14 March, 2012

डेरी मिल्क प्रोमिस माने सबसे पक्का प्रोमिस

'डांस विथ मी?'
'क्यूँ'
'गाना बहुत अच्छा आ रहा है'
'और'
'धूप बड़ी खूबसूरत खिली है'
'तो'
'तुम्हारी आँखें बहुत सुन्दर लगेंगी'
'अच्छा'
'चलो, डेरी मिल्क पेपरमिंट वाला'
'प्रोमिस'
'हाँ...अब चलो भी...गाना ख़त्म हो जायेगा'
'तुम कहते हो मुझे डांस करना नहीं आता'
'अरे बाबा...आई विल लीड...तू बस ऐसे मेरे काँधे पर हाथ रख, नाउ होल्ड माय हैण्ड एंड मूव विद मी'
'ये गाना कितना पुराना है?'
'तब का है जब तुम पैदा भी नहीं हुयी थी'
'बस सोलह साल पुराना...लगता तो ऐसा है जैसे साठ साल पुराना हो...इसके साथ तो भूत भी घर के डांस करने लगे होंगे'
'वाल्त्ज़ कहते हैं इसे'
'ह्म्म्म'
---
और लड़की हँसे जा रही थी...खुश थी बहुत...क्यूँ खुश थी उसे मालूम नहीं था...उसे डांस करना एकदम नहीं आता था, ये क्लास्सिक बालरूम डांस तो एकदम नहीं...पर उसका डांस पार्टनर अभी अभी डिफेन्स अकेडमी से वापस आया था और उसके सारे स्टेप्स एकदम सिंपल थे...उसके साथ डांस करना वाकई उतना ही आसान था जितना की उसके साथ पिट्टो खेलना...वो सब कुछ बता देता था...बस उसके पीछे पीछे चलते जाओ. हालाँकि वो उससे कुछ साल बड़ा था पर ये उम्र के फासले को उसने कभी तरजीह दी ही नहीं बचपन से. एक उम्र आती है न जब अचानक से वो सारे बच्चे जिनके साथ आप खेल के बड़े हुए हैं...अचानक से लड़की और लड़के में बंट जाते हैं...लड़कियों के साथ खेलो...लड़के सब अचानक से 'भैया' की पदवी को प्राप्त हो जाते हैं. वो तो अच्छा हुआ विक्की के पापा का उस वक़्त ट्रांसफर हो गया था कुछ सालों के लिए तो वो आज भी उसे उसके नाम से बुला सकती है.

अभी कल ही तो अंकल लोग शिफ्ट हुए हैं वापस अपने घर में...सुबह सुबह सब लोग नाश्ते पर आने वाले हैं पर विक्की एकदम सुबह सुबह उठ कर आ गया है...वो तो ब्रश ही कर रही थी की पहुँच के तैयार...फिर रेडियो पर गाने आ रहे थे और वो अपने फेवरिट जगह पर थी...शीशम के पेड़ों से छन कर भोर की नर्म धूप आ रही थी...विक्की झूले को धक्का दे रहा था और झूले की पींगें बहुत ऊँची होती जा रही थीं...हवा में दोनों की किलकारियां घुलती जा रहीं थीं. दोनों अब भी बच्चों की तरह हँसते थे...बहुत देर तक झूला आसमान को चूमता रहा...धूप धूल में उनका नाम लिखती रही और भी जाने क्या क्या पैटर्न बनाती रही...धीरे धीरे झूले की रफ़्तार कम पड़ी...और रुक गयी. विक्की वहीं धूल में बैठा उसे अपनी कहानियां सुना रहा था...होस्टल की...वहाँ के लड़कों की...तीरअंदाजी के...और दर्जनों खेल जो वो खेलता था. लड़की कौतुहल से उसकी हर बात सुन रही थी...उसके लिए वो एक एकदम नयी दुनिया थी. पैर के अंगूठे से वो धूल में विक्की का नाम भी लिखती जा रही थी...साथ में अपना भी...पर यहाँ वो उसका पूरा नाम लिखती थी...विक्रम सान्याल...उसे बचपन से उसका नाम बहुत पसंद था...क्यूँ पसंद था मालूम नहीं.

विक्की ने रेडियो पर ढून्ढ के एक चैनल लगाया...जाने कहाँ का स्टेशन पकड़ रहा था...ये गाने लड़की ने कभी सुने नहीं थे...
'डांस विथ मी'
---
लड़की को एक भी गाना समझ नहीं आ रहा था पर उसे विक्की के साथ डांस करना बहुत अच्छा लग रहा था...सुबह की प्यारी धूप...हवा...झूमते शीशम के पेड़...उसकी फेवरिट लाइट ब्लू फ्रोक और आज तो विक्की ने भी बड़ा प्यारी टीशर्ट पहनी थी ब्लू रंग की...दोनों खाली पैर धूल में दुनिया का सबसे सोफिस्टिकेटेड डांस कर रहे थे ये भी लड़की को कहाँ पता था. विक्की ने कंधे से उसका हाथ बड़े प्यार से हटाया और सीने पर बायीं तरफ रखा...ठीक वहाँ जहाँ दिल होता है...लड़की की हथेली ने उसकी भागती धड़कनों  को बड़े आश्चर्य से सुना.
---
'विक्की, ये तुम्हारा दिल इतनी तेज़ क्यूँ धड़क रहा है?'
लड़का एक लम्हे के लिए ठहरा और उसे बांहों में भरते हुए उसके माथे पर एक नन्हा सा किस किया.
'बिकॉज आई लव यू'
'ओह'
लड़की की आँखें आश्चर्य से और गोल गोल हो गयीं और फिर बहुत हौले से उसके चेहरे पर हलकी सी लाली आ गयी...
'और सुनो पगली...मैं स्कूल में रहूँगा अभी कुछ साल...तुम यहाँ किसी और लड़के से प्यार व्यार न कर बैठो इसलिए बताये देता हूँ...मैं वापस आऊंगा जल्दी...तब तक मेरी रहना...ओके?'
'ओके'
'प्रोमिस?'
'डेरी मिल्क दिलाओगे?'
'यस माय प्रिंसेस...और कुछ चाहिए'
'मम्म...नहीं'
---
---
क्या लगता है? हैप्पी एंडिंग होगी या सैड? वैसे तो मैं लिख रही हूँ तो जैसा मूड आये लिख सकती हूँ...लड़का दूर मिलिट्री स्कूल में है...लड़की सुन्दर है...चंचल है...जरूर उसे और कोई भी चाहता होगा...और उसे किसी और से प्यार हो गया तो?
---
---

'डांस विथ मी?'
'क्यूँ'
'अरे अभी शादी की न तुमसे'
'और'
'आई लव यू'
'तो'
'डेरी मिल्क की पूरी आलमारी है घर में'
'अच्छा'
'हमेशा इत्ता प्यार करोगे मुझसे?'
'प्रोमिस'
'तुम भी न...'
'पता है, मुझे कई बार डर लगता था कि तुम्हें कोई और चुरा ले जाएगा'
'धत...डेरी मिल्क प्रोमिस था न...कैसे टूट जाता'
---
यु नो...कुछ अच्छी चीज़ें कभी नहीं बदलतीं...उन्हें बदलना भी नहीं चाहिए...जैसे प्यार और चोकलेट का कॉम्बिनेशन...जैसे मेरा और तुम्हारा प्यार...जैसे चांदनी रात में तुम्हें याद करना...जैसे धूप में खुश हो जाना...जैसे शीशम की डाल के झूले...जैसे बाइक पर बाल खोल कर स्पीडब्रेकर जम्प करना...पतझड़ के बाद वसंत का आना...तुम्हारे फोन का अलग रिंगटोन होना...तुम्हारी हंसी में खुश हो जाना...और मेरी जान...किसी से बहुत बहुत प्यार करना तो उसके साथ हमेशा चोकलेट बाँट के खाना...डार्क चोकलेट भी.
लव यू.

12 March, 2012

The Artist - Echoes of nostalgia

इस फिल्म के बारे में शब्दों में कुछ भी कहना नामुमकिन है...ये बस ये यहाँ सहेज रही हूँ कि इस फिल्म से प्यार हो गया है.

'द आर्टिस्ट' के बारे में बहुत कौतुहल था...ये एक मूक-फिल्म है...श्वेत-श्याम...फिल्म की ख़ामोशी आपको अपने अंदर उतरने का मौका और वक्त देती है. जैसे जैसे परदे पर फिल्म चलती है वैसे वैसे आप भी अपनी एक जिंदगी जीते रहते हैं. फिल्म में डायलोग नहीं हैं तो अधिकतर आप या तो लिप रीड करेंगे या अंदाज़ लगाएंगे कि क्या कहा जा रहा है...इस तरह फिल्म उतनी ही आपकी भी हो जाती है जितनी डायरेक्टर की. फिल्म ऐसी है जैसा प्रेम/इश्क मैं करना चाहती हूँ...जिसमें शब्दों की कोई जगह न हो...बहुत सा संगीत हो...उजले और काले रंग हों और बहुत से खूबसूरत ग्रे शेड्स...मुस्कुराहटें...अदाएं और बहुत सारी खुशियाँ.

फिल्म मुझे बचपन के उस मूक प्रेम की याद दिलाती है जिसमें आपने कभी खुद को व्यक्त नहीं किया क्यूंकि समझ भी नहीं आ रहा था कि प्रेम जैसा कुछ पनप रहा है. डायलोग के हजारों सबसेट होते हैं पर आपका मन वही डायलोग सोचता है जो आपकी जिंदगी का intrinsic हिस्सा है. फिल्म इस तरह आपके साइकी(Psyche) में शामिल हो जाती है...ये सिर्फ परदे पर नहीं चलती...पैरलली एक फिल्म आपके मन के परदे पर भी चलने लगती है जिसमें कुछ मासूम स्मृतियाँ बिना मांगे अपनी जगह बनाती चली जाती हैं. 

मैं फिल्म देखने अकेले गयी थी नोर्मल सा वीकडे था...पीछे की कतारें भरी हुयी थी मगर आगे की लगभग छह कतारें खाली ही थी...मैं वहां बीच में बैठी...फिल्म जैसे हर तरफ से आइसोलेट कर रही थी...और मैं सारे वक़्त मुस्कुरा रही थी. मन में उजाला भर जाने जैसा...मूक फिल्म होने के कारण हर लम्हा लगा कि मैं भी फिल्म का हिस्सा हूँ...यहाँ सीट पर नहीं बैठी हूँ...वहां हूँ परदे पर...फिल्म के किरदारों के बेहद पास...उनकी हंसी को सुनती हुयी...वो हंसी जो परदे के इस पार नहीं आई पर परदे के उस तरफ है. फिल्म आपके सोचने के लिए परदे के जितना बड़ा ही कैनवास देती है. इस कैनवास में बहुत से लोगों के लिए जगह होती है. अगर कम्पेयर करें तो फिल्म एक परदे पर चलने वाला भाषण नहीं बल्कि एक दोस्त के साथ किसी खूबसूरत पार्क में टहलना है...जहाँ आप कुछ बातें कहते हैं, कुछ सुनते हैं...और मन में संगीत बजता है.


फिल्म आपके मन के अन्दर उतर जाती है...दबे पांव...सीढ़ियों पर...किरदार...एक्टिंग सब. जोर्ज वैलेंटिन से प्यार न हो असंभव है...जब पहली बार Gone विथ द विंड देखी थी तो रेट बटलर से प्यार हो गया था...जार्ज वैलेंटिन वैसा ही किरदार है...जिसे आप पहली नज़र में पसंद करने लगते हैं. फिल्म का सीन जहाँ पहली बार पेगी उससे टकराती है में उसका किरदार इतना खूबसूरती से उभर कर आया है कि आप मुस्कराहट रोक नहीं सकते. फिल्म का वो हिस्सा जहाँ पेगी  एक साइड आर्टिस्ट है और उसका छोटा सा रोल है जिसमें उसे वैलेंटिन के साथ छोटा सा डांस करना है...सीन में उनकी केमिस्ट्री इतने बेहतरीन तरीके से उभर कर आती है...सीन के हर रीटेक के साथ आप भी प्यार में गहरे डूबते जाते हो. पहली बार महसूस होता है कि प्यार इसके सिवा कुछ नहीं है कि आप उस एक शख्स के साथ हँस रहे हो.

वैलेंटिन की मुस्कराहट...उसके चेहरे के हावभाव बिना शब्दों के कितना कुछ कहते हैं ये अगर ये फिल्म न बनती तो कभी जान नहीं पाती...मैं फिल्म निर्देशक Michel Hazanavicius की शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने आज के दौर में ऐसी फिल्म बनायीं जिसमें संगीत और कुछ डायलोग बोर्ड्स की मदद से इतनी खूबसूरत कहानी बुनी है जो फिल्म देखने के कई दिनों बाद तक साथ रहती है.

सादी सी कहानी एक मूक फिल्मों के कलाकार के जीवन पर बनी हुयी...उसके आसमान पर छाये होने के दिन और फिर फिल्मों में आवाज़ के आने के बाद उसके मुफलिसी के दिन...इन सबके बीच वैलेंटिन खोया हुआ सा...कुछ वैसा ही लगता है जैसे कभी कभार आज की भागती दौड़ती दुनिया में खुद को पाती हूँ...मिसफिट...कि चारों तरफ बहुत शोर है...बहुत लोग हैं...और हम अपने घर में अकेले हैं...पुरानी यादों की रील के साथ...फिल्म के अंत में बहुत थोड़ा सा हिस्सा है डायलोग का...पर वो ऐसे चकित करता है कि मारे ख़ुशी के आँख भर आती है. वैलेंटिन का एक ही डायलोग है...With pleasure...फ्रेंच एक्सेंट में...मुझे लगा था कि डायलोग फ्रेंच में ही है...पर अभी चेक किया तो देखती हूँ कि इंग्लिश में था. ओह...उसकी आवाज़ सुनना ऐसा था जैसे पूरी जिंदगी किसी की आवाज़ के लिए तरस रहे हों...पर उसे कह भी नहीं सकते...और ठीक जब आप जिंदगी और मौत के बीच की रौशनी वाली जगह पर हों...उसने 'आई लव यू' कह दिया हो.

फिल्म 1.33 :1 के ऐस्पेक्ट रेशियो पर बनी है...हाल में इसपर ध्यान गया कि परदे पर स्क्वायर सी फील आ रही है...वो एक दूसरी ही दुनिया थी जब तक परदे पर फिल्म चल रही थी...मैं उसमें पूरी तरह खोयी हुयी थी...जानती हूँ कि मैंने ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है जो कहीं से भी इस फिल्म को जस्टिफाय करता है...मगर मेरे पास कहने को इतना भर ही था. अगर आपने ये फिल्म नहीं देखी है तो इसे किसी भी हाल में देख कर आइये...घर पर टीवी में देखने वाली ये फिल्म नहीं है...इसके हॉल में देखना जरूरी है. एक गुज़रे हुए दौर की याद दिलाती ये फिल्म हद तरीके से नोस्टालजिक करती है.


---
बाकी यहाँ उस रात आकर जो जरा कुछ इधर उधर लिखा था...यहाँ रख देती हूँ...


Capturing a moment. The credit roll at the end of the movie The Artist.
Hopefully I'll somehow be able to put to words the feelings the movie evoked in me. 
It's like that love story I would like to be a part of...wherein there is music and laughter and you understand me even without the words...just a little smile and a flying kiss that always manages to reach you...no matter how far you are. 
To every single person who has brought me joy in my silences. I just sat there overwhelmed. Brimming with love. The way I am when I am with you. 
Some day maybe what I'll write will be coherent too right now I feel pretty intoxicated.
George Valentin I love you. ♥ ♥ 

---
Sleeptyping. Again. Hopeless case. 
I want to see The artist again. 
Valentin reminds me of Rhett Butler. Seeing him onscreen has given me enough heartache to kill several of my nights.


You cannot not fall in love with Valentin :) 

भीगे कैनवास पर पेंटिंग

हैरी पोटर हीरो है...सिर्फ इसलिए नहीं की वो बहादुर है और मौत के सामने भी हिम्मत रखता है...इसलिए भी नहीं कि वह वोल्डेमोर्ट के खिलाफ अकेला खड़ा होता है...वो ये सब है...मगर इन सबके साथ वो एक एकलौता लड़का भी है जिसके कंधे पर सर रख कर मैं सबसे ज्यादा रोई हूँ...मैं जानती हूँ कि वो समझता है क्यूंकि उसने भी अपनी माँ को खो दिया है...ये बात हमेशा उस किताब में नहीं आती...पर जब भी आती है मैं जानती हूँ कि वो कैसा महसूस कर रहा होगा. हर परेशानी के बावजूद वो इस बात का ध्यान रखता है कि उस फंतासी की दुनिया में मेरा हाथ उससे कभी न छूटे. जे के रोलिंग के बहुत से फैन्स हैं...पर मेरा शुक्रिया एकदम अलग है...हर एक किताब दुनिया में इसलिए आती है कि कहीं उसे पढ़ने के लिए कोई पैदा हुआ है...

IIMC का दूसरा सेमेस्टर चल रहा था. पहले सेमेस्टर में जो ग्रुप था अब वो ग्रुप नहीं था तो उस समय के दोस्तों के साथ वक़्त नहीं मिल पाता था. ऐसे में मोलोना से कभी कभार बात हो पाती थी...ऐसी ही एक रात उसके कमरे में बैठी थी...कोई सुबह के चार बज रहे होंगे. उसके सिरहाने हैरी पोटर की किताब थी...हमेशा की तरह. मैंने पूछा 'Why do you read this book Molo?'. उस समय तक का नियम था कि किसी भी बहुचर्चित किताब को नहीं पढूंगी...जिस किताब को अवार्ड मिला है नहीं पढूंगी...पढूंगी बस वो किताब जिसे छूने पर, पन्ने पलटने पर पढ़ने का मन करे. इसी कारण कभी हैरी पोटर नहीं पढ़ी थी कि सारे लोग पढ़ रहे थे...मोलो ने कहा कि तुम इसके चार पन्ने पढो...और अगर उसके बाद जो तुम्हारा मन करे...मैंने पढ़े चार पन्ने और फिर किताब अपने कमरे में ले गयी...मोलोना ने फिर और चार किताबें दीं पढ़ने के लिए...वो नहीं होती तो मेरी जिंदगी में हैरी पोटर नहीं होता...इन किताबों में उसका असीम प्यार भी उमड़ता है...कुछ अच्छा हुआ तो मेरे साथ बांटने का प्यार...चाहे वो किताबें हों, रात को गर्म पानी या फिर बॉयफ्रेंड का दिया डार्क चोकलेट. मुझे जानने वाले समझते हैं कि चोकलेट शेयर करने से बड़ी दोस्ती मैं इस दुनिया में नहीं जानती. मोलो के कारण ही मैं फेसबुक पर आई...वो कहीं और थी ही नहीं...दो साल तक उसका कोई पता नहीं...आखिर मुझे ही झुकना पड़ा...सिर्फ उस एक लड़की के लिए मैं फेसबुक पर हाज़िर थी.

परसों स्कूल की मेरी बेस्ट फ्रेंड का फोन आया...स्मृति के बाद एक उसको ही बेस्ट फ्रेंड की पदवी से नवाज़ा था...और उसे चिट्ठियां लिखी थीं...दो साल तक. वनस्थली के उस जंगल में मेरी चिट्ठियां...शायद रेगिस्तान का रास्ता तब से ही देख रखा था...उसकी चिट्ठियां धूलभरी आतीं...एकदम उजाड़, सुनसान...खडूस वार्डन और बुरी लड़कियों के किस्से...वहां दूर दूर तक कोई ख़ुशी नहीं दिखती. हमारी चिट्ठियों में एक्जाम के भूत का भयानक साया रहता...मेरा भी 12th बुरा बीता था...एक तो गर्ल्स स्कूल...उसपर टीचर किसी करम के नहीं...उसपर लाइब्रेरी फ्राईडे को कि जब सारी अच्छी किताबें जा चुकी हों...जिंदगी एकदम बेरंग...बस चिट्ठियां थीं और डाकिया था कि जिंदगी में कुछ जीने लायक था.

मुझे पढ़ी हुयी चीज़ें तब तक याद नहीं रहतीं जब तक उनमें मुझे अपनी जिंदगी के किसी लम्हे का अक्स न दिख जाए...चाहे मेरी तन्हाई हो या मेरी मुस्कराहट...मुझे जो चीज़ें पसंद आती हैं पागलों की तरह पसंद आती हैं. मुझे बीच का रास्ता नहीं आता...प्यार करती हूँ तो एकदम मर जाउंगी जैसा...दोस्त अगर वाकई में माना है तो जान हाज़िर है...तुम्हारी हर परेशानी मेरी...तुम्हारे सारी खुशियाँ मेरी अपनी...और एक बार दिल टूट जाता है तो फिर जिंदगी में जुड़ नहीं पाता. अब तक ब्लॉग जितना जितना भी पढ़ा है..कुछ लोग हैं जिनसे कभी एक बार मिलने का मन है...बस एक बार...छू के देखने भर के लिए...न ना...इतने भर के लिए नहीं...एक बार बाँहें गले में डाल कर ये कहने के लिए...कि तुम्हारे लिखे के बदले जान मांग लो...कुर्बान जाएँ...दुआओं सा लिखते हो दोस्त...दुआओं सा. खुदा तुम्हारी कलम को मुहब्बत बक्शे.
You are my hero! (Call me sexist but no women here ;) )


Cheers to Harry Potter, Molona, Anshu, and my beloved writers...you know who  you are :) :)
I love you. 

06 March, 2012

Wordpress audio player on blog/ ब्लॉग पर वर्डप्रेस ऑडियो प्लेयर

आज की इस पोस्ट में हम सीखेंगे कि वर्डप्रेस ऑडियो प्लेयर को ब्लॉग में कैसे इन्टीग्रेट करते हैं. पोस्ट थोड़ी टेक्नीकल है तो हम पहले आगाह किये देते हैं कि आप इसे पढ़ कर वक़्त बर्बाद न करें :)

हमें पिछले कुछ दिनों से पोडकास्टिंग का कीड़ा काट रहा है...तो गाहे बगाहे हम कुछ न कुछ पोडकास्ट करते रहते हैं. पोडकास्ट होस्ट करने के लिए डिवशेयर का इस्तेमाल करते हैं पर डिवशेयर का प्लेयर मुझे खास पसंद नहीं आता...थोड़ा क्लटर ज्यादा है उसमें...वैसे तो जितने ऑनलाइन प्लेयर दिखे हैं मुझे...सबसे नीट यही है फिर भी उतना अच्छा नहीं लगा. वर्डप्रेस का ऑडियोप्लेयर का लेआउट  एकदम क्लीन है...इसे आप अपने ख़ास गाने भी ब्लॉग पर पोस्ट करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.

कल सुबह मूड हुआ कि इसे ब्लॉग पर चिपकाया जाए...सोचा नहीं था कि इतना मुश्किल होगा. सुबह कुणाल ऑफिस गया तब बैठे लैपटॉप लेकर कि एक आधे घंटे में निपटा के खाना वाना खा लेंगे. मगर आधा एक घंटा बढ़ते बढ़ते शाम के पांच बज गए...न खाया था कुछ पिया था...जिद्दी हूँ एक नंबर की...जब तक करुँगी नहीं कुछ और काम में मन ही न लगे. कुछ दोस्तों से पूछा भी पर जावास्क्रिप्ट नहीं आता था उन्हें.

मैं किसी टोपिक के पीछे पड़ती हूँ तो फिर कुछ बाकी नहीं छोड़ती...कल जावा स्क्रिप्ट पढ़ भी ली...पूरा का पूरा कोड पढ़ के देखा...सिंटेक्स एरर इतने सालों बाद स्क्रीन पर दिखा पर डिबग नहीं हो पाया मुझसे. फिर मुझे लग रहा था कि कितना सिंपल तो है...पूरा कोड दिख रहा है तो हो क्यूँ नहीं रहा. शाम होते चक्कर आने लगे...मूवी देखने का मूड था 'द आर्टिस्ट' शाम के छः बजे का शो था...वो भी मिस कर दिया. जब कुछ नहीं काम हो रहा था तो सोचा कि नहा लेते हैं...शैम्पू करने के बाद अक्सर मेरा मूड बदल जाता है. तो शैम्पू किया...फिर एक बहुत अजीज दोस्त से बात की...उससे बात करके मूड अच्छा हुआ...फिर बाइक उठा के घूमने निकल गयी. रात को छोटे भाई को मेल लिखी कि दिक्कत हो रही है...थोड़ा देख दो.

और सुबह देखती हूँ जिमी का मेल आया हुआ है...प्यारा सा मेल और उसके टेस्ट ब्लॉग का लिंक जहाँ साउंड फ़ाइल प्ले हो रही थी...मारे ख़ुशी के आँखों में आंसू आ गए...गर्व से सर तन गया कि वाह...मेरा छोटा सा भाई इतना होशियार हो गया :) बहुत अच्छा लगा बहुत बहुत.

ये तो हुआ फिल्म का सेंटी हिस्सा...अब मुद्दे पर आते हैं :)

2. create a new page
1. आपको एक फ़ाइल होस्टिंग साईट की जरूरत पड़ेगी...चूँकि आप ब्लोगर इस्तेमाल करते हैं तो सबसे आसान होगा गूगल साइट्स पर अपनी वेबसाईट बनाना. इसलिए लिए यहाँ जाएँ-  https://sites.google.com/
2. जब आपकी वेबसाईट बन जाए तो इसमें एक नया पेज बनाएं...जैसे कि मैंने बनाया है ऑडियो...पेज के राईट साइड के ऊपर कोर्नर में ये जो पेज में प्लस का बटन दिख रहा है उसको दबाने से नया पेज बन जाता है. मैंने इसे नाम दिया है audio.
आपको जरूरत पड़ेगी तीन फाइलों की. एक जावास्क्रिप्ट (.js)की फ़ाइल है, एक फ्लैश प्लेयर(.swf) है और एक mp3 जो कि आपका म्यूजिक है जिसे प्ले करने के लिए हम इतना ड्रामा कर रहे हैं. आपका पेज कुछ ऐसा दिखेगा... https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio इसकी हमें आगे जरूरत पड़ेगी. 

3. जावास्क्रिप्ट की फ़ाइल और फ्लैश प्लेयर मैंने अपनी साईट पर अपलोड कर दिया है...आप वहां से डाउनलोड कर लीजिये. यहाँ https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio

दूसरा तरीका है इन्हें वर्डप्रेस के साईट से डाउनलोड करना http://wpaudioplayer.com/download/ यहाँ से Standalone पर क्लिक कीजिये...जिप फ़ाइल को अनलोक कीजिए. फोल्डर में पहली और आखिरी फाइल की जरूरत है आपको. 'audio-player' and 'player'.
3. download/upload files

4. अपने वेबपेज पर ऐड फाइल्स पर क्लिक कीजिये और audio-player.swf और player.js अपलोड कर दीजिये. ये कुछ ऐसा दिखेगा. अब अपनी mp3 फ़ाइल भी यहाँ अपलोड कर लीजिये.

५. अब हमें जरूरत है ब्लॉग के html में एक छोटा सा कोड डालने की...इसलिए लिए ब्लॉग डैशबोर्ड में जायें और टेम्पलेट सेलेक्ट करें. पहले अपने ब्लॉग टेम्पलेट का बैकप ले लीजिये...इसके लिए टॉप राईट कोर्नर में जो backup/restore button है उसे क्लिक करें. फिर एडिट html पर क्लिक करें.

6.  cntrl+f से head ढूँढिये...उसके ठीक पहले ये एक लाइन का कोड चिपकाना है.

<script language='JavaScript' src='https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio/audio-player.js'/>

इस कोड में जो हिस्सा ब्लू में है...उसकी जगह आप अपनी साईट का url डालिए. (go to no. 2). Replace only the part highlighted in blue...ऑडियो के बाद का हिस्सा /audio-player.js'/> को वैसा ही रहने दीजिये. 

अब टेम्पलेट सेव कर लीजिये. 

7. html का दूसरा कोड...इसमें आपको तीन लिंक बदलने हैं...

<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<object data="https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio/player.swf" height="24" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="290">
<param name="movie" value="https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio/player.swf">
<param name="FlashVars" value="playerID=audioplayer1&soundFile=https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio/Enya-OnlyTime.mp3">
<param name="quality" value="high">
<param name="menu" value="false">
<param name="wmode" value="transparent">
</object> 

सिर्फ वो हिस्सा रिप्लेस कीजिये जो नीले रंग में बोल्ड है...बाकी एक्सटेंशन वैसे ही रहने दीजिये. /player.swf

mp3 की लिंक की जगह आपके गाने का जो नाम  है वो लिखिए...कृपया ध्यान से नोट कीजिये ये वही होना चाहिए जो आपकी फ़ाइल का नाम है. जैसे मेरे गाने का नाम था 'Enya-OnlyTime'
लिंक: https://sites.google.com/site/pujaupadhyaykislay/audio/Enya-OnlyTime.mp3 

मान लीजिये आपके गाने का नाम है 'piya basanti' तो जब आप फाइल अपलोड कर रहे हैं उसके पहले ही फाइल के नाम से स्पेस डिलीट कर दीजिये...'piyabasanti' वैसे तो दिक्कत नहीं आ रही है...पर कभी कभी स्पेस के कारण फ़ाइल नहीं दिखा रहा है. 
link: https://sites.google.com/site/yoursitename/audio/piyabasanti.mp3

8. अब नयी पोस्ट लिखिए...जो भी आप लिखते हो, अच्छा बुरा, प्यारा जो भी...लिख लीजिये...अब कंपोज के बगल में जो लिंक है...html उसको क्लिक कीजिये...कीड़े मकोड़े जैसी बहुत सी लाइंस आ जायेंगी :) इसमें सबसे नीचे स्क्रोल कीजिये और वहां ये ऊपर वाला कोड चिपका दीजिये. इससे प्लेयर पोस्ट के नीचे आएगा. अगर प्लेयर कहीं और प्लेस करना है तो कर्सर को वहां पर रखिये जहाँ प्लेयर चाहिए और html पर क्लिक कीजिये...और उधर ही कोड चिपका दीजिये. 

9. अब कहिये...पूजा तुम सबसे अच्छी हो. :) :) मुस्कुराइए. 

10. Publish :)



05 March, 2012

हिज्र का मौसम. दसविदानिया.

उसमें मेरी कोई गलती नहीं थी...पर वैसा पागलपन, वैसी शिद्दत, वैसी बेकरारी...वो जो मेरे अन्दर एक लड़की जी उठी थी जाने कैसे तुम्हारे प्यार की एक छुअन से...वो लड़की जो जाने कितने पर्दों में मैंने छुपा के रखी थी तुमने उसकी आँखों में आँखें डाल बस एक बार कहा की तुम उससे प्यार करते हो और वो तुम्हारी हो गयी थी...मन को जितना बाँधा मन उतना ही भागता गया तुम्हारे पीछे...पर तुम कोई पास तो थे नहीं...तो दौड़ते दौड़ते लड़की के कोमल पांवों में छाले पड़ गए...उसका दुपट्टा कंटीली झाड़ियों में लग के तार तार हो गया...अँधेरे में तुम्हें तलाशने के लिए उसने एक दिया जलाया तो सही पर उसकी आंच से उसकी आँखों के सारे आंसू भाप हो गए...मैंने उस लड़की को वैसे नहीं रचा था...उसे तुमने रचा था.

जो लोग कहते हैं की रो लेने से आराम मिलता है झूठ कहते हैं...कुछ नहीं होता रोने से अगर रोने से तुम उठ के आंसू पोछने नहीं आते हो...आराम रोने से नहीं, उसके बाद तुम्हारी बांहों में होने से होता है...पर जाने दो...तुम नहीं समझोगे...ये कहते हुए लड़की रोज खुद को समझाती थी और दिन भर फर्श पर लेटी जाने क्या सोचती रहती थी...उसे खुद को समझाना आता भी नहीं था. शाम होते तुम्हारी याद के काले बादल घिरते थे और उसका कमरा सील जाता था...तुम्हारा नाम उसकी विंड चाइम पुकारती थी, हलके से. बस...बाकी लड़की ने सख्त हिदायत दे रखी थी की तुम्हारा कोई नाम न ले.

लड़की को यूँ तो धूप बहुत पसंद थी...पर तुम तो जानते ही हो...धूप में अगर गीले कपड़े डाल दो तो उनका रंग उतर जाता है...वैसे ही कमरे में धूप आती थी तो लड़की की आँखों का रंग उड़ा कर ले जाती थी. हर रोज़ एक शेड उतरता जाता था उसकी आँखों का...वो थी भी ऐसी पागल कि धूप की ओर पीठ नहीं फेरती, आँखें खोले खिड़की के बाहर देखती रहती जहाँ इकलौता अमलतास वसंत के आने पर उसका हाथ पकड़ बुलाना चाहता था. अमलतास ने कितना चाहा उसके फूलों का कुछ रंग ही सही लड़की की आँखों में बचा रहे मगर ऐसा हुआ नहीं. कुछ दिनों में लड़की की आँखों में कोई रंग नहीं बचा...शायद तुम उसे देखो तो पहचान भी न पाओ.

लड़की नर्म मिटटी सी हो गयी थी...बारिश के बाद जिसमें धान की रोपनी होती है...मगर पिछले कुछ दिनों में बारिश और कड़ी धूप आती जाती रही तो लड़की किले की दीवार सी अभेद्य हो गयी. सिर्फ कठोर ही नहीं हुयी वो...वैसा होता तो फिर भी कुछ उपाय था...लड़की के अन्दर जो हर खूबसूरत चीज़ को जीवन देने की क्षमता थी वो ख़त्म हो गयी और उसकी प्रकृति बदल गयी...पहले उसे हर चीज़ को सकेरना आता था, सहेजना आता था...अब उसे बस आत्मरक्षा समझ आती है...सिर्फ इंस्टिंक्ट बची है उसमें...जो बाकी भावनाएं थी...अब नहीं रहीं...परत दर परत वो जो खुलती थी तो नए रंग उभरते थे...अब बस एक फीका, बदरंग सा लाल रंग है...उम्र के थपेड़ों से चोट खाया हुआ.

लड़की का पागलपन कर्ण के कवच कुंडल की तरह था...वो उनके साथ ही पैदा हुयी थी...हमेशा से वैसी थी...उसे किसी और तरह होना नहीं आता था. मगर उसे ये नहीं मालूम था कि ऐसा पागलपन उसके खुद के लिए ऐसा घातक होगा कि आत्मा भी चोटिल हो जाये. लड़की खुद भी नहीं जानती थी कि वो अपनाप को कितना दुःख पहुंचा सकती है...उसे कहाँ मालूम था कि प्यार ऐसे भी आता है जिंदगी में...दर्द में जलना...जलना जलना...ऐसी आग जिसका कहीं कोई इलाज नहीं था...ये ताप उसका खुद का था...ये दावानल उसके अन्दर उठा था...वहां आग बुझाने कोई जा नहीं सकता था...तुम भी नहीं, तुम तो उसका कन्धा छूते ही झुलस जाते...और वो पगली ये जानती थी, इसलिए तुम्हें उसने बुलाया भी नहीं.

ओ रे इश्क माफ़ कर हमको...उम्र हुयी...अब तेरी उष्णता नहीं सही जाती...रहम कर इस बेदिल मौसम पर...पूरे मोहल्ले में वसंत आया है और मेरा महबूब बहुत दूर देश में रहता है. वो जो लड़की थी, वो कोई और थी...बहुत रो कर गयी है दुनिया से...और हम...मर कर दुबारा जिए हैं...और कुछ भी मांग लो...पर वैसा प्यार हमसे फिर तो न होगा. अबकी बार अंतिम विदा...अब जाके आना न होगा.





लड़की अब भी तुमसे बहुत प्यार करती है...बस पागलपन कम हो गया है उसका...दुनिया की निगाह से देखो तो लगेगा ठीक ही तो है...ऐसा पागलपन जिससे उसे दुःख हो...कम हो गया तो अच्छी बात है न...पर जानते हो...मुझसे भी पूछोगे न तो वही कहूँगी जो तुम्हारा दिल कहता है...मैं भी उस लड़की से बहुत प्यार करती थी जो तुमसे पागलों की तरह प्यार करती थी. 




04 March, 2012

पान सिंह तोमर- जैसी कहानी होनी चाहिए

पान सिंह तोमर...इसके प्रोमो देखे थे तब ही से सोच रखी कि फिल्म तो देखनी ही है...पर सोच रही थी अकेले देखने जाउंगी कुणाल या फिर बाकी जिन दोस्तों के साथ फिल्में देखती हूँ शायद उन्हें पसंद न आये...ये पलटन क्या...अधिकतर लोगों का फिल्मों के प्रति आजकल नजरिया है कि फिल्में हलकी-फुलकी होनी चाहिए...जिसमें दिमाग न लगाना पड़े. हफ्ते भर ऑफिस में इतना काम रहता है कि वीकेंड पर कहीं दिमाग लगाने का मूड नहीं रहता. ब्रेनलेस कॉमेडी हिट हो जाती है और अच्छी फिल्में पिछड़ जाती हैं. अफ़सोस होता है काफी...मगर उस पर फिर कभी.


पान सिंह तोमर एक बेहतरीन फिल्म है...इसे देख कर प्रेमचंद की याद आती है...सरल किस्सागो सी कहानी खुलती जाती है...बहुत सारे प्लोट्स, लेयर्स नहीं...सीधी सादी कहानी...और सादगी कैसे आपको गहरे झकझोर सकती है इसके लिए ये फिल्म देखनी जरूरी है. बहुत दिन बाद किसी फिल्म को देखते हुए आँख से आंसू टपक रहे थे...आँखें भर आना हुआ है पहले भी मगर ऐसे गहरे दर्द होना...उसके लिए एक लाजवाब निर्देशक की जरूरत होती है. तिग्मांशु धुलिया किस्से कहने में अपने सारे समकालिक निर्देशकों से अलग नज़र आते हैं. सीधी कहानी कहना सबसे मुश्किल विधा है ऐसा मुझे लगता है. फिल्म का सहज हास्य भी इसे बाकी फिल्मों से अलग करता है.

एक अच्छी फिल्म के सभी मानकों पर पान सिंह तोमर खरी उतरती है, पटकथा, निर्देशन, एक्टिंग, एडिटिंग और लोकेशन.  बेहतरीन पटकथा, एकदम कसी हुयी...कहीं भी फिल्म ढीली नहीं पड़ती, हर किरदार की तयशुदा जगह है, यहाँ कोई भी सिर्फ डेकोरेशन के लिए नहीं है...चाहे वो पान सिंह की पत्नी बनी माही गिल हो या कि उसका बेटा. डायलोग में आंचलिक पुट दिखावटी नहीं बल्कि स्क्रिप्ट में गुंथा हुआ था तो बेहद प्रभावशाली लगा है. 


कास्टिंग...अद्भुत...इरफ़ान एक बेहतरीन कलाकार हैं...चाहे डायलोग डिलीवरी हो या कि बॉडी लैंग्वेज. कहीं पढ़ा था कि एक धावक के जैसी फिजिक के लिए इरफ़ान ने बहुत मेहनत और ट्रेनिंग की थी...फिल्म में उनके दौड़ने के सारे सीन...चाहे वो पैरों की कसी हुए मांसपेशियां हों कि बाधा पर घोड़ों के साथ कूदने का दृश्य...सब एकदम स्वाभाविक लगता है. पान सिंह एक खरा चरित्र है...जैसे हमारे गाँव में कुछ लोग होते थे...मन से सीधे...कभी कभी गंवार...उसे बात बनानी नहीं आती...सच को सच कहता है. फिल्म का सीन जब अपने वरिष्ठ अधिकारी से बात कर रहा है तो संवाद अदायगी कमाल की है...'देश में तो आर्मी के अलावा सब चोर हैं' या फिर शुरुआत का पहला सीन जो ट्रेलर में भी इस्तेमाल किया गया है 'बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत तो पार्लियामेंट में पाए जाते हैं'. एक्टिंग के बारे में एक शब्द उभरता है 'टाईट एक्टिंग किया है'.

तिग्मांशु को क्रेडिट जाता है कि ऐसी अलग सी कहानी उन्होंने उठाई तो...देश में क्रिकेट के अलावा सारे स्पोर्ट्स की बुरी स्थिति है...ओलम्पिक में जीतने वाले हमारे एथलीट्स को किसी तरह का कोई संरक्षण नहीं है...फिल्म देख कर इसका सच तीर की तरह चुभता है कि जब आप जानते हो कि बागी सिस्टम बनाता है. फिल्म में निर्देशक न्यूट्रल है...वो कहीं किसी को अच्छा बुरा नहीं कहता...खाके नहीं खींचता. फिल्म कहानी कहती है...पान सिंह तोमर की...कैसे वो पहले फौज में थे, कैसे खेल में पहुंचे और कैसे आखिर में बागी हो गए...फिल्म किस्सागोई की परंपरा को एक कड़क सैल्यूट है.

मैं रिव्यू इसलिए लिख रही हूँ कि ऐसी फिल्में देखी जानी चाहिए ताकि ऐसी और फिल्में बनें...साल में कम से कम कुछ तो ऐसी फिल्में आयें कि देख कर लगे कि फिल्म बनाने वाले लोग सोचते भी हैं. वीकेंड है...आपके पास फुर्सत है...तो ये फिल्म जरूर देख कर आइये...निराश नहीं होएंगे.


मेरी ओर से फिल्म को ४/५ स्टार्स.

03 March, 2012

फिगरिंग मायसेल्फ आउट

लिखो. काटो. लिखो. काटो.
लिखना जितना जरूरी है काटना भी उतना ही जरूरी है...लिख के मिटाओ मत...पेन्सिल से मत लिखो कि पेन्सिल की कोई याद बाकी नहीं रहती...इरेजर बड़ी सफाई से मिटाता है...जैसे कि गालों से पोछती हूँ आंसू...तुम्हें सामने देख कर...नहीं सामने कहाँ देखती हूँ...इन्टरनेट पर देख कर ही...तुम जब तस्वीरों में हँसते दिखते हो...बड़े भले से लगते हो...मैं अपनी बेवकूफी पर हंसने लगती हूँ. बहुत मिस करती हूँ दिल्ली का वक़्त जब सारे दोस्त साथ में थे...

कल दो अद्भुत चीज़ें देखीं...Lust for life...Van Gogh की जिंदगी पर बनी फिल्म देखी और गुरुदत्त पर एक किताब पढ़ी...गुरुदत्त जब २८ साल के थे उन्होंने प्यासा का निर्माण किया था...अबरार अल्वी २६ के...सोच रही हूँ उम्र के सींखचों में लोगों को बांटना कितना सही है...क्या उन्हें मालूम था कि जिंदगी बहुत थोड़ी है...क्या उन्होंने शिद्धत से जिंदगी जी थी. अजीब हो रखी है जिंदगी भी...गुरुदत्त की चिठ्ठियाँ पढ़ती हूँ, लगता ही नहीं है कि इस शख्स को गए इतने साल हो गए...लगता है ये सारे ख़त उसने मुझे ही लिखे हैं...कुछ हिंदी में, कुछ इंग्लिश में और कुछ बंगला में...ताकि मेरी बांगला थोड़ी अच्छी हो सके. प्रिंट हुए पन्नों से एक पुरानी महक महसूस होती है. इस बार दिल्ली गयी थी तो स्मृति ने एक चिट्ठी दिखाई जो मैंने उसे ९९ में लिखी थी...उसने मेरी कितनी सारी चिट्ठियां सम्हाल के रखी हैं...मेरे हिस्से तो बस इंतज़ार और उसे ढूंढना आया...कितने सालों उसे तलाशती रही...तब जबकि उसे लगता था कि मैं उसे भूल गयी हूँ...कैसा इत्तिफाक था न...फ़िल्मी कि दुनिया के दो हिस्सों में हम दोनों अलग अलग तरह से एक दूसरे को याद करना और सहेजना कर रहे थे. 


कल की किताब का नाम था 'Ten years with Guru Dutt...Abrar Alvi's journey' लेखक का नाम सत्य सरन है...मुझे सारे वक़्त समझ नहीं आया कि किताब इंग्लिश में क्यूँ थी...हिंदी में क्यूँ नहीं. बैंगलोर में होने के कारन बहुत सी चीज़ें मिस हो जाती हैं...उसमें सबसे ज्यादा खोया है मेरा किताबें ढूंढना...दिल्ली में सीपी में किताबें खरीदने का अपना मज़ा था...अनगिन किताबों को देखना, छूना, उनकी खुशबू महसूसना और फिर वो किताब खरीदना जिसने हाथ पकड़ कर रोका हो. गुरुदत्त पर ये किताब बहुत अच्छी नहीं थी...पर कहानियां बेहद दिलचस्प थीं...अबरार अल्वी की नज़र से गुरुदत्त को देखना बहुत अच्छा लगा. गुरुदत्त मुझे बहुत फैसीनेट करते हैं...उनपर लिखा हुआ कुछ भी देखती हूँ तो खरीद लेती हूँ अगर पास में पैसे रहे तो. गुरुदत्त की चिट्ठियों की किताब एक दिन ऐसे ही दिखी थी...थोड़ी महँगी थी...मंथ एंड चल रहा था...सोची कि सैलरी आने पर खरीद लूंगी...फिर वो किताब जो गायब हुयी तो लगभग दो साल तक लगातार हर जगह ढूँढने के बाद मिली.


गुरुदत्त भी बहुत सारे रीटेक लेते थे...प्यासा के बारे में पढ़ते हुए वोंग कर वाई याद आये...उनकी भी 'इन द मूड फॉर लव' ऐसे ही बिना स्क्रिप्ट के बनी थी...फिल्म किरदारों के साथ आगे बढती थी...सोचती हूँ...किसी की भी जिंदगी के रशेस ले कर कोई अच्छा डाइरेक्टर एक बेहतरीन फिल्म बना सकता है. किसी भी से थोड़ा पर्सनल उतरती हूँ...अपनी जिंदगी के पन्ने पलटती हूँ...कई बार लगता है कि ऊपर वाला एक अच्छा निर्देशक है पर एडिटर होपलेस है...उसे समझ नहीं आता कि रोती हुयी आँखें स्क्रीन पर बहुत देर नहीं रहनी चाहिए और ऐसी ही कुछ माइनर मिस्टेक्स पर हम मिल कर काम करेंगे तो शायद कुछ अच्छा रच सकेंगे.


मेरा एक स्क्रिप्ट पर काम करने का मन हो रहा है...पर फिर मुझे रोज एक दोस्त की जरूरत पड़ने लगती है जो मेरा दिन भर का सोचा हुआ सुने...दिल्ली के IIMC के दिन याद आते हैं...पार्थसारथी पर के...कुछ शामें...चाय के कुल्हड़ में डूबे...घास पर अँधेरा घिरने के बाद भी देर तलक बैठे ... अपने-अपने शहरों में गुम कुछ दोस्त...सोचने लगती हूँ कि दोस्तों का कितना बड़ा हिस्सा था मेरे 'मैं' में...कि उनके बिना कितनी खाली, कितनी तनहा हो गयी हूँ. जाने तुम लोगों को याद है कि पर राज, शाम, सोनू, बोस्की, इम्बी...तुम लोग कमबख्त बहुत याद आते हो. विवेक...कभी कभी लगता है थैंक यू बोल के तेरे से थप्पड़ खा लूं...बहुत बार सम्हाला है तूने यार. 


मैं जब मूड में होती हूँ तो एक जगह स्थिर बैठ नहीं सकती फिर मुझे बाहर निकलना पड़ता है...बाइक या कार से...वरना घर में पेस करती रहती हूँ और बहुत तेज़ बोलती हूँ...सारे शब्द एक दूसरे में खोये हुए से. हाथ हवा में घूम घूम कर वो बनाते रहते हैं जो उतनी तेज़ी में मेरे शब्द मिस कर जाते हैं.


दूसरा एक मेजर पंगा है...आई नो किसी और को ये नहीं होता...I need a muse...I need to be madly in love to work on something...फिलहाल कोई आइडिया ऐसा नहीं है कि रातों की नींद उड़ जाए...दिन को सो न पाऊं...हाँ जिस तरह का बिल्ड अप है शायद कोई उड़ता ख्याल आ ठहरे...तब तक इस इन्सिपिड थौट का कुछ करती हूँ. कुछ है जो सी स्टोर्म की तरह मन में भंवरें बना रहा है...


बहुत कुछ है...बहुत कुछ बिखरा हुआ इस खूबसूरत जिंदगी में...लेकिन फ़िलहाल...दोस्त, तेरी याद आ रही है...बंगलौर बहुत दूर है मगर यहाँ सबसे अच्छे कैफे हैं जहाँ धूप का टुकड़ा होता है...खिलते फूल होते हैं...खुनकी लिए हवाएं होती हैं और मैं होती हूँ न...मुस्कुराती, गुनगुनाती...सुन न...एक असाइंमेंट सेट कर न इस शहर का...तेरे से मिलने का मन कर रहा है. बहुत दिन हुए दोस्त!

29 February, 2012

जाने दे यार, शी इज नॉट योर टाईप


जिद्दी लड़की ने 
बालों को दुपट्टे में लपेट कर बाँधा 
और दिन भर की पूरे घर की साफ़ सफाई

पंखों पर के जाले हटाये
डांट के भगाई किताबों पर की सारी धूल
पोछा लगाया सारे कोनों में 
तह कर के रखे अलमारियों में कपड़े 

फेंकने को थीं 
बासी कविताएं
पुरानी कलमें, सूखी दवातें 
मुरझाये फूल, चोकलेट रैपर, बुकमार्क
उसकी ब्लैक एंड वाईट तस्वीर 
बहुत सारी कॉफी शॉप की बिल्स 
पेपर नैपकिंस पर लिखी आधी अधूरी पंक्तियाँ 
इधर उधर पड़ी डायरियों में उसका सिग्नेचर 

कमोबेश हर चादर में अटकी हुयी मिलती थी
उसकी कोई छूटी हुयी अंगडाई 
रूमाल में उसकी उँगलियों के निशान 
वाशिंग पावडर से तेज थी
उसके आफ्टरशेव की खुशबू 

शू रैक में रह गयीं थी 
उसकी फेवरिट रेड चप्पलें 
बाथरूम में तौलिया, टूथब्रश
भाप उठते आईने में उसका अक्स
भीगे बालों को झटकता हुआ

शाम होते वो बेहद थक गयी 
कॉफी के कप पर ठहरे थे 
वोही संगदिल बोसे 
संगमरमर के चमकीले फर्श पर
और भी साफ़ दिखने लगी थीं 
काफ़िर आँखें 

तनहा और उदास लड़की ने 
आखिर जला ही ली 
उसकी छूटी हुयी आखिरी सिगरेट 

धुएं के टूटे छल्लों में 
बनता रहा एक ही सवाल 
इतने गुस्से में गया है
जाने कब वापस आएगा!

---
हालांकि इतना वक़्त काटने के बजाये जान दी जा सकती थी...और इंतज़ार का पासा उसकी तरफ फेंका जा सकता था...रेतघड़ी को उलट कर 'योर टर्न' कहा जा सकता था. 'आई हेट यू' जैसा कोई मेसेज किया जा सकता था...चुप रहने की कसम को निभाया जा सकता था...मगर क्या है न कि वो अपने सीने से लगा कर माथे पर थपकियाँ देते हुए 'शश्शश्श्श....' जैसा कुछ नहीं कह सकता...और लड़की इतनी बुद्धू है कि उसे बस इतना चाहिए पर वो सारे झगड़ों के बाद भी उसे बताती नहीं...हाँ आजकल उसने एक नया शिगूफा पाला है...
बेआवाज़ रोने का... 

24 February, 2012

तुम. मेरे. हो.


तुम्हारे होने से
रेत में खिलती है
बोगनविलिया

तुम्हारे साथ ही
आता है वसंत
और महुआ भी 

तुम्हारी जेब में
मेरी खुशियों की
टाफियां भरी हैं

तुम खोलो मुट्ठी
तुम्हारी लकीरों में
है मेरी मुस्कान 

तुम कहते हो
तुम अच्छी हो
विस्की से भी 

मैं चाहती हूँ
रो दूं अब
काँधे पर. बस 
---

बौराया वसंत मुझे जाने कहाँ कहाँ ढूँढता है...सूखे पत्तों की पीछे झाँकने लगे हैं नए पत्ते...धीमा हो गया है सड़क पर गिरे पत्तों का शोर...हवा तुम्हारा नाम किसी कोटर में भूल आई है...मेरी बाइक में लग गए हैं पंख और मेरा शहर अपने रकीब को सलाम भेजता है...


अब आ भी जाओ कि इस शहर में इससे खूबसूरत मौसम नहीं आता!

शहरयार के बहाने आर्टिस्ट और आर्ट पर...


वो बड़ा भी है तो क्या है, है तो आखिर आदमी
इस तरह सजदे करोगे तो खुदा हो जाएगा 
-बशीर बद्र 

अमृता प्रीतम की रसीदी टिकट का एक हिस्सा है जिसमें वो बयान करती हैं कि उनकी जिंदगी में सिर्फ तीन ही ऐसी मौके आये जब उनके अंदर की औरत ने उनके अंदर की लेखिका को पीछे छोड़ कर अपना हक माँगा था. एक पूरी जिंदगी में सिर्फ तीन मौके...

ऐसा मुझे भी लगता है कि लेखक किसी और दुनिया में जीते हैं...वो दुनिया इस दुनिया के पैरलल चलती है...उसके नियम कुछ और होते हैं...और इस दुनिया के चलने के लिए ऐसे लेखकों का होना भी जरूरी है जो शायद इस दुनिया के लिहाज़ से एक अच्छे इंसान न हों...एक अच्छे पिता, पति या बेटे न हों...हमारा समाज ऐसे ही प्रोटोटाइप बनाता है जहाँ बचपन से ही घोंटा जाता है कि सबसे जरूरी है अच्छा इंसान बनना. भला क्यूँ? कुछ लोगों की फितरत ही ऐसी होती है कि वो अच्छे नहीं हो सकते...समाज के तथाकथित मूल्यों पर...मगर अच्छे होने की कसौटी पर शायर को क्यूँकर घिसा जाए? अच्छी पूरी दुनिया पड़ी है...एक शायर बुरा होकर ही जी ले...माना उसके घर वाले उससे खुश नहीं थे...पर इसी को तो ‘फॉर द लार्जर गुड ऑफ ह्युमनिटी’ कहते हैं. गांधी जी के बेटे हमेशा कहते हैं कि वो एक अच्छे पिता नहीं थे. अगर सारे लोग एक ही अच्छे की फैक्ट्री से आने लगे तो फिर सब एकरस हो जाएगा...फिल्म में विलेन न हो तो हीरो कैसे होगा. उसी तरह जिंदगी में भी बुरे लोगों की जगह होनी चाहिए....और हम सबमें इतना सा तो बड़प्पन होना चाहिए कि कमसे कम शायर को उसकी गलितयाँ माफ कर सकें. उसकी पत्नी उसके साथ न रहे पर उससे अलग होकर तो उसे उसके जैसा बुरा होने के लिए माफ कर सके...कमसे कम मरने के बाद. ऐसी नफरत मुझे समझ नहीं आती. मुझे सिर्फ इसलिए शहरयार की एक्स-वाइफ की बातें समझ नहीं आतीं...मुझे समझ आता अगर वो उनके साथ ताउम्र रहती, घुटती रहती तब उनकी शिकायत समझ आती...पर अलग रहने के बावजूद? किसी के मरने के बाद इल्जाम कि सफाई अगर कोई है भी तो...दी न जा सके.

अच्छे तो बस रोबोट होते हैं...इंसान को गलितयाँ करने का...गलत इंसान होने का अधिकार है...उसपर शायर...पेंटर...गायक...किसी भी आर्टिस्ट को ये अधिकार मिलना चाहिए...थोड़ा सा ज्यादा बुरा होने का अधिकार...थोड़ी सी ज्यादा गलतियाँ करने का अधिकार...वो किसी को अपने दुनिया में लाने के लिए मजबूर नहीं करता...उसकी अपनी दुनिया है...उस दुनिया के होने पर इस दुनिया की बहुत सी खूबसूरती टिकी है. अगर एक खूबसूरत गज़ल की कीमत शायर का टूटा हुआ परिवार है..तो भी मैं खरीदती हूँ उस गज़ल को. एक अच्छी पेंटिंग के पीछे अगर एक नायिका का टूटा हुआ दिल है तो भी मैं खरीदती हूँ उस पेंटिंग को...कि कोई भी सबके लिए अच्छा नहीं हो सकता...और आर्ट हमेशा जिंदगी की इन छोटी तकलीफों से ऊपर उठने का रास्ता होती है. 

कुछ लोगों के लिए एक मुकम्मल इश्क ही पूरी जिंदगी का हासिल होता है...हो सकता है...उनके लिए इतना काफी है कि उन्होने से उसे पा लिया जिससे प्रेम करते थे. पर ऐसा सबके लिए हो जरूरी तो नहीं...सबके जीवन का उद्देश्य अलग होता है. अक्सर हमारे हाथ में भी नहीं होता. पर ये जो कुछ लोग होते हैं...लार्जर दैन लाइफ...उनके लिए कुछ भी मुकम्मल नहीं होता...कहीं भी तलाश खत्म नहीं होती...एक प्यास होती है जिसके पीछे भागना होता है...कई बार पूरी पूरी जिंदगी। मुझे हर आर्टिस्ट अपनेआप में अतृप्त लगता है। उसके लिए जिंदगी से गुज़र जाना काफी नहीं होता...उसके लिए बुरा देखना काफी नहीं होता...वो वैसा होता है...अन्दर से बुरा...टूटा हुआ...बिखरा हुआ. मगर एक आर्टिस्ट अपने इस तथाकथित बुरेपन में भी बहुत मासूम होता है...कई बार चीज़ें वाकई उसके बस में नहीं होतीं...शराब या ऐसी कोई आदत मुझे ऐसी ही लगती है...जो शायद बहुत प्यार से छुड़ाई जा सकती है...शायद नहीं भी। आप संगीत के क्षेत्र में देख लें...कितने सारे आर्टिस्ट ड्रग ओवेरडोज़ से मरते हैं...उन्हें बचाने की कितनी कोशिशें की जाती हैं...पर वो अपनी कमजोरियों, अपनी मजबूरीयों को कहीं न कहीं ऐक्सेप्ट कर लेते हैं तब वो जिंदगी से बड़े/लार्जर दैन लाइफ हो जाते हैं।

कहीं कहीं इनके अंदर की सच्चाई मुझे उस इंसान से ज्यादा अपील करती है जो पार्टी में दारू नहीं पीता पर पीना चाहता है...उसके मन में दबी इच्छाएँ किस रूप में बाहर आएंगी कोई नहीं जानता। कई बार यूं भी लगता है कि एक जिंदगी में अफसोस लेकर क्यूँ मरा जाए...पर समाज बहुत सी चीजों पर रोक लगाता है...नियम बनाता है...जो गलत भी नहीं हैं...वरना अनार्की(Anarchy) की स्थिति आ जाएगी...पर कुछ लोग होने चाहिए जो हर नियम से परे हों...आज़ाद हों...क्यूंकी इस आज़ादी में ही मानवता की मुक्ति का कहीं कोई रास्ता दिखता है। इनपर रोक लगाने वाले वही लोग हैं जो खुले में विरोध करते हैं क्यूंकी मन ही मन वो वैसा ही होना चाहते हैं...स्वछंद...पर इतनी हिम्मत सबमें नहीं होती। 

आर्टिस्ट मजबूर भी होते हैं और मजबूत भी...उतनी टूटन, उतना दर्द लेकर जीना क्या आसान होता है...क्या उनके आत्मा नहीं कचोटती किसी शाम कि बीवी बच्चे होते...एक परिवार होता...पर उतनी जिम्मेदारियाँ निभाना उसके लिए कहाँ आसान हुआ है। निरवाना के कर्ट कोबेन के जरनल्स की किताब है...उसके पहले पन्ने पर लिखा हुआ है...
डोंट रीड माय डायरी व्हेन आई एम गोन.
ओके, आई एम गोइंग टू वर्क नाव...व्हेन यू वेक अप दिस मॉर्निंग, प्लीज रीड माय डायरी। लुक थ्रू माय थिंग्स, एंड फिगर मी आउट.”

लगता है काश ऐसी कोई डायरी शहरयार लिख के गए होते...

सारे आर्टिस्ट्स इसी फ्रीडम के पीछे पागल रहते हैं...कर्ट की डायरी में भी हर दूसरे पन्ने पर फ़्रीडम की बातें लिखी हैं...उसके लिए पंक रॉक वाज अ वे ऑफ़ फ्रीडम. जिंदगी से बेपनाह मुहब्बत...और एक abstract सच्चाई जो मुझे सारी बुराइयों से बढ़ कर अपील करती है. मुझे ये भी समझ आता है कि उन्हें दुनिया समझ नहीं आती...कागज़ के फूल में तभी तो सिन्हा साहब कहते हैं...तुम्हारी है तुम ही सम्हालो ये दुनिया. 


हाँ मैं जानती हूँ दुनिया मेरे जैसी नहीं है...पर दुनिया ऐसी होती तो क्या बुरा था. 

23 February, 2012

Life. Hurts.

विषबेल उगती है पैरों के पास से कहीं...उसके बहुत महीन कांटे हैं जो त्वचा में चुभ जाते हैं...वो न केवल परजीवी है जो की मुझसे प्राणशक्ति पाती है बल्कि उन काँटों से ही जहर भी मेरे शरीर उतारती जाती है. रिसोर्स optimisation का अद्भुत उदहारण है.

मुझे समझ ये नहीं आता की इसके बावजूद मेरी जान क्यूँ नहीं जाती...क्या वो जहर वाकई जहर नहीं है बस जहर का छलावा है...एक ऐसा द्रव्य जो वक़्त के गुजरने की रफ़्तार धीमी कर देता है...कि मेरी जिंदगी रहेगी वही कुछ साल पर लगेगी कुछ ऐसे जैसे जेल में बंद आत्मा को लगे...शरीर एक जेल ही तो है न...ऐसा जिसे तोड़ना मुमकिन न हो.


लम्हा...गुज़रता है पर नहीं गुज़रता...जिंदगी खाली साफ़ की हुयी स्लेट हो गयी है जिसमें पुराना कुछ याद नहीं है...सब एक धुंधली याद के जैसा है...कोई हंसी की किरण इस ओर तक नहीं आती कि मन में उजाला भर जाए...कोई पुराना लम्हा नहीं आता. याद के सारे फोटोग्राफ्स में एक अधूरा दर्द साथ खड़ा रहता है...धुंध भरे शीशे के पार देखती हूँ...कोई नज़र नहीं आता.


एक दो लोग हैं...पर उन्हें छूने में डर लगता है कि वो भी धुआं हो गए...उन्हें बताने तक में डर लगता है कि वो मेरी जिंदगी में कितने जरूरी हैं...किसी के गले लगने में भीगने लगती हूँ...डरती हूँ...टूट जाउंगी. ऐसे में वाकई तुम्हें बाँध के रखना चाहती हूँ...कहने में डरती हूँ...बहुत बहुत बहुत.


मैं खुद को एकदम अच्छी नहीं लगती...जाने तुम्हें कैसी लगती हूँ...सोचती हूँ...बारहा सोचती हूँ कि मुझसे कोई प्यार क्यूँ करता है...मुझे इस सवाल का जवाब कभी नहीं मिलता है. हर बार चाहती हूँ कुछ ऐसा कह दूं कि तुम्हारा दिल टूट जाए और तुम मुझसे दूर चले जाओ मगर दिल को इतना पत्थर कर ही नहीं पाती हूँ. कितना भी चाहूं तुम्हें तकलीफ न दूं...पर फितरत ही ऐसी है...तुमने मेरे हाथ देखे हैं...न न ध्यान से देखो...आंसू क्रिस्तलाइज कर गए हैं...देख रहे हो कहाँ कहाँ खूबसूरती दिखती है मुझे. पर छूना न इन्हें ये बीज हैं उस विषबेल के...तुम रो दोगे तो मैं मर ही जाउंगी.


मुझे इतना तनहा रहना एकदम अच्छा नहीं लगता...ऐसे में हमेशा दिल करता है सारे दोस्तों को फोन कर लूं...पर इतना सा हक नहीं समझती...और पता है मुझे फोन नहीं चाहिए...मुझे मेरे दोस्त दिल्ली में या और किसी शहर में नहीं चाहिए...मुझे मेरे सारे दोस्त बैंगलोर में चाहिए...मेरे पास...मुझे खींच कर गले लगाने के लिए...कि मैं फोन कर सकूँ...आ जाओ और आधे घंटे में दरवाजे पर ढेरों चोकलेट के साथ लोग खड़े हों.


ऐसे कैसे खुश होती हूँ मैं...सारी खुशियाँ कमबख्त दर्द से ही जीती हैं...यही आँखों का पानी उन्हें भी सींचता है...मगर होता है न ज्यादा दिन आंसू छुपा के नहीं रखने चाहिए...फिर किसी दिन बाँध टूट जाता है. फिर सब बह जाते हैं.


बहुत हुआ...उदासी में लिखना नहीं चाहिए...अच्छा लिखने के लिए दर्द का एक थ्रेशोल्ड होता है...उससे गुज़र जाओ तो आप भरी सेंटी, वाहियात और किसी के न पढ़ने लायक लिखते हो. लेकिन मुझसे इतना नहीं होता. डायरी लिखे बहुत साल हुए. लिख के कुछ नहीं होता...कोई दर्द नहीं घटता...लिख रही हूँ बस कि बिना लिखे भी रहा नहीं जाता.


उन सारे लोगों से माफ़ी चाहती हूँ जिन्हें आज ये पढना पड़ा है. कोशिश करुँगी कि मेरे सपनों की दुनिया जो है उसमें से बाहर न आना पड़े.


Bloody Fucking Hell. Life. Hurts.

दर्द के सिरहाने कोई थपकी नहीं होती

The only day I become inconsolable is when I miss you ma. 
---
अब किसी से नहीं कहती...अच्छा नहीं लगता...किसी से बात भी नहीं करती...अब इतने साल हो गए माँ...अब सच में कोई भी नहीं है जिसको फोन करूँ और बस रो दूं...इतना कह पाऊं कि तुम्हारी याद आ रही थी. खूब सारा रो के चुप जो जाऊं...उधर से कोई आवाज़ नहीं आये...कोई कुछ न कहे. समझाने की कोशिश न करे...कुछ न कहे...कुछ नहीं. 

माँ को भूलने में कितना वक़्त लगता है...हर गुज़रते साल के साथ समय की रेतघड़ी को पलट देती हूँ इस उम्मीद में कि कभी तो दर्द ख़त्म होगा...कभी ख़त्म होगा...कभी ख़त्म होगा. सब कहते हैं वक़्त दो...वक़्त दो. जैसे कि मेरे पास और कोई उपाय भी है. 

पता है मम्मी मेरे जैसी लड़की की मम्मी को इतनी जल्दी नहीं जाना चाहिए था...मैं हमेशा ऐसी ही तो रही हूँ न...हर कुछ दिन में उदास हो जाती थी...किसी के कहे से तकलीफ हो जाती थी...किसी के बिना कुछ कहे तकलीफ हो जाती थी...इस बड़ी दुनिया में कहीं भी तो फिट नहीं होती हूँ माँ...बहुत अकेली रहती आई हूँ हमेशा...दोस्त पता नहीं क्यूँ नहीं बनते. अपने आप को सम्हालते सम्हालते कभी कभी एकदम अच्छा नहीं लगता है. वैसे दुनिया की extrovert बनी फिरती हूँ पर वाकई जब किसी की जरूरत होती है उस समय किसी को इतना अपना समझ ही नहीं पाती हूँ. 

कभी समझ ही नहीं आता कि किसी की जिंदगी में मेरी जगह भी होनी चाहिए...मैं भी जरूरी हूँ...बहुत रोना आता है...और ऐसा नहीं है कि हमेशा दुखी रहती हूँ...पर जब बहुत बहुत खुश होती हूँ उसी दिन से मन का एक कोना छीजना शुरू कर देता है...मैं इग्नोर करने की कोशिश करती हूँ...अब रोती नहीं हूँ...अच्छे गाने सुनती हूँ...कुछ लोगों से बातें करती हूँ...खुद को व्यस्त रखती हूँ. पर मम्मी...हर ख़ुशी थोड़ी सी आधी रह जाती है...आधी नहीं बहुत कम रह जाती है...चाहे चोकलेट खाना हो. पता है मम्मी तुमको कभी डार्क चोकलेट नहीं खिलाये...तुम होती न तो तुमको पूरा स्लैब देते...और किसी को हम इतना प्यार नहीं करते...कुणाल को भी नहीं. तुम रही नहीं तो तुमको कैसे बताते...हम तुमसे पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं...आज भी मम्मी. 

पता है, घर में तुम्हारी एक भी फोटो नहीं है...कभी कभी भूलने लगती हूँ कि तुम्हारी आवाज़ कैसी थी...माथे पर तुम्हारा हाथ रखना कैसा था...तुम्हारे हाथ से कौर खा के कोलेज भागना कैसा था...इधर एक दिन खाना बनाये तो सब्जी एकदम वैसा बना था जैसा तुम बनाती थी...समझ नहीं आया कि हंसें कि रोयें...अनुपम को मेसेज किये...अभी भी उसको फोन करते हैं तो सोचते हैं कि उसको इतना क्यूँ परेशान करते हैं...फिर लगता है कि बस वही तो है जो कमसे कम जानता है तुमको. बाकी मेरी जिंदगी में जितने भी लोग हैं तुमको नहीं जानते मम्मी...कोई भी नहीं. 

तुम सबसे अच्छी मम्मी थी...पर हमको भी तो थोड़ा वक़्त देती...हम समझदार हो गए हैं अब...हम तुमको सबसे अच्छी बेटी बन के दिखाते. सबसे अच्छी...तब हम बहुत कुछ करते मम्मी...वो हर प्राइज जीत के लाते जो तुम कहती...याद है कैसे हम प्राईज खोलते भी नहीं थे...तुम्हारे पास दौड़ के ले के आते थे. 

तुम थी न मम्मी तो हम सबसे अच्छे थे...तुम नहीं हो न...तो हम कहीं नहीं हैं. कहीं भी नहीं. कुछ भी नहीं. तुम बहुत बहुत बहुत याद आती हो मम्मी...हम कितना भी कोशिश कर लें...हमसे कुछ नहीं होता है. 

काश तुम होती मम्मी...काश. 
तुम्हारी बहुत याद आती है माँ...मी...मम्मी. 

चाँद मवाली. रोक के रास्ता. रोज सताए


काँधे पर
ऊँगली भर काला
दाग पड़ा है

चाँद ने कल फिर
'रुक जाओ' की
जिद पकड़ी थी

गुस्सा हुआ था
रो के खुद ही
चुट्टी काटी

रूठ के मुझसे
ओढ़ के बादल
छुपा हुआ है

चाँद मवाली
रोक के रास्ता
रोज सताए

महबूब के घर की
पिछली गली में
हाथ पकड़ ले

किससे ज्यादा
प्यार है तुमको
उससे/मुझसे?

न माने ना
हाँ बोलू ना
चुप मर जाऊँ

इश्क मुसीबत
तेरे कारण
बुद्धू आशिक

मैंने तो
पहले ही कहा था
चाँद बुझा दो

सब तेरी गलती
जो उसको
प्यार हुआ है

रात परेशां
सुन सुन कर
ये सारे झगड़े

सूरज भी तो
मिला हुआ है
चाँद की साइड

चाँद औ सूरज
रस्साकशी
खेलेंगे एक दिन

हम उल्का की
पीठ पे बैठ
दूर निकलेंगे

अबकी बार
मिलो मुझसे तो
अकेले मिलना

19 February, 2012

बदमाश दुपहरें...

'तुम्हें कहीं जाना नहीं है? घर, दफ्तर, पार्क...सिगरेट खरीदने, किसी और से मिलने...कहीं और?'
'कौन जाए कमबख्त महबूब की गलियां छोड़ कर'
'ए...मुझे कमबख्त मत कहो'
'तो क्या कहूँ  मेरी जान?'
'तुम आजकल बड़े गिरहकट हो गए हो...पहले तो लम्हों, घंटों की ही चोरी करते थे आजकल तो पूरे पूरे दिन पर डाका डाल देते हो, पूरी पूरी रातें चुरा ले जाते हो'
'बुरा क्या करता हूँ, इन बेकार दिनों और रातों का तुम करती ही क्या?'
'कह तो ऐसे रहे हो जैसे तुम्हारे सिवा मेरे पास और कोई काम ही नहीं है'
'है तो सही...पर मुझसे अच्छा तो कोई काम नहीं है न'
---

लड़की ने कॉफ़ी का मग धूप में रखा हुआ है...हेडफोन पर एमी का गाना लगा हुआ है कल रात से 'वी ओनली सेड गुडबाई विद वर्ड्स'. पूरी रात एक ही गाना सुना है उसने...गाने से कोई मदद मिली हो ऐसा भी नहीं है. गैर तलब है कि बिछड़ने के लिए एक बार तो मिलना जरूरी होता है. उसने सर को हल्का सा झटका दिया है जैसे कि उसका ख्याल बाहर आ गिरेगा...धूप के चौरस टुकड़े में उसके शर्ट की उपरी जेब का बिम्ब नहीं बनेगा...उसका दिल कर रहा है लैपटॉप एक ओर सरका कर धूप में आँखें मूंदे लेट जाए...शायद ऐसा ही लगेगा कि जैसे उसके सीने पर सर रखा हो. वो बेडशीट के रंग को उसकी शर्ट के कलर से मैच कर रही है...दिल नहीं मानता...उठती है और चादर बदल लेती है...नीले रंग की...हाँ ये ठीक है. शायद ऐसे रंग की शर्ट पहनी हो उसने...अब ये धूप का टुकड़ा एकदम उसके पॉकेट जैसा लग रहा है. यहाँ चेहरे पर जो गर्मी महसूस होगी वो वैसी ही होगी न जैसे शर्म से गाल दहक जाने पर होती है. डेरी मिल्क बगल में रखी है...उसे कुतरते हुए दिमाग में डेरी मिल्क के ऐड के शब्द छुपके चले आते हैं...किस मी...क्लोज योर आईज...मिस मी...और उसका दिल करता है किसी से खूब सारा झगड़ा कर ले.

महबूब शब्दों को छोड़ कर जा ही नहीं रहा...प्रोजेक्ट कैसे ख़त्म करेगी लड़की...स्क्रिप्ट क्या लिखनी है...डायलोगबाजी कहाँ कर रही है. वाकई उसका काम में मन नहीं लगता...दिन के लम्हे बड़ी तेजी से भागते जा रहे हैं...जैसे वो बाइक चलाती है, वैसे...बिना स्पीडब्रेकर पर ब्रेक लिए हुए...फुल एक्सीलेरेटर देते हुए...और जब बाइक थोड़ी सी हवा में उड़ कर वापस जमीन पर आती है तो उसके बाल एक अनगढ़ लय में उसकी पीठ पर झूल जाते हैं...थोड़ी सी गुदगुदी भी लगती है...कभी कभार जब कोई गाड़ी रस्ते में आ खड़ी होती है तो वो जोर से ब्रेक मारती है...एकदम ड्रैग करती हुयी बाइक रूकती है. सामने वाले के होश फाख्ता हो जाते हैं, उसे लगता है बाइक लड़की के कंट्रोल में नहीं है...वो नहीं जानता लड़की और बाइक अलग हैं ही नहीं...बाइक लड़की के मन से कंट्रोल होती है...लड़की अधिकतर लो बीम में ही चलाती है पर कभी कभी जब स्ट्रीट लैम्प के बुझने तक भी उसका घर आने का मन नहीं होता तो हाई बीम कर देती है...बाइक की हेडलाईट चाँद की आँखों में चुभती तो है मगर क्या उपाय है...माना कि उत्ती खूबसूरत लड़की रात को किसी को बाइक से ठोक भी देगी तो लड़का ज्यादा हल्ला नहीं करेगा...एक सॉरी से मान जाएगा फिर भी...किसी अजनबी को सॉरी बोलने से बेहतर है कि चाँद को सॉरी बोले.

वो एमी को बाय बोल चुकी है और इंस्ट्रूमेंटल संगीत सुन रही है...सुनते सुनते मेंटल होने की कगार आ चुकी है...दिन आधा बीत चुका है...आधी चाँद रात के वादे की तरह. सोच रही है कि अब क्या करे...कॉफ़ी का दूसरा कप बनाये या ग्रीन टी के साथ सिगरेट के कश लगा ले...या हॉट चोकलेट में बाकी बची JD मिला के पी जाए. बहुत मुश्किल चोइसेस हैं...लड़की ने जूड़े से पिन निकाल फेंका है...लैपटॉप के उपरी किनारे से पैरों की उँगलियाँ झांकती हैं...नेलपेंट उखड़ रहा है...पेडीक्यूर जरूरी हो गया है अब. दुनिया की फालतू चीज़ें सोच रही है...जानती है कि दिन को उससे काम बहुत कम होता है. पर रात को तो उसकी याद और बेतरह सताती है...रात को काम कैसे करेगी.

इतना सोचने में उसका सर दर्द करने लगा है...अब तो लास्ट उपाय ही बचा है. लड़की ऐसी खोयी हुयी है कि फिर से उसने दो शीशे के ग्लासों में नीट विस्की डाल दी है...सर पे हाथ मारते हुए फ्रीज़र से आइस निकलती है...और ग्लास में डालती जाती है...ग्लास में बर्फ के गिरने की महीन आवाज़ से उसे हमेशा से प्यार है. 'तुम जो न करवाओ' जैसा कुछ कहते हुए एक सिप लेती है...धीमे धीमे लिखना आसान होने लगता है...दूसरे ग्लास में बर्फ पिघल रही है...पर लड़की को कोई हड़बड़ी नहीं है आज...दो पैग पीने के लिए उसके पास इतवार का बचा हुआ आधा दिन और पूरी रात पड़ी है.

उसने महबूब के हाथ में अपनी कलम दे रखी है...महबूब परेशान 'तुम जो न करवाओ' जैसा कुछ कहते हुए उसके साथ प्रोजेक्ट ख़त्म करने में जुट गया है...वरना लड़की ने धमकी दी है कि विस्की का ग्लास भूल जाओ. लड़की खुश है...कभी तो जीती उस दुष्ट से. फ़िज़ा में लव स्टोरी का इंस्ट्रूमेंटल बज रहा है...खिड़की से सूखे हुए पत्तों की खुशबू अन्दर आ रही है...वो खुश है कि महबूब के साथ किसी प्रोजेक्ट पर काम करना भी इश्क जैसा ही खूबसूरत है.

ऐसी दोपहरें खुदा सबको नसीब करे. आमीन!

अलविदा के पोस्ट इट्स चिपकाने वाली लड़की

रोज़ अलविदा के पोस्ट इट्स
चिपकाने वाली लड़की
मुझे भी मालूम है
तुम्हारे आखिरी दिन
तुम भूल जाओगी कहना
विदा 
---
तुमने जो बनवा रखे हैं
ज़ख्मों के टैटू
उनमें मेरा नाम नहीं है
---
तुम लिखती हो सबसे ज्यादा ख़राब
जब तुम गहरे प्यार में होती हो
(हैप्पीनेस डज़ नॉट सूट द राईटर इन यू
बीइंग इन लव सफोकेट्स हर)
या तो ऐसे प्यार न करो...या लिखो मत
ईमानदारी से एक दुखती बात कहूँ 
तुम्हारे महबूब की बातों में
किसी की दिलचस्पी नहीं है 
तुम्हारे सिवा
---
तुम में ऐसा कुछ भी नहीं है
जिसे सहेजने की जरूरत आन पड़े
तुम एकदम साधारण लड़की हो 
भीड़ में गुम कोई भी
तुम्हारे चेहरे पर जो ओज है न
वो इश्क का है
तुम्हारा नहीं
---
सुनो लड़की
मुझे कभी तुमसे प्यार नहीं होगा
जितनी जल्दी तुम्हें ये बात समझ आ जाए
बेहतर है
---
तुम्हारा एकतरफा प्यार
निकृष्ट और छिछला है
इसमें कुछ नहीं है
जो मुझे बांध सके
स्टॉप एम्बरासिंग मी
डोंट क्राय
---
जब कहता हूँ
आई हेट स्मोकर्स
तो मेरा निशाना होती हो
सिर्फ तुम
---
काश! उसने कही होतीं
ऐसी बातें
मेरा दिल तोड़ते हुए
उसे भूलना आसान होता 
उफ्फ्फ उसे तो ठीक से
दिल तोड़ना भी नहीं आता
मैं अपनी सोच में भी नहीं कह सकती  उसे
आई हेट यू
गेट लौस्ट
---
या खुदा
मैं नहीं चाहती
कि वो थोड़ी सी देर रुक जाए
मेरी आखिरी साँसों भर 
कि वो रोये
मेरी लाश को बांहों में भर कर 
मुझे लौटा लाना चाहे
कुछ इतना ऐम्बिशीयस नहीं 
बस इतना 
कि वो जाते हुए 
देख ले मुड़ के
एक बार 
---

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...