19 June, 2009
विदाई
अरसा बीता घर के आँगन में खेले
शीशम से आती हवाएँ बुलाती हैं बहुत
झूले की डाली पर टंगी रह गई हैं कुछ कहानियाँ
उस मिट्टी में जड़ें गहराती हैं
माँ के साथ रोपे गए नारियल की
सुना है कि पानी बहुत मीठा है उसका
हर मौसम कई बार बिछा है फूलों का कालीन
मेरे कमरे को हर बीती शाम महका देती है कामिनी
मेरे कहीं नहीं होने के बावजूद भी
आम के मंजर मेरे ख्वाबों में आते हैं
बौरायी सी सुबह संग लिए
कोयल कूकती रहती है फ़िर सारा दिन
हर साल आता है रक्षाबंधन
बस भाई नहीं आता परदेस में मिलने
यादें आती हैं, घर भर में उसको दौड़ा देने वालीं
नहीं जागती हूँ अब भोर के साढ़े तीन बजे
पापा की लायी मिठाई खाने के लिए
नींद से उठ कर बिना मुंह धोये
घर से, शहर से....यादों के हर मंजर से
मेरी विदाई हो गई है...
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भावना प्रधान कविता है
ReplyDeleteअच्छी लगी
मुबारक
सुन्दर लेखन.
ReplyDeleteबहुत भावुक कर देने वाली कविता है.
हर साल आता है रक्षाबंधन
ReplyDeleteबस भाई नहीं आता परदेस में मिलने
यादें आती हैं, घर भर में उसको दौड़ा देने वालीं
bahut sundar likha..
badhaii..
पुरानी यादों को समेटे भाव प्रधान कविता। वाह।
ReplyDeleteबसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
यूं ही तफरीह करते हुए आपके ब्लॉग पर आ गया। सचमुच, अच्छा लिखती हैं आप।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteजिंदगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मकाम
ReplyDeleteवो फिर नहीं आते.....वो फिर नहीं आते
पूजा जी
ReplyDeleteये भावुक कर देनेवाला आपका
प्रयास पसँद आया
- लावण्या
AAPKI YE KAVITAA ACHHI LAGI PUJAA JI , BHAVNAAWON KO LEKAR JIS TARAH SE AAPNE RISHTON KO SHABDON KE BANDHAN SE JODAA HAI WO TARIF KE KAABIL HAI... BAHOT HI KHUBSURATI SE AAPNE AAPNA HAK ADAA KIYA HAI...
ReplyDeleteARSH
man ko chho gayi aapki ye rachana. sach hi kahte hain samay ke sath har rishta apni ahmiyat kho deta hai.Ye ham par nirbhar karta hai ki ham use bachaye rakhne ke liye kya karte hain.
ReplyDeleteNavnit Nirav
पुजा जी.
ReplyDeleteबहुत ही भावूक कविता लिखी आप ने,
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
जीवन की सत्यता को बयां करती रचना. खूबसूरत बन पड़ी है. आखिर पूजा की है न!
ReplyDeleteमन के भावों को यूं कविता मे उतार देना आसान नही है. बस आज तो नमन करता हूं. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
भागदौड़ की ज़िंदगी का कड़ुआ सच्।बहुत अच्छा लिखा आपने सच मे तारीफ़ के लिये शब्द नही है मेरे पास्।
ReplyDeleteगत अनुभव और अनुभूति दोनों एकेमेक हो गये हैं, और तैरने लगी हैं संवेदनायें । रचना ने खासा प्रभावित किया । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण!!
ReplyDeleteekdum brilliant...the choice of words,the ideas everything was perfect...teesre para ki ending thodi aur strong ho sakti thi...anyway ery much an exceptional poem...
ReplyDeleteaur haan, got to mention,the pic is lovely :)
अच्छा लगा।
ReplyDeleteतुम्हारा ये फोटो मुझे सबसे अच्छा लगता है ...फोटोग्राफर को शुक्रिया ....
ReplyDeleteनहीं जागती हूँ अब भोर के साढ़े तीन बजे
पापा की लायी मिठाई खाने के लिए
नींद से उठ कर बिना मुंह धोये
घर से, शहर से....यादों के हर मंजर से
मेरी विदाई हो गई है......
एक उम्र किसी घर में बिता ...उसे अलविदा कहना ..कितनी अजीब रस्म है ना......
बचपन के दिन सुहाने
ReplyDeleteअजीब था लडकपन
अजीब सा बचपना
कोई भी गम नही
हर तरफ थी खुशीया
बचपन के दिन वो अजीब थे
भावपूर्ण कविता| शुभकामनाएं|
ReplyDeletekavita ke liye kya likhun sabd nhin
ReplyDeletevijayvinit
mo.no.9415677513
कॉपी राईटर मुझे तुम्हारी लेखनी देख कर शक होता है
ReplyDeleteसच है तो फिर तुम मिस फिट हो इंडिया के लिए, बहुत खूब भावनाएं है और उनको व्यक्त करने का तरीका भी. लॉन्ग लिव स्वीट गर्ल !
सुन्दर! भावपूर्ण! इनाम में इस पोस्ट में स्व.सुमन सरीन की कवितायें:
ReplyDeleteनंगे पांव सघन अमराई
बूँदा-बांदी वाले दिन
रिबन लगाने,उड़ने-फिरने
झिलमिल सपनों वाले दिन।
अब बारिश में छत पर
भीगा-भागी जैसे कथा हुई
पाहुन बन बैठे पोखर में
पाँव भिगोने वाले दिन।
आप सबको पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ...
ReplyDeleteDevPalmistry
इतने सारे लोगों ने शुभकामनाएं दी हैं...तारीफें की है...सचमें वो सारी बाते जो सबके मन के किसी कोने में दबी रहती हैं...तुमने एक शक्ल दे दी है...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती के साथ...भावों को पिरो दिया है....
इन् सुंदर भावनाओं के लिए क्या कहा जा सकता है.... :)
ReplyDeleteभावनाओं से भरी भावुक करती एक रचना।
ReplyDeleteआखरी लाइन तो दिल को छू बहूत कुछ कह गई ..
ReplyDeleteअति सुंदर!
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteयादों के गाँव में चहलकदमी कर रहीं हैं आप.... अच्छा है...
ReplyDeleteकविता सुन्दर भी है... और भावपूर्ण भी...
बधाई....!!!!!!!!!!!!
घर से, शहर से....यादों के हर मंजर से
ReplyDeleteमेरी विदाई हो गई है...
अंतर्मन को गहराई से छूती हुयी रचना
चित्र भी पूर्णतयः काव्यात्मकता लिए हुए है !
आज की आवाज
mantramugdha ho gaya hu main....aur koi alfaaz nahi mere paas....sivay iske.....sarvottam....
ReplyDeleteyuhi hi likhte rahiye
http://bharatmelange.blogspot.com
aapki kavita ki ek ek pankti apne se judi lagti hai bhut hi sundar rachna hai ek ek shabd me bhut gehre bhaav samaye hue hai.........
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