दर्द अपनी वजहें ढूंढ लेता है
आंसू अपनी राह चले आते हैं
सबने तुम बिन जीने का बहाना ढूंढ लिया है
धुल जाते हैं तुम्हारे कपड़े
नींद नहीं आती तुम्हारी खुशबू के बिना
खाली हो जाता है मेरा कमरा
झाड़ू में निकल जाते हैं
तुम्हारे फेंके अख़बार
बेड के नीचे लुढ़के चाय के कप
करीने से सज जाता है
किताबों का रैक
अलग अलग हो जाती हैं तेरी मेरी किताबें
सब कुछ अपनी अपनी सही जगह पहुँच जाता है...
तुम्हारी जगह कुछ बहुत ज्यादा खाली लगने लगती है...
कविता का शीर्षक ,और फिर सारे टेक्स्ट सिर्फ एक शाम के ढलने भर की दास्तान नहीं हैं ,पूजा जी ,दरअसल ज़िन्दगी आपकी रचनाओं में कभी ढलती नहीं ,सच कहू तो मैं अभी ऐसा ही कुछ महसूस कर रहा था ........................जी बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteसब कुछ अपनी अपनी सही जगह पहुँच जाता है...
ReplyDeleteतुम्हारी जगह कुछ बहुत ज्यादा खाली लगने लगती है...
wah !
सब कुछ अपनी अपनी सही जगह पहुँच जाता है...
ReplyDeleteतुम्हारी जगह कुछ बहुत ज्यादा खाली लगने लगती है...
अति भावपूर्ण!! खूब अभिव्यक्ति!!
?????
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सब कुछ अपनी अपनी सही जगह पहुँच जाता है...
ReplyDeleteतुम्हारी जगह कुछ बहुत ज्यादा खाली लगने लगती है...
अदभुत.
रामराम.
सब कुछ अपनी अपनी सही जगह पहुँच जाता है.
ReplyDeleteतुम्हारी जगह कुछ बहुत ज्यादा खाली लगने लगती है.
इस अहसास को किस खूबसूरती से लिख दिया आपने। बहुत बेहतरीन।
बहुत बढ़िया है ....
ReplyDeleteसब कुछ अपनी अपनी सही जगह पहुँच जाता है...
तुम्हारी जगह कुछ बहुत ज्यादा खाली लगने लगती है...
बहुत ही बढ़िया..
सब कुछ परफेक्ट ......सब कुछ .....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत बढिया भावपूर्ण रचना है बधाई।
ReplyDeletedil ki baatein kya khoob likhi hain
ReplyDeleteवाह वाह डाक्टर साहिबा..कौन कहता है ..भावों को व्यक्त करने के लिए किसी विधा किसी शैली की जरूरत होती है..शब्दों को करीने से सजा कर रख दो ....बांकी सब अपने आप हो जाता है..आप निस्संदेह एक बेहतरीन लेखिका हैं ..
ReplyDeletewaah! tumhare shabd bhi sedhe apni raah chale aate hain...seedhe dil tak... tum kavita nahin , jaadu karti ho... itni sehejtaa se kasie keh jaati aisi baatein jinse ubarnaa mushkil hota hai.... binaa alankaaron ke bhi itni alankrit kriti hoti hai tumhari ki kya kahein.. :)
ReplyDeletebful post :) I have a song for you :)
ReplyDeletedarr yeh lagta hai kya yeh sapana hai
ab jo apana hai kal woh kaha hai
darta dil pooche baar baar - 2
intezaar aitbaar tumse pyar itna karu - 2
aansu aate the laut jaate the
lamhon pe lamhen chatpatate the
phir bhi kiya hai intezaar - 2
intezaar aitbaar tumse pyar itna karu
kya pyar hai kya hai nahi
maine nahi poocha na
ho tum mere yah ho nahi
maine nahi poocha na
poocha nahi baar baar - 2
intezaar aitbaar tumse pyar itna karu - 2
ek din aayega tanha reh jaayega - 2
dost kya dushman kya dhundh na paayega
maula ke saamne kehta reh jaayega
intezaar aitbaar tumse pyar kitna karu - 2
intezaar kitna karu
aitbaar kitna karu
intezaar aitbaar tumse pyar kitna karu
chhoti raaten hai kitni baaten hai
ab jo aaye ho ab batate hai
thaamon hamein ab ek baar - 2
intezaar aitbaar tumse pyar itna karu...
tumhari jageh kuch bahut jyada khaali lagne lagti hai......
ReplyDeletepoori vedna udel kar rakh di hai tumne is line mein !!
pooja ji.. hamesha ki tarah apka rang nazar aa rha hai.. dil ko chhooti hui kavita .. :)
ReplyDeleteबहुत बढिया भावपूर्ण रचना है बधाई।
ReplyDeleteएक और उम्दा ख्याल.. क्या बात है..
ReplyDeleteDilko chho gayee aapkee kavita.
ReplyDelete{ Treasurer-T & S }
ये भी अच्छा है. कब आने वाले हैं... :)
ReplyDeletewah! Puja kya khub likha hai, maine aaj pahali bar aap ka blog dekha hai, abhsos ki pahale kyo nhi dekha. bahut accha likhti hai aap.......savita
ReplyDeleteदर्द अपनी वजहें ढूंढ लेता है
ReplyDeleteआंसू अपनी राह चले आते हैं
सबने तुम बिन जीने का बहाना ढूंढ लिया है
कविता की सर्वश्रेष्ठ पंक्तियाँ लगी...बहुत गहरे भावों से मन को छूती पंक्तियाँ...पूरी कविता में एक गहराई गुजरते वक्त को थामने का प्रयास करती है.
लेडी गुलजार ?
ReplyDeletemast hai jiiiiiii
ReplyDeletekhoobsurat
बहुत फुर्सत निकल कर यहाँ आया हूँ आज दो घडी... लेकिन यहाँ भी गुबार ही निकला... प्रगति मैदान मेट्रो से जब भी ट्रेन आने में देर होती है और सामानांतर २ ट्रेन्स गुज़रती है तो यह हदें याद आती है...
ReplyDeleteदिल्ली- जिसपर काफी कुछ लिखा जा सकता है... बस वैसा ही है जैसा निजामुद्दीन में ग़ालिब के मजार पर बैठ कर सोचता हूँ उनका ही तर्क :
"बहर अगर बहर न होता तो बियाबां होता..."
एक गाना याद आ रहा है :
ReplyDeleteतुम मुझे क्यों नहीं मिले पहले...
"पाटलिपुत्रा: बंदI वोहीं का है.... नोत्रिअदम अकादेमी का आवारा, इंटरनेशनल गर्ल्स स्कूल का दीवाना और हर्तमन का .... गंगा नदी का प्रेमी.. दरभंगा हाउस का आशिक... गोलघर से आसमान नापने वाला... कृष्ण निकेतन का.... और भी बहुत कुछ... patna collece ka sahitya prami
बहुत उम्दा......
ReplyDeleteझाड़ू में निकल जाते हैं
ReplyDeleteतुम्हारे फेंके अख़बार
बेड के नीचे लुढ़के चाय के कप
kya baat hai.....bahut khoob...