तुम्हें भूलने की ख्वाहिश शायद अधूरी सी है
फ़िर भी तुम बिन जीने की कोशिश जरूरी सी है
इतने गम मिले मुझको की आदत सी पड़ गई है
फ़िर भी तुम्हारे गम में वो कशिश आज भी थोड़ी सी है
न गुलमोहर है न जाड़ों की धूप और न तुम हो साथ
फ़िर भी उन राहों पर जाने को एक चाह मचलती सी है
मालूम है मुझको कि तुम अब कभी नहीं आओगे
फ़िर भी ख्वाब देखने की मेरी आदत बुरी सी है
हालाँकि मेरी साँसे छीनती हैं मुझसे
फ़िर भी तेरी यादें मेरी जिंदगी सी हैं
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने
ReplyDeletekhoobsoorat gazal,badhai
ReplyDeletekhoobsoorat gazal,badhai
ReplyDeleteइतने गम मिले मुझको की आदत सी पड़ गई है
ReplyDeleteफ़िर भी तुम्हारे गम में वो कशिश आज भी थोड़ी सी है
bahut khubsurat
हालाँकि मेरी साँसे छीनती हैं मुझसे
ReplyDeleteफ़िर भी तेरी यादें मेरी जिंदगी सी हैं
bhut hi gahari paktiya.likhati rhe.
bahut sundar
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ख्याल है, वाह!
ReplyDeleteमालूम है मुझको कि तुम अब कभी नहीं आओगे
ReplyDeleteफ़िर भी ख्वाब देखने की मेरी आदत बुरी सी है
well said pooja....
khubsurst line hsin..dil ko chune wali hain..
ReplyDeleteबहुत देर से पढ़ा.. मगर सच में लाजवाब..
ReplyDeleteइतने गम मिले मुझको की आदत सी पड़ गई है
ReplyDeleteफ़िर भी तुम्हारे गम में वो कशिश आज भी थोड़ी सी है
न गुलमोहर है न जाड़ों की धूप और न तुम हो साथ
फ़िर भी उन राहों पर जाने को एक चाह मचलती सी है