मन की कच्ची स्लेट पर लिखा है
आँख के काजल से तुम्हारा नाम
खुली हथेली पर बनायीं हैं
मिट जाने वाली लकीरें
और मुट्ठी बंद कर दी हैं
गुलाबी होठों के बोसों से
अब कैसे जाओगे छूट के, बोलो?
आज अचानक ही हुयी बरसातें
कि जैसे तुम आये थे एक दोपहर
धूप की चम्मच से मिलाया था
ब्लैक कॉफ़ी में दो शुगर क्यूब प्यार
याद है, अलगनी पर छूट गया था
तुम्हारा फेवरिट मैरून मफलर
तब से हर जाड़ों में
तुम मेरे गले में बाँहें डाले
गुदगुदी लगाते हो मुझे
दुष्ट!
तुम्हारे लिए कुछ किताबें खरीद दूं?
कितनी फुर्सत है तुम्हें
कि मुझे पढ़ते रहते हो
सुनो!
इतनी भी दिलफरेब नहीं हैं
तुम्हारी आँखें
कि मैं बस तुम्हें लिखती रहूँ
शकल भी देखी है कभी, आईने में?
चलो!
अब न पूछो कि कहाँ
तुमने फोन पर कहा था एक दिन
फ़र्ज़ करो,
मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर चलता हूँ
कहीं दूर एक खुला सा मैदान हो
जहाँ से वापस आने का रास्ता हो
या वहीं ठहर जाने का...ऑप्शन
मैं उस ख्वाब से निकली ही नहीं
आज तक भी.
बातें बहुत सी हुयीं है
अब कुछ यूँ करो ना
कभी सामने आ जाओ अचानक
और जब बेहोश हो जाऊं ख़ुशी से
अपनी बांहों में थाम लेना...
बस.
अरे हाँ...जब आओगे ही
तो लौटा देना
वो बोसे जो मैंने तुम्हारे ख्वाबों में दिए थे.
गिन के पूरे के पूरे. साढ़े अट्ठारह
अठारह तुम्हारी बंद पलकों पर
और आधा बोसा
होटों पर...बस.
इससे ज्यादा मैथ मुझे नहीं आता
केस क्लोज्ड.
आँख के काजल से तुम्हारा नाम
खुली हथेली पर बनायीं हैं
मिट जाने वाली लकीरें
और मुट्ठी बंद कर दी हैं
गुलाबी होठों के बोसों से
अब कैसे जाओगे छूट के, बोलो?
आज अचानक ही हुयी बरसातें
कि जैसे तुम आये थे एक दोपहर
धूप की चम्मच से मिलाया था
ब्लैक कॉफ़ी में दो शुगर क्यूब प्यार
याद है, अलगनी पर छूट गया था
तुम्हारा फेवरिट मैरून मफलर
तब से हर जाड़ों में
तुम मेरे गले में बाँहें डाले
गुदगुदी लगाते हो मुझे
दुष्ट!
तुम्हारे लिए कुछ किताबें खरीद दूं?
कितनी फुर्सत है तुम्हें
कि मुझे पढ़ते रहते हो
सुनो!
इतनी भी दिलफरेब नहीं हैं
तुम्हारी आँखें
कि मैं बस तुम्हें लिखती रहूँ
शकल भी देखी है कभी, आईने में?
चलो!
अब न पूछो कि कहाँ
तुमने फोन पर कहा था एक दिन
फ़र्ज़ करो,
मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर चलता हूँ
कहीं दूर एक खुला सा मैदान हो
जहाँ से वापस आने का रास्ता हो
या वहीं ठहर जाने का...ऑप्शन
मैं उस ख्वाब से निकली ही नहीं
आज तक भी.
बातें बहुत सी हुयीं है
अब कुछ यूँ करो ना
कभी सामने आ जाओ अचानक
और जब बेहोश हो जाऊं ख़ुशी से
अपनी बांहों में थाम लेना...
बस.
अरे हाँ...जब आओगे ही
तो लौटा देना
वो बोसे जो मैंने तुम्हारे ख्वाबों में दिए थे.
गिन के पूरे के पूरे. साढ़े अट्ठारह
अठारह तुम्हारी बंद पलकों पर
और आधा बोसा
होटों पर...बस.
इससे ज्यादा मैथ मुझे नहीं आता
केस क्लोज्ड.
:):)
ReplyDeleteकेस क्लोज्ड!! :P
@ कितनी फुर्सत है तुम्हें
ReplyDeleteकि मुझे पढ़ते रहते हो
.................
प्यार का यह विश्वास कितना गहरा है !......पूर्णता में डूबा हुआ ....
मगर यह आधा चुम्बन कैसे लिया जाता है .......? fir तो chauthaayee भी hotaa hogaa ?
हिसाब में तो मैं भी बहुत कच्चा रहा हूँ ......
काफी का मामला देखा और बरबस ही इधर खिंचा चला आया :)
ReplyDeleteऔर आकर जो चाहा वही पाया :)
बहुत खूब! बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
ReplyDelete'इससे ज्यादा मैथ मुझे नहीं आता'
ReplyDeleteइससे ज्यादा गणित जानने की आवश्यकता भी कहाँ है...!
सुन्दर:)
अरे वाह... ३ दिन में ३ पोस्ट... मेरे लिए तो न्यू इयर गिफ्ट है जैसे.... :)
ReplyDeleteइन हिसाबों में तो हम भी बहुत कमज़ोर हैं...
इसलिए केस क्लोस्ड... ;) :)
दो शुगर क्यूब प्यार !
ReplyDeleteडाइबीटीज हो जायेगा !
:)
ReplyDeleteसाढ़े अट्ठारह हो या ढाई (आखर), लगता है कि अद्धे के बिना पूरा नहीं होता प्रेम.
ReplyDeletecoffee ho to aisi...
ReplyDeletewah kya baat...bahut hi sunder rchna
ReplyDeleteकितना प्यार है तुम्हारे भीतर ! सोचता हूँ अगर पकड़ कर पेड़ की तरह हिलाया जाए ....प्यार ही प्यार गिरेगा
ReplyDeleteहाय! इतना सुंदर कमेन्ट! शुक्रिया डॉक्टर साहब :)
Delete:-)
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
ReplyDeleteCase closed but love continues....
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