहले की बात दुहरायी, 'मी टू'।
No comments:
Post a Comment