ईश्वर के दफ्तर में
एक विभाग सिर्फ़ इसलिए है
कि कहीं गलती से
मेरी कोई इच्छा पूरी ना हो जाए
चित्रगुप्त का खाता हिसाब रखता है
मेरे सपनो की उम्र ज्यादा ना हो
वो जन्म लेते ही अकाल मृत्यु को प्राप्त हों
फ़िर भी कई बार होता है
कि कोई नन्हा सा सपना
मेरी ऊँगली पकड़ के खड़ा हो ही जाता है
वह एक जिद्दी सपना
ईश्वर के अहम् को चोट पहुँचाता है
मैं हाथ जोड़ कर उनके सामने खड़ी जो नहीं होती
कोई समझाए उन्हें
इतना अंहकार ठीक नहीं होता
आख़िर ईश्वर का होना भक्ति से ही तो है
अगर कोई उनके होने पर यकीन ना करे
तब ??
लेकिन ऐसी तो कोई मेरी चाह नहीं
छोटी सी ही खुशी चाहती हूँ
फ़िर ईश्वर को इतना क्रोध क्यों है
मुझे क्या किसी और ने बनाया है
ऐसा सौतेला व्यवहार
क्या दो भगवान लड़ गए थे
मेरे जन्म के समय
और ये जो नियति में उलट फेर है
इसलिए है...कि वो अभी भी लड़ते रहते हैं
और उनकी आपस की लड़ाई में
मेरी सपने पिस जाते हैं
ऐसा होता है
तो परमपिता...जो सबसे बड़े हैं
उन्हीं समझाते क्यों नहीं
या वो ईश्वर जो सबसे बड़े हैं
मुझे समझाते क्यों नहीं...
कि कहीं गलती से
ReplyDeleteमेरी कोई इच्छा पूरी ना हो जाए
क्या बात है.. ऐसा लग रहा है की लफ़ज़ो में जान फूँक दी आपने.. बहुत ही बढ़िया
बहुत बढिया..
ReplyDeleteआपने अच्छा लिखा है।
ReplyDeleteअजी फैशन है ईश्वर को न मानना,
ReplyDeleteकभी तिलक लगा कर हम फूले ,राम नाम जप के खुद को भूले ।
कभी कहा कुछ नही है बस हम ही हम है , और फिर खुद को भूले
ईश्वर .....अहंकारी नही है...थक गया है....अपने बनाये इंसान से ....
ReplyDeleteइतनी नाराज़गी सिर्फ़ साधक में ही होती है.
ReplyDeleteचलो! अब कोई गुंजाइश नही बची कि परमात्मा के होने का कोई सबूत माँगा जाए.
aapkee laherein to baha kar le gayee. achha laga aapko padhnaa.
ReplyDeleteअंतरद्वंद से उठे निराशा के भाव जल्द ही थम जायेंगे. लिखते रहें.
ReplyDeleteवाह क्या बात है मेरे दिल की बात आपने अपने शब्दो से कह दी। गिला भी वही करते है जो प्यार करते है।
ReplyDeleteस्कूल के समय कही पढा था ईश्वर यत करोती शोभनम करोती।(सस्क्रंत में)शायद यही था। पर अर्थ तो यही था कि ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है।
आजकल मैं भी गिला कर रहा हूँ पर यही सोच कर अपने को शांत कर लेता हूँ।
Though, I always wanted to start a blog, but the whole process is so scary that I prefer to use "Puja's Space" Comment place as my little blog space. I sincerly hope that she will not delete it.
ReplyDeleteYesterday night was an interesting experience. Me and bongi were in my corolla that was gliding past all mumbai buses with ease and then we stopped at a signal at Linking Road Road. And that was the last time I was my own self.
We both spotted a tatoo, on a female.
I have no idea what kind of top she was wearing but it was a kind of short top which moves up when u sit anywhere be it the bike or the beach.
We followed the tatoo, improvisation at the last moment and as luck would have it, we and the tatooed female entered MainLand China.
I have faintest reminisence of what kind of tatoo it was but it was mesimerizing and was one of the major spoilsport in yesterday's treat.
The whole treat I was thinking..when others were under the impression that "Pondy" who believes that "Any thing that can be eaten will be eaten" was busy munching all the delicacies....I was thinking...
why a tatoo ?
why at that place ?
why is that tatoo killing me ?
Add to it the romanticism of the place and the fact that I will be with some of the most gorgeous girls in my life @andheri, I was missing something..may be someone..
lets ditch that and come back to the tatoo on her.I would have loved a pink and orange flower on her belly button, Just something very small and delicate still searching.
Food was served well and was finished well.With every one leaving this place,this was the best that we could have come up with in such a short span of time.
And then the tatooed girl quit the ambience and dispersed throughout the city, with her little message, reminder, and omen partially-secreted away under her clothes.
I was still thinking.
bhoot khoobsurat tarike se bhawnaon ka pradarshan kiya gaya hai. vastav me chitrgupt, parampita aur aapake sapanon ki baten har kisi ki dil ki aawaz lagati hai
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