23 May, 2009

वट सावित्री की कुछ यादें

कल हिन्दी तारीख के हिसाब से मेरा जन्मदिन है, और चूँकि ये एक बहुत खास दिन है, इसलिए by default अक्सर खुशी खुशी मना ही लेते थे हम।

बिहार/झारखण्ड के लोग वट सावित्री व्रत के बारे में जानते होंगे। ये व्रत पत्नियों द्वारा पति की लम्बी उम्र के लिए रखा जाता है, दिन भर निराहार और निर्जला रहकर अगली सुबह वट वृक्ष यानि बरगद की पूजा करने जाती हैं। इसे पारण कहते हैं, मेरा जन्म वट सावित्री के पारण के दिन हुआ था।
बचपन से इस व्रत ने बहुत आकर्षित किया है, कारण वही जो हर बच्चे का कमोबेश एक सा ही होता होगा..प्रशाद। व्रत के लिए घर में पिरकिया और ठेकुआ बनता है...पिरकिया गुझिया टाईप की एक मिठाई होती है बस इसे चाशनी में नहीं डालते, और ठेकुआ आटे में चीनी/गुड़, घी, मेवा आदि डाल कर बनाया जाता है। यह प्रशाद पूजा के एक दिन पहले बना लेती थी मम्मी और रथ के बड़े वाले डब्बे में रख देती थी...वो नीले रंग के डब्बे जिनमे सफ़ेद ढक्कन होता था, उनपर अखबार रखकर कास के बंद कर दिया जाता था, एक दिन बाद खुलने के लिए।

पिरकिया बनाना भी एक अच्छा खासा आयोजन होता था, जिसमें अक्सर आस पड़ोस के लोग मिल कर काम करते थे...हम बच्चों का किचन में जाना बंद हो जाता था, हम किचन की देहरी पर खड़े देखते रहते थे। डांट भी खाते थे की क्या बिल्ली की तरह घुर फ़िर कर रहे हो, प्रशाद है...अभी नहीं मिलेगा। पर अगर छानते हुए कोई पिरकिया या ठेकुआ गिर गया तो वो अपवित्र हो जाता था और उसको भोग में नहीं डाल सकते थे। ये गिरा हुआ पिरकिया ही हमारे ध्यान का केन्द्र होता था...और हम मानते रहते थे की खूब सारा गिर जाए, ताकि हमें खाने को मिले।

फ़िर थोड़े बड़े हुए तो मम्मी का हाथ बंटाने लगे, अच्छी बेटी की तरह...पिरकिया को गूंथना पड़ता है। हर साल मैं बहुत अच्छा गूंथती और हर साल मम्मी कहती अरे वाह तुम तो हमसे भी अच्छा गूंथने लगी है...हम कहते थे की मम्मी हर साल अच्छा गूंथते हैं, तुमको हर साल आश्चर्य कैसे होता है। पर बड़ा मज़ा आता था, सबसे सुंदर पिरकिया बनाने में।

अगली सुबह मुहल्ले की सभी अंटियाँ एक साथ ही जाती थीं, हम बच्चे हरकारा लगते थे सबके यहाँ...और सब मिलकर बरगद के पेड़ तक पहुँच जाते थे। जाने का सबसे बड़ा फायदा था की instant प्रशाद मिलता था...और वो भी खूब सारा। प्रायः प्रसाद में लीची मेरा पसंदीदा फल हुआ करता था, तो मैं ढूंढ कर लीची ही लेती थी।

बरगद के पेड़ के फेरे लगा कर उसमें कच्चा सूत बांधती थीं और फ़िर पूरी पलटन घर वापस...और फ़िर खुलता था पिरकिया का डब्बा । मुझे याद नहीं मैंने किसी बरसैत में खाना भी खाया हो, प्रशाद से ही पेट भर जाता था। वैसे उस दिन पापा खाना बनाते थे, कढ़ी चावल और मम्मी के लिए पकोड़े भी बनाते थे. ये एक अलग आयोजन होता था, क्योंकि पापा साल में बस दो बार ही किचन जाते थे, एक तीज और दूसरा वाट सावित्री यानि बरसैत के दिन.

आज सुबह एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी ५ जून को मानव श्रृंखला बन रही हैं बंगलोर में, पेड़ बचाओ, धरती बचाओ अभियान. अजीब विडंबना है...क्या ऐसी कोई भी मानव श्रृंखला मन को उस तरह से छू पाएगी जैसे हमारे त्यौहार छूते हैं. जरूरत है कुछ ऐसा करने की जो जनमानस में बस जाए...लोकगीतों की तरह, नृत्य और संगीत की . मगर हम कुछ कर सकते!

एक कल हमें कोई अपने घर बुला के पिराकिया ठेकुआ खिला दे...हम हैप्पी हो जायेंगे.

20 comments:

  1. आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाये
    हिंदी में कहें तो हेप्पी बड्डे :)

    वीनस केसरी

    ReplyDelete
  2. Happy B'day to you! many happy returns of the day !

    ReplyDelete
  3. तुम जियो हज़ार साल,
    हर साल के दिन हो पचास हज़ार्।

    हम भी गर्मियो की छुट्टियों मे ननिहाल मे रहते थे वंहा गांव मे सब महिलाएं वट की पूजा करने जाती थी इसलिये हमे ये याद है। आज भी चाहे वट सावित्रि की पूजा हो या आंवला पूजन हमे पता चल ही जाता है क्योंकि उस दिन प्रेस क्लब जिस बगीचे मे बना है वंहा सारे शहर की महिलायें पूजा करने आती हैं।एक बार फ़िर जन्म दिवस की बधाई।

    ReplyDelete
  4. ये वाले बर्थ डे की बहुत बधाई और मुबारकबाद..अनेक शुभकामनाऐं.

    ReplyDelete
  5. जन्मदिन की शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  6. पूजाजी ...जन्मदिवस की बहुत बधाई ....वटसावित्री पूजा पर घर की याद आना स्वाभाविक है

    ReplyDelete
  7. by default ....... हमारी ओर से जन्म दिन की शुभकामनायें!!

    ReplyDelete
  8. बाई डिफाल्ट रोज प्रसन्न होने का उद्यम बने तो मजा रहे। थावे की पेड़कुआ/पेड़कुई आती थी। मावा भरी और शीरे में डुबाई गुझिया। पिरकिया शायद वही है।

    ReplyDelete
  9. ठेकुआ, पुरकिया की यादों में जन्म दिन की शुभकामना।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    ReplyDelete
  10. मम्मी तुम्हारी ब्लागर होतीं और तुम्हारी पोस्टें पढ़तीं तो हर बार कहतीं-वाह तुम तो बहुत अच्छा लिख लेती हो, हमसे भी अच्छा। जन्मदिन की खूब सारी शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  11. जन्मदिन मुबारक

    ठेकुए की याद दिलाकर व्याकुल कर दिया आपने। अच्छा है कि मां जून में आ रही हैं…

    नास्टेल्ज़िया भी क्या चीज़ होती है!!

    ReplyDelete
  12. जन्मदिन पर शुभकामना. अगर कुछ पेरुकिया वैगरह का पार्टी होगा तो बता दीजियेगा.

    ReplyDelete
  13. हमारी ओर से जन्मदिन की ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं। ये पिराकिया ठेकुआ होता क्या है? पहले ये बता दीजिए फिर इसकी दावत भी दे देंग़े।

    ReplyDelete
  14. पूजा जी,

    यह शुभदिन हो मुबारक आपको..

    यादों के पलछिन मुबारक आपको...

    सदा खिलखिलाएं, खिले फूलों की तरह

    खुशबू औ सरगम मुबारक आपको...

    जन्म दिन की शुभकामनाएं...!

    पाखी

    ReplyDelete
  15. पूजा जी,

    पहली टिप्पणी तो आपके जन्मदिन पर थी.आपके लेखन के बारे में कुछ कहने की जरूरत ही नहीं होती है..सदा से श्रेष्ठ और स्फूर्ति दायक होता है...ऐसा लगता है कि सुबह की तरोताजा करने वाली चाय पी ली हो....पढ़ कर जीवंत महसूस करता हूँ...

    ReplyDelete
  16. जन्मदिन की ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं। पिराकिया नाम पहली बार सुना है. पर ठेकुआ तो हमने भी बहुत खाया है बचपन में. अब तो पता नहीं कितने साल हो गए इसे देखे हुए भी.

    ReplyDelete
  17. पूजा जी जन्मदिन की हार्दिक बधइयां ... और पिराकिया तो नहीं, पर ठेकुआ तो हम आपको ज़रूर खिला सकते हैं... कहिये दिल्ली कब आएँगी... :)

    ReplyDelete
  18. पहले तो जन्मदिन की बहुत सारी शुभकामनायें(देर से ही सही), पेरुकिया की याद तो हमे भी खुब आती है पर हमें तो सिर्फ छ्ठ के बिनहीया घाटे के दिन का ईन्तजार रहता था | साल मे सिर्फ एक बार जाना होता है अब तो, शायद ठेकुआ भी हमसे किनारा कर चुका है, गगन और रथ के डिब्बे तो अब भी दिख जाते है पर वो दिन नही दिखता शायद अब हम पर बडे होने का ईल्जाम लग गया है...

    ReplyDelete
  19. Belated badhaaiya aur rath ka dibba yaad karke jaane kyoon bahut kuchh yaad aa gaya!

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...