एक छोटी सी लड़की है...दिन में उसकी काली आँखों में जुगनू चमकते हैं...पर उसे मालूम नहीं था...एक शाम उसकी आँखों से एक जुगनू बाहर आ गया...नन्ही लड़की ने बड़े कौतुहल से जुगनू को देखा और अपनी छोटी छोटी हथेलियों से कमल के फूल की पंखुड़ियों सा उसे बंद कर लिया. देर रात हो गयी तो जुगनू की ठंढी हलकी हरी चमक मद्धम पड़ने लगी...लड़की को यकीन नहीं होता की उसकी हथेलियों से जुगनू गायब नहीं हो गया है...उँगलियों के बीच हलकी फांक करके देखती...रात के अँधेरे में एक दूज का चाँद खिल जाता उसकी उँगलियों के बीच.
रात लड़की खाना खाने के मूड में नहीं थी...खाने के लिए हथेलियाँ खोलनी पड़तीं और जुगनू उड़ जाता...वो एकदम छोटी थी इसलिए उसे मालूम नहीं था कि जुगनू उसकी आँखों की चमक से ही आता है और अगली शाम फिर से आ जाएगा...नया जुगनू...रात को आसमान की औंधी कटोरी पर तारे बीनने का काम था उसकी मम्मी का...जब किसी तारे में कोई खोट होता तो उसकी मम्मी उस तारे को आसमान से उठा कर फ़ेंक देती...वो टूटता तारा लोग देखते और मन में दुआ मांग लेते...तारे बीनने का काम बहुत एकाग्रता का होता था...तो छोटी लड़की की मम्मी उसे मुंह में कौर कौर करके खाना नहीं खिला सकती थी.
जब बहुत देर तक चाँद की फांक से लुका छिपी खेलती रही तो फिर लड़की को यकीन हो गया कि जुगनू सच में है...और मुट्ठी खोलते ही गायब नहीं हो जायेगा...उसने हौले से अपनी मुट्ठी खोली...जुगनू कुछ देर तो उसकी नर्म हथेली पर बैठा रहा...सहमा हुआ, कुछ वैसा जैसे पिंजरे का दरवाज़ा खोलो तो कुछ देर तोता बैठा रहता है...उसे यकीन ही नहीं होता कि वो वाकई जा सकता है...उड़ सकता है...और फिर जुगनू ने सारी दुनिया एक बच्चे की आँखों के अन्दर से देखी थी...ये दुनिया उसे डराती भी थी...चौंकाती भी थी और पास भी खींचती थी.
जुगनू ऊपर आसमान की ओर उड़ गया...जहाँ उसे तारों को बीनने में लड़की की मम्मी की हेल्प करनी थी.
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१२ साल बाद का पहला दिन...
आज पहली बार किसी लड़के ने उसका हाथ पकड़ा था...उसने अपनी हथेली में उसके लम्स को वैसे ही कैद कर लिया था जैसे उस पहली शाम जुगनू को मुट्ठी में बाँधा था...उसे देर रात लगने लगा था कि हथेली खोल के देखेगी तो दूज के चाँद की फांक सी उस लड़के की मुस्कराहट नज़र आएगी.
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तीस के होने के पहले का कोई साल...
We could have danced away to the dawn...
तुम्हारे आफ्टर शेव की हलकी खुशबू मेरी आँखों में अटकी है...आज भी शाम आँखों से जुगनू आते हैं...मुझे देख कर मुस्कुराते हैं और ऊपर आसमान की ओर उड़ जाते हैं, मैं अब उन्हें रोकती नहीं...मम्मी रिटायर हो गयी है...और ऊपर कहीं तारा बन गयी है...
मैं बस जरा देर को तुम्हें मुट्ठी में बंद कर देखना चाहती हूँ कि तुम वाकई हो कि नहीं...जिस लम्हे यकीन हो जायेगा तुम्हारे होने का मुट्ठी खोल कर तुम्हें जाने दूँगी...पर सोचने लगी हूँ बहुत...तो लगता है तुम्हारा दम घुटने न लगे...इसलिए कभी तुम्हें ठहरने को नहीं कहती. लेकिन सुनो न...आज रात नींद नहीं आ रही...आज की इस लम्बी सी रात काटने के लिए मेरी आँखों में जुगनू बन के ठहर जाओ न!