असित ने बड़े इत्मीनान से कॉफ़ी में दो चम्मच चीनी डाली और हल्का सा सिप लिया...चश्मे के शीशे पर भाप आ गयी तो उसे उतार कर कुरते के कोने से पोंछा और फिर कुछ देर सामने की दीवार पर लगी पेंटिंग पर नज़रें टिकायीं. छवि थोड़ी उदास थी आज...वरना तो जिस लम्हे वो उसका नाम लेता था मुस्कुराने और चहकने लगती थी. सामने उसका पसंदीदा आयरिश कॉफ़ी का कप रखा था जो अब ठंढा होने चला था. दोनों चुप. यूँ असित और छवि मिलते थे तो असित अधिकतर चुप ही रहता था...सारे किस्से तो छवि के नाम होते थे.
'डिपेंड्स'...छोटा सा जवाब.
इस छोटी सी बात से मुस्कुराहटें उगी और कैफे की ठहरी हुयी हवा में गीत के कुछ कतरे गूंजने लगे. दोनों खुले स्पेस में बैठे थे...कैफे की सामने की बालकनी में शाम के इस वक़्त कुछ लड़के बैंड प्रैक्टिस के लिए जुटते थे. असित को उनका म्यूजिक बहुत पसंद आता था. एक बार कॉलेज मैगजीन की लिए आर्टिकल लिखते हुए छवि ने इन्हें कवर भी किया था...जिस कैफे में दोनों बैठे थे ये कैफे भी उन्ही इत्तिफकों का एक उदाहरण था कि जिनसे जिंदगी जीने लायक होने लगती है. बैंड के लोग अपना एक पोर्टफोलियो बनाना चाहते थे और छवि का काम उन्हें पसंद था. उनकी एक प्रोफाइल शूट के सिलसिले में उसका असित से मिलना हुआ था...तब से वो इस कैफे में अक्सर मिलने लगे थे.
असित फ्रीलांस करता था...उसका चित्त बहुत चंचल था...ओगिल्वी, मुद्रा, JWT जैसी सारी अच्छी ऐड एजेंसीज में काफी साल काम करके उसका दिल भर गया था तो उसने फ्रीलान्सिंग शुरू कर दी थी. अब वो सिर्फ ऐसे प्रोजेक्ट उठाता जिसमें उसे कुछ थ्रिल मिलता...कुछ नया करने को, कुछ अलग. उसे शब्दों के साथ जादू करना आता था...वो उन्हें कठपुतलियों की तरह नचाता...उसके हाथ में जा कर साधारण शब्द भी चमक उठते थे जैसे की फिल लाईट मारी हो किसी ने चेहरे की परछाइयाँ छुपाने के लिए. लोग उसकी बहुत इज्ज़त करते थे...उसने हर क्षेत्र में लोगों को कई नए नामों से अवगत कराया था.
थोड़ा चुप्पा सा रहना, खुद में खोये रहना उसका स्वाभाव था पर उसके बेहतरीन काम और काम के प्रति दीवानगी ने धीरे धीरे उसे बहुत ख्याति दिला दी थी फिर अचानक उसका कम बातें करना भी उसके मिस्टीरियस 'औरा' का ही एक हिस्सा बन गया था. लोग उससे बातें करने में दस बार सोचते थे...जूनियर उसके सामने अनचाहे हकलाने लगते थे. इस औरा के कारण उसकी जिंदगी के लोग भी सिमटते जा रहे थे. ऐसे ही अचानक एक दिन छवि से मिलना हुआ था उसका...पल संजीदा, पल खुराफाती अजीब पहेली सी लड़की थी. फोटो शूट पर उसे देर तक ओबजर्व किया उसने...और घर लौट कर काफी सालों बाद कैनवास पर एक वृत्त बनाया था...छवि की बायीं गाल का डिम्पल.
छवि काम करती थी तो उसे खाने पीने कि सुध बुध नहीं रहती, घंटों फोटोशूट चलता रहता...ऐसे में असित ही उसे खींच कर कैफे लाता कि कुछ खा पी लो. कई बार उसके लिए मैगी या चोकलेट भी लेते आता...ये रोल रिवर्सल असित की समझ से बाहर था कि वो छवि का इतना ध्यान क्यूँ रखता है. शायद पहली बार उसे कोई अपने जैसा दिखा था...और छवि थी ही ऐसी...हर हमेशा गले में कैमरा लटका हुआ...जिंदगी को फ्रेम दर फ्रेम अनंत तक बांधे रखने की अमिट चाहना सी.
'पता है असित, मैं अपनी दोस्तों को कहती हूँ कि एक बार किसी फोटोग्राफर लड़के से जरूर प्यार करना चाहिए...एक तो लड़का इश्क में पागल, उसपर अच्छा फोटोग्राफर...तुम्हें मालूम भी न होगा कि तुम कितनी सुन्दर हो...तो एक बार इश्क की आँखों से खुद को देख लो...इसके अलावा कोई और तरीका नहीं है जानने का कि प्यार में लोग कितने खूबसूरत हो जाते हैं'
'और तुम छवि, तुमसे किसी लड़के को प्यार हुआ कि नहीं?'
'पता नहीं, पर तुम्हें देख कर दिल जरूर कर रहा है कि एक बार अपने कैमरे की नज़र से तुम्हें देखूं, फिर डर भी लगता है कि नज़र न लग जाए तुम्हें मेरी ही...मुझे अक्सर अपने सब्जेक्ट्स से प्यार होता रहता है. तुमसे हुआ तो मर ही जाउंगी...अब तक जीता, जागता इतना खूबसूरत सब्जेक्ट नहीं मिला है मुझे'
'अब इसपर क्या कहा जा सकता है...'
'कुछ नहीं, अपना एक दिन दोगे मुझे...एक पूरा चौबीस घंटों का...मैं तुम्हें बिना परेशान किये...बिना तुम्हारी रिदम को बदले तुम्हें सहेजना चाहती हूँ...तुममें एक लय है...बेहद खूबसूरत सी, जैसे तुम्हारी कलम चलती है कागज़ पर, जैसे तुम उँगलियों में सिगरेट फंसाए टहलते रहते हो...सब कुछ...इतनी खूबसूरती खोनी नहीं चाहिए.'
'इतनी खूबसूरत तारीफें करोगी तो कोई ना कैसे कहता होगा तुम्हें'
फिर वो चौबीस घंटे साए की तरह छवि असित के साथ हो ली...उसे महसूस भी नहीं होता कि किस कोने से, किस एंगल से छवि उसे कैमरे में बंद कर रही है. सुबह की चाय...दोपहर जाड़े की धूप में बैठ कर लान में अपनी पसंद का कुछ लिखते हुए...कॉफ़ी बनाते हुए...असित को अब डर लग रहा था कि ये आँखें जब न होंगी तो ये दिन कितना याद आएगा. सुबह से शाम...सोसाईटी की कृत्रिम झील के किनारे मूंगफलियाँ खाना...सब कुछ रीता जा रहा था. सारे वक़्त असित इसी उहापोह में था कि ये वक़्त जो उसने सिर्फ मुझे कैमरा में बंद करने को माँगा है...काश ये ये वक़्त वो छवि से उसके साथ बिताने को मांग पाता.
रात गुजरी, भोर हुयी...आज रात सोते हुए उस छोटे से फ़्लैट में पहली बार असित को डर लग रहा था कि कहीं नींद में छवि का नाम न ले आज...कुछ अजीब न कह जाए. सुबह हुयी और कॉफ़ी पीने के साथ ही छवि के चौबीस घंटे पूरे हुए...असित ने हाथ बढ़ा कर कैमरा माँगा...कि देखूं क्या तसवीरें खींची है तो छवि ने एकदम गंभीर चेहरा बना कर कहा कि वो रील डालना भूल गयी थी कैमरा में. असित एक मिनट तो इतना गुस्सा हो गया कि कुर्सी से उठ गया...
'यानि कल पूरे वक़्त तुमने एक भी तस्वीर नहीं खींची...मेरा पूरा दिन बर्बाद किया तुमने...ये क्या मज़ाक है छवि?' उसे गुस्सा आ रहा था और गुस्से में उसका चेहरा गुलाबी होने लगा था...
छवि मुस्कुरा रही थी...'मुझे तुम्हारी तसवीरें कभी खींचनी ही नहीं थी...मुझे प्यार हुआ था तुमसे, तुम्हारी जिंदगी का एक दिन चाहिए था मुझे...और कैसे भी तो तुम देते नहीं'.
असित को समझ नहीं आ रहा था कि उसे हो क्या रहा था...एक सेकण्ड के लिए जैसे सब धुंधला गया और नर्म धूप में हंसती छवि का बाया डिम्पल नज़र आने लगा...उसने अचानक से छवि को अपनी बाहों में भर के उठाया और उसके होठों को चूम लिया. छवि को चक्कर सा आ गया और वो गिर ही जाती कि असित ने उसे अपनी बांहों में थामा...एक क्षण भर को जैसे बादल आये थे...अचानक से सब वापस साफ़ दिखने लगा. छवि का चहरा दहक उठा था...वो पैर पटकती घर से बाहर निकल गयी.
इसके ठीक एक हफ्ते बाद मिले थे दोनों...और छवि को टेस्ट करना था कि असित को मनाना भी आता है कि नहीं...
'अब ये मेरी बारी है पूछने की कि तुम नाराज़ हो?' असित ने हथियार डाले थे.
'डिपेंड्स'...छोटा सा जवाब.
'किस पर?'
'इस बात पर कि तुम्हें मनाना आता है कि नहीं!'
'आई विल ट्राय माय बेस्ट...तुम भी रूठो तो सही...मुझे तुम्हारे सारे 'वीक स्पोट्स' पता हैं...
'अच्छा जी, चीटर, पहले से पता कुछ यूज करना अलाउड नहीं है'
'और नहीं क्या...एक बड़ी सी डेरी मिल्क, एक गरमा गरम मैगी...और ज्यादा हुआ तो एक आधी बार बाईक पर घुमाना...तुम एकदम प्रेडिक्टेबल हो...हाउ बोरिंग!'
असित चिढ़ाने के मूड में आ गया था.
छवि ने जीभ निकल कर मुंह चिढ़ाया था.
'तुम्हें तो रूठना भी नहीं आता छवि...एकदम होपलेस हो...इत्ती जल्दी मान गयी...मैं तो कविता लिख के लाया था तुम्हारे लिए'
छवि ने हाथ बढ़ा कर झपटा था...डेढ़ बाई दो फीट के कागज़ में ब्रश के स्ट्रोक्स उसके चेहरे को और भी खूबसूरत बना रहे थे...कागज़ के नीचे, दायीं तरफ लिखा हुआ था...Marry me, will you?
'तुम भी न असित, ठीक से प्रोपोज करना भी नहीं आता...विल यू मैरी मी कहते हैं हैं न...'
'तुम्हें कौन सा ठीक से एक्सेप्ट करना आता है...तुम्हें बस एक शब्द कहना होता है 'यस' और तुम इतना भाषण दे रही हो'
'हे भगवान! कौन करेगा तुमसे शादी!'
'इस जनम में तो तुम करोगी...चलो हाथ बढ़ाओ...'और असित एक घुटने पर नीचे बैठ चुका था...क्लास्सिक प्रपोजल स्टाइल में.
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दोनों की शादी को पच्चीस साल हो गए...अब भी झगड़ा करते हैं दोनों जबकि लड़की को रूठना नहीं आता और लड़के को मनाना...बच्चे दोनों में सुलह करवाते हैं...
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जिंदगी में बहुत सी उलझनें हैं...कुछ तो खुद की हैं...कुछ हम बना लेते हैं...पर प्यार जैसी चीज़ में सीधे सिंपल सादगी से कहने से अच्छा कुछ नहीं होता. आज बस इतनी सी कहानी...कि आप यकीन करो सको कि इस बड़ी बेरहम सी दुनिया में लव की हैप्पी एंडिंग भी होती है.
Now that you know I believe in happy endings...will you confess that you love me?