मुझे आज भी अपनी पहली बारिश याद है, क्यूंकि माँ हमेशा छाता लेकर भेजती थी, चाहे कोई भी मौसम होएक गर्मियों की दोपहर मैं कॉलेज में भूल गई अपना छाता और संयोग से बारिश हो गई। मैं अपने दोस्त के साथ घर लौट रही थी की बारिश शुरू हो गई, मेरा डर के मरे बुरा हाल था की माँ दान्तेगी, तभी उसने ऊपर चेहरा उठाया और कहा जब दंत कहोगी तब खाओगी अभी एक बार इन बूंदों को महसूस कर के तो देखो...मैंने चेहरा उठाया और पहली बार बारिश महसूस की...
वैसा ही कुछ खास हुआ इस गुरुवार, मेरी पहली कविता हिंद-युग्म पर पब्लिश हुयी, किसी अनजान से कोने में बहुत कम लोग इस कविता को पढेंगे पर फ़िर भी दिल को एक छोटी सी खुशी मिली।ये लिंक है http://merekavimitra.blogspot.com/2008/06/blog-post_05.html#puja
मेरी पहचान के कम लोग ब्लोगिंग करते हैं और उससे भी कम लोगो को कविता में इन्ट्रेस्ट है और उससे भी कम लोगो को मैं अपनी कविता पढने देती हूँ. ये तो ब्लॉग पर जाने क्यों अपनी कवितायेँ लिखती हूँ...क्योंकि अक्सर मुझे पसंद नहीं होता किसी को अपनी कविता पढाना, शायद इसलिए कि यहाँ मुझे कोई जानता नहीं है, सब अजनबी हैं और अजनबियों से वैसा डर नहीं लगता. क्यों कि वो पूछते नहीं हैं कि किस दुःख में तुमने लिखा, ये जानने की कोशिश नहीं करते कि कौन सी खुशी मिली, कविता को उसकी फेस वैल्यू पर लेते हैं उसके पीछे की हिस्ट्री नहीं जानते. मुझे आज भी याद है मेरे छोटे भाई ने एक बार कहा था, "जानती हो दीदी हम तुम्हारी कविता की बड़ाई क्यों नहीं करते कभी, क्योंकि हमको दुःख होता है कि आख़िर ऐसा कौन सा दर्द महसूस कर रही हो और किसी से कह क्यों नहीं पाती, और हम तुम्हारे दर्द को कम क्यों नहीं कर सकते". उस दिन सादगी से कही उसकी बात दिल को छू गई मेरे और मुझे अचानक से लगा कि मेरा नन्हा सा भाई कितना बड़ा हो गया है. आज जाने क्यों उसकी ये बात याद आ गई.देखूं कितने लोग पढ़ते हैं, मेरी कच्ची सी कविता
कविता आपके अहसास है जो कागजो पर उतरते है......इन्हे ऐसा ही रहने दीजिये..
ReplyDeleteaapki pile phulon ki kavita hamne pehle hi apdh li thi,doc saab se sehmat hai,kavita aapke ehsaason mein rehti hai,aapki kavitayein padhna hamesha achha lagta hai,khas kar jis mein maa ka jikar ho,pehli kavita chapne ki bahut badhai.
ReplyDeleteपहले आपके दिये लिंक पर click किया वहाँ देखा कि यहाँ तो काफी कविताये है आपकी कौन सी कविता है समझ ना सका। नाम पता नही। दुबारा आपके ब्लोग पर आया फिर नाम देखा। बस लहरें याद रहा। खैर इंतजार पढकर अच्छा लगा। दिन के बाद रात और रात के बाद दिन। यानि सुख- दुख। जिदंगी का फलसफा पेश कर दिया। ये आपकी पहली थी तो आगे की कैसी होगी। इंतजार है।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteहमने तो पढ़ ली, बहुत बधाई.
ReplyDeleteहां, आपने बिल्कुल सही कहा है कि दुनिया यही देखती है कि कितनी अच्छी कविता है वो किस दरद में लिखी गई है वो कोई नहीं पूछता...। मेरा अपना अनुभव यही है कि जब मैं बहुत परेशान होता हूं, कही खोया होता हूं या फिर किसी अनदेखे डर से बहुत डरा हुआ होता हूं तभी कुछ लिख पाता हूं और शायद यही मेरी एक रचना बन जाती है। आपके छोटे भाई ने आपके उस छुपे हुए दरद को समझा पर ऐसे लोग बहुत कम ही होते हैं, मुझे ये ख्याल भी आपके ही ब्लाग को पढ़ने पर आया... पर क्या किया जाए दुनिया ही ऐसी है। अपने आप को पेश करने के लिए जितनी भी मेहनत करनी पड़े दुनिया तो नतीजा देखती है। चलिए बढिया लिखा है आपने...।
ReplyDeletetake care
bye
vah ped foolon se dhaka bahut khush dikhata tha
ReplyDeleteusi tarah jaise mere hothon par ek muskan rahati hai
good one :)
आपके दिये हुये URL पर जा कर वह कविता पढ़ी, अच्छी थी, विशेषकर उसकी अंतिम 2-3 पंक्तियाँ। आपकी और भी - अनेक, श्रेष्ठ कविताएं पढ़ीं, उनमें से अनेकों को चिन्हित भी किया है (उस पर फिर कभी) परंतु इस पोस्ट में यह अंश और भी अच्छा लगा -
ReplyDeleteक्योंकि अक्सर मुझे पसंद नहीं होता किसी को अपनी कविता पढाना, शायद इसलिए कि यहाँ मुझे कोई जानता नहीं है, सब अजनबी हैं और अजनबियों से वैसा डर नहीं लगता. क्यों कि वो पूछते नहीं हैं कि किस दुःख में तुमने लिखा, ये जानने की कोशिश नहीं करते कि कौन सी खुशी मिली, कविता को उसकी फेस वैल्यू पर लेते हैं उसके पीछे की हिस्ट्री नहीं जानते.
मुझे आज भी याद है मेरे छोटे भाई ने एक बार कहा था, "जानती हो दीदी हम तुम्हारी कविता की बड़ाई क्यों नहीं करते कभी, क्योंकि हमको दुःख होता है कि आख़िर ऐसा कौन सा दर्द महसूस कर रही हो और किसी से कह क्यों नहीं पाती, और हम तुम्हारे दर्द को कम क्यों नहीं कर सकते". उस दिन सादगी से कही उसकी बात दिल को छू गई मेरे और मुझे अचानक से लगा कि मेरा नन्हा सा भाई कितना बड़ा हो गया है
आपके अनुज की संवेदनशीलता भी प्रशंसनीय है।
स्वत:स्फूर्त कविता का तो कोई परिप्रेक्ष्य होगा ही, और उसी पृष्ठभूमि में उस कविता का मर्म होता है। यद्यपि कुछ कविताएं शाश्वत भी होती हैं - विशेषत: ज्ञानी और दार्शनिक किस्म की।
मैं कोई साहित्यविद नहीँ हूँ। न ही शायद कविता का मर्म-ज्ञानी, जो अच्छा लगा, कह दिया।