सूना सा हो गया है आँचल मेरा
मैंने कहा था तुमसे
तुमने कुछ दुआएं डाल दीं
उन्हें गाँठ लगा कर सोयी थी
कल रात, सदियों बाद
मुझे नींद आई थी...
ख्वाब भी थे
बचपन की उजली मुस्कुराहटें भी
माँ भी कल आई थी दुलराने को
सुबह ख्वाब तो नहीं थे
पर दुपट्टे के कोने पर
माँ का आशीर्वाद था
गांठ में सिन्दूर के साथ बंधा हुआ
शायद कल माँ ने तुम्हारी मनुहार मान ली
और मुझे तुम्हें दे ही दिया...हमेशा के लिए.
ख्वाब जब दस्तक देता है
ReplyDeleteइन आँखों में
हाँ वो माँ ही तो थी
जो लेकर आई थी
झोली भर कर
ढेर सारी दुआएं
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
sunder rachana badhai
ReplyDeleteबहुत गहरे भाव हैं.
ReplyDeleteमाँ बिना बताये बेटी का दिल जान लेती है :-)
ReplyDeleteसुबह ख्वाब तो नहीं थे
ReplyDeleteपर दुपट्टे के कोने पर
माँ का आशीर्वाद था
बहुत नाजुक यादें हैं जो खवाबों में नही होते भी खवाबों मे आती हैं. आपने बडी खूबसूरती से इन्हे शब्द दे दिये. शुभकामनाएं.
रामराम.
एक्सीलेंट..!!
ReplyDeleteउन्हें गाँठ लगा कर सोयी थी
ReplyDeleteकल रात, सदियों बाद
मुझे नींद आई थी...
कहते है हर बेटी अपनी माँ का अक्स होती है......मुझे भी इस बात से इत्तिफाक है
बकौल भवानी प्रसाद मिश्र
ReplyDeleteमां कि जिसकी गोद में सिर रख लिया तो दुख नहीं फिर।
आपकी कविता अच्छी लगी।
सुबह ख्वाब तो नहीं थे
ReplyDeleteपर दुपट्टे के कोने पर
माँ का आशीर्वाद था...
माँ का आशीर्वाद साथ ही रहता है ..अच्छी लगी यह ...
संवेदनशील रचना। कामना है कि यूं ही सृजनशील रहो।
ReplyDeleteमां हुंदी ए मां ओ दुनिया वालियो
ReplyDeleteसुक्की थां ते धी नूं पावे
गिल्ली थां ते आप है पैंदी
मां हुंदी ए मां ओ दुनिया वालियो
बहुत खूब.. कविता पढ़कर निःशब्द हूं..
ReplyDeleteपूजा जी,
ReplyDeleteमाँ, अपने आप में ही एक पूरी महाकाव्य होती है।
माँ के अहसास को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में ढाला है, आपने।
कविता, बहुत अच्छी है, सुकून देती है।
बधाईयाँ,
मुकेश कुमार तिवारी
पूजा,
ReplyDeleteअच्छी रचना के लिये बहुत बधाई.....
मार्मिक रचना। दिल को छूती हुई रचना।
ReplyDeleteउन्हें गाँठ लगा कर सोयी थी
कल रात, सदियों बाद
मुझे नींद आई थी..
अद्भुत सी।
मां के विषय में इतना पढ़ा आजकल कि बेचारा पिता तो दरकिनार हो गया है! :(
ReplyDeletebahut pyaari si rachnaa.... jitnaaa shensheel maa kaa dil hotaa hai naa , utnaa hi pyaar aapne apne shabdon mein daal diyaa........:)
ReplyDeletebahut sundar ahsas
ReplyDeletegreat poem. sach me mamta shaswat aur ekroop hai. eswar ka sabse bada uphar hai maa
ReplyDeletesorry!
ReplyDeleteis kavita se mujhe kuchh kuchh gulzaar ki ek poem yaad aa gayi.. ''sarhad paar se''
mera ek friend aksar sunaya karta tha..
haan waise vichar aapke apne hain....
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना है। बधाई।
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