24 June, 2008

एक लम्हे की कहानी

मैं तो नहीं लिखती कहानियाँ
बस कविता जैसा कुछ
टुकड़ों टुकड़ों में

मैं तो नहीं रख सकती
अंजुरी भर पानी
आसमान पर फेंक दूँगी

गुलदस्ते से
एक गुलाब निकाल कर
किताबों में छुपा दूँगी

अनगिनत तारे नहीं
उस एक चाँद से
मेरा झगड़ा चलता है


सागर की सैकड़ों लहरें नहीं
मैं तो रखूंगी
शंख में एक बूँद

इतने बड़े आसमान को
काट कर, खिड़की पर
परदा टांग दूँगी

मैं तो बस
कतरा कतरा सम्हालती हूँ

मैं तो
लम्हा लम्हा जीती हूँ

जिंदगी...
बहुत बड़ी है
इसकी कहानी नहीं लिख पाती मैं
इसकी कहानी लिख नहीं पाऊँगी मैं

हाँ, एक लम्हे की कहानी है
लम्हे की कहानी सुनाऊँ
सुनोगे?

7 comments:

  1. इतने बड़े आसमान को
    काट कर, खिड़की पर
    परदा टांग दूँगी

    बहुत खूबसूरत.. बधाई आपको

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  2. सागर की सैकड़ों लहरें नहीं
    मैं तो रखूंगी
    शंख में एक बूँद

    बहुत खूब ।

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  3. इतने बड़े आसमान को
    काट कर, खिड़की पर
    परदा टांग दूँगी

    मैं तो बस
    कतरा कतरा सम्हालती हूँ
    subhan allah........lajavaab..

    ReplyDelete
  4. इतने बड़े आसमान को
    काट कर, खिड़की पर
    परदा टांग दूँगी

    मैं तो बस
    कतरा कतरा सम्हालती हूँ

    मैं तो
    लम्हा लम्हा जीती हूँ

    वाह उस्ताद वाह। बहुत ख़ूब मज़ा आ गया।

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  5. इतने बड़े आसमान को
    काट कर, खिड़की पर
    परदा टांग दूँगी

    मैं तो बस
    कतरा कतरा सम्हालती हूँ
    waah adbhut khyaal hai .....dil fare panktiyaan hai...kuchh kahtee hain, baut kuchh chhupaatee hain..aur...sab kuchh bayaan kar jaatee hain..pooree kaynaat ko....

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  6. नींद गायब है आँखो से...तो चली आई इन लहरों में भीगने...तुम्हारा पुराना पिटारा खंगला...ना जाने कितने इमोशन एक साथ जी गई...यूँ ही लौट रही थी...फिर सोचा बता दें की गीले हो गये हैं

    God bless you :-)

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