'बहुत खुश हूँ मैं आज...खुश...खुश...खुश...खुश...बहुत बहुत खुश...आज जो चाहे मांग लो!' प्रणय बीच सड़क पर ठिठका खड़ा था और वो उसके कंधे पर एक हाथ रखे उसके उसे धुरी बना कर उसके इर्द गिर्द दो बार घूम गयी और फिर उसके बायें कंधे पर एक हाथ रख कर झूलते हुए उसकी आँखों में आँखें डाल मुस्कुरा उठी.
'अच्छा, कितनी खुश?'
कहते हुए प्रणय ने उसके माथे पर झूल आई लटों को हटाया..पर लड़की ने सर को झटका दिया और शैम्पू किये बाल फिर से उसके कंधे पर बेतरतीब गिर उठे और खुशबू बिखर गयी.
'इतनी कि अपना खून माफ़ कर दूं...'
लड़की फिर से उसकी धुरी बना के उसके इर्द गिर्द घूमने लगी थी, जैसे केजी के बच्चे किसी खम्बे को पकड़ पर उसके इर्द गिर्द घूमते हैं...लगातार.
प्रणय ने फिर उसकी दोनों कलाइयाँ अपने एक हाथ में बाँधीं और दुसरे हाथ से उसके चेहरे पर से बिखरे हुए बाल हटाये और पूछा...'हाँ, अच्छा...तब तो सच में वो दोगी जो मांग लूं?
लड़की खिलखिला के हंस उठी...'पहले हाथ छोड़ो मेरा...मैं आज रुक नहीं सकती...और मेरे हाथ पकड़ लोगे तो मैं बात नहीं कर पाउंगी...तुम जानते हो न...अच्छा जाने दो...हाथ छोड़ो ना...अच्छा ...बोलो...तुम्हें क्या चाहिए?'
'कैन आई किस यू?'
लड़की एकदम स्थिर हो गयी...गालों से लेकर कपोल तक दहक गए...होठ सुर्ख हो गए...एकदम से चेहरे पर का भाव बदल गया...अब तक जो शरारत टपक रही थी वहां आँखें झुक गयीं और आवाज़ अटकने लगी...
'जान ले लो मेरी...कुछ भी क्या...छोड़ो मुझे, जाने दो!' मगर उसने फिर हाथ छुड़ाने की कोशिशें बंद कर दी थीं...और एकदम स्थिर खड़ी थी.
'झूठी हो एक नंबर की, अभी तो बड़ा बड़ा भाषण दे रही थी, खून माफ़ कर देंगे...जाने क्या क्या!' प्रणय ने छेड़ा उसे...उसके हाथ अब भी उसकी कलाइयाँ बांधे हुए थे...और दूसरा हाथ से उसने उसकी ठुड्डी पकड़ रखी थी ताकि उसका चेहरा देख सके.
'उहूँ...'
'अच्छा चलो, हाथ छोड़ रहा हूँ...देखो भागना मत...वरना बहुत दौड़ाउंगा और जबरदस्ती किस भी करूँगा...तुम सीधे कोई बात के लिए कब हाँ करती हो...ठीक?' लड़की ने हाँ में सर हिलाया था तो प्रणय से कलाइयाँ ढीली की थीं...लड़की वैसे ही खड़ी रही...कितनी देर तक...भूले हुए कि प्रणय ने उसका हाथ नहीं पकड़ रखा है अब. प्रणय उहापोह में था कि इसे हुआ क्या...एक लम्हे उसका दिल कर भी रहा था उसे चूम ले...कल जा भी तो रही है...जाने कब आएगी वापस...आएगी तो प्यार रहेगा भी कि नहीं...लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशन यू नो...मगर पिंक कलर के कपड़ों में वो गुड़िया जैसी लग रही थी...सेब जैसे लाल गालों वाली... इतनी मासूम...इतनी उदास और इतनी नाज़ुक कि उसे लगा कि टूट जायेगी. उसे ऐसे देखने की आदत नहीं थी...वो हमेशा मुस्कुराती, गुनगुनाती, चिढ़ाती, झगड़ा करती ही अच्छी लगती थी. उसे अपराधबोध भी होने लगा कि उसने जाते वक़्त उसे क्या कह दिया...क्या यही चेहरा याद रखना होगा...आँख में अबडब आंसू भी लग रहे थे.
फिर एकदम अचानक लड़की उसके सीने से लग के सिसक पड़ी...प्रणय ने उसे कभी भी रोते देखा ही नहीं था...उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे...माथे पर थपकियाँ दे रहा था...पीठ सहला रहा था...बता रहा था कि मत रो...किसलिए मत रो उसे मालूम नहीं...ये भी नहीं कह पा रहा था कि वापस तो आओगी ही...मैं मिलने आऊंगा...कुछ भी नहीं...बस वो रो रही थी और प्रणय को चुप कराना नहीं आता था. बहुत देर सिसकती रही वो, उसके नाखून कंधे में चुभ रहे थे...शर्ट गीली हो रही थी...फिर उसने खुद ही खुद को अलग किया.
'तुम्हें मालूम नहीं है मैं तुम्हें कितना मिस करुँगी...तुम्हें ये मालूम है क्या कि मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ?'
फिर उसने लड़की ने हाथ के इशारे से इधर आओ कहा...प्रणय को लगा अब फिर कोई सेक्रेट बताएगी और फिर ठठा के हँसेगी लड़की...पर लड़की ने अंगूठे और तर्जनी से उसकी ठुड्डी पकड़ी और दायें गाल पर किस करते हुए कहा...'दूसरा वाला उधार रहा, आ के ले लेना मुझसे कभी'.
------------------
उधर लड़की भी सालों साल सोचती रही कि अगर वो उससे प्यार करता था तो सवाल क्यूँ पूछा...सीधे किस क्यूँ नहीं किया? सोचना ये भी था कि वो कभी आया क्यूँ नहीं लौट के...
पर जिंदगी जो होती है न...कहती है कुछ उधार बाकी रहने चाहिए...इससे लोग आपको कभी भूलते नहीं...प्रणय सोचता है यूँ भी उसे भूलना कौन सा मुमकिन था.
जाने क्यूँ हर साल के अंत में सर के सफ़ेद बाल गिनते हुए डायरी में लिखे इस सालों पुराने पन्ने को पढ़ ही लेता था...
कल ख्वाब में
मेरे कांधे पर सर रख कर
सिसकते हुए
उसने कहा
हम आज आखिरी बार बिछड़ रहे हैं
सुबह
मेरे बाएँ कांधे पर उभर आया था
उसके डिम्पल जितना बड़ा दाग
ठीक उसकी आँखों के रंग जितना...सियाह!
'अच्छा, कितनी खुश?'
कहते हुए प्रणय ने उसके माथे पर झूल आई लटों को हटाया..पर लड़की ने सर को झटका दिया और शैम्पू किये बाल फिर से उसके कंधे पर बेतरतीब गिर उठे और खुशबू बिखर गयी.
'इतनी कि अपना खून माफ़ कर दूं...'
लड़की फिर से उसकी धुरी बना के उसके इर्द गिर्द घूमने लगी थी, जैसे केजी के बच्चे किसी खम्बे को पकड़ पर उसके इर्द गिर्द घूमते हैं...लगातार.
प्रणय ने फिर उसकी दोनों कलाइयाँ अपने एक हाथ में बाँधीं और दुसरे हाथ से उसके चेहरे पर से बिखरे हुए बाल हटाये और पूछा...'हाँ, अच्छा...तब तो सच में वो दोगी जो मांग लूं?
लड़की खिलखिला के हंस उठी...'पहले हाथ छोड़ो मेरा...मैं आज रुक नहीं सकती...और मेरे हाथ पकड़ लोगे तो मैं बात नहीं कर पाउंगी...तुम जानते हो न...अच्छा जाने दो...हाथ छोड़ो ना...अच्छा ...बोलो...तुम्हें क्या चाहिए?'
'कैन आई किस यू?'
लड़की एकदम स्थिर हो गयी...गालों से लेकर कपोल तक दहक गए...होठ सुर्ख हो गए...एकदम से चेहरे पर का भाव बदल गया...अब तक जो शरारत टपक रही थी वहां आँखें झुक गयीं और आवाज़ अटकने लगी...
'जान ले लो मेरी...कुछ भी क्या...छोड़ो मुझे, जाने दो!' मगर उसने फिर हाथ छुड़ाने की कोशिशें बंद कर दी थीं...और एकदम स्थिर खड़ी थी.
'झूठी हो एक नंबर की, अभी तो बड़ा बड़ा भाषण दे रही थी, खून माफ़ कर देंगे...जाने क्या क्या!' प्रणय ने छेड़ा उसे...उसके हाथ अब भी उसकी कलाइयाँ बांधे हुए थे...और दूसरा हाथ से उसने उसकी ठुड्डी पकड़ रखी थी ताकि उसका चेहरा देख सके.
'उहूँ...'
'अच्छा चलो, हाथ छोड़ रहा हूँ...देखो भागना मत...वरना बहुत दौड़ाउंगा और जबरदस्ती किस भी करूँगा...तुम सीधे कोई बात के लिए कब हाँ करती हो...ठीक?' लड़की ने हाँ में सर हिलाया था तो प्रणय से कलाइयाँ ढीली की थीं...लड़की वैसे ही खड़ी रही...कितनी देर तक...भूले हुए कि प्रणय ने उसका हाथ नहीं पकड़ रखा है अब. प्रणय उहापोह में था कि इसे हुआ क्या...एक लम्हे उसका दिल कर भी रहा था उसे चूम ले...कल जा भी तो रही है...जाने कब आएगी वापस...आएगी तो प्यार रहेगा भी कि नहीं...लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशन यू नो...मगर पिंक कलर के कपड़ों में वो गुड़िया जैसी लग रही थी...सेब जैसे लाल गालों वाली... इतनी मासूम...इतनी उदास और इतनी नाज़ुक कि उसे लगा कि टूट जायेगी. उसे ऐसे देखने की आदत नहीं थी...वो हमेशा मुस्कुराती, गुनगुनाती, चिढ़ाती, झगड़ा करती ही अच्छी लगती थी. उसे अपराधबोध भी होने लगा कि उसने जाते वक़्त उसे क्या कह दिया...क्या यही चेहरा याद रखना होगा...आँख में अबडब आंसू भी लग रहे थे.
फिर एकदम अचानक लड़की उसके सीने से लग के सिसक पड़ी...प्रणय ने उसे कभी भी रोते देखा ही नहीं था...उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे...माथे पर थपकियाँ दे रहा था...पीठ सहला रहा था...बता रहा था कि मत रो...किसलिए मत रो उसे मालूम नहीं...ये भी नहीं कह पा रहा था कि वापस तो आओगी ही...मैं मिलने आऊंगा...कुछ भी नहीं...बस वो रो रही थी और प्रणय को चुप कराना नहीं आता था. बहुत देर सिसकती रही वो, उसके नाखून कंधे में चुभ रहे थे...शर्ट गीली हो रही थी...फिर उसने खुद ही खुद को अलग किया.
'तुम्हें मालूम नहीं है मैं तुम्हें कितना मिस करुँगी...तुम्हें ये मालूम है क्या कि मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ?'
फिर उसने लड़की ने हाथ के इशारे से इधर आओ कहा...प्रणय को लगा अब फिर कोई सेक्रेट बताएगी और फिर ठठा के हँसेगी लड़की...पर लड़की ने अंगूठे और तर्जनी से उसकी ठुड्डी पकड़ी और दायें गाल पर किस करते हुए कहा...'दूसरा वाला उधार रहा, आ के ले लेना मुझसे कभी'.
------------------
उधर लड़की भी सालों साल सोचती रही कि अगर वो उससे प्यार करता था तो सवाल क्यूँ पूछा...सीधे किस क्यूँ नहीं किया? सोचना ये भी था कि वो कभी आया क्यूँ नहीं लौट के...
पर जिंदगी जो होती है न...कहती है कुछ उधार बाकी रहने चाहिए...इससे लोग आपको कभी भूलते नहीं...प्रणय सोचता है यूँ भी उसे भूलना कौन सा मुमकिन था.
जाने क्यूँ हर साल के अंत में सर के सफ़ेद बाल गिनते हुए डायरी में लिखे इस सालों पुराने पन्ने को पढ़ ही लेता था...
कल ख्वाब में
मेरे कांधे पर सर रख कर
सिसकते हुए
उसने कहा
हम आज आखिरी बार बिछड़ रहे हैं
सुबह
मेरे बाएँ कांधे पर उभर आया था
उसके डिम्पल जितना बड़ा दाग
ठीक उसकी आँखों के रंग जितना...सियाह!
पूरी तरह खो जाने का भय इस उहापोह को बढ़ाता रहता है।
ReplyDeleteशब्द-शिल्पी जो तुम्हे कह दू तो..... और क्या कहूं.... बहुत सुन्दर प्रस्तुति...और जो अचानक कल जाने वाली बात....ग़ज़ब..
ReplyDeleteजो पल तुम्हारे थे तुम्हारे है
मैंने ले लिए तुमसे उधार में...
शायद इसी बहाने तो याद रखो
कि अब लौटाओगे -अब लौटाओगे के इंतज़ार में...
कुँवर जी,
Excellent piece of writing...
ReplyDeleteLoved the way u expressed a flavor of intimacy n den later a kind of satire in the end....
Bahut khoob....
excellent..
ReplyDeletesweetly written..
tum tum ho...
ReplyDeleteअपनी उम्र बीस साल कम हो गई इसे पढ़कर। ..मजा आ गया।
ReplyDelete"जिंदगी जो होती है न...कहती है कुछ उधार बाकी रहने चाहिए..."
ReplyDeletebas isi ek pankti mein poori zindagi ka falsafa liye jaa raha hoon apne saath.
regards !
हम आज आखिरी बार बिछड़ रहे हैं
ReplyDeleteA screaming sadness in the line well punctuated by a pleasant thought...
makes it significant and wonderful:)
LAJAWAB LEKHAN...BADHAI
ReplyDeleteकुछ उधार बाकी रहने चाहिए...इससे लोग आपको कभी भूलते नहीं...
ReplyDeleteHats-off!!!
ohhhh....awesome :):)
ReplyDeleteतो सवाल क्यूँ पूछा...सीधे किस क्यूँ नहीं किया?
ReplyDeleteअगर उसे यह बात पता होती तो फिर ज़िंदगी वो ना होती जो है !!
ये मैं पता नहीं क्यूँ हर रोज़ ऑफिस आते ही रीडर खोल के बैठ जाता हूँ, काम करने का मन तो वैसे ही आधा होता है, आधा और कम हो जाता है |
ReplyDeleteआज "लहरें" के २३ बिना पढ़े पोस्ट दिखे, और पहल यही पढ़ने लगा (बस यूं ही, कोई लोजिक नहीं था) और अब , अब अपने ही सब लोजिक भूल गया हूँ|
क्यूँ लिखती हो आप ऐसा की इंसान कुछ न कुछ सोंचने पे मजबूर हो जाये? :) :) :)
ज़रा सा मोम-दिल हुआ तो फिर दिल खुद पिघल कल धमनियों में दौड़ने लगेगा |||
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletejust excellent
ReplyDelete