जिंदगी की डायरी...कुछ पन्ने बुकमार्क कर के रखे होते हैं। इन पन्नों पर अक्सर कोई ऐसा दिन पसरा होता है जो सिर्फ़ मेरा नहीं होता, हो ही नहीं सकता...उस दिन के कतरे कतरे हम सब उठा के ले गए होते हैं, अपनी डायरी में संजोने के लिए...ये सबसे हसीं और खूबसूरत लम्हे, दोस्तों के साथ बिताये हुए होते हैं।
हम में से हर एक को लगता है, मैं ही पागल हूँ...अभी तक उस दिन को याद करती हूँ, शायद एक मैं ही हूँ जिसे वो मुस्कान याद है वो जोश में एक साथ चिल्ला चिल्ला के गला फाड़ना याद है...वो घंटों घंटों प्रैक्टिस करना याद है। १५ अगस्त आया और चला गया...मेरे लिए महज एक छुट्टी का दिन रह गया...अकेलेपन और तन्हाई में डूबा एक बेहद बोरियत वाला दिन...दोपहर होते पन्ने फड़फड़ाने लगे...कितने सारे गीत गूंजने लगे, कितने सारे लम्हों के मिले जुले डांस करने वाली थिरकन पैरों में आने लगी।
जब बिल्कुल छोटी थी तो ग्रुप डांस में अक्सर लाइन में सबसे आगे लगती थी...सब कहते हैं बचपन में मैं काफ़ी क्यूट हुआ करती थी...तो टीचर से सबसे ज्यादा पैर में छड़ी की मार भी मैं ही खाती थी। ये वो बचपना था जब इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था की मैं कहाँ लग रही हूँ लाइन में...पर इतना मार खाना जरूर बड़ा ख़राब लगता था। पर ऐसा कोई १५ अगस्त नहीं रहा जब स्कूल के प्रोग्राम में हिस्सा न लिया हो। कुछ नहीं होता तो एक न एक साल पकड़ के भारत माता जरूर बना देते थे हमको। हम ठहरे छटपटिया...हिलना डुलना मना जैसे सजा हो जाती थी।
थोड़ा बड़े हुए तो अक्सर गाने वाली टीम में रहते थे...कितने दिन से खोज जारी रहती थी, गाने की...की सबसे अच्छा गाना हो हमारा...उसपर लगातार प्रक्टिस...गला ख़राब होने तक प्रक्टिस, फ़िर घर जा के गार्गल...आइस क्रीम बंद...ठंढा बंद...सब बंद। जब जन गण मन गाती थी, तो जैसे गर्व से एक इंच और लम्बी हो जाती थी।
उसके बाद आया स्कूल लाइफ का सबसे हसीन दौर...मार्च पास्ट में हम अपनी पलटन के कैप्टेन हुआ करते थे...झंडे को सलामी देते हुए एक अजीब सी अनुभूति होती थी...और मार्च पास्ट में एक कदम भी ग़लत नहीं...धुप में खड़े होकर कितने कितने दिन की प्रैक्टिस करते रहते थे। उस वक्त बड़ा अरमान हुआ करता था आर्मी में जाने का...जो काफ़ी दिन तक रहा...अभी भी आह भरती हूँ। वो bata के कैनवास जूते, धो के सुखा के whitener लगा के तैयार रहते थे। स्कर्ट की क्रीज़ बना बना के bed के नीचे रख देते थे, की एकदम ही न टूटे।
हर साल कमोबेश एक ही गाने हर तरफ़ से...और मुझे याद है एक भी साल ऐसा नहीं था की मैं "ए मेरे प्यारे वतन "-काबुलीवाला फ़िल्म का गीत सुन कर रोऊँ न या फ़िर ए मेरे वतन के लोगों बजता था तो जैसे अन्दर से कोई हूक सी उठने लगती थी. कॉलेज में भी अधिकतर गाने गाये, बहुत से इनाम भी जीते...और हमारा एक गीत तो पटना विमेंस कॉलेज में लोगों को इतना पसंद आया था की दिनों दिनों तक कॉलेज के हर प्रोग्राम में उसकी फरमाइश हो जाती थी। उस गीत के अंत में मैंने एक तराना जोड़ने के लिए कहा था, थोड़ा शास्त्रीय पुट देने के लिए...उससे कमाल का asar पड़ा tha...लोग अचंभित rah गए the। इत्ती तारीफ़ मिली थी की कित्त्ने दिन हम फूल कर कुप्पा रहे थे।
आप लोगों को बताना भी भूल गए की ताऊ ने हमारा interview लिया था...बहुत अच्छा अनुभव रहा, उसमें मैंने अपने IIMC के हॉस्टल के समय की १५ अगस्त वाले प्रोग्राम का जिक्र किया था...उसे मेरी एक दोस्त ने पढ़ा...जो उस डांस में हमारे साथ ही थी...और कई साल बाद हमारी बात हुयी...तुमको भी याद है...i thought i was the only one.
Most of the times we forget the magic of some shared moments...that the magic belonged to all of us...and we all remember it...some way of the other, some day or the other.
ताऊ का फ़िर से धन्यवाद...उनके कारण अरसे बाद कुछ बेहद खुशनुमा लम्हों को हमने बांटा...और फ़िर से जिया.
क्या बात है डाक्टर साहिबा...अपनी यादों की लहरों में आप अक्सर ही हमें बहा कर ले जाती हैं...ताऊ जी को तो हमारा भी धन्यवाद जो आपसे एकदम बढ़िया से मिलवाया....और पंद्रह अगस्त को गया गुनगुनाया कुछ यहाँ भी हो जाता..वैसे दिल्ली की गलियाँ तो अब भी बुलाती हैं....कहती हैं ...कहाँ गयी वो .....लहरों पे सवार हो के ..एक लडकी नादान सी ...देखिये मैं भी क्या कुछ कह गया....
ReplyDeleteवाकई बहुत ही बेहतर लहरें हैं आपकी यादों की।आभार।
ReplyDeleteयादें ये मुई यादें...
ReplyDeleteये बुकमार्क पुराने पीले पन्ने भी बड़े अजीब होते हैं...ये जब तब बेतरतीब से पन्ने फड़फड़ाने लगते हैं
ताऊ जी के इस इंटरव्यू को चिट्ठा चर्चा पर पढ़ा... ठीक नीचे मेरा भी जिक्र था... जान कर अच्छा लगा की आप पटना विमेंस कॉलेज से हैं... मेरे कई दोस्त हैं वहां से... १५ अगस्त अब कामकाजी लोगों का ऐसे ही बीतता है पूजा जी..
ReplyDeleteखूबसूरत यादें । स्मृति के वातायन खुलें तो बहुत कुछ अभिव्यक्त होता है यूँ ही । प्रविष्टि का आभार ।
ReplyDeleteमैने आपके लेखन मे यह महसूस किया है कि बीते पलों को भी बहुत खूबसूरत अंदाज मे आप कागज पर उतारने मे माहिर हैं. पढते वक्त लगता है कि जैसे उस कालखंड मे पहुंच गये हों. बहुत सुंदर लिखा..शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
:) interview padha aapka bahut acha tha :)
ReplyDeleteaur kavita hamesha ki tarh lajawab
देखती हूँ तुम्हें
जाने किनसे बात करते हुए
खिलखिलाते रहते हो जाने किस बात पर
दिल चाहता है एक वैसा लम्हा चुरा लूँ
जब तुम नींद में मुस्कुराते हो
और जाग कर कुछ याद नहीं रहता
कुछ टूटा टूटा सा बताते हो
सोचती हूँ उस मुस्कराहट को काश
किसी डिब्बी में बंद कर रख सकती
क्रिकेट देखते समय खाना भूल जाते हो
एक एक कौर तुम्हें खिला देने का मन करता है
चुपचाप थाली में पांचवां पराठा दाल देती हूँ
और जब तुम देखते हो गिनती पर झगड़ती हूँ
वो झगड़े प्यार से मीठे होते हैं...
god bless you both keep writing
गुजरा वक्त यूँ भी रोचक होता जाता है और रोचकता तब और बढ़ जाती है जब उसे सलीके से कागज पर उतार दिया जाये. आप इसमें सिद्धहस्त है.
ReplyDeleteअक्सर हम इस गफ़लत में पड़ जाते हैं कि इन यादों पर बस मेरा ही हक़ है.. मगर जब सभी अपने एक-एक कर अपने अधिकार उन यादों पर जताने लगते हैं तब बात ही कुछ और हो जाती है..
ReplyDeleteइसके ठीक उलट जब हम सोचें कि ये बातें कुछ उसे भी याद होगी ही, कोई ऐसे कैसे भूल सकता है उन खुश्बूदार क्षणों को? मगर दूसरों को कुछ भी याद ना आये तब उतनी ही खीज होती है और गुस्सा आता है.. :)
lovd d title of d post d most.... :) sab kuch samet kiyaa khud mein iss unwaan ne...
ReplyDeletend hey...aap iimc pass-out hain...humein nahin pata tha... jaan kar accha lagaa... :)
१५ अगस्त आया और चला गया...मेरे लिए महज एक छुट्टी का दिन रह गया...
ReplyDeleteअब ये सभी के लिए छुट्टी वाला दिन ही रह गया है....