आज वो खामोश है...सदियों पुराने बिसराए गए गीत कमरे में घूम रहे हैं...धुनों की तरह, जिनके कोई बोल नहीं होते...वो किसी लम्हे में नहीं है, न तो किसी पुरानी याद की मुस्कराहट है, न किसी आने वाले कल की गुनगुनी धूप...
एक गहरा सन्नाटा है, और अँधेरा...कुछ ऐसा कि छुआ जा सके...उसने हाल में एक बीमारी के बारे में पढ़ा है, जिसमें सारी इन्द्रियां आपस में गड्ड मड्ड हो जाती है, रंगों से गीत सुनाई देने लगते हैं तो गीतों का स्वाद आने लगता है, वह सोचती है कि ये बीमारी तो उसे बचपन से है....आख़िर बारिश के बाद मिट्टी का स्वाद तो महसूस होता ही है, कोहरे वाली रातों को सोच कर हमेशा कॉफी की खुशबू भी महसूस हुयी है उसे।
जिंदगी तमाम खुशियों के बावजूद एकदम खाली लगती है...या शायद तमाम खुशियों के कारण ही...जब हर वजह हो हँसने की तभी ऐसा दर्द महसूस होता है कि मुस्कुराने से डर लगने लगे. अकेले कमरे में चुप चाप घूमने वाला पंखा तन्हाई को बड़ी शिद्दत से कमरे में बिखेरता है...घूमते हुए पंखों को देख कर उसे दिल्ली की डीटीसी बसें क्यों याद आने लगती है? उमस का चिलचिलाती धुप से कोई भी रिश्ता तो नहीं है. अकेलापन साँसों में उतर जाता है सभी के बीच होने के बाद भी...और ठोस हो जाता है, जैसे हमारे अन्दर कुछ मर गया हो.नए शब्दों में उलझी, नए बिम्बों में पुराने लोगों को तलाशती जाने किस रास्ते पर चल पड़ी है वो...जिंदगी क तमाम खूबसूरत रातों में उसे डरावने ख्वाब आते हैं, खिलखिलाते हुए धूप वाले मौसमों में जैसे ग्रहण लग जाता है...
अपरिभाषित सा कोई दर्द टीसता है...इस हद तक कि आंसू नहीं आते और वो रो नहीं सकती...चलती रहती है, सफ़र है, वक़्त है, तन्हाई है...कौन जाने कोई मोड़ आये, पुराना सा...
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हर रिश्ते की एक उम्र होती है, और जो रिश्ते अपनी उम्र के पहले टूट जाते हैं...वो मरते नहीं उनकी आत्मा भटकती रहती है...इस भटकाव में सब तड़पते हैं...रिश्ता भी...वक़्त, हालत, मौसम, तन्हाई...तुम और मैं भी.
sahi kaha aapne...
ReplyDeleteek bahut achchhi post padhne ko mili...
aapne aaj kafi dino baad likha hai
Meri Kalam - Meri Abhivyakti
bahut bahdiya puja.. bahut dino ke bad likhi, magar bahut umda likhi ho..
ReplyDeleteएक तो बहुत दिनों के बाद दर्शन देते हो और जब देते हो तो इतनी गहरी बातें लिख जाती हो की गहराई नापते बैठे रहो. मीठे पानी का सबसे ऊँचाई में स्थित झील कौनसी है, तो कहना होगा पूजा का मन. .
ReplyDeletekabhi kabhi kuch na kahna bhi bahut kuch kahne ke jaisa hota hai....aapki har rachna meri soch ki zameen par ek khamoshi oopja deti hai....
ReplyDeleteवक़्त के साथ सब चीजे गुजर जाती है ..रिश्ते भी उसी का हिस्सा है....बचपन के दोस्त.. .मोहब्बत ...जिंदगी की जरूरते ओर प्राथमिकताये नए आयाम ढूंढती है ओर तय करती है...शायद सर्वाइवल ऑफ़ फिटेस्ट...
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण बहावयुक्त आलेख..सच है रिश्तों की अपनी उम्र होती है.
ReplyDeleteबहुत गहरा लिखा, और बहुत प्रवाह के साथ. शुभकामनाएं
ReplyDeleteरामराम.
भावपूर्ण!
ReplyDeleteexperience is wat u get wen u didnt get wat u wanted.
ReplyDeleteliked ur post .Really hearttouching and nice.
Vikas
सारे वो शब्द....जो कहीं मेरे अंदर उमड़ रहे थे....और तुम्हारी भाषा में सामने आ गए....
ReplyDeleteइस भटकाव में सब तड़पते हैं.... so true... लगता है आज मन के भीतरी कोनो से मिलने बैठ गयी थी आप...
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