19 June, 2008

आज भी...

आज भी लगता है
की वक्त के किसी मोड़ पर
एक लम्हा मेरा इन्तेज़ार कर रहा है...

एक मासूम से लम्हे का इन्तेज़ार
मुझे लौट आने को कहता है

एक खामोश सा लम्हा
कविता बन काफाज़ पर उतर जाता है

एक तनहा सा लम्हा
गीत बन मेरा साथ देता है

एक उदास सा लम्हा
अश्क बन हर तस्वीर धुंधली कर देता है

एक वीरान सा लम्हा
सूखे पत्तों से ढकी इन राहों पर मेरे पीछे चलता है

एक मुस्कान सा लम्हा
मुझे तुम्हारी याद दिला देता है

एक अधूरा सा लम्हा है
जिंदगी
लौट आओ ना...

०८.०१.०४

5 comments:

  1. बहुत सुंदर भाव

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  2. एक मुस्कान सा लम्हा
    मुझे तुम्हारी याद दिला देता है

    एक अधूरा सा लम्हा है
    जिंदगी
    लौट आओ ना...

    इमानदारी भरा मासूम सा सवाल....बस एक मशवरा....
    एक मुस्कराता लम्हा' ज्यादा जमेगा ना .....
    मुआ फ़िर वही... केक

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  3. एक अधूरा सा लम्हा है
    जिंदगी
    लौट आओ ना...

    जो गया फ़िर कहाँ लौटा है :) सुंदर भाव लिखे हैं ..एक अच्छी कविता

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  4. एक उदास सा लम्हा
    अश्क बन हर तस्वीर धुंधली कर देता है
    vha kya bat hai.bhut hi sundar rachana.likhati rhe.

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  5. वाह!! क्या बात है.सुंदर भाव.

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