बंगलोर का मौसम कुछ ऐसा है कि हर दिन आपको अपनी पहली मुहब्बत याद आती रहे (या दूसरी, तीसरी, चौथी...या हर दिन एक)। कभी पहली बारिश, तो कभी तुम्हारे साथ वाली पहली बारिश...और उसमें काफ़ी की गर्माहट।
मेरे ऑफिस की छत ग्रीन हाउस के ऊपर जैसी होती है न, वैसी है...तो जब जोर से बारिश होती है तो पानी के बूंदों का शोर बिल्कुल फुल वोलुम में बजते ब्रायन अडम्स के गीत जैसा लगता है कभी कभी "please forgive me, i can't stop loving you". खिड़कियों से मिट्टी की सोंधी महक और पानी का हल्का भीगापन महसूस होने लगता है, अजीब खुलापन सा है ऑफिस में, कभी किसी बंधन का अहसास नहीं होता।
मुझे याद है, इससे पहले का क्यूबिकल, एयर टाईट कमरे...जिनमें सब कुछ कृत्रिम था, बारिश आके चली जाए पता भी न चल पाता था। और यहाँ जैसे बारिश नृत्य करने लगती है चारो तरफ़...अपनी सीट पर बैठ कर भी उसे पूरी तरह महसूस किया जा सकता है...कुछ नहीं तो सिर्फ़ इस एक चीज़ के लिए इस ऑफिस में काम करना चाहूंगी, जिंदगी ऐसी हो कि जी जाए...ऑफिस में हम शायद जिंदगी का सबसे ज्यादा हिस्सा गुजरते हैं। क्यों न ऑफिस ऐसा हो कि जिंदगी के करीब लगे। छोटी छोटी चीज़ों से कैसी खुशी मिल सकती है इसका ख्याल रख कर ऑफिस शायद बहुत कम लोग बनाते होंगे।
आते हुए भी हलकी बूंदा बंदी हो रही थी, चश्मे पर गिरती पानी की बूँदें कितने वाक़ये याद दिला रही थी...वो तुम्हारा कहना कि धीरे चलाना, दिल्ली की बारिशें, gurgaon कि सड़कें( जहाँ तुमने बाईक से गिरा दिया था...बारिश के कारण फिसलन हो गई थी) मेरा कहना कि तुम्हारे साथ बारिश में तब तक नहीं जाउंगी जब तक हैन्डिल मेरे हाथ में न हो।
सकड़ किनारे खूब सारा पानी जमा हो गया था, जेंस को मोड़ कर घुटनों से थोड़ा नीचे ही रहने दिया था आज भी...कुछ पाटलिपुत्रा के दिन याद आ गए, जब साइकिल चला कर ऐसे ही बारिश में कोचिंग जाया करते थे। उन दिनों अगर मस्ती छोड़ कर थोडी थांग से पढ़ाई करती तो शायद आ डॉक्टर होती...पर तब कवि नहीं होती, ब्लॉगर नहीं होती...तुमसे नहीं मिलती...या शायद ये सब होता...क्या पता :)
जानती थी आज सुबह भी...कि बारिश होगी, फ़िर भी रेनकोट नहीं रखा...बारिश होती ही ऐसी है कि भीगने का मोह छोड़ नहीं पाते। कुछ कुछ वैसे ही जैसे आज भी फैब इंडिया के कुरते अच्छे लगते हैं...पर उन्हें देखकर , छू कर जेएनयू की याद इतना तड़पाने लगती है कि खरीदते नहीं है।
बरहाल...
ए जिंदगी गले लगा ले...हमने भी तेरे हर एक गम को, गले से लगाया है...है न!
PS: sorry for deleting comments, and editing the post.
गर्मी में बरसात की अनुभूति,
ReplyDeleteसुखद संयोग की खूबसूरत प्रतीति,
अच्छी है प्रस्तुति।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
baarishon mein bhigna hamesha suhana lagta hai,bahut lucky hai app jo office mein baithe bhi boondon ki khanak sun sakti hai,varna hamara hosp tho band deewaron ke alwa kuch nahi.
ReplyDeletedr.sahibaa, kya baat hai jee apke banglore kee baarish kee thandak yahan dilli tak pahunch rahee hai, bhai aajkal to pooraa blogjagat hee romantic hotaa jaa raha hai , maajraa kya hai aakhir, achha laga......
ReplyDeleteजाने कितने मौसम छू कर निकल गए ये पोस्ट पढ़ते पढ़ते.
ReplyDeleteलगा बाहर कड़ी धूप नहीं है बादल छाये हुए हैं
मन हुआ कि बस निकल पडा जाये.
बारिश में मुझे अपनी दस मुहब्बतों में से एक भी याद नहीं आती। याद आती है तो दिल्ली में अपने घर की! शायद वही मेरी मुहब्बत है।
ReplyDeleteजानती थी आज सुबह भी...कि बारिश होगी, फ़िर भी रेनकोट नहीं रखा...बारिश होती ही ऐसी है कि भीगने का मोह छोड़ नहीं पाते। कुछ कुछ वैसे ही जैसे आज भी फैब इंडिया के कुरते अच्छे लगते हैं...पर उन्हें देखकर , छू कर जेएनयू की याद इतना तड़पाने लगती है कि खरीदते नहीं है।
ReplyDeleteकैसे कैसे एहसास, कैसी कैसी मजबूरियां !
शायद कुछ लंबा अंतराल हो गया इस बार तुम्हारी "लहरों" में भीगने कई दिनों से आ नहीं पाया ...
ReplyDeleteबारिश होती ही ऐसी कि भीगने का मोह छोड़ नहीं पाते- तुम लिख्ती हो और इधर मन जाने कितनी बारिशों में अनायास ही भीग कर लौट आता है वापस ..
बारिश की इन बूंदों ने मुझे भी भिगोया...और इतना भिगोया...कि एक गीलापन सा भर गया...यादों में.....!!
ReplyDeleteकुछ चीज़ें शब्दों से भी ऊपर हो जाती हैं....लाख कोशिश कर लो...पर बयां करना हर बार ही मुश्किल....!!
हाय ..ब्रयान एडम .कैसटो में खूब बजे ....करोके में भी....उन दिनों बारिश बहुत होती थी...लगातार ....लगातार....एक गाना ओर याद आया जो बहुत बजा,,,,
ReplyDeletei will be right here waiting for you
ए जिंदगी गले लगा ले...हमने भी तेरे हर एक गम को, गले से लगाया है
ReplyDeleteजिन्दगी एहसास ,नजरिये ,अनुभवों
का दूसरा नाम है .
बहूत खूब एहसास प्रस्तुत किये हैं
बधाई हो
पर हमारे यहां तो बारिश ही बंद हो गई है? क्या करें? लगता है कोई कृत्रिम बारिश की तकनीक खरीदनी पडेगी?:)
ReplyDeleteबहुत लाजवाब लिखा. शुभकामनाएं.
रामराम.
बारिशो में उनका साथ ज़िन्दगी का सबसे खुशनुमा पल होता है.. ऑफिस का कांसेप्ट पसंद आया..
ReplyDeletenice post...kaaphi majedaar ..baarish ka mousham aisa hi hota hai ..
ReplyDeleteइस तपती दोपहर में
ReplyDeleteबारिश की पोस्ट पढकर
मिटटी की सौंधी महक मुझ तक पहुंच गई
शानदार
बारिश और वो नन्ही नन्ही बुँदे ...उसके होने का एहसास दिला जाती हैं .....फिर जब होश में आता हूँ तो बारिश की उन बूँदों के साथ मेरा दर्द छुप जाता है ....जो वो बूँदें ना हों तो ...आँखों के गीले होने का सब को एहसास हो जाये ....कभी ये बारिश हँसाती है कभी रुलाती है
ReplyDeleteplease forgive me...
ReplyDeletei can't stop myself reading this post again and again..
very nostalgic....
मुहब्बत से भरी पोस्ट...
ReplyDeleteए जिंदगी गले लगा ले...हमने भी तेरे हर एक गम को, गले से लगाया है...है न!
good feelings.....
ReplyDeletebas itna hi kahunga is par :
ReplyDeleteबहुत मुश्किल से संभाला हूं ऐ दिल तुझे,
फिर वही भूल करने की खता ना कर..
पूजा, बहुत ही अच्छा चित्रण किया है बारिश का. सच कहूं तो शायद यह शिमला में लाल टीन की छत के एक मकान में गुजारी रात में बारिश की बूंदों की टिप-टिप के संगीत के जादू का ही असर था की फिर कभी मेडिकल कालेज के होस्टल के कमरे में मन नहीं लगा. आपने पाटलिपुत्र में बरसात में साईकिल चलाकर बरसात में भीगने का मज़ा देख लिया था, इसीलिए शायद डॉक्टर नहीं बने (जैसा आप मानती हो) पर मेरे जैसे का क्या जो डिग्री करने के बाद भी बारिश पर कविताएँ लिखने के लिए स्टेथोस्कोप छोड़कर कलम उठा बैठा. और आज आपके गुडगाँव वाले एक क्यूबिकल ऑफिस में बैठा शीशे पर गिरती बारिश की फुहारों को देखकर खुश हो लेता हूँ. खैर, बंगलौर के ऑफिस के लिए बधाई.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की सबसे बड़ी खासियत यह है की आपकी छोटी-छोटी खुशियाँ हम सबकी खुशियाँ बन जाती हैं... बांटती रहो और लूटाती रहो हमेशा इसी तरह खुशियाँ...
ReplyDeleteaaapko padhnaa bahtu accha lagta hai...sach....kyunki aapki posts mein hum zindagi se milte hain....vohi zindagi jo jitni aapki hai utni humari bhi...par aap aksar framed life zyada sunder lagti hai... aur aap zindagi ko perfect frame mein place kar ke rakh deti hain humare saamne.... :)
ReplyDeletekeep sharing... :)
aur haan aise office mein honaa to hum bhi chahenge...........:)
आपने सच में मुझे इस पोस्ट के माध्यम से भूली बिसरी यादों को ताजा कर दिया....बहुत-बहुत धन्यबाद.कभी मेरे ब्लॉग ओपर भी आयें.,..
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