लगता है जैसे
सारे एहसास ख़त्म हो चुके हैं
जैसे कह चुकी हूँ सब कुछ
महसूस की हैं सारी भावनाएँ
नहीं रह कुछ भी जिसपर
लिख सकूं एक भी कविता
जैसे ख़त्म हो गए हैं सारे विषय
जी चुकी हूँ जिंदगी पूरी
लगता है दोहरा रही हूँ हर लम्हे को
एक नया सवाल..एक अनदेखा ख्वाब
एक अनछुआ अहसास, एक अपरिभाषित रिश्ता
एक लम्हा जो बंधनों के परे हो
एक नयी जिंदगी जीना चाहती हूँ मैं
जिसमें कोई पुरानी याद ना हो
ना ख़ुशी ना गम ना कोई चेहरा
चाहती हूँ एक धुला हुआ आस्मान
चाहती हूँ एक राह जिसपर किसी के क़दमों के निशाँ ना हों
तराशना चाहती हूँ एक ऐसा वजूद
जिसमें किसी का अक्स ना हो
बनना चाहती हूँ सिर्फ मैं - पूजा
dated: 1st march 04
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ReplyDeleteअरे आप तो बहुत लिखती हैं। स्वागत है आपका ब्लाग की दुनिया में।
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