29 February, 2012

जाने दे यार, शी इज नॉट योर टाईप


जिद्दी लड़की ने 
बालों को दुपट्टे में लपेट कर बाँधा 
और दिन भर की पूरे घर की साफ़ सफाई

पंखों पर के जाले हटाये
डांट के भगाई किताबों पर की सारी धूल
पोछा लगाया सारे कोनों में 
तह कर के रखे अलमारियों में कपड़े 

फेंकने को थीं 
बासी कविताएं
पुरानी कलमें, सूखी दवातें 
मुरझाये फूल, चोकलेट रैपर, बुकमार्क
उसकी ब्लैक एंड वाईट तस्वीर 
बहुत सारी कॉफी शॉप की बिल्स 
पेपर नैपकिंस पर लिखी आधी अधूरी पंक्तियाँ 
इधर उधर पड़ी डायरियों में उसका सिग्नेचर 

कमोबेश हर चादर में अटकी हुयी मिलती थी
उसकी कोई छूटी हुयी अंगडाई 
रूमाल में उसकी उँगलियों के निशान 
वाशिंग पावडर से तेज थी
उसके आफ्टरशेव की खुशबू 

शू रैक में रह गयीं थी 
उसकी फेवरिट रेड चप्पलें 
बाथरूम में तौलिया, टूथब्रश
भाप उठते आईने में उसका अक्स
भीगे बालों को झटकता हुआ

शाम होते वो बेहद थक गयी 
कॉफी के कप पर ठहरे थे 
वोही संगदिल बोसे 
संगमरमर के चमकीले फर्श पर
और भी साफ़ दिखने लगी थीं 
काफ़िर आँखें 

तनहा और उदास लड़की ने 
आखिर जला ही ली 
उसकी छूटी हुयी आखिरी सिगरेट 

धुएं के टूटे छल्लों में 
बनता रहा एक ही सवाल 
इतने गुस्से में गया है
जाने कब वापस आएगा!

---
हालांकि इतना वक़्त काटने के बजाये जान दी जा सकती थी...और इंतज़ार का पासा उसकी तरफ फेंका जा सकता था...रेतघड़ी को उलट कर 'योर टर्न' कहा जा सकता था. 'आई हेट यू' जैसा कोई मेसेज किया जा सकता था...चुप रहने की कसम को निभाया जा सकता था...मगर क्या है न कि वो अपने सीने से लगा कर माथे पर थपकियाँ देते हुए 'शश्शश्श्श....' जैसा कुछ नहीं कह सकता...और लड़की इतनी बुद्धू है कि उसे बस इतना चाहिए पर वो सारे झगड़ों के बाद भी उसे बताती नहीं...हाँ आजकल उसने एक नया शिगूफा पाला है...
बेआवाज़ रोने का... 

24 February, 2012

तुम. मेरे. हो.


तुम्हारे होने से
रेत में खिलती है
बोगनविलिया

तुम्हारे साथ ही
आता है वसंत
और महुआ भी 

तुम्हारी जेब में
मेरी खुशियों की
टाफियां भरी हैं

तुम खोलो मुट्ठी
तुम्हारी लकीरों में
है मेरी मुस्कान 

तुम कहते हो
तुम अच्छी हो
विस्की से भी 

मैं चाहती हूँ
रो दूं अब
काँधे पर. बस 
---

बौराया वसंत मुझे जाने कहाँ कहाँ ढूँढता है...सूखे पत्तों की पीछे झाँकने लगे हैं नए पत्ते...धीमा हो गया है सड़क पर गिरे पत्तों का शोर...हवा तुम्हारा नाम किसी कोटर में भूल आई है...मेरी बाइक में लग गए हैं पंख और मेरा शहर अपने रकीब को सलाम भेजता है...


अब आ भी जाओ कि इस शहर में इससे खूबसूरत मौसम नहीं आता!

शहरयार के बहाने आर्टिस्ट और आर्ट पर...


वो बड़ा भी है तो क्या है, है तो आखिर आदमी
इस तरह सजदे करोगे तो खुदा हो जाएगा 
-बशीर बद्र 

अमृता प्रीतम की रसीदी टिकट का एक हिस्सा है जिसमें वो बयान करती हैं कि उनकी जिंदगी में सिर्फ तीन ही ऐसी मौके आये जब उनके अंदर की औरत ने उनके अंदर की लेखिका को पीछे छोड़ कर अपना हक माँगा था. एक पूरी जिंदगी में सिर्फ तीन मौके...

ऐसा मुझे भी लगता है कि लेखक किसी और दुनिया में जीते हैं...वो दुनिया इस दुनिया के पैरलल चलती है...उसके नियम कुछ और होते हैं...और इस दुनिया के चलने के लिए ऐसे लेखकों का होना भी जरूरी है जो शायद इस दुनिया के लिहाज़ से एक अच्छे इंसान न हों...एक अच्छे पिता, पति या बेटे न हों...हमारा समाज ऐसे ही प्रोटोटाइप बनाता है जहाँ बचपन से ही घोंटा जाता है कि सबसे जरूरी है अच्छा इंसान बनना. भला क्यूँ? कुछ लोगों की फितरत ही ऐसी होती है कि वो अच्छे नहीं हो सकते...समाज के तथाकथित मूल्यों पर...मगर अच्छे होने की कसौटी पर शायर को क्यूँकर घिसा जाए? अच्छी पूरी दुनिया पड़ी है...एक शायर बुरा होकर ही जी ले...माना उसके घर वाले उससे खुश नहीं थे...पर इसी को तो ‘फॉर द लार्जर गुड ऑफ ह्युमनिटी’ कहते हैं. गांधी जी के बेटे हमेशा कहते हैं कि वो एक अच्छे पिता नहीं थे. अगर सारे लोग एक ही अच्छे की फैक्ट्री से आने लगे तो फिर सब एकरस हो जाएगा...फिल्म में विलेन न हो तो हीरो कैसे होगा. उसी तरह जिंदगी में भी बुरे लोगों की जगह होनी चाहिए....और हम सबमें इतना सा तो बड़प्पन होना चाहिए कि कमसे कम शायर को उसकी गलितयाँ माफ कर सकें. उसकी पत्नी उसके साथ न रहे पर उससे अलग होकर तो उसे उसके जैसा बुरा होने के लिए माफ कर सके...कमसे कम मरने के बाद. ऐसी नफरत मुझे समझ नहीं आती. मुझे सिर्फ इसलिए शहरयार की एक्स-वाइफ की बातें समझ नहीं आतीं...मुझे समझ आता अगर वो उनके साथ ताउम्र रहती, घुटती रहती तब उनकी शिकायत समझ आती...पर अलग रहने के बावजूद? किसी के मरने के बाद इल्जाम कि सफाई अगर कोई है भी तो...दी न जा सके.

अच्छे तो बस रोबोट होते हैं...इंसान को गलितयाँ करने का...गलत इंसान होने का अधिकार है...उसपर शायर...पेंटर...गायक...किसी भी आर्टिस्ट को ये अधिकार मिलना चाहिए...थोड़ा सा ज्यादा बुरा होने का अधिकार...थोड़ी सी ज्यादा गलतियाँ करने का अधिकार...वो किसी को अपने दुनिया में लाने के लिए मजबूर नहीं करता...उसकी अपनी दुनिया है...उस दुनिया के होने पर इस दुनिया की बहुत सी खूबसूरती टिकी है. अगर एक खूबसूरत गज़ल की कीमत शायर का टूटा हुआ परिवार है..तो भी मैं खरीदती हूँ उस गज़ल को. एक अच्छी पेंटिंग के पीछे अगर एक नायिका का टूटा हुआ दिल है तो भी मैं खरीदती हूँ उस पेंटिंग को...कि कोई भी सबके लिए अच्छा नहीं हो सकता...और आर्ट हमेशा जिंदगी की इन छोटी तकलीफों से ऊपर उठने का रास्ता होती है. 

कुछ लोगों के लिए एक मुकम्मल इश्क ही पूरी जिंदगी का हासिल होता है...हो सकता है...उनके लिए इतना काफी है कि उन्होने से उसे पा लिया जिससे प्रेम करते थे. पर ऐसा सबके लिए हो जरूरी तो नहीं...सबके जीवन का उद्देश्य अलग होता है. अक्सर हमारे हाथ में भी नहीं होता. पर ये जो कुछ लोग होते हैं...लार्जर दैन लाइफ...उनके लिए कुछ भी मुकम्मल नहीं होता...कहीं भी तलाश खत्म नहीं होती...एक प्यास होती है जिसके पीछे भागना होता है...कई बार पूरी पूरी जिंदगी। मुझे हर आर्टिस्ट अपनेआप में अतृप्त लगता है। उसके लिए जिंदगी से गुज़र जाना काफी नहीं होता...उसके लिए बुरा देखना काफी नहीं होता...वो वैसा होता है...अन्दर से बुरा...टूटा हुआ...बिखरा हुआ. मगर एक आर्टिस्ट अपने इस तथाकथित बुरेपन में भी बहुत मासूम होता है...कई बार चीज़ें वाकई उसके बस में नहीं होतीं...शराब या ऐसी कोई आदत मुझे ऐसी ही लगती है...जो शायद बहुत प्यार से छुड़ाई जा सकती है...शायद नहीं भी। आप संगीत के क्षेत्र में देख लें...कितने सारे आर्टिस्ट ड्रग ओवेरडोज़ से मरते हैं...उन्हें बचाने की कितनी कोशिशें की जाती हैं...पर वो अपनी कमजोरियों, अपनी मजबूरीयों को कहीं न कहीं ऐक्सेप्ट कर लेते हैं तब वो जिंदगी से बड़े/लार्जर दैन लाइफ हो जाते हैं।

कहीं कहीं इनके अंदर की सच्चाई मुझे उस इंसान से ज्यादा अपील करती है जो पार्टी में दारू नहीं पीता पर पीना चाहता है...उसके मन में दबी इच्छाएँ किस रूप में बाहर आएंगी कोई नहीं जानता। कई बार यूं भी लगता है कि एक जिंदगी में अफसोस लेकर क्यूँ मरा जाए...पर समाज बहुत सी चीजों पर रोक लगाता है...नियम बनाता है...जो गलत भी नहीं हैं...वरना अनार्की(Anarchy) की स्थिति आ जाएगी...पर कुछ लोग होने चाहिए जो हर नियम से परे हों...आज़ाद हों...क्यूंकी इस आज़ादी में ही मानवता की मुक्ति का कहीं कोई रास्ता दिखता है। इनपर रोक लगाने वाले वही लोग हैं जो खुले में विरोध करते हैं क्यूंकी मन ही मन वो वैसा ही होना चाहते हैं...स्वछंद...पर इतनी हिम्मत सबमें नहीं होती। 

आर्टिस्ट मजबूर भी होते हैं और मजबूत भी...उतनी टूटन, उतना दर्द लेकर जीना क्या आसान होता है...क्या उनके आत्मा नहीं कचोटती किसी शाम कि बीवी बच्चे होते...एक परिवार होता...पर उतनी जिम्मेदारियाँ निभाना उसके लिए कहाँ आसान हुआ है। निरवाना के कर्ट कोबेन के जरनल्स की किताब है...उसके पहले पन्ने पर लिखा हुआ है...
डोंट रीड माय डायरी व्हेन आई एम गोन.
ओके, आई एम गोइंग टू वर्क नाव...व्हेन यू वेक अप दिस मॉर्निंग, प्लीज रीड माय डायरी। लुक थ्रू माय थिंग्स, एंड फिगर मी आउट.”

लगता है काश ऐसी कोई डायरी शहरयार लिख के गए होते...

सारे आर्टिस्ट्स इसी फ्रीडम के पीछे पागल रहते हैं...कर्ट की डायरी में भी हर दूसरे पन्ने पर फ़्रीडम की बातें लिखी हैं...उसके लिए पंक रॉक वाज अ वे ऑफ़ फ्रीडम. जिंदगी से बेपनाह मुहब्बत...और एक abstract सच्चाई जो मुझे सारी बुराइयों से बढ़ कर अपील करती है. मुझे ये भी समझ आता है कि उन्हें दुनिया समझ नहीं आती...कागज़ के फूल में तभी तो सिन्हा साहब कहते हैं...तुम्हारी है तुम ही सम्हालो ये दुनिया. 


हाँ मैं जानती हूँ दुनिया मेरे जैसी नहीं है...पर दुनिया ऐसी होती तो क्या बुरा था. 

23 February, 2012

Life. Hurts.

विषबेल उगती है पैरों के पास से कहीं...उसके बहुत महीन कांटे हैं जो त्वचा में चुभ जाते हैं...वो न केवल परजीवी है जो की मुझसे प्राणशक्ति पाती है बल्कि उन काँटों से ही जहर भी मेरे शरीर उतारती जाती है. रिसोर्स optimisation का अद्भुत उदहारण है.

मुझे समझ ये नहीं आता की इसके बावजूद मेरी जान क्यूँ नहीं जाती...क्या वो जहर वाकई जहर नहीं है बस जहर का छलावा है...एक ऐसा द्रव्य जो वक़्त के गुजरने की रफ़्तार धीमी कर देता है...कि मेरी जिंदगी रहेगी वही कुछ साल पर लगेगी कुछ ऐसे जैसे जेल में बंद आत्मा को लगे...शरीर एक जेल ही तो है न...ऐसा जिसे तोड़ना मुमकिन न हो.


लम्हा...गुज़रता है पर नहीं गुज़रता...जिंदगी खाली साफ़ की हुयी स्लेट हो गयी है जिसमें पुराना कुछ याद नहीं है...सब एक धुंधली याद के जैसा है...कोई हंसी की किरण इस ओर तक नहीं आती कि मन में उजाला भर जाए...कोई पुराना लम्हा नहीं आता. याद के सारे फोटोग्राफ्स में एक अधूरा दर्द साथ खड़ा रहता है...धुंध भरे शीशे के पार देखती हूँ...कोई नज़र नहीं आता.


एक दो लोग हैं...पर उन्हें छूने में डर लगता है कि वो भी धुआं हो गए...उन्हें बताने तक में डर लगता है कि वो मेरी जिंदगी में कितने जरूरी हैं...किसी के गले लगने में भीगने लगती हूँ...डरती हूँ...टूट जाउंगी. ऐसे में वाकई तुम्हें बाँध के रखना चाहती हूँ...कहने में डरती हूँ...बहुत बहुत बहुत.


मैं खुद को एकदम अच्छी नहीं लगती...जाने तुम्हें कैसी लगती हूँ...सोचती हूँ...बारहा सोचती हूँ कि मुझसे कोई प्यार क्यूँ करता है...मुझे इस सवाल का जवाब कभी नहीं मिलता है. हर बार चाहती हूँ कुछ ऐसा कह दूं कि तुम्हारा दिल टूट जाए और तुम मुझसे दूर चले जाओ मगर दिल को इतना पत्थर कर ही नहीं पाती हूँ. कितना भी चाहूं तुम्हें तकलीफ न दूं...पर फितरत ही ऐसी है...तुमने मेरे हाथ देखे हैं...न न ध्यान से देखो...आंसू क्रिस्तलाइज कर गए हैं...देख रहे हो कहाँ कहाँ खूबसूरती दिखती है मुझे. पर छूना न इन्हें ये बीज हैं उस विषबेल के...तुम रो दोगे तो मैं मर ही जाउंगी.


मुझे इतना तनहा रहना एकदम अच्छा नहीं लगता...ऐसे में हमेशा दिल करता है सारे दोस्तों को फोन कर लूं...पर इतना सा हक नहीं समझती...और पता है मुझे फोन नहीं चाहिए...मुझे मेरे दोस्त दिल्ली में या और किसी शहर में नहीं चाहिए...मुझे मेरे सारे दोस्त बैंगलोर में चाहिए...मेरे पास...मुझे खींच कर गले लगाने के लिए...कि मैं फोन कर सकूँ...आ जाओ और आधे घंटे में दरवाजे पर ढेरों चोकलेट के साथ लोग खड़े हों.


ऐसे कैसे खुश होती हूँ मैं...सारी खुशियाँ कमबख्त दर्द से ही जीती हैं...यही आँखों का पानी उन्हें भी सींचता है...मगर होता है न ज्यादा दिन आंसू छुपा के नहीं रखने चाहिए...फिर किसी दिन बाँध टूट जाता है. फिर सब बह जाते हैं.


बहुत हुआ...उदासी में लिखना नहीं चाहिए...अच्छा लिखने के लिए दर्द का एक थ्रेशोल्ड होता है...उससे गुज़र जाओ तो आप भरी सेंटी, वाहियात और किसी के न पढ़ने लायक लिखते हो. लेकिन मुझसे इतना नहीं होता. डायरी लिखे बहुत साल हुए. लिख के कुछ नहीं होता...कोई दर्द नहीं घटता...लिख रही हूँ बस कि बिना लिखे भी रहा नहीं जाता.


उन सारे लोगों से माफ़ी चाहती हूँ जिन्हें आज ये पढना पड़ा है. कोशिश करुँगी कि मेरे सपनों की दुनिया जो है उसमें से बाहर न आना पड़े.


Bloody Fucking Hell. Life. Hurts.

दर्द के सिरहाने कोई थपकी नहीं होती

The only day I become inconsolable is when I miss you ma. 
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अब किसी से नहीं कहती...अच्छा नहीं लगता...किसी से बात भी नहीं करती...अब इतने साल हो गए माँ...अब सच में कोई भी नहीं है जिसको फोन करूँ और बस रो दूं...इतना कह पाऊं कि तुम्हारी याद आ रही थी. खूब सारा रो के चुप जो जाऊं...उधर से कोई आवाज़ नहीं आये...कोई कुछ न कहे. समझाने की कोशिश न करे...कुछ न कहे...कुछ नहीं. 

माँ को भूलने में कितना वक़्त लगता है...हर गुज़रते साल के साथ समय की रेतघड़ी को पलट देती हूँ इस उम्मीद में कि कभी तो दर्द ख़त्म होगा...कभी ख़त्म होगा...कभी ख़त्म होगा. सब कहते हैं वक़्त दो...वक़्त दो. जैसे कि मेरे पास और कोई उपाय भी है. 

पता है मम्मी मेरे जैसी लड़की की मम्मी को इतनी जल्दी नहीं जाना चाहिए था...मैं हमेशा ऐसी ही तो रही हूँ न...हर कुछ दिन में उदास हो जाती थी...किसी के कहे से तकलीफ हो जाती थी...किसी के बिना कुछ कहे तकलीफ हो जाती थी...इस बड़ी दुनिया में कहीं भी तो फिट नहीं होती हूँ माँ...बहुत अकेली रहती आई हूँ हमेशा...दोस्त पता नहीं क्यूँ नहीं बनते. अपने आप को सम्हालते सम्हालते कभी कभी एकदम अच्छा नहीं लगता है. वैसे दुनिया की extrovert बनी फिरती हूँ पर वाकई जब किसी की जरूरत होती है उस समय किसी को इतना अपना समझ ही नहीं पाती हूँ. 

कभी समझ ही नहीं आता कि किसी की जिंदगी में मेरी जगह भी होनी चाहिए...मैं भी जरूरी हूँ...बहुत रोना आता है...और ऐसा नहीं है कि हमेशा दुखी रहती हूँ...पर जब बहुत बहुत खुश होती हूँ उसी दिन से मन का एक कोना छीजना शुरू कर देता है...मैं इग्नोर करने की कोशिश करती हूँ...अब रोती नहीं हूँ...अच्छे गाने सुनती हूँ...कुछ लोगों से बातें करती हूँ...खुद को व्यस्त रखती हूँ. पर मम्मी...हर ख़ुशी थोड़ी सी आधी रह जाती है...आधी नहीं बहुत कम रह जाती है...चाहे चोकलेट खाना हो. पता है मम्मी तुमको कभी डार्क चोकलेट नहीं खिलाये...तुम होती न तो तुमको पूरा स्लैब देते...और किसी को हम इतना प्यार नहीं करते...कुणाल को भी नहीं. तुम रही नहीं तो तुमको कैसे बताते...हम तुमसे पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं...आज भी मम्मी. 

पता है, घर में तुम्हारी एक भी फोटो नहीं है...कभी कभी भूलने लगती हूँ कि तुम्हारी आवाज़ कैसी थी...माथे पर तुम्हारा हाथ रखना कैसा था...तुम्हारे हाथ से कौर खा के कोलेज भागना कैसा था...इधर एक दिन खाना बनाये तो सब्जी एकदम वैसा बना था जैसा तुम बनाती थी...समझ नहीं आया कि हंसें कि रोयें...अनुपम को मेसेज किये...अभी भी उसको फोन करते हैं तो सोचते हैं कि उसको इतना क्यूँ परेशान करते हैं...फिर लगता है कि बस वही तो है जो कमसे कम जानता है तुमको. बाकी मेरी जिंदगी में जितने भी लोग हैं तुमको नहीं जानते मम्मी...कोई भी नहीं. 

तुम सबसे अच्छी मम्मी थी...पर हमको भी तो थोड़ा वक़्त देती...हम समझदार हो गए हैं अब...हम तुमको सबसे अच्छी बेटी बन के दिखाते. सबसे अच्छी...तब हम बहुत कुछ करते मम्मी...वो हर प्राइज जीत के लाते जो तुम कहती...याद है कैसे हम प्राईज खोलते भी नहीं थे...तुम्हारे पास दौड़ के ले के आते थे. 

तुम थी न मम्मी तो हम सबसे अच्छे थे...तुम नहीं हो न...तो हम कहीं नहीं हैं. कहीं भी नहीं. कुछ भी नहीं. तुम बहुत बहुत बहुत याद आती हो मम्मी...हम कितना भी कोशिश कर लें...हमसे कुछ नहीं होता है. 

काश तुम होती मम्मी...काश. 
तुम्हारी बहुत याद आती है माँ...मी...मम्मी. 

चाँद मवाली. रोक के रास्ता. रोज सताए


काँधे पर
ऊँगली भर काला
दाग पड़ा है

चाँद ने कल फिर
'रुक जाओ' की
जिद पकड़ी थी

गुस्सा हुआ था
रो के खुद ही
चुट्टी काटी

रूठ के मुझसे
ओढ़ के बादल
छुपा हुआ है

चाँद मवाली
रोक के रास्ता
रोज सताए

महबूब के घर की
पिछली गली में
हाथ पकड़ ले

किससे ज्यादा
प्यार है तुमको
उससे/मुझसे?

न माने ना
हाँ बोलू ना
चुप मर जाऊँ

इश्क मुसीबत
तेरे कारण
बुद्धू आशिक

मैंने तो
पहले ही कहा था
चाँद बुझा दो

सब तेरी गलती
जो उसको
प्यार हुआ है

रात परेशां
सुन सुन कर
ये सारे झगड़े

सूरज भी तो
मिला हुआ है
चाँद की साइड

चाँद औ सूरज
रस्साकशी
खेलेंगे एक दिन

हम उल्का की
पीठ पे बैठ
दूर निकलेंगे

अबकी बार
मिलो मुझसे तो
अकेले मिलना

19 February, 2012

बदमाश दुपहरें...

'तुम्हें कहीं जाना नहीं है? घर, दफ्तर, पार्क...सिगरेट खरीदने, किसी और से मिलने...कहीं और?'
'कौन जाए कमबख्त महबूब की गलियां छोड़ कर'
'ए...मुझे कमबख्त मत कहो'
'तो क्या कहूँ  मेरी जान?'
'तुम आजकल बड़े गिरहकट हो गए हो...पहले तो लम्हों, घंटों की ही चोरी करते थे आजकल तो पूरे पूरे दिन पर डाका डाल देते हो, पूरी पूरी रातें चुरा ले जाते हो'
'बुरा क्या करता हूँ, इन बेकार दिनों और रातों का तुम करती ही क्या?'
'कह तो ऐसे रहे हो जैसे तुम्हारे सिवा मेरे पास और कोई काम ही नहीं है'
'है तो सही...पर मुझसे अच्छा तो कोई काम नहीं है न'
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लड़की ने कॉफ़ी का मग धूप में रखा हुआ है...हेडफोन पर एमी का गाना लगा हुआ है कल रात से 'वी ओनली सेड गुडबाई विद वर्ड्स'. पूरी रात एक ही गाना सुना है उसने...गाने से कोई मदद मिली हो ऐसा भी नहीं है. गैर तलब है कि बिछड़ने के लिए एक बार तो मिलना जरूरी होता है. उसने सर को हल्का सा झटका दिया है जैसे कि उसका ख्याल बाहर आ गिरेगा...धूप के चौरस टुकड़े में उसके शर्ट की उपरी जेब का बिम्ब नहीं बनेगा...उसका दिल कर रहा है लैपटॉप एक ओर सरका कर धूप में आँखें मूंदे लेट जाए...शायद ऐसा ही लगेगा कि जैसे उसके सीने पर सर रखा हो. वो बेडशीट के रंग को उसकी शर्ट के कलर से मैच कर रही है...दिल नहीं मानता...उठती है और चादर बदल लेती है...नीले रंग की...हाँ ये ठीक है. शायद ऐसे रंग की शर्ट पहनी हो उसने...अब ये धूप का टुकड़ा एकदम उसके पॉकेट जैसा लग रहा है. यहाँ चेहरे पर जो गर्मी महसूस होगी वो वैसी ही होगी न जैसे शर्म से गाल दहक जाने पर होती है. डेरी मिल्क बगल में रखी है...उसे कुतरते हुए दिमाग में डेरी मिल्क के ऐड के शब्द छुपके चले आते हैं...किस मी...क्लोज योर आईज...मिस मी...और उसका दिल करता है किसी से खूब सारा झगड़ा कर ले.

महबूब शब्दों को छोड़ कर जा ही नहीं रहा...प्रोजेक्ट कैसे ख़त्म करेगी लड़की...स्क्रिप्ट क्या लिखनी है...डायलोगबाजी कहाँ कर रही है. वाकई उसका काम में मन नहीं लगता...दिन के लम्हे बड़ी तेजी से भागते जा रहे हैं...जैसे वो बाइक चलाती है, वैसे...बिना स्पीडब्रेकर पर ब्रेक लिए हुए...फुल एक्सीलेरेटर देते हुए...और जब बाइक थोड़ी सी हवा में उड़ कर वापस जमीन पर आती है तो उसके बाल एक अनगढ़ लय में उसकी पीठ पर झूल जाते हैं...थोड़ी सी गुदगुदी भी लगती है...कभी कभार जब कोई गाड़ी रस्ते में आ खड़ी होती है तो वो जोर से ब्रेक मारती है...एकदम ड्रैग करती हुयी बाइक रूकती है. सामने वाले के होश फाख्ता हो जाते हैं, उसे लगता है बाइक लड़की के कंट्रोल में नहीं है...वो नहीं जानता लड़की और बाइक अलग हैं ही नहीं...बाइक लड़की के मन से कंट्रोल होती है...लड़की अधिकतर लो बीम में ही चलाती है पर कभी कभी जब स्ट्रीट लैम्प के बुझने तक भी उसका घर आने का मन नहीं होता तो हाई बीम कर देती है...बाइक की हेडलाईट चाँद की आँखों में चुभती तो है मगर क्या उपाय है...माना कि उत्ती खूबसूरत लड़की रात को किसी को बाइक से ठोक भी देगी तो लड़का ज्यादा हल्ला नहीं करेगा...एक सॉरी से मान जाएगा फिर भी...किसी अजनबी को सॉरी बोलने से बेहतर है कि चाँद को सॉरी बोले.

वो एमी को बाय बोल चुकी है और इंस्ट्रूमेंटल संगीत सुन रही है...सुनते सुनते मेंटल होने की कगार आ चुकी है...दिन आधा बीत चुका है...आधी चाँद रात के वादे की तरह. सोच रही है कि अब क्या करे...कॉफ़ी का दूसरा कप बनाये या ग्रीन टी के साथ सिगरेट के कश लगा ले...या हॉट चोकलेट में बाकी बची JD मिला के पी जाए. बहुत मुश्किल चोइसेस हैं...लड़की ने जूड़े से पिन निकाल फेंका है...लैपटॉप के उपरी किनारे से पैरों की उँगलियाँ झांकती हैं...नेलपेंट उखड़ रहा है...पेडीक्यूर जरूरी हो गया है अब. दुनिया की फालतू चीज़ें सोच रही है...जानती है कि दिन को उससे काम बहुत कम होता है. पर रात को तो उसकी याद और बेतरह सताती है...रात को काम कैसे करेगी.

इतना सोचने में उसका सर दर्द करने लगा है...अब तो लास्ट उपाय ही बचा है. लड़की ऐसी खोयी हुयी है कि फिर से उसने दो शीशे के ग्लासों में नीट विस्की डाल दी है...सर पे हाथ मारते हुए फ्रीज़र से आइस निकलती है...और ग्लास में डालती जाती है...ग्लास में बर्फ के गिरने की महीन आवाज़ से उसे हमेशा से प्यार है. 'तुम जो न करवाओ' जैसा कुछ कहते हुए एक सिप लेती है...धीमे धीमे लिखना आसान होने लगता है...दूसरे ग्लास में बर्फ पिघल रही है...पर लड़की को कोई हड़बड़ी नहीं है आज...दो पैग पीने के लिए उसके पास इतवार का बचा हुआ आधा दिन और पूरी रात पड़ी है.

उसने महबूब के हाथ में अपनी कलम दे रखी है...महबूब परेशान 'तुम जो न करवाओ' जैसा कुछ कहते हुए उसके साथ प्रोजेक्ट ख़त्म करने में जुट गया है...वरना लड़की ने धमकी दी है कि विस्की का ग्लास भूल जाओ. लड़की खुश है...कभी तो जीती उस दुष्ट से. फ़िज़ा में लव स्टोरी का इंस्ट्रूमेंटल बज रहा है...खिड़की से सूखे हुए पत्तों की खुशबू अन्दर आ रही है...वो खुश है कि महबूब के साथ किसी प्रोजेक्ट पर काम करना भी इश्क जैसा ही खूबसूरत है.

ऐसी दोपहरें खुदा सबको नसीब करे. आमीन!

अलविदा के पोस्ट इट्स चिपकाने वाली लड़की

रोज़ अलविदा के पोस्ट इट्स
चिपकाने वाली लड़की
मुझे भी मालूम है
तुम्हारे आखिरी दिन
तुम भूल जाओगी कहना
विदा 
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तुमने जो बनवा रखे हैं
ज़ख्मों के टैटू
उनमें मेरा नाम नहीं है
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तुम लिखती हो सबसे ज्यादा ख़राब
जब तुम गहरे प्यार में होती हो
(हैप्पीनेस डज़ नॉट सूट द राईटर इन यू
बीइंग इन लव सफोकेट्स हर)
या तो ऐसे प्यार न करो...या लिखो मत
ईमानदारी से एक दुखती बात कहूँ 
तुम्हारे महबूब की बातों में
किसी की दिलचस्पी नहीं है 
तुम्हारे सिवा
---
तुम में ऐसा कुछ भी नहीं है
जिसे सहेजने की जरूरत आन पड़े
तुम एकदम साधारण लड़की हो 
भीड़ में गुम कोई भी
तुम्हारे चेहरे पर जो ओज है न
वो इश्क का है
तुम्हारा नहीं
---
सुनो लड़की
मुझे कभी तुमसे प्यार नहीं होगा
जितनी जल्दी तुम्हें ये बात समझ आ जाए
बेहतर है
---
तुम्हारा एकतरफा प्यार
निकृष्ट और छिछला है
इसमें कुछ नहीं है
जो मुझे बांध सके
स्टॉप एम्बरासिंग मी
डोंट क्राय
---
जब कहता हूँ
आई हेट स्मोकर्स
तो मेरा निशाना होती हो
सिर्फ तुम
---
काश! उसने कही होतीं
ऐसी बातें
मेरा दिल तोड़ते हुए
उसे भूलना आसान होता 
उफ्फ्फ उसे तो ठीक से
दिल तोड़ना भी नहीं आता
मैं अपनी सोच में भी नहीं कह सकती  उसे
आई हेट यू
गेट लौस्ट
---
या खुदा
मैं नहीं चाहती
कि वो थोड़ी सी देर रुक जाए
मेरी आखिरी साँसों भर 
कि वो रोये
मेरी लाश को बांहों में भर कर 
मुझे लौटा लाना चाहे
कुछ इतना ऐम्बिशीयस नहीं 
बस इतना 
कि वो जाते हुए 
देख ले मुड़ के
एक बार 
---

15 February, 2012

पतझड़ का शहर

उसके शहर में
बहुत करीने से गिरते थे पत्ते भी

अक्सर सोचता हूँ 
दुनिया में कुछ है भी
जो उसकी तरह बिखरा हुआ है
या कि बेतरतीब 

सूखे पत्तों पर बाइक उड़ाती लड़की
मुझसे यूँ प्यार न करो
अभी मेरा दिल हरा ही है
अभी इंतज़ार अधूरा बाकी है 

तुम तो मौसम की तरह गुज़र जाओगी
पर मैं कतार में कैसे बिखेरूँगा सूखे पत्ते 

कि तुम कैसे पहचानोगी वापसी की राह?
तुम्हारी तसवीरें देख कर एक ही बात सोचता हूँ
तुम वाकई करोगी क्या मुझसे प्यार...ताउम्र?

या कि तुम्हें भी झूठे वादे करने
और झूठी कसमें खाने में लुत्फ़ आता है?

(एक लड़की थी...एक नंबर की झूठी...और वैसी ही दिलफरेब...एक शहर था...जिसे उस लड़की से प्यार हो गया था...एक लड़का था जिसे वो शहर दरवाजे पर रोक लेता था...और इश्क था...एक नंबर का बदमाश...ये इन तीनो(चारों?) की कहानी है. हाँ, इस कहानी के सारे पात्र असली हैं...बस उनका पता नहीं मिलता)

आइस क्यूब्स


ये झूठ है कि
किसी से बिछड़ता है कोई
हम बस, मर जाते हैं.
---
एयरटेल कहता है
हमारी दुनिया में आप कभी अपनों से कभी जुदा नहीं होते
ऐसा वादा खुदा क्यूँ नहीं करता कभी?
---
कहीं से आती कोई हवाएं
नहीं बता पाती हैं
कि तुम्हारे काँधे से कैसी खुशबू आती है?
---
किसी भी पहर
तुम्हारी आवाज़ नहीं भर सकती है 
मुझे अपनी बांहों में! 
---
मैं वाकई नहीं सोचती 
लिप बाम लगाते हुए
कि तुम्हारे होटों का स्वाद कैसा है! 
---
मेरी सिगरेट से
नहीं है तुम्हारा कोई भी रिश्ता
सिवाए ब्रांड सेम होने के... 
---
मुझे कभी मत बताना
कितनी आइस क्यूब डालते हो
तुम अपनी विस्की में.
---
कच्ची डाली से
मत तोड़ा करो मेरी नींदें
इनपर ख्वाब का फूल नहीं खिलता फिर.   
---
बातों का कैसे ऐतबार कर लूं
तुम न कहते हो मुझसे झूठ झूठ 
'आई लव यू'.
---
सच कहती हैं सिर्फ उँगलियाँ
जो तुम्हारा फ़ोन कॉल पिक करते हुए
तुम्हें छूना चाहती हैं... 
---
काश! कह देने भर से
तुम वाकई हो जाते मेरे 
एक शहर तुम्हें मुझसे कभी मिलने न देगा. 
---
मेरी उम्र फिर से हो गयी है अठारह की
तुम भी इक्कीस के हो ही गए होगे
चलो, कहीं भाग चलते हैं!

11 February, 2012

फरिश्तों में भी तुम सबसे अच्छे हो.

You are like personal treasure box. मेरे अन्दर जो भी अच्छा है और सुन्दर है वो मैं तुम में सहेजती जाती हूँ...मेरे अन्दर जो भी टूटा हुआ है तुम उसकी दवा बनते जाते हो. जो कुछ मैं नहीं चाहती कहीं खो जाये...मेरा पागलपन, मेरी उदास बेचैनियाँ सब मैं तुममें कहीं रखती जाती हूँ. जैसे जैसे मैं रीतती जाती हूँ वैसे वैसे तुम भरते जाते हो...मेरी आँखों का रंग हल्का पड़ता है तो तुम्हारी आँखों में पूरे आसमान के सितारों जैसी चमक भर जाती है और मैं तुम्हारी आँखें देख कर खुश हो जाती हूँ.

सोचो मन से इतना खाली होना कैसा तो लगता होगा न कि आज तक जब भी तुमसे बहुत देर तक बातें की हैं रो दी हूँ...मन का कौन सा सीलापन है जो तुमसे बात करती हूँ तो शाम बीतते न बीतते आँखों से नदियाँ बहने लगती हैं. मैं रोकती हूँ कुछ हद तक मगर मुझे मालूम होता है कि तुम्हारे सामने झूठ बोल नहीं पाउंगी...तुम्हारे सामने मैं वो हो जाती हूँ जो कहीं एकदम सच में हूँ...मुझे हर बार बुरा लगता है पर इस बात का कि मैं तुम्हें कितना परेशान करती हूँ...मुझे मेरा रोना बहुत साधारण सी चीज़ लगती है क्योंकि मैंने खुद को रोते हुए बहुत बार देखा है...पर तुम अच्छे भी तो हो...तुम्हें कितना बुरा लगेगा कि फोन के उस तरफ कोई लड़की रो रही है और तुम मुझे चुप नहीं करा पा रहे हो. 

कैसा कैसा तो डर लगता है...जैसे कि तुम खो जाओगे एक दिन. बचपन में एक बार मेरा बक्सा खो गया था...उसमें बहुत कुछ था जो कबाड़ जैसा था. आज तक भी ढूंढ रही हूँ...वो खोयी हुयी चीज़ें कभी वापस नहीं मिलीं...बाकी चीज़ों से इतर उसमें एक स्टैम्प था...आज कैसे तो चीज़ों को को-रिलेट कर रही हूँ...आज लगता है कि तुम खो जाओगे तो वो वाला स्टैम्प लगा के कोई चिट्ठी लिखूंगी तो तुम तक पहुँच जायेगी. लेकिन सुनो, खोना मत...तुम्हारे बिना मैं जाने क्या करुँगी. मैं भी खो जाउंगी फिर...और तुम्हें तो मालूम ही नहीं चलेगा कि मैं खो गयी हूँ क्योंकि तुम तो खुद खोये हुए रहोगे...सोचती हूँ...खोये हुए न भी रहो तो मैं अगर कुछ दिन तक नहीं रही तो मुझे ढूंढोगे क्या?

पता है तुमने आज तक कभी मुझे कुछ भी नहीं माँगा...बस देते आये हो दोनों हाथों से...इसलिए तुम सबसे अलग हो...बाकी जितने लोग हैं मेरी जिंदगी में मैं उनके लिए ऐसी ही हूँ...कुछ न मांगने वाली, उनके लिए बहुत सी दुआओं की लिस्ट बनाने वाली...मैं तुम्हारी कुछ नहीं हूँ तो भी तुम मेरी कितनी मुस्कुराहटों का सबब बने हो...तुम्हें पता है न तुमसे बात करते हुए सारे वक़्त हंसती रहती हूँ...कभी कभी तो गाल दर्द कर जाते हैं. मैं हर दर्द में तुम तक लौट के आती हूँ...जब अँधेरा बहुत गहरा हो जाता है तो खिड़की तुम्हारे अन्दर ही खुलती है...तुम से ही धूप और रौशनी उतरती है और मेरी आँखों को चूम कर कहती है...सब अच्छा हो जाएगा. तुम तक मेरी कौन सी तलाश आ के ठहरती है मालूम नहीं. तुम बहुत सारे सवाल हो मेरे लिए...समंदर की तरह अबूझ मगर तुम्हारे ही किनारों पर सुकून मिलता है मुझे. हर लहर मुझे कुछ लौटा दे जाती है...मेरा कुछ मांग ले जाती है. कल रात बहुत चैन की नींद आई मुझे...तुम्हारे शब्द मेरे माथे पर नींद आने तक थपकियाँ दे रहे थे. 


मुझे आज तक कोई शब्द नहीं मिला जो तुम्हें परिभाषित कर सके...हाँ शायद फ़रिश्ते ऐसे ही होते होंगे...गार्डिंग एंजेल...मैं खुदा की बहुत पसंदीदा बेटी रही होउंगी जो उसने तुम्हें मेरी देखभाल के लिए भेज रखा है. तुम्हारे जैसा कहीं कोई नहीं है...फरिश्तों में भी तुम सबसे अच्छे हो.

I love you with every fragment of my existence...thank you for being. 

10 February, 2012

थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब्

मुझे अभी तक यकीन नहीं आ रहा...परसों मेरा नया..एकदम कड़क नया...iPhone 4S आया और दो दिन भी नहीं बीते कि फ़ोन पानी में गिर के तैयार...मुझे मालूम है कि मैं एकदम बेखयाली में रहती हूँ...आधे टाइम दिमाग जाने किधर गया रहता है...लेकिन ऐसे हादसे के लिए मैं वाकई तैयार नहीं थी. एक तो कितनी कितनी बार सोच के ख़रीदा...महंगा है...दाम ज्यादा है...जाने क्या क्या. लेकिन मुझे अच्छे फोन का शौक़ है...अच्छे इलेक्ट्रोनिक का सामान भी कह सकते हैं...

अभी तो दोपहर तक ख़ुशी से फोन लिए ही नाच रही थी...नहाने का पानी भरने के लिए नल चलाया था...ठंढा गरम नॉब ओपरेट कर रही थी कि फोन बजा...अब बदकिस्मती से सुबह घर से बाहर गयी हुयी थी तो जींस ही पहनी हुए थे और पॉकेट में फोन था...तो फ़ोन उठाने के लिए निकाला और फोन कमबख्त एकदम स्लो मोशन में सीधे पानी की बाल्टी में छलांग लगा दिया. 

सुबुकते हुए बैठे हैं...दोनों में से किसी बात पर यकीन नहीं आ रहा...कि मेरे पास वाकई एक अच्छा नया iPhone 4S था सफ़ेद संगेमरमर की तरह और अब वही पानी में गिर के...घरेलु नुस्खे आजमा के पड़ा हुआ है. इतना रोना आ रहा है जैसे कभी नहीं आया था...इस फोन से वाकई मुझे प्यार हो गया था :( :( दोस्तों की प्रतिक्रिया तो सुन कर सर धुन लेने का मन कर रहा है अलग से. 

नील को fb पर मेसेज किया तो बोलता है कि रो क्यों रही है जिस पानी में फोन गिराया उसी में खुद कूद जा...गौरव को बताया तो वो भी टांग खींच रहा है...अनुपम ने थोड़े फंडे दिए कि धूप में रखो...अब बंगलौर में धूप निकलती कहाँ है :( 

थोड़ी देर के लिए हेयर ड्रेयर से सुखाया और अब इन्टरनेट पर पढ़ी सामग्री के हिसाब से उसे एक डब्बे भर के चावल के साथ रख दिया है कल शाम तक के लिए. बहुत रोना आ रहा है...एकदम इस तरह से किसी चीज़ के लिए कभी नहीं लगा था...कल बहुत बहुत खुश हो रहे थे अपने फोन को लेकर. यूँ तो हम ऐसे भी छोटी छोटी चीज़ से खुश हो जाते हैं पर ये बड़ी चीज़ खरीदी थी बहुत दिन बाद...बड़ी मेहनत के पैसे थे...एक किताब लिखी थी कर्णाटक ट्रांसपोर्ट के लिए...कितने महीने जा के खून जलाया था. 

अभी बहुत बहुत बहुत उदास हूँ, कल शाम को फोन निकल के फिर से चला के देखूंगी...कुछ न कुछ तो ख़राब हो ही गया होगा. 

मेरे फोन को अब दवा की नहीं दुआ की जरूरत है. हम बैठे हुए हैं सजदे में...हे उपरवाले...बच्चे की जान ऐसे ना ले...रहम कर रहम!

Write a letter to me.

किसी दिन तुम मांग लोगे ये सारे दिन वापस जो मैंने तुमसे बात करते हुए बिताये थे...ये कहते हुए कि ये दिन तुम्हारे थे...ये घंटे तुम्हारे थे...कि इनका कोई बेहतर इस्तेमाल हो सकता था मेरी बकवास बातों के अलावा...मैं जो इतनी पागल हूँ कि अपने लम्हे भी करीने से लगा के नहीं रखती...तुम्हें तुम्हारे दिनों, लम्हों, सालों के साथ गलती से भेज दूँगी मेरी कुछ उदास दोपहरें भी...कुछ चुप्पी रातें भी...गलती से मिक्स हो जायेंगे मेरे और तुम्हारे दिन जब मैं तुम्हें लौटाऊंगी तुम्हारे लम्हे. तुम कितने दिन बर्बाद करोगे उस पुलिंदे से अपने हिस्से के लम्हे तलाशते हुए...जाने दो न...रहने दो न मेरा जो है...क्यूँ चाहिए तुम्हें ये लम्हे...इत्ती लम्बी तो है ही जिंदगी कि मैं कुछ लम्हों पर अपना हक मांग सकूँ. 

दोनों सवाल उतने ही जरूरी हैं...वो मुझे इतना क्यों जानता है...वो मुझे इतना कैसे जानता है...

पूरी पूरी रात नीम बेहोशी में बड़बड़ाती रही 'तुम मेरे कोई नहीं हो'...सुबह उठने तक भी इस बात पर यकीन नहीं होता है. तुमसे बात करती हूँ तो सारे वक़्त मैं ही बोलती रहती हूँ...तुम्हारी शायद ही कोई बात सुनती हूँ फिर भी लगता है तुम्हें बहुत जानती हूँ...तुमसे झगड़ा भी कर लूंगी...पर वाकई सिर्फ ये जानने से कि तुम्हारी जिंदगी में क्या क्या हुआ तुम्हारा जिंदगीनामा लिखा जा सकता है, यू नो ऑटोबायोग्राफी...पर तुम्हें जान नहीं सकता कोई. पता नहीं क्यों...लगता है कि तुम्हारी दोस्त होती...कोई बहुत पुरानी दोस्त होती तो तुम्हें बहुत अच्छे से जान पाती...फिर किसी रात इतना न रोती...तुमसे झगड़ा करती कि तुम्हें तुमसे ज्यादा जानती हूँ, बहस मत करो मुझसे.

किसको यकीन दिलाना चाहती हूँ...खुद को ही न...तुम्हें क्यों कहती हूँ फिर...बार बार बार...आज खुद ही जिद्द करके तुमसे फोन रखवाया...इतने सालों में...अब पता है कैसा लग रहा है...जैसे अचानक तुम कहीं बिछड़ गए हो...जैसे भीड़ में चलते हुए अचानक से तुम्हारा हाथ छूट गया है मेरे हाथ से और मैं इत्ती छोटी सी हूँ कि तुम मुझे ढूंढ नहीं पाओगे और मैं इतनी पागल भी तो हूँ कि कहीं तुम्हारा इंतज़ार नहीं करुँगी...उस शहर से बाहर को जो हाइवे जाता है वहां निकल पडूँगी...मर गयी तो ठीक वरना वैसे भी तुम्हारे बिना दूसरे किसी शहर में जीना कोई कम तकलीफदेह थोड़े है.

मुझे एक चिट्ठी लिखो न...मैंने तुम्हें कितनी सारी चिट्ठियां लिखी हैं...तुम ही न कहते हो तुम्हें बातें करना नहीं आता...पर जवाब देना आता है...मेरी किसी चिट्ठी का जवाब दे दो...कभी...मर जाउंगी न तो बहुत अफ़सोस करोगे...देखना...फिर मेरी चिट्ठियां देखना...तब वो 'येडा येडा येडा' नहीं लगेंगी...वैसे चिट्ठियां तुम्हें लिखती हूँ पर उनमें खुद को बचा जाने की कोशिश ही तो है...गनीमत है तुम्हारे पास मेरी चिट्ठियां तो हैं...कहीं किसी को यकीन तो होगा कि ये लड़की जिन्दा थी कभी...कि उसने वाकई कागज़ पर कलम से चिट्ठियां लिखीं थी...और तुम झूठ कहते हो...मैं नहीं जी रही पचासी बरस तक...मेरे पास बहुत कम जिंदगी है...बहुत कम. तो प्लीज मुझे एक चिट्ठी लिख दो ना...तुम कौन सा मुझ से प्यार करते हो जो लिखने में तुम्हें दिक्कत आएगी. पता है, पहले तुम मुझसे बात करते थे तो कभी कभी मजाक में मुझे स्वीटहार्ट कह देते थे...मैं कैसे पिघल जाती थी तुम्हें नहीं पता...कितनी मुश्किल से छुपा जाती थी अपनी मुस्कान...

वाकई कोई हो...कोई हो जो बिठा के समझाए...बेटा ये जिंदगी होती है...ये रिश्ते होते हैं...रास्ते इधर के होते हैं...कुछ लोग मिलते हैं, कुछ लोग अपने रस्ते चले जाते हैं...कोई हो जो बतलाये कि तुम मेरे क्या हो...कि आखिर क्यों इतने कुछ हो तुम मेरे...क्यों...क्यों...क्यों...मुझे सुना हुआ याद नहीं होता...उस किसी को मुझे गले लगाके बताना होगा कि तुम क्या हो मेरे...कि क्यों तुम्हारे छू देने से जी जाती हूँ मैं...बताओ ना...तुम्हारे छू लेने से कैसे जी जाती हूँ मैं...उस किसी को कहो न कि मुझे समझाए कि तुम एकदम आम से इंसान हो...तुम में कुछ ख़ास नहीं है...मैं ही जो पागलों की तरह प्यार करती हूँ तुमसे इसलिए सब मुझसे है...मेरे इतने सारे 'I shouldn't have loved you this much' मुझे खुद ही समझ नहीं आते...मुझे कोई समझाता क्यूँ नहीं है यार!


किसी दिन इतनी पी लेना कि सच और झूठ में अंतर पता नहीं चले...मुझे कोई और समझ कर 'I love you' कह देना...कोई भी और...जिसपर भी तुम्हें प्यार आता हो...बस एक बार...बस एक बार...बस एक बार. मैं भी भूल जाउंगी उस लम्हे को जिंदगी भर के लिए...मगर...मौत के पहले के उस एक लम्हे में जब जिंदगी की फिल्म रिवाईंड होगी...उस लम्हे इस झूठ को याद कर लेने देना कि जब तुमने मुझे 'आई लव यू' कहा था. 

06 February, 2012

तुम बहुत खूबसूरत हो लड़की!

उदासियाँ बहुत गहरी हो जायें 
तो अपने अन्दर लौटो

वो तुम ही हो 
जिसके अन्दर है
रौशनी का अजस्र श्रोत
वहीं से निकलती है 
मुस्कुराहटों की बारामासी नदी

तुम्हारे पैरों की थिरकन
हाँ वहीं,
ठहरी हुयी है 
असंख्य दिलों की धड़कन

एक गोल चक्कर काटो
देखो न,
दुनिया घूम रही है न 
तुम्हारे ही चारों तरफ?

देखो अपनी आँखें
इनमें कितना प्यार है न?
तुम्हारे खुद के लिए भी
सच्ची में री!

वो जो फूल खिला है
गमले में
उसका गहरा लाल रंग
तुम्हारी जिजीविषा सा है 

अरे सूरज का सुनहरा पीलापन
तुम्हारी लौंग से छिटकता है
चाँद की सारी चांदनी
तुम्हारी गोरी बाँहों से उगती है 

तुम्हारी अंजुरी से सिंचती है
खुशियों की सारी फसलें 
गुनगुनाती हुयी बहा करो
मुस्कुराती हुयी रहा करो 

ये कायनात तुमसे खूबसूरत नहीं
थोड़ा इतरा लो
खुदा नहीं बक्श्ता 
सबको इतनी खूबसूरती

न इतना कोई होता है
इश्क से इतना लबरेज़ 
और पता है
मैं सबसे ज्यादा तुमसे प्यार करती हूँ!

05 February, 2012

उसने किसी दूसरी कायनात का सूरज हमारे होठों पर टाँक दिया...

'तो? क्या चाहिए?
'तुम चाहिए'
'अच्छा, क्या करोगी मेरा?'
'बालों में तेल लगवाउंगी तुमसे' 
'बस...इतने छोटे से काम के लिए मैं तुम्हारा होने से रहा...कुछ अच्छा करवाना है तो बोलो'

'तुम हारे हुए हो...तुम्हारे पास ना बोलने का ऑप्शन नहीं है'
'अच्छा जी...कब हारा मैं तुमसे? मैंने तो कभी कोई शर्त तक नहीं लगाई है'
'अच्छा हुआ तुम्हें भी याद नहीं...मैं तो कब का भूल गयी कि तुम कब खुद को हारे थे मेरे पास...अब तो बस ये याद है कि तुम मेरे हो...बस मेरे'

'तो ठकुराइन हमसे वो काम करवाइए न जो हमें अच्छे से आता हो'
'मुझे तुम्हारे शब्दों के जाल में नहीं उलझना...तुम्हारे कुछ लिख देने से मेरा क्या हो जाएगा...सर में दर्द है, आ के मेरे बालों में उँगलियाँ फेरो तो तुम्हारे होने का कुछ मतलब भी हो...वरना वाकई...तुम्हारा जीना बेकार है'

'बस इतने में मेरा जीना बेकार हो गया?'
'और नहीं क्या अपनी प्रेमिका के बालों में तेल लगाने से महत्वपूर्ण कुछ और भी है तुम्हारी जिंदगी में तो ऐसी जिंदगी का क्या किया जाए!'
'आप और मेरी प्रेमिका...अभी तो आप कह रही थीं कि मैं हारा हुआ हूँ खुद को आपके पास...कि आप तो बेगम हैं'
'खूब जानती हूँ तुम्हें...देखो...ये बेगम शब्द कहा...कुछ और भी तो कह सकते थे'
'कुछ और जैसे कि...जान...महबूब...मेहरबां...या फिर कातिल?'
'हद्द हो...कितनी बात बनाते हो...मैं तो कह रही थी कि मालकिन, रानी साहिबा, मैडम या ऐसे अधिकार वाले शब्द'
'चलो बता दो इनमें से कौन सा शब्द गलत है...जान तुम में बसती है...महबूब तुम हो मेरी...और पल बदलते मेहरबान होती हो और पल ठहरते कातिल.'
'जाओ हम तुमसे बात नहीं करते'

'गलत इंसान से रूठ रही हो!'
'ओये लड़के...प्यार तुझसे करुँगी तो रूठने क्या पड़ोसी से जाउंगी?...हाँ प्यार गलत इंसान से कर लिया है...सीधे सीधे कह दो न .'
'प्यार गलत इंसान से कर लिया है...अब मैं अपना क्या करूँगा?'
'मेरे हो जाओ'
'अब क्या होना बाकी रह रखा?'

'ईगो बहुत है तुममें'
'अच्छा तो अब हमें तोड़ के भी देखोगी?...जान क्यों नहीं लेती हो हमारी?'
'अरे...फिर मेरे बालों में तेल कौन लगायेगा?'

'तौबा री लड़की! तू वाकई अपने जैसी अकेली है...तुझे खुदा से भी डर लगता है भला?'
'डरें मेरे दुश्मन...हमने भला कौन सा गुनाह किया है कभी'
'तूने री लड़की...गुनाह-ए-अज़ीम किया है'
'अच्छा...वो क्या भला?'
'इश्क़'
---

आखिरी लफ्ज़ कहते हुए महबूब की आँखों में शरारत नाच उठी...उसने किसी दूसरी कायनात का सूरज हमारे होठों पर टाँक दिया...उस एक सुलगते बोसे से मेरे होठ आज तक महक रहे हैं...कि आज भी जब मैं हंसती हूँ तो लोग कहते है कि मेरे होठों से रौशनी के फूल झरते हैं. 

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