अजीब इत्तेफाक है कल से इसी बात पर एक ख्याल आया था ..कल पल्लवी ने पोस्ट किया ओर आज आपने ,हम एक दिन के लिए टाल देते है ,.......आपका ये अंदाज भी अच्छा लगा ....
कितने कम लफ्जों में जो एहसास आते हैं इन पंक्तियों को पढ़कर, वो बयां नही किये जा सकते ... बहुत ही स्पर्शी रचना, कल रात कुछ ऐसे ही ख्याल मेरी आँखों के सामने आ रहे थे जब महानगर से निशातगंज जाने वाले over bridge के फूटपाथ पर ६३ जिंदगियों को सोते हुए देखा ... और मैं समझता था ... मेरा दुःख सबसे ज्यादा है ...
तमाम मिठाईयों और खानों से
ReplyDeleteपटा पडा था वो बाजार मगर।
भूख से एक मासूम वहीं
बिलख बिलख के मर गया।
और मैं समझता रहा
मेरा दर्द सबसे ज्यादा है।।
ख़्याल उलझ जाते हैं मेरे
ReplyDeleteजब किसी बच्चे की भूख
कविता बनके सामने आती है...
और बुश कहता है :
भारतीय दिन में तीन बार खाते हैं
इसलिए वह(अमेरिकन) भूखे हैं...
अजीब इत्तेफाक है कल से इसी बात पर एक ख्याल आया था ..कल पल्लवी ने पोस्ट किया ओर आज आपने ,हम एक दिन के लिए टाल देते है ,.......आपका ये अंदाज भी अच्छा लगा ....
ReplyDeleteबहुत ही भावुक कर देने वाली कविता..
ReplyDeleteहृदय विदीर्ण कर दिया
कितने कम लफ्जों में जो एहसास आते हैं इन पंक्तियों को पढ़कर, वो बयां नही किये जा सकते ... बहुत ही स्पर्शी रचना, कल रात कुछ ऐसे ही ख्याल मेरी आँखों के सामने आ रहे थे जब महानगर से निशातगंज जाने वाले over bridge के फूटपाथ पर ६३ जिंदगियों को सोते हुए देखा ... और मैं समझता था ... मेरा दुःख सबसे ज्यादा है ...
ReplyDelete