नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।
स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।
अर्जुन बोले -- हे अच्युत आपकी कृपासे मेरा मोह नष्ट हो गया है और स्मृति प्राप्त हो गयी है। मैं सन्देहरहित होकर स्थित हूँ। अब मैं आपकी आज्ञाका पालन करूँगा।
***
लड़की कहती है, मुझे 'मोह' हो जाता है बहुत। आसक्ति। हमेशा ऐसा नहीं था। पिछले चार साल से मैं कहानी और किरदारों के बीच ही रह रही हूँ। लोगों से बमुश्किल मिली जुली हूँ। साल का एक बुक फ़ेयर और कभी कभार का अपने दोस्तों से मिलना जुलना। एक नियमित ऑफ़िस की जो दिनचर्या होती है और काम में व्यस्त रहने का जो सुख होता है वो काफ़ी दिनों से हासिल नहीं है।
बहुत ज़्यादा सोचने से होता ये है कि सच की दुनिया और क़िस्सों की दुनिया में अंतर महसूस होना कम हो जाता है। कहानियों के किरदार आम ज़िंदगी की तरह नहीं होते। वे हर फ़ीलिंग को बहुत ज़्यादा गहराई में महसूस करते हैं और जीते हैं, कि उनके ऐसे महसूसने का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता कहीं भी। उन्हें सिर्फ़ जितना सा लिखा गया है उतना जीना होता है। जबकि रियल ज़िंदगी में ऐसा नहीं होता। रियल ज़िंदगी में उतनी गहराई से जीने से मोह होता है। दुःख होता है। याद आती है। हम वर्तमान को जीने की जगह अतीत में जिए हुए को दुबारा रीक्रीएट करते हैं बस।
धीरे धीरे हम इस वलय में घूमने लगते हैं और भूल जाते हैं कि एक रास्ता किसी और शहर को जाता है। हम अपने सफ़र भूल जाते हैं। हम सफ़र में मिलने वाले अजनबियों के क़िस्सों की जगह रखना नहीं चाहते।
ठेस कब किस पत्थर से लग जाए कह नहीं सकते। दोष हमारा है कि हमें ढंग के जूते पहन कर चलना चाहिए ख़तरनाक सड़क पर। मैं अपने तलवे में चुभा इश्क़ का काँच कितने सालों से निकालने की कोशिश कर रही हूँ मगर सिर्फ़ हथेलियाँ लहूलुहान होती हैं...मैं आगे बढ़ नहीं पाती। इतने दुखते पैरों के साथ आगे बढ़ना मुश्किल है। तब भी जब मालूम हो कि आगे अस्पताल है और डॉक्टर शायद मुझे ठीक कर सकेंगे। उनके लिए छोटी सी बात है। किसी को आवाज़ दे कर बुलाया जा सकता है। वो भी नहीं कर पा रही।
इन दिनों सोचती हूँ, वो कौन लड़की थी जिसने तीन रोज़ इश्क़ जैसी कहानी लिखी। जिसे अपना दिल टूट जाने से डर नहीं लगता था। फिर ये कौन लड़की है कि इंतज़ार के किस अम्ल में गल चुकी है पूरी। कि उसे जिलाए रखने का, उसे बचाए रखने की ज़िम्मेदारी उसकी ख़ुद की ही थी ना।
कि मेरे पास बस मोह ही तो है कि जिसलिए मैं लिखती हूँ। चीज़ों को बचा लेने का मोह। इस सब में, थोड़ा सा ख़ुद को बचा ले जाने की उम्मीद भी।जिस दिन मोह टूटता है, मैं भी टूट ही जाती हूँ बेतरह।
कि सिवा इसके, है भी क्या ज़िंदगी में...अर्जुन ने गीता सुन कर कृष्ण से कहा कि उसका मोह नष्ट हो गया और वो लड़ने को तैयार हो गया।
मेरा मोह नष्ट हो जाए तो मैं कुछ भी नहीं लिखूँगी। और फिर, बिना लिखे, मेरा होना कुछ भी नहीं। कुछ भी नहीं तो।
स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।
अर्जुन बोले -- हे अच्युत आपकी कृपासे मेरा मोह नष्ट हो गया है और स्मृति प्राप्त हो गयी है। मैं सन्देहरहित होकर स्थित हूँ। अब मैं आपकी आज्ञाका पालन करूँगा।
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लड़की कहती है, मुझे 'मोह' हो जाता है बहुत। आसक्ति। हमेशा ऐसा नहीं था। पिछले चार साल से मैं कहानी और किरदारों के बीच ही रह रही हूँ। लोगों से बमुश्किल मिली जुली हूँ। साल का एक बुक फ़ेयर और कभी कभार का अपने दोस्तों से मिलना जुलना। एक नियमित ऑफ़िस की जो दिनचर्या होती है और काम में व्यस्त रहने का जो सुख होता है वो काफ़ी दिनों से हासिल नहीं है।
बहुत ज़्यादा सोचने से होता ये है कि सच की दुनिया और क़िस्सों की दुनिया में अंतर महसूस होना कम हो जाता है। कहानियों के किरदार आम ज़िंदगी की तरह नहीं होते। वे हर फ़ीलिंग को बहुत ज़्यादा गहराई में महसूस करते हैं और जीते हैं, कि उनके ऐसे महसूसने का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता कहीं भी। उन्हें सिर्फ़ जितना सा लिखा गया है उतना जीना होता है। जबकि रियल ज़िंदगी में ऐसा नहीं होता। रियल ज़िंदगी में उतनी गहराई से जीने से मोह होता है। दुःख होता है। याद आती है। हम वर्तमान को जीने की जगह अतीत में जिए हुए को दुबारा रीक्रीएट करते हैं बस।
धीरे धीरे हम इस वलय में घूमने लगते हैं और भूल जाते हैं कि एक रास्ता किसी और शहर को जाता है। हम अपने सफ़र भूल जाते हैं। हम सफ़र में मिलने वाले अजनबियों के क़िस्सों की जगह रखना नहीं चाहते।
ठेस कब किस पत्थर से लग जाए कह नहीं सकते। दोष हमारा है कि हमें ढंग के जूते पहन कर चलना चाहिए ख़तरनाक सड़क पर। मैं अपने तलवे में चुभा इश्क़ का काँच कितने सालों से निकालने की कोशिश कर रही हूँ मगर सिर्फ़ हथेलियाँ लहूलुहान होती हैं...मैं आगे बढ़ नहीं पाती। इतने दुखते पैरों के साथ आगे बढ़ना मुश्किल है। तब भी जब मालूम हो कि आगे अस्पताल है और डॉक्टर शायद मुझे ठीक कर सकेंगे। उनके लिए छोटी सी बात है। किसी को आवाज़ दे कर बुलाया जा सकता है। वो भी नहीं कर पा रही।
इन दिनों सोचती हूँ, वो कौन लड़की थी जिसने तीन रोज़ इश्क़ जैसी कहानी लिखी। जिसे अपना दिल टूट जाने से डर नहीं लगता था। फिर ये कौन लड़की है कि इंतज़ार के किस अम्ल में गल चुकी है पूरी। कि उसे जिलाए रखने का, उसे बचाए रखने की ज़िम्मेदारी उसकी ख़ुद की ही थी ना।
कि मेरे पास बस मोह ही तो है कि जिसलिए मैं लिखती हूँ। चीज़ों को बचा लेने का मोह। इस सब में, थोड़ा सा ख़ुद को बचा ले जाने की उम्मीद भी।जिस दिन मोह टूटता है, मैं भी टूट ही जाती हूँ बेतरह।
कि सिवा इसके, है भी क्या ज़िंदगी में...अर्जुन ने गीता सुन कर कृष्ण से कहा कि उसका मोह नष्ट हो गया और वो लड़ने को तैयार हो गया।
मेरा मोह नष्ट हो जाए तो मैं कुछ भी नहीं लिखूँगी। और फिर, बिना लिखे, मेरा होना कुछ भी नहीं। कुछ भी नहीं तो।
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