वो सारी शामें जब तुम मेरी गली से गुजरे थे
रातों को मेरे कमरे में पूरा चाँद निकलता था
तुमको मालूम नहीं हुआ कभी भी लेकिन
उस खिड़की के परदे से तुम जितना ही रिश्ता था
तुमसे बातें करती थी तो हफ्तों गजलें सुनती थी
हर शेर के मायने में अपना आलम ही दिखता था
वो सड़कें मेरे साथ चली आयीं हर शहर
जिस मोड़ पर रुकी इंतज़ार तेरा ही रहता था
जाने तू अब कितना बदल गया होगा
मेरी यादों में तो हमेशा नया सा लगता था
पूजा,
ReplyDeleteस्मृतियों को बहुत करीने से संभाला है आपने.
अच्छी बात है , स्नेह और प्रेम की यही तो तासीर है.
- विजय
वो सारी शामें जब तुम मेरी गली से गुजरे थे
ReplyDeleteरातों को मेरे कमरे में पूरा चाँद निकलता था
तुमसे बातें करती थी तो हफ्तों गजलें सुनती थी
बहुत सुन्दर अल्फाज़ चुने आपने, बहुत सुन्दर कविता
वीनस केसरी
जाने तू अब कितना बदल गया होगा
ReplyDeleteमेरी यादों में तो हमेशा नया सा लगता था
बहुत ही खूबसूरत रचना.
रामराम.
यादों का खज़ाना कभी कम नही होता।
ReplyDelete"तुमको मालूम नहीं हुआ कभी भी लेकिन
ReplyDeleteउस खिड़की के परदे से तुम जितना ही रिश्ता था"
बहुत खूब ...
क्या-क्या भाव आ जाते हैं जी। खिड़की के पर्दे से तेरे जैसा रिश्ता। जय हो। जय हो। शानदार।
ReplyDeleteaksar apne aaspaas ,tujhe hee,
ReplyDeletemehsoos kiya kartee thee....
hawaaon mein bhee tera,
chehraa saa bantaa tha......
dil dhoondhtaa thaa tujhko,tab bhee,
jab koi khatkaa saa hota tha,
tu naa sahi teri khushboo hee sahi,
aatee to thee, jab pardaa wo hilta tha.....
dr. sahibaa ..likhtee rahein.....
मुझे तो फो्टो बहुत प्यारा लगा.. लग रहा है जैसे आदि खिड़की से मुझे पुकार रहा है..
ReplyDeleteकविता अच्छी है, परन्तु....हिंदी ब्लॉग पर अंग्रेजी में परिचय, बात कुछ जमी नहीं.
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद अपनी वाली पूजा मिली है..
ReplyDeleteराजेश जी, आपने भी तो अपने ब्लॉग के नाम उदीयमान भारत के बाद India Shining लिखा है...पहले आप बताइए की क्यों लिखा है?
ReplyDeleteये हिन्ही ब्लॉग का इंट्रो नहीं है, मेरी प्रोफाइल है और मैं इंग्लिश में भी ब्लॉग करती हूँ इसलिए इंग्लिश में प्रोफाइल होनी जरूरी है. दूसरी बात, सभी computers में हिंदी फॉण्ट नहीं होने के कारण देवनागरी लिपि पढ़ी नहीं जा सकती.
मुझे मेरा यही प्रोफाइल अच्छा लगता है...इसी भाषा में...तो है.
woh sadkein chali aayi mere saath har shehar....
ReplyDeletekitna atoot rishta hai, in chand lafzo se pata chalta hai. Sach hai yaadein ek kabhi na juda hone wala hisa ban jaati hain humhara waqt ke saath...
तुमको मालूम नहीं हुआ कभी भी लेकिन
ReplyDeleteउस खिड़की के परदे से तुम जितना ही रिश्ता था
kya bat hai..! bahut sachchhi..bahut achchhi...!
वाह ! सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteहर शेर के मायने में अपना आलम ही दिखता था
ReplyDeletekaafi relate kar paaya hoon is baat se :)
समय ठहरता कहां है। सब बदल देता है।
ReplyDeleteजाने तू अब कितना बदल गया होगा
ReplyDeleteमेरी यादों में तो हमेशा नया सा लगता था
सच्ची मुच्ची बहुत ही प्यारी रचना।
जब आसमान से चाँद
ReplyDeleteउतरकर आया था
मेरे कमरे मे
मॅ ये समझा
तुम आए हो ....
वो रात गीत
सुनाती थी
मॅ ये समझा
तुम गाते हो ....