08 May, 2007

एक नन्ही हलचल

बात छोटी सी ही है...
हिंदी मेरी अपनी भाषा है...इसमें लिखना अपनेआप में एक एहसास देता है...कई बार शब्दों का मायना बदल जाता है क्योंकि भाषा दूसरी होती है...यहाँ मैं वो लिखूंगी जो कई बार आते जाते परे झटक देना चाहती हूँ...

मेरी आम जिंदगी...सब के बीच पर सब से परे...एक भँवर कि तरह सब अपने अन्दर समेटने को व्याकुल खींचती हूँ मैं अपने अन्दर कितना कुछ...कितना प्रबल प्रवाह है ... कभी कभी मैं भी अपने आप को खो देती हूँ अपने ही अन्दर...

कितना कुछ है जो मेरे अन्दर उमड़ता घुमड़ता रहता है कितना कुछ कहना चाहती हूँ मैं कितना कुछ बताना चाहती हूँ मैं ये कौन सा कुआँ है ये कौन सा समंदर है कि जिसमें इतनी हलचलें होती रहती हैं

किसी चट्टान से टकराकर बिखरना चाहती हं...बादलों के होंठों पर गर्जन कि तरह थरथराना चाहती हूँ... बहुत कुछ चाहती हूँ जिंदगी से

अपनी उर्जा का कुछ करना चाहती हूँ...चाहे वो कुछ बस लिखना ही हो...एक गीत ही हो...एक मुस्कराहट ही हो...

10 comments:

  1. likhtae padhte rehna
    khud se baatein karte rehna
    aatma ko roshni milte h

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  2. कल 19/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. लिखती रहिये आगे बढती रहिये... शुभकामनाएं

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  4. Ye halchal sada bani rahe :)
    Ameen!

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  5. छोटी सी बातें ही बड़ा सच होती हैं!

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  6. ये हलचल बनी रहे ।

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  7. बस तो फिर इस हलचल को परवाज़ दीजिये !

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  8. किसी चट्टान से टकराकर बिखरना चाहती हं...बादलों के होंठों पर गर्जन कि तरह थरथराना चाहती हूँ... बहुत कुछ चाहती हूँ जिंदगी से....badiya prastuti..

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