ये तुम्हारे लिए...तुम्हें मैं जानती नहीं ...जानती यानि तुम ना मेरी दोस्त हो ना मेरी कोई relative फिरभी बस तुम्हारा blog पढ़कर तुम अपनी सी लगने लगी हो। infact ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी को जानने कि इतनी अदम्य इच्छा हुयी हो, किसी से मिलने का इतना मन किया हो।
कोई इतना अपना कैसे लग सकता है जैसे आईने में नज़र आता अपना चेहरा...एक बार कुणाल ने कहा था "कुछ रिश्ते नए नहीं होते बरसो पीछे छूटे हुये पुराने होते हैं, इन्हें समझने में ज्यादा दिमाग नहीं लगाना चाहिऐ"... तो मैं ज्यादा दिमाग नहीं लगाऊँगी पर अच्छा लगा कि कहीं सुदूर अहमदाबाद में कोई लडकी है जो मेरी तरह थोड़ी सी पागल है और मेरी तरह सोचती है...और उससे बड़ी बात कि सोचती है...और sensible सोचती है और बिल्कुल मेरी तरह जो सोचती है वो बोलती है।
all this thanks to pallav...
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ReplyDeletewe both r thankin pallav. aur woh hai ki :D
ReplyDeletewaise relative is rishtedaar :)
thanks again!!!