30 June, 2008

फ़िर से एक सवाल

कुछ अनकहा रह गया था न
हम दोनों के बीच
खामोशी याद दिलाती है तुम्हारी...

वो अनकहा अहसास
जो महसूस करती हूँ आज भी
ठहरी हुयी हवा में...

वो अनकहा सच
जो तुम्हारी आँखें बोलती थीं
तनहाइयों के दरम्यान...

वो अनकहा झूठ
जो मैं हमेशा ख़ुद से कहती आई थी
हमेशा, अपने दिल से भी...

वो अनकहा दर्द
जो तुम्हारी मुस्कान में घुल गया था
जब तुमने मुझसे विदा ली थी...

बहुत अपनी सी लगती है तुम्हारी याद
तुम मेरे थे क्या?

7 comments:

  1. खूब कही अनकही !

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  2. वो अनकहा दर्द
    जो तुम्हारी मुस्कान में घुल गया था
    जब तुमने मुझसे विदा ली थी...

    आप कहे अनकहे जज्बातों को बडे ही सुन्दर ढ़ग से पेश करती है। लिखते रहीये।

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  3. vakai aapki kavita ka to javab hi nhi hai. bhut sundar. likhati rhe.

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  4. वो अनकहा सच
    जो तुम्हारी आँखें बोलती थीं
    तनहाइयों के दरम्यान...

    वो अनकहा झूठ
    जो मैं हमेशा ख़ुद से कहती आई थी
    हमेशा, अपने दिल से भी...


    kabhi kuch likha tha puja isi ahsaas par ....kabhi post karunga...aaj aapko padhkar vahi yaad aaya.....ye panktiya behad kareeb lagi....

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