हमारे ऑफिस में एक रजिस्टर होता है, जिसकी शकल से हमें बहुत जोर की चिढ़ है...वैसे तो रजिस्टर जैसे सीधे साधे और गैर हानिकारक वस्तु से किसी को चिढ़ होनी तो नहीं चाहिए...मगर क्या करें, किस्सा ही कुछ ऐसा है।ये वो रजिस्टर है, जिसमे देर से जाने पर दस्तखत करने पड़ते हैं...यानि कि ९:४५ के बाद। कहानी यहाँ ख़तम हो जाए तो भी गनीमत है, आख़िर दिन भर ऑफिस में दस्तखत करने के अलावा हम करते क्या हैं...मगर नहीं, उस मासूम से दिखने वाले नामुराद रजिस्टर में एक कमबख्त कॉलम है "वजह", यानि कि देर से आना किस वजह से हुआ। बस यहीं हमारे सब्र का बाँध टूट जाता है...काश ये रजिस्टर कोई इंसान होता तो उसे एक हफ्ते का अपना पूरा कारनामा दिखा देते, उसके बाद मजाल होती उसकी पूछने की ऑफिस देर से क्यों पहुंचे। दिल तो करता है उसकी चिंदी चिंदी करके ऑफिस के गमलों में ही खाद बना के डाल दूँ...मगर अफ़सोस। मुए रजिस्टर को हमने सर चढा रखा है...प्यार से बतियाते हैं न इसलिए...
फ़र्ज़ कीजिये बंगलोर का सुहावना मौसम है, आठ बजे तक कम्बल ओढ़ के पड़े हुए हैं...अनठिया रहे हैं...५ मिनट और...किसी तरह खींच खांच कर किचन तक जाते हैं। सारी सब्जियों को विरक्त भाव से देखते हैं, संसार मोह माया है, हमें पूरा यकीं हो जाता है...जगत मिथ्या है...सच सिर्फ़ इश्वर है...और हम कर्म करो फल की चिंता मत करो के अंदाज में खाना बनने जुट जाते हैं। खाना बनने के महासंग्राम के दौरान अगर खुदा न खस्ता कोई कोक्क्रोच या उसके भाई बंधुओं में कोई नज़र आ गया तो उसके पूरे खानदान को मेरा बस चले तो श्राप से ही भ्रष्ट कर डालूं। मगर क्या करूँ...ब्राह्मण होने हुए भी ये श्राप से जला देने वाला तेज हममें नहीं है। भगा दौडी में किसी तरह खाना बन के डब्बों में बंद होके तैयार हो जाता है और हम बेचारे नहाने धोने में लग जाते हैं।
अब ये बात किसी लड़के को समझ में नहीं आती है, इसलिए रजिस्टर को भी समझ में नहीं आएगी इसलिए हम कारण में नहीं लिखते हैं...पर हर सुबह हमें देर होने का मुख्य कारण होता है कि हमें समझ नहीं आता कि क्या पहनें? इस समस्या से हर लड़की रूबरू होती है, मगर वही रजिस्टर...अगली बार लिख दूँगी कि भैया आपको जो समझना है समझ लो, पर हमें देर इसलिए हुआ क्योंकि हमें लग रहा था कि नीली जींस पर हरा टॉप अच्छा नहीं लग रहा है, और फ़िर वो टॉप क्रीम पैंट पर भी अच्छा नहीं लगा, और स्कर्ट में हम मोटे लगते हैं, और वो हलके हरे कलर वाली जींस हमें टाइट हो गई (सुबह ही पता चला, मूड बहुत ख़राब है, इसका तो पूछो ही मत)...तो इतने सारे ऑप्शन्स ट्राय करने के कारण हमें देर हो गई। तो क्या हुआ अगर इस कारण को लिखने के कारण बाकी ऑफिस के सारे लोग कुछ नहीं लिख पाएं, हमने तो ईमानदारी से कारण बताया न।
बंगलोर में जब भी सुबह का मौसम अच्छा, प्यारा और ठंढा हो...आधा घंटा देर से आना allow होना चाहिए, अरे इसमें हमारी क्या गलती है...हम ठहरे देवघर, दिल्ली के रहने वाले, अच्छा मौसम देखे, चद्दर तान के सो गए खुशी खुशी...जेट लैग की तरह मौसम लैग भी होता है भाई...सच्ची में। इसको pre programming कहते हैं, जैसे सूरज की धूप पड़ते ही आँख खुलना, बहुत दिनों बाद किसी दोस्त से मिलने पर गालियाँ देना...वगैरह। ये ऐसी आदतें हैं जिनका कुछ नहीं कर सकते।
बरहाल...इधर दो दिन लगातार लेट हो गए ऑफिस जाने को...कारण और भी हैं, किस्तों में आते रहेंगे, रजिस्टर में क्या क्या लिखें। सब किस्सा वहीँ लिख देंगे तो आख़िर ये ब्लॉग काहे खोले हैं :)






