18 January, 2012

जान तुम्हारी सारी बातें, सुनती है वो चाँद की नानी

जान तुम्हारी सारी बातें
सुनती है वो चाँद की नानी
रात में मुझको चिट्ठी लिखना
सांझ ढले तक बातें कहना

जरा जरा सा हाथ पकड़ कर
इस पतले से पुल पर चलना
मैं थामूं तुम मुझे पकड़ना
इन्द्रधनुष का झूला बुनना 

रात इकहरी, उड़ी टिटहरी
फुग्गा, पानी, धान के खेत
बगरो बुड़बक, कुईयाँ रानी 
अनगढ़ बातें तुमसे कहना 

कितने तुम अच्छे लगते हो
कहते कहते माथा धुनना 
प्यार में फिर हो पागल जैसे
तुमसे कहना, तुमसे सुनना 

लड़की ने गहरा गुलाबी कुरता डाल रखा था और उसपर एकदम नर्म पीले रंग की शॉल...शाम चार बजे की धूप में उसके बाल लगभग सूख गए थे...कंधे तक बेतरतीबी से अनसुलझे बाल...धूप में चमकता गोरा रंग...चेहरे पर हल्की धूप पड़ रही थी और वो सूरज की ओर आधा चेहरा किए खून के गरम होने को महसूस कर रही थी...लग रहा था महबूब की हथेली को एक हाथ से थामे गालिब को पढ़ रही है। 

शाम के रंग एक एक कर के हाज़िरी देने लगे थे...गुलाबी तो उसे कुर्ते को छोड़ कर ही जाने वाला था की उसने मिन्नतें करके रोका की सफ़ेद कुर्ते पर इश्क़ रंग चढ़ गया तो रात की सारी नींदें उससे झगड़ा कर बैठेंगी। लोहे की सीढ़ियों पर थोड़ी ही जगह थी जहां लड़की थोड़ा सा दीवार से टिक के बैठी थी और लड़का कॉपी पर झुका हुआ कुछ लिख रहा था। आप गौर से देखोगे तो पाओगे की पूरी कॉपी में बस एक नाम लिखा हुआ था और कोरे कागज़ पर तस्वीरें थीं...उनमें एक बड़ा दिलफ़रेब सा कच्चापन था...आम के बौर जैसा। सरस्वती पूजा आने में ज्यादा वक़्त रह भी नहीं गया था...बेर के पेड़ों से फल गिरने लगे थे। कहते हैं कि विद्यार्थियों को वसंत पंचमी के पहले बेर नहीं खाने चाहिए...वो पूजा में चढ़ने के बाद ही प्रसाद के रूप में खाने चाहिए। 

लड़का ये सब नहीं सोच रहा था...लड़की के बालों से ऐसी खुशबू आ रही थी कि उसका कुछ लिखने को दिल नहीं  कर रहा था...दोपहर का बचा हुआ ये जरा सा टुकड़ा वो अपने जींस की जेब में भर कर वहाँ से चले जाना चाहता था...पर लड़की की जिद थी कि जब तक बाल नहीं सूखेंगे वो छत से उतरेगी नहीं। उसने थक कर अपनी कॉपी बंद कर दी...लड़की ने भी गालिब को बंद किया और उसकी कॉपी उठा कर देखने लगी। उसका दिल तो किया कि कुछ शेर जो बहुत पसंद आए हैं वो लिख दे...पर ये बहुत परफेक्ट हो जाता। उसे परफेक्शन पसंद नहीं था...प्यार की सारी खूबसूरती उसके कच्चेपन, उसकी मासूमियत, उसके अनगढ़पन में आती थी उसे। बाल धोने के बाद की टेढ़ी-मेढ़ी मांग जैसी। 

इसलिए उसने कॉपी पर ये कविता लिख दी...ये एकदम अच्छी कविता नहीं है...इसमें कुछ भी सही नहीं है...पर इसमें खुशबू है...जिस एक दोपहर के टुकड़े दोनों एक दूसरे के साथ थे, उस दोपहर की।  इसमें वो तीन शब्द नहीं लिखे हुये हैं...पर मुझे दिखते हैं...तुम्हें दिखते हैं मेरी जान?

10 comments:

  1. चाँद की नानी बड़ी सयानी,
    नहीं सुनाती कभी कहानी..

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  2. अजब,गजब सोच से गुथी हुयी कविता और रचा हुआ आलेख. आपकी लेखनी ने चमत्कृत कर दिया

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  3. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  4. बेहतरीन और प्रशंसनीय.

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  5. पूजा गद्य ही नहीं पद्य भी उतनी ही खूबसूरती से लिखती है.
    एक नन्हीं सी बच्ची अपनी ही धुन में घूमती रहती है गाँव की गलियों में ....खेतों में ...घूरे पर ...कचरे के ढेरों पर ......नदी के किनारे ......और चुन-चुन कर भरती रहती है न जाने क्या-क्या अपनी फ़्रोक के कोंछे में. बड़ों के लिए यह सब कूड़े से अधिक कुछ नहीं पर उस नन्हीं बच्ची के तो जैसे प्राण बसते हैं अपनी चुनी हुयी उन मामूली सी पर ....बेहद ख़ास चीजों में. इनमें चमकीली पन्नियाँ हैं ....कपड़ों के कतरन हैं ....टूटे हुए रंग-बिरंगे बटन हैं ...खिलौनों के टूटे हुए पार्ट्स हैं .... पत्थर के टुकड़े हैं .... सीपियाँ ...कौडियाँ ....न जाने कितनी सारी चीजें.....उसे परफेक्शन बिलकुल पसंद नहीं है. पके आमों की मिठास नहीं, उसे तो बिल्कुल कच्ची अमियों का खट्टा-कसैलापन पसंद है. आज वह बच्ची बड़ी हो गयी है पर उसने अपने बचपन को मरने नहीं दिया है. वह आज भी अपनी उसी फ़्रोक के कोंछे में बंधी चीजों के खजाने में से एक-एक चीज निकालती रहती है.....लोगों को दिखाती रहती है ....सब को पसंद है उसका यह खजाना..... क्योंकि उनमें आज भी चमक है ....वही कच्चापन ...वही अल्हडपन...वही कच्ची अमियों का बौरायापन.........लोग बड़े होकर भी तरसते हैं इन चीजों के लिए पर वह भाग्यशाली है कि उसके अन्दर आज भी एक सच्चा मनुष्य जीवित है. वह आज भी चाँद से बातें करती है और ईश्वर मंदिर छोड़कर दिन भर बैठा रहता है उसी के पास. कहीं वह पूजा तो नहीं!

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  6. आह...इतने सुंदर शब्द...इतना सुंदर कहना...सारी तस्वीर आँखों में उभर आई...ये लड़की कितनी प्यारी है...काश कि मैं होती...पर हाँ जानी पहचानी जरूर लगती है... बहुत शुक्रिया कौशलेन्द्र जी।

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  7. सुन्दर भाव संयोजन्।

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  8. जानी पहचानी सी ?
    अरे नहीं पूजा जी ! केवल जानी पहचानी सी ही नहीं ......मैंने तो देखा भी है उस लड़की को......आजकल बंगलोर में रहती है. बिलकुल वही है ......बिलकुल वही ...शक की कहीं कोई गुंजाइश नहीं ......मैं मिलवाऊंगा कभी आपसे .....

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  9. भावों का खूबसूरत चित्रण।

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