28 November, 2008

कर्मण्ये वाधिकारस्ते

आज मुंबई पर आतंकी हमला हुआ है, हम सभी स्तब्ध है, एक आक्रोश है जो कहीं कुछ करने की राहें ढूंढ रहा है। ब्लॉग पर कई जगह पढ़ा लोग वाकई कुछ करना चाहते हैं पर समझ नहीं आता है कि क्या किया जाए। आतंकवाद के इस छुपे दुश्मन से कैसे निपटा जाए। हमारे जो नाकारा राजनीतिज्ञ हैं उनसे तो खैर क्या उम्मीद है, कोई भी दूध का धुला नहीं है।

दो रातों से व्यथित हूँ, और ये कहना ग़लत है कि हम भूल जायेंगे, बाकियों का तो नहीं पता पर मैं तो नहीं भूलूंगी और न चुप बैठूंगी। सोचती हूँ कि हमारे एक अरब कि जनसँख्या वाले देश में क्यों ३०० लोग नहीं हैं जो इस देश को एक सही दिशा दे सकें। हर बार चुनाव के समय बड़े बड़े वाडे करने वाली पार्टियाँ और एक दूसरे को अलग अलग श्रेणी में विभक्त करने वाले नेता, गुंडे और अराजक तत्व ही क्यों नज़र आते हैं।

हमारे जैसे २५ साल के लोग जिनमें कुछ करने का जज्बा है, कहाँ हैं। क्यों नहीं हम एक साथ मिल कर इस देश को एक सही राह पर ले जाने कि कोशिश करते हैं। कल मेरी कई दोस्तों से बात हुयी, सारे गुस्सा थे हमारे नेताओ को कोस रहे थे। मैंने सब से पुछा, कि तुमने अपना वोटर्स आईडी कार्ड बनवाया है...सवाल पर सब चुप, वही बहने कि रेसिदेंस प्रूफ़ नहीं है, कहाँ जाएँ कैसे बनवाएं। सोचती हूँ कि कितनों ने कोशिश भी कि है कुछ सार्थक करने कि। हममें ये अकर्मण्यता क्यों भरी हुयी है, अगर हमारी जेनरेशन कुछ नहीं करेगी तो हमें क्या हक है बैठ कर नेताओं को कोसने का।

आज मैं IIMC के बारे में बात करना चाहूंगी, चूँकि पत्रकारिता वहां का मुख्य पाठ्यक्रम है तो हमारे मित्र अक्सर एक ideology रखते थे, चाहे वो राईट विंग हो या लेफ्ट विंग हो। राष्ट्रवादी हों, या कम्युनिस्ट पर अपनी सोच के हिसाब से देश को एक बेहतर भविष्य देना चाहते थे। श्रीजय के साथ मैंने पहली बार छात्र राजनीति का थोड़ा हिस्सा देखा था। मैंने पहली बार जेएनयू कि दीवारों पर लगे पर्चे देखे थे, जगह जगह वंदे मातरम और इन्किलाब जिंदाबाद लिखा देखा था। मैंने देखा था कि जब श्रीजय ABVP के बारे में बात करता है तो उसकी आंखों में एक चमक आ जाती है....एक जज्बा है जो महसूस होता है। उस वक्त रिज़र्वेशन का दूसरा चरण लागू होने वाला था। उस वक्त मैंने पहली बार जेएनयू में मशाल जुलूस देखा, मैंने देखा कि जनवरी कि सर्द रातों में लोग रात के दो दो बजे तक मिल्क काफी पीते हुए गंगा ढाबा पर देश के मुद्दों के बारे में बहस करते रहते हैं।

आज वो लोग तैयारी कर रहे हैं एक सशक्त और सार्थक कदम उठाने की, इस परिस्थिति से हमें निकालने की किसी कवायद में जुटे होंगे. कुछ अच्छा करने के लिए सिर्फ़ जज्बा ही काफ़ी नहीं होता, उसके साथ चाहिए होता है एक एक्शन प्लान, और ऐसा प्लान बनने के लिए अरसा तक सब भूलकर सिर्फ़ अपने लक्ष्य की पर बढ़ना होता है. आज की पोस्ट में मैं उन्हें और उन सबको नमन करती हूँ जो हमारे देश को एक बेहतर भविष्य की ओर ले जायेंगे.
दो दिन लगातार उन आतंवादियों की गोलियों और बमों ने सिर्फ़ ताज को क्षति नहीं पहुंचाई है बल्कि मेरे जैसे हर संवेदनशील इंसान को चुनौती दी है. और हम उन्हें मुँहतोड़ जवाब देंगे. न केवल उन आतंकियों को जो इस देश को निशाने पर रखते हैं बल्कि उन नाकारा उन निकम्मे नेताओं को जो इस देश को बेच कर खा जाना चाहते हैं.
ये शोक का नहीं आक्रोश का समय है...कर्मभूमि में आगे बढ़ना मायने रखता है.
तेरा वैभव अमर रहे माँ...हम दिन चार रहे न रहे

12 comments:

  1. वोट की राजनीति ने आतंकी हमलों से निपटने की दृढ इच्छाशक्ति खत्म कर दी है, खुफिया तंत्र की नाकामयाबी की वजह भी सत्ता है, संकीर्ण हितों- क्षेत्र, भाषा, धर्म, जाति, लिंग- से ऊपर उठ कर सोचने वाले नेता का अभाव तो समाज को ही झेलना होगा, मुंबई हमलों के बारे में सुनने के बाद मैं काफ़ी बेचैन हूँ. सवाल है ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी का या कुछ और. इसे मैं सिर्फ़ राजनीतिक नाकामी कहूंगा जिसकी वजह से भारत में इतनी बड़ी आतंकवादी घटना हुई.यहाँ पर नेताओं से सिर्फ़ भ्रष्टाचार की उम्मीद की जा सकती है !

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  2. यही तो दिक्कत है पूजा जी.गुस्सा सभी के दिलो मे है,सब कुछ करना चाहते है,मगर क्या करे किसी के समझ मे नही आ रहा है.आपसे पूरी तरह सहमत हूँ .

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  3. मन की बात छीन ली

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  4. दहशत दर्द काली खौफ की रातों का मंज़र
    अमन के सीने पे चला आंतक का खंजर
    इन्तेहा .. हद अब इन हादसों की
    कि लहू लुहान हो गया समंदर
    सारा शहर ही जैसे उसके कब्जे में था
    वो खेलते रहे मौत का नाच
    मासूमों के खून से सुर्ख हो गई
    काली रात में काली सड़के
    आतंक की काली रात

    aapne sahi kaha puja
    maine bhi kuch aisa hi mehsoos kiya aur likha

    सियासत तुझसे हमें
    बासी सांत्वना नही चाहिए
    सियासत शहीदों और मासूमों
    की चिताओं पर
    तेरे आंसू भी नही चाहिए
    आतंक से अब लडाई
    होनी ही चाहिए
    बहुत हो चुका अब तेरा सियासी तमाशा
    सियासत तेरे सीने से भी अब आग निकलनी चाहिए

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  5. बहुत उम्दा सोच है ! ईश्वर सबको ऎसी सोच दे ! अब नेताओं के बस में तो कुछ नही है ! शायद ईश्वर ही करेगा कुछ ! हताश, निराश , क्या करे ?

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  6. देश के एक बहुत बड़ा तबका शायद इसी सोच से गुजर रहा है पूजा .....बस इस लौ ओर गुस्से के अपने भीतर जलाये रखना है

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  7. बस ऐसा ही कुछ करने का जज्बा... आज कई जगह दिखा... बस कायम रहे !

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  8. यह शोक का दिन नहीं,
    यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
    यह युद्ध का आरंभ है,
    भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
    हमला हुआ है।
    समूचा भारत और भारत-वासी
    हमलावरों के विरुद्ध
    युद्ध पर हैं।
    तब तक युद्ध पर हैं,
    जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
    हासिल नहीं कर ली जाती
    अंतिम विजय ।
    जब युद्ध होता है
    तब ड्यूटी पर होता है
    पूरा देश ।
    ड्यूटी में होता है
    न कोई शोक और
    न ही कोई हर्ष।
    बस होता है अहसास
    अपने कर्तव्य का।
    यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
    वास्तविकता है।
    देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
    एक कवि, एक चित्रकार,
    एक संवेदनशील व्यक्तित्व
    विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
    लेकिन कहीं कोई शोक नही,
    हम नहीं मना सकते शोक
    कोई भी शोक
    हम युद्ध पर हैं,
    हम ड्यूटी पर हैं।
    युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
    कोई मुसलमान नहीं है,
    कोई मराठी, राजस्थानी,
    बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
    हमारे अंदर बसे इन सभी
    सज्जनों/दुर्जनों को
    कत्ल कर दिया गया है।
    हमें वक्त नहीं है
    शोक का।
    हम सिर्फ भारतीय हैं, और
    युद्ध के मोर्चे पर हैं
    तब तक हैं जब तक
    विजय प्राप्त नहीं कर लेते
    आतंकवाद पर।
    एक बार जीत लें, युद्ध
    विजय प्राप्त कर लें
    शत्रु पर।
    फिर देखेंगे
    कौन बचा है? और
    खेत रहा है कौन ?
    कौन कौन इस बीच
    कभी न आने के लिए चला गया
    जीवन यात्रा छोड़ कर।
    हम तभी याद करेंगे
    हमारे शहीदों को,
    हम तभी याद करेंगे
    अपने बिछुड़ों को।
    तभी मना लेंगे हम शोक,
    एक साथ
    विजय की खुशी के साथ।
    याद रहे एक भी आंसू
    छलके नहीं आँख से, तब तक
    जब तक जारी है युद्ध।
    आंसू जो गिरा एक भी, तो
    शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
    इसे कविता न समझें
    यह कविता नहीं,
    बयान है युद्ध की घोषणा का
    युद्ध में कविता नहीं होती।
    चिपकाया जाए इसे
    हर चौराहा, नुक्कड़ पर
    मोहल्ला और हर खंबे पर
    हर ब्लाग पर
    हर एक ब्लाग पर।
    - कविता वाचक्नवी
    साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे

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  9. aatankwaad se tab hi nipta ja sakta hai jab aam nagrik ko honsla nahi use honsla use vishwaas dene ki jaroorat hai jo aatanwadi se ladta hai.....
    uska saamna karta hai....
    ham to sirf batain, vichar baat sakte hain aur sath hi sath honsla bhi de sakte hain.....
    to pls unko honsla dijiye jo desh ke liye jang ladte hain...
    padiyega aur bhi sandesh hain payaam hain aapne liye blog par
    aatank se kaise lad sakte hain......

    एक दर्पण,दो पहलू और ना जाने कितने नजरिये /एक सिपाही और एक अमर शहीद का दर्पण और एक आवाज
    अक्षय,अमर,अमिट है मेरा अस्तित्व वो शहीद मैं हूं
    मेरा जीवित कोई अस्तित्व नही पर तेरा जीवन मैं हूं
    पर तेरा जीवन मैं हूं

    अक्षय-मन

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  10. Pooja, bilkul aisa hi aakrosh mere ander bhi hai AATANKVAAD ko lekar..aur abhi Asam mei kahi blast ki news aa rahi hai.Ab aur bardasht nahi hota.
    Mei sirf Bharat ka naagrik hone ki hasiyat se nahi balki sampoorn vishva ke ek aam aadmi (common man) ki haisiyat se yeh poochna chahta hue ki hum bina apni government ko gali diye khud kuch kar sakte hai AATANKVAAD ko rokne ke liye ?
    Mei akela kuch kar sakta hu ?
    Agar kuch samajh mei kuch aaye to zaroor batana

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  11. आपके विचार बहोट आचे हैं. इन्हे बनाए रखिए मैं एक चित्रकार हून अगर आपको अपनी सोचो को मेरे चित्रो की आवस्यकता हो तो आवास्या कहिए.

    धन्यवाद
    रत्नाकर

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  12. यदि आप लोगों को वाकई में कुछ करना हो तो हमारे से दर्द निवारण की पद्धति सिखिये और लोगों को दर्द मुक्त करिये। मानव सेवा ही माधव सेवा है. इससे देशवासियों में एक भावनात्मक सम्बन्ध बढेगा और एकता की भावना भी आएगी. आज नहीं तो कल हम सब जुड़ जायेंगे और फिर कोई हिम्मत नहीं करेगा हम पर हुम्ला करने की. अँधेरे को भागने के लिए हथियारों की नहीं एक चिराग की ज़रुरत होती है. ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो, राह में आये जो दीं दुखी सबको गले से लगते चलो.
    हमारा कार्य जनहित के लिए है. सब जन हिताय सब जन सुखाय. यह पूर्ण रूप से मुफ्त है.
    आप हमारे पास आकर या हमसे विडियो चाट करके सीख सकते हैं. संपर्क करने से पहले http://painrelieffoundation.com पर हमारे विडियो ज़रूर देखें. यह पद्धति अति सरल है और कोई भी २-५ मिनट में सीख सकता है.
    Warm Regards and Best Wishes.
    CS Ramanuj Asawa
    Company Secretary by profession, Acupressure therapist by hobby, Human by nature, trying to alleviate the pains of suffering humanity.
    cell 094228-03662
    email:asawaramanuj@gmail.com

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