09 December, 2008

ख्वाब इक नया चाहता हूँ

ऐसे हालातों में भी क्या चाहता हूँ
जाने क्यों ख्वाब इक नया चाहता हूँ

खून फैला हुआ है सड़कों पर
और मैं रंग भरा आसमाँ चाहता हूँ

आजकल सड़कों पे मौत घूमती है
मैं अपने लिए भी एक दुआ चाहता हूँ

मन्दिर में है कि मस्जिद में, या कि कहीं और
सुकून लाये जमीं पर वो खुदा चाहता हूँ

बिखरे हुए जिस्मों में पहचान ढूंढता हूँ
कल से है गुमशुदा वो आशना चाहता हूँ

बस एक अमन का ही तो ख्वाब देखा मैंने
और वो खुदा कहता है मैं कितना चाहता हूँ

29 comments:

  1. ऐसे हालातों में भी क्या चाहता हूँ
    जाने क्यों ख्वाब इक नया चाहता हूँ

    खून फैला हुआ है सड़कों पर
    और मैं रंग भरा आसमाँ चाहता हूँ

    बहुत बेहतरीन रचना के लिए पूजा जी बधाई हो बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने

    रिगार्ड

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  2. मन्दिर में है कि मस्जिद में, या कि कहीं और
    सुकून लाये जमीं पर वो खुदा चाहता हूँ

    बहुत सुंदर बात कही आपने

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  3. बस एक अमन का ही तो ख्वाब देखा मैंने
    और वो खुदा कहता है मैं कितना चाहता हूँ
    bahut sunder rachana

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  4. बिखरे हुए जिस्मों में पहचान ढूंढता हूँ
    कल से है गुमशुदा वो आशना चाहता हूँ

    bahot khub likha hai aapne ,bahot umda dhero badhai aako...

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  5. खून फैला हुआ है सड़कों पर
    और मैं रंग भरा आसमाँ चाहता हूँ

    मन्दिर में है कि मस्जिद में, या कि कहीं और
    सुकून लाये जमीं पर वो खुदा चाहता हूँ
    ............

    दिल को छु गए | बेहतरीन |

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  6. बस एक अमन का ही तो ख्वाब देखा मैंने
    और वो खुदा कहता है मैं कितना चाहता हूँ
    बहुत सुंदर ...बेहतरीन..

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  7. सुंदर पंक्तियाँ

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  8. बस एक अमन का ही तो ख्वाब देखा मैंने
    और वो खुदा कहता है मैं कितना चाहता हूँ


    --वाह!! अपने आप में ही पूरी हैं यह दो पंक्तियां..बधाई. बहुत खूब लिखा.

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  9. सोचता हूं इस जमीन पर कभी अमन चैन आया तो वो आप कवियों/शा्यरों द्वारा ही आ पायेगा हम ताऊओ द्वारा नही !

    राम राम !

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  10. "मन्दिर में है कि मस्जिद में, या कि कहीं और
    सुकून लाये जमीं पर वो खुदा चाहता हूँ"

    आज के हालात पर एक मुकम्मल ख्वाहिश यही तो हो सकती है. रचना के लिए धन्यवाद.

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  11. बस एक अमन का ही तो ख्वाब देखा मैंने
    और वो खुदा कहता है मैं कितना चाहता हूँ


    ज्यादा नही मांग लिया कुछ ????

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  12. khuda ko to main kai dinone se talash raha hun...vaise aman to mai bhi chahata hun, leking lagata hai khuda khud mar-kat dekhkar kanhi chup gaye hai...kavita achi lagi...kahane ka andan acha laga...kuda aman de ye na de, unaki marji...aapaki kalam chalit rahe...yeh duya hai meri.

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  13. बस एक अमन का ही तो ख्वाब देखा मैंने
    और वो खुदा कहता है मैं कितना चाहता हूँ

    bahut acchhey puja

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  14. बस एक अमन का ही तो ख्वाब देखा मैंने
    और वो खुदा कहता है मैं कितना चाहता हूँ

    बहुत खूब। बहुत सुन्दर ख्वाब। यह ख्वाब जल्द ही पूरा हो यही दुआ माँगता हूँ।

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  15. धन्यवाद... आपका ब्लॉग इतना पसंद आया मुझे की मैंने इसका अनुसरण भी करना शुरू कर दिया है...!!!खासकर आपकी कवितायें और ग़ज़ल.

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  16. what a lovely poem.keep it up.U r still reading Gulzar,bashir, Dushyant saab......great otherwise it is tough to search them in new generation. (I must say frankly ur vision and selection of words are good but some grammer of ghazal is required there.)

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  17. बहुत सुन्दर और सटीक.

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  18. मोहतरमा आपकी उपरोक्त रचना ग़ज़लनुमा है पर ग़ज़ल की तमाम शर्तों से ख़ारिज़ है कही की ईंट कहीं का रोड़ा वाली मिसाल है
    जैसे प्रारम्भ की पंक्तियां-
    ऐसे हालातों में भी क्या चाहता हूँ.
    जाने क्यों ख्वाब इक नया चाहता हूँ.
    चाहता हूँ कि रदीफ(अनुप्रास)शब्द का ऐसा टुकड़ा जो निरंतर पंक्तियों में आता है.आपने इस का अंत तक निर्वाह किया है.
    खूंन फैला हुआ है सड़को पे
    और मैं रंग भरा आसमां चाहता हूँ
    ये शेर नुमा पंक्ति है पर है नहीं क्या,नया का काफिया(प्रास) आसमां का आना जाइज़ नहीं.
    इससे ये साफ ज़ाहिर होता है कि आप की रचना पर ग़ज़ल की छाया ज़रूर है पर आप उसकी बारीकियों से वाकिफ़ नहीं हैं.
    अब ग़ज़ल में प्रयुक्त निश्चित बहरों (छन्दों) की बात तो उसकी उम्मीद ही कैसे रख सकते है.
    पर आपकी एक पंक्ति में जाने अनजानें में निश्चित बहर(छन्द) में है जैसे-
    खून फैला हुआ है सड़कों पे
    रात भी नींद भी कहानी भी.(फ़िराक गोरखपुरी)
    हाय क्या चीज है जवानी भी.
    पर बाद की
    और मैं रंग भरा आसमां चाहता हूँ.
    उपरोक्त पंक्ति में कितना अंतर है देखा जा सकता है.
    ये सारी बातें लिखने का सबब सिर्फ इतना है कि ब्लॉग की दुनियां के वाह वाह करने वालों को आप पहिचाने. इसमें वे लोग भी हैं जो जानबूझकर झूटी तारीफ़ कर नयी संभवित प्रतिभाओं को मीठा ज़हर देकर ख़त्म कर रहे हैं.
    ग़ज़लकार दुष्यन्त के शब्दों में कहूँ तो-
    मैं बेपनाह अंधेरों को सुब्ह कैसे कहूँ,
    मैं न नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं.
    इस रचना के पूर्व आपकी मैं तुम्हें कविता में मिलूंगी अछान्दस रचना की तीव्रतम अनभूति को मैं ने जी भर कर सराहा है आप जानती हैं.
    पर छन्द बद्ध रचना ग़ज़ल को समझे बिना उस पर कलम चलाने की आपने ख़ता की है.
    आप से ग़ुज़ारिश है आप कविता में मिलें.
    ग़ज़ल पर रियाज़ करें फिर ग़ज़लों में नुमायां हों आमीन.

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  19. आजकल सड़कों पे मौत घूमती है
    मैं अपने लिए भी एक दुआ चाहता हूँ

    bahut sundar likha aur ekdum sach..

    डॉ.सुभाष भदौरिया. said... subhash ji bhawano ko samajhiye faltoo lecture mat jhdiye pata hai hume ki bahut bade kavi hai aap.. isme kuch batane ki jarurat nahi hai aapko agar isme kuch acha nahi lag raha to aap apne blog par likh daliye

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  20. bahut hee sundar abhivyakti hai, achchhee kavita ke liye badhaayiaan !

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  21. @dr. subhash bhadauriya
    मैं बस तीन बातें साफ़ करना चाहूंगी...
    पहली...ऐसा नहीं है कि मुझे बहर, वजन और काफिये का कोई भी अंदाजा नहीं है. मैं ये नहीं कहूँगी कि विशेषज्ञ हूँ, मैंने कोई शोध नहीं किया है ग़ज़ल पर. पर बचपन से गजलें पढने के कारण शौक़ था तो एक बेसिक व्याकरण का अंदाजा है. मैंने कभी नहीं कहा कि मैं ग़ज़ल लिखी है...हाँ कुछ कुछ ग़ज़ल जैसी ही दिखती है. मेरे ख्याल से व्याकरण और मात्राओं के जोड़ घटाव से ज्यादा जरूरी है उसमें अहसासों की इमानदारी होना. जो कि मेरी लेखनी में है. मुझे हमेशा से जोड़ घटाव से डर लगा है, इसलिए इतना calculation कर के कविता नहीं लिख सकती.

    दूसरी...आप जिन मीठी तारीफ़ करने वालों की बात कर रहे हैं वो मेरे ब्लॉग पर नहीं आते, अगर आप कमेन्ट देखेंगे तो कहीं भी ये नहीं लिखा पाएंगे कि वाह क्या ग़ज़ल लिखी है! वो बस ये कह कर जाते हैं कि मैंने जिस अहसास को बयां किया, और जिन शब्दों में...उन्हें अच्छा लगा.

    तीसरी बात...आप कहते हैं कि मैंने ग़ज़ल पर कलम चलाने में खता की है...आपको ग़ज़ल का रहनुमाया होने का कोई हक नहीं है, चाहे आप कोई भी हों. फ़िर भी एक सेकंड के लिए अगर पंकज सुबीर जी ( http://subeerin.blogspot.com/) ऐसा कहें तो समझ में आता है क्योंकि वो लोगो को ग़ज़ल लिखना बाकायदा सिखाते हैं, पर आपके ब्लॉग में सिर्फ़ आपकी गजलें हैं. अगर आपने ग़ज़लों पर शोध किया भी है तो ब्लॉग पर कुछ भी नहीं लिखा है गज़लों के बारे में. मैं क्यों मानूं कि गज़लों के बारे में आपको मुझसे ज्यादा आता है और आप मुझे सलाह दे सकते हैं?

    मैं अपने ब्लॉग पर दूसरों द्वारा लगायी गई किसी भी बंदिश के खिलाफ हूँ. मुझे कोई भी ये नहीं बताएगा कि मैं अपने ब्लॉग पर क्या लिखूं और क्या नहीं. ये सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा फ़ैसला है.

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  22. आपके विचार काबीले तारीफ है

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  23. मानव मात्र के सामूहिक हित का ख्वाव

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  24. पिछली पोस्ट पढते समय आप की दी टिप्पणी भी पढी ।अत: यह गजल भी पढ़ने को मिल गई। बहुत बढिया लिखी है ।बधाई।

    बस एक अमन का ही तो ख्वाब देखा मैंने
    और वो खुदा कहता है मैं कितना चाहता हूँ

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  25. परम आदरणीया पूजाजी
    सादर प्रणाम.आपकी एक अछान्दस कविता मैं तुम्हें कविता में मिलूँगी की अनभूति की प्रामाणिकता ने आपके ब्लॉग पर ला दिया. मैने उसके बारे में बात की थी आप ने उस पर कोई प्रति टिप्पणी नहीं की वो आपके अनकूल थी.
    उपरोक्त ग़ज़ल की टिप्पणी के माध्यम से मैने एक संभवित प्रतिभा जो ग़ज़ल में थोड़े रियाज़ के साथ उतरे तो बेहतर ग़ज़लें कह सकती है इसी शुभ आशय से अपनी बात की पर तुम्हें चोट लग गई.
    मैने इसी तरह एक दो बार लोगों को कहा उन्हें बुरा लग गया.
    वही ग़लती आपके ब्लाग पर हो गयी.
    ब्लाग जब आम होता है तो पाठक उस पर आते हैं हम लेखक के रूप में कहना तो चाहते हैं और अपनी अनकूलता का सुनना चाहते हैं हमारी धारणा के विपरीत बात पर हमारे अहं को चोट पहुँचती है हम तिलमिला जाते हैं मेरे साथ भी ऐसा होता है.
    ख़ैर आपकी कविताओं को तो पढ़ना ही पड़ेगा रही आपकी ग़ज़लनुमा रचनाओं की बात तो आपकी मर्जी.
    रही मेरी ग़ज़लों पर लिखने की बात तो तज्रबे अच्छे नहीं फ़न का इल्म सब को नही दिया जा सकता. आप जिन महाशय का उल्लेख कर रही है उनका ताबीज़ बांधे कई लोग ग़ज़लें लिख रहे हैं.कइयों ने बाकायदा गुरूजी की ब्लॉग पर तस्वीर भी लगा रक्खी है.
    मैं इन चीजों से कोसों दूर हूँ.
    ग़ज़ल के क्षेत्र में खास कर भाषा को लेकर मैने दुस्साहस किये हैं मै नहीं चाहता कोई ऐसा करे.उसके ख़तरे हैं.
    1-ग़ज़ल के शिल्प को समझना,बारिकियों के जानने से कोई रचनाकार नहीं हो सकता.अनभूति की प्रामाणिकता के साथ शिल्प की समझ सोने में सुहागा का काम करती है.मेरा इशारा इसी तरफ था.
    आपको हुए कष्ट के लिए ख़ुद भी दुखी हूँ आपको अपनी राय क्यों दे बैठा.

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    Replies
    1. Dr Bhadauria U r correct , the Ghazal is out of Beher and its ridiculous to claim it as a Ghazal, not only this it does not follow the rules of Radeef and Kafia . u just tried to educate someone who is not ready to learn, and thats ur fault.
      for the writer i would politely and humbly like to say that before learning something don't claim that its a Ghazal, Nazm or Rubai because writing in Urdu is a different thing. While writing in Hindi is totally different cup of tea. Many big Urdu poets sometimes err but they never show arrogance by saying that its my space . yes its your space but many youngster will learn a wrong thing from your space . If they read such Be Beher Ghazal. so they will learn a wrong thing just try to understand what is being said.. you may feel bad but this should motivate you to work hard and come out with more good compositions which are perfect.
      first of all try to learn what is Ghazal as ur knowledge about Ghazal seems to be shallow. please shed arrogance for your better future because these wah wah on wall could invite booing and hai hai in real Mushairas if this sort of composition is recited .. please don't mind but take this as a positive advice to improve your writing.

      Delete
    2. अनुपम साहब। आपके पास कितना फ़ालतू वक़्त है? ज़ाहिर तौर से बहुत होगा। हिंदी में लिखी हुयी किसी चीज़ पर आप आ कर अंग्रेज़ी में टिप्पणी दे रहे हैं, attitude साथ में मुफ़्त का। ब्लॉग पर दस साल पुरानी किसी पोस्ट को कौन जा के पढ़ता है और इतना सीरीयस्ली लेता है?

      चलिए। आपसे आप की ही भाषा में बात करते हैं। Hello, excuse me, who the hell claimed it as a Ghazal? and where? can you even read?

      पहली बात। इस पोस्ट में कहीं भी नहीं लिखा हुआ है कि ये ग़ज़ल है या नज़्म है या रुबाई है। आपको इतना समय है ही फ़ालतू तो ज़रा ग़ौर से पोस्ट को देखिए तो सही। politely और humbly सिर्फ़ शब्द हैं, आपका नज़रिया तो ना polite है, ना humble है। आप ख़ुद को बहुत ज्ञानी समझते हैं और यही ज्ञान यहाँ बघार रहे हैं। उर्दू के बड़े जिन लेखकों की बात आप कर रहे हैं, वे ज़ाहिर तौर से ब्लॉग नहीं लिखते होंगे। मैं Mass communication की स्टूडेंट रही हूँ IIMC दिल्ली से। तो सबसे पहले तो आपको ब्लॉग के कुछ बेसिक्स पढ़ा देती हूँ। हमारे यहाँ एक theory होती है, medium is the message. तो ब्लॉग की शुरुआत एक तरह की ऑनलाइन डाइअरी के रूप में हुयी थी। और 2008 तक ऐसा ही था। इसमें सिर्फ़ मैं ही नहीं, कई सारे और लोग कच्चा पक्का लिखा हुआ पोस्ट करते रहते थे। ये अपने लिखे को दुनिया के सामने रखने की एक जगह थी। यहाँ पर कई सारी ऐसी ही टूटी फूटी कविताएँ लिखीं। कहानियों के टुकड़े लिखे। जब भी जो मन किया लिखा क्यूँ कि ये मेरा अपना स्पेस था। यहाँ मैंने किसी को बुलाया नहीं था मुझे पढ़ने के लिए। मैं फिर से दोहरा रही हूँ, मैंने कभी भी क्लेम नहीं किया कि मैं ग़ज़ल लिख रही हूँ या लिखना चाह रही हूँ।

      और आप जिस arrogance को मुझे मेरे ही बेहतर फ़्यूचर के लिए पीछे छोड़ने को कह रहे हैं, ये arrogance दस साल पहले था। और आपके जैसे लोगों को जवाब दे सकूँ इसलिए था। ज़रा जा के गूगल कीजिए हमारा नाम, पूजा उपाध्याय, तीन रोज़ इश्क़। पेंग्विन बुक्स से मेरी पहली किताब 2015 में छपी थी। दैनिक जागरण की पहली बेस्ट सेलर की लिस्ट में है। तो प्लीज़। ज्ञान देने के पहले देख लीजिए आप बात किससे कर रहे हैं।

      एक पच्चीस साल की उम्र में एक अपने ब्लॉग पर अगर कोई लड़की अपने मन का टूटा फूटा नहीं लिख सकती उन दिनों तो ना ये कहानियाँ होतीं, ना ये किताब। आइंदे से किसी को 'positive advice to improve your writing' देने के पहले देख लीजिए आप किससे बात कर रहे हैं। आप एक बेस्टसेलर ऑथर से बात कर रहे हैं। जो वहाँ तक इसी ब्लॉग से पहुँची है। ऐसी कविताओं और पाठकों के कारण पहुँची है तो आपकी तरह ज्ञान नहीं देते। प्रोत्साहन देते थे। अपना ज्ञान आप किसी मुशायरे में घटिया ग़ज़ल पढ़ने वाले शायर के लिए बचा कर रखिए। यहाँ देने की कोई ज़रूरत नहीं है।

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  26. बस एक अमन का ही तो ख्वाब देखा मैंने
    और वो खुदा कहता है मैं कितना चाहता हूँ
    bahut umda

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