"लड़की भाग गयी !!!"
नाटक शुरू होता है...खोजबीन लांछन ताने, उलाहनों का वक़्त आ गया....
"यही संस्कार दिये हैं तुमने अपनी बेटी को" घर का मुखिया यानी पिता उसकी माँ पर चीखता है....माँ बेचारी चुप चाप किसी कोने में खडी रहती है...ये नहीं पूछती की बेटी को संस्कार देने के काम में क्या तुम्हारा हाथ बंटाना जरुरी नहीं था...
दोनो में से कोई ये नहीं सोचेगा की आख़िर ऐसी नौबत क्यों आयी कि लड़की ने ऐसा कदम उठाया...
इस नाटक की शुरुआत काफी पहले हो जाती है...ये तो अन्तिम चरण होता है...
आइयेइस नाटक के पात्रों से मिलते हैं...
पर उससे पहले जरुरी है इस की पृष्ठभूमि पर नज़र डालना क्योंकि इसमें इसका सबसे बड़ा योगदान रहता है
माहौल एक मध्यमवर्गीय गृहस्थ के घर का...दो बच्चे... माँ गृहिणी...पिता कार्यरत
छोटा परिवार सुखी परिवार
ये तब तक की बात है जब तक लड़की छोटी है और आदर्श है सबके लिए...छोटे भाई बहन उससे प्रेरणा लेते हैं...और उनके साथ के सारे लोग उसका उदहारण देकर अपने बच्चों का जीना मुहाल किये रहते हैं...वो कितना पढ़ती है , तुम क्यों नहीं पढ़ते, सारा दिन उछल कूद मचाते रहते हो वगैरह वगैरह...
उसके मम्मी पापा अपनी आदर्श बेटी के हर दिन के अवार्ड्स से फूले नहीं समाते...
वक़्त गुजरता रहता है...कुलांचे मारकर...कब किशोरावस्था में वो कदम रखती है पता भी नहीं चलता...
पर उस लड़की को पता चलने लगा है...कि कुछ तो चल रहा है...अचानक से घर की चारदीवारी २ फुट उँची कर दी जाती हैं...उसे अजीब लगता है...खिड़कियों पे परदे लग जाते हैं और दिन रात नसीहतें शुरू हो जाती हैं...लड़की को ऐसे रहना चाहिये...ऐसे हँसना चाहिऐ..उँची आवाज में बोलना तो सरासर गलत बात है...जोर से हँसना बदतमीजी है...और अचानक से वो सारे लड़के जिनके साथ खेल कर वो बड़ी हूई है उसके भैया हो जाते हैं...उसे उठा कर किसी कॉन्वेंट स्कूल में डाल दिया जाता है जहाँ लड़कों की परछाई तक उसपर ना पहुंचे...
ये सब उसकी शादी की तैयारी है...लड़के वाले देखेंगे की लड़की को पटर पटर अंग्रेजी बोलनी आती है कि नहीं...12th में उसे डाक्टर ही बनना है इसके अलावा कुछ सोच भी नहीं सकती...कहीं ना कहीं उसे ये लगता है कि एक ना एक दिन वो अपने पैरों पर खड़ी होगी और अपने हिसाब से जिंदगी जियेगी...
चारदीवारी में हँसना बोलना रहना और घर को रोशन करना...इसलिये तो बेटियाँ होती हैं।
इस पढ़ाई में कई बार ऐसे टीचर्स आते हैं जो जिंदगी का एक खुला नज़रिया रखते हैं...इनसे मिलकर कई बार लगने लगता है कि जिंदगी एक चारदीवारी से दूसरी चारदीवारी का सफ़र नहीं है...और पति...एक सर्वनाम नहीं है बल्कि एक साथी होता है, उसके ये इरादे घर वालों को खतरनाक लगने लगते हैं।
वो सोचते हैं की ज्यादा पढ़ लिखकर लड़की का दिमाग खराब हो गया है, अब इसकी जल्दी से शादी कर देनी चाहिऐ जिससे इसके इरादे पूरे ना हो पाएं।अचानक से लड़की नोटिस करती है की भाभी, छोटे भाई या नानी वगैरह उसे ससुराल का नाम लेकर चिढ़ाने लगती हैं...और एक दिन अचानक से उसे पता चलता है कि उसकी शादी तय हो रही है...पर मैं तो अभी बहुत छोटी हूँ वो सबको समझाने की कोशिश करती है पर अफ़सोस कोई सुनने को ही तैयार नहीं होता...
किन्हीं कारणों से उसकी शादी वहाँ तय नहीं होती(बेचारी चैन की साँस लेती है कि अबकी बात तो मुसीबत टली)...पर डरती रहती है की आख़िर कब तक, कब तक यूं ही बचती रहेगी.आख़िर बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी.बाक़ी सारी लड़कियाँ कालेज लाइफ का पूरा मज़ा लेती हैं...कभी सिनेमा जाती कभी चाट और वो सोचती रहती है की अगर गए तो पता चल जाएगा और डांट पड़ेगी...graduation के बाद उसकी मेहनत रंग लाती है और दिल्ली(या किसी भी बड़े शहर) के एक बहुत ही अच्छे कॉलेज में उसका चयन हो जाता है।
वो बहुत खुश है...की आख़िर उसे आजादी मिल गयी। घर वाले परेशान हैं कि बाहर जाकर लड़की बिगड़ जायेगी किसी के चक्कर में पड़ जायेगी, बड़ी मुश्किल से सबको समझा बुझा कर वो आती है....
यहाँ सब कुछ अच्छा चल रह है...और अगर सच में देखा जाये तो जिंदगी उसने जीनी शुरू कर दी है। अपनी मरजी से, और उसमे एक आत्मविश्वास आ गया है। जब औरों के सामने अपने विचार रखती है, अपने तर्क रखती है तो लोग काफी सराहते हैं उसकी प्रतिभा को...उसे उसका आसमान नजर आने लगा है...परों में ताकत महसूस होने लगी है...उसे लगता है की वो उड़ सकती है, बहुत बहुत ऊंचा उड़ सकती है.
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