मम्मी भूख लगी है, लेट हो रहे हैं कॉलेज को
मम्मी...मम्मी...
आज बिना खाए चले जाएँगे
देर हो गई है बहुत
नहीं नहीं एक रोटी खा लो,
और कौर कौर कर के खिला देती माँ
एक एक कर के तीन रोटियाँ
याद है...
घर से निकलते हुए भी
एक कौर मुंह में डाल देती वो
अब अक्सर बिना खाए चली जाती हूँ
ज्यादा फर्क नहीं पड़ता
पर जब भूख लगती है
तुम्हारी बहुत याद आती है माँ...
तुमसे अच्छा खाना खाया है कई जगह
कहीं पर बिल्कुल ख़राब खाना भी खाया है
लेकिन तुम्हारे हाथ का खाना नहीं खाया है
जब से तुम गई हो
कुछ भी खा लेती हूँ
मन नहीं भरता
भूख नहीं जाती
प्यास नहीं जाती
तुम्हारे हाथों का खाना चाहिए
मुझे भूख लगी है मम्मी
मम्मी मम्मी...
क्यों रूलाना चाह रहीं हैं??
ReplyDeleteएक कौर जो जन्मो की भूख मिटा दे.. बहुत खूबसूरत क्योंकि माँ पे लिखा है आपने..
ReplyDeleteएक कौर जो जन्मो की भूख मिटा दे.. बहुत खूबसूरत क्योंकि माँ पे लिखा है आपने..
ReplyDeleteकुछ नही कह पा रहा हूँ...बस अपना ध्यान रखे....
ReplyDeleteभूख लगी है माँ ..बहुत ही भावुक कर देने वाली कविता ..
ReplyDeletepooja ji rula hi diya aapne,bahut bhavuk kavita,sundar
ReplyDeleteभावुक !
ReplyDeleteभावुक कर देने वाली कविता
ReplyDeleteसच है !
ReplyDeleteस्मृतियाँ इतना ही विह्वल कर देतीं है.
मेरी बेटी भी कहती है मम्मा मुहँ मे हाथ डाल कर रसोई की तरफ इशारा करके(भुख लगी है)
ReplyDeleteभावुक करती है यह रचना। अति अति....... सुन्दर।