"आई थिंक आई ऍम फालिंग...फालिंग इन...लव विथ यू", गुनगुना रही थी और बस हंस रही थी उसे देख कर...उसकी आँखें जैसे रूह तक झांक सकती थीं, ज्यादा देर तक उसे लगातार देख नहीं पा रही थी, जब कि ऐसा कुछ भी नहीं था जो छुपाना था उससे। या शायद छुपाना था...
उसने कहा कि मैं उससे पिछले एक महीने से बात कर रही हूँ, क्या वाको? मुझे यकीन नहीं हुआ, पता ही नहीं चला इतनी दिन हो गए। जैसे रूह पहचानती है उसको भले चेहरा याद नहीं, शायद हम मिलें हो पहले कभी, समय कि सीमाओं से परे....शायद अंतरिक्ष में साथ भटकें हों...अनगिनत सवाल, और इनके जवाब ढूँढने ki जरुरत नहीं लगती, जैसे कि हम दो लोग नहीं हैं, कुछ समझाने की जरुरत नहीं होती उसे.
कि मुझे सिगरेट से कोई दिक्कत थी, पर उसे नर्वस देख कर थोड़ा घबराने लगी थी मैं भी। पर फौजी ने जब उसे डांटना शुरू किया कि देखो सरे लोग तुम्हें सिगरेट पीने से मन करते हैं तो जाने क्यों मैं बिल्कुल उसके तरफ़ से झगड़ने लगी...मेरा बस चलता तो मैं ख़ुद उसे एक सिगरेट जला के दे देती. बड़े टेनसे से लम्हे थे वो, बड़ी मुश्किल से कटे. रेस्तौरांत से बहार आके बड़ा सुकून महसूस हुआ, मैं लगभग साँस रोके बैठी थी.
फौजी ने बाहर आके कुछ कहा नहीं पर उसकी मुस्कान बहुत सरे वाक्य कह गई, अब मैं चीख तो नहीं सकती न कि वो मेरा बॉयफ़्रेन्ड नहीं है...इन फैक्ट वो मेरा कुछ भी नहीं है। कार में बैठ कर भी टेंशन हो रही थी...मैंने सिगरेट के तीन चार काश लगाये. अच्छी लगी पर ये भी जान गई मैं कि जो लोग कहते हैं कि सिगरेट पीने से टेंशन कम होती है...फत्ते मरते हैं. उसने कहा मैंने उसकी सिगरेट गीली कर दी. बड़ा बेवकूफ की तरह महसूस किया मैंने ख़ुद को...जैसे सिगरेट पीने से बड़ी कला दुनिया में नहीं है.
उससे बहुत सी बातें करने का मन कर रहा था, या अगर सही कहूँ तो उसकी बहुत सारी बातें सुनने का मन कर रहा था। चाहती थी कि वो बोले और मैं चुप रहूँ, बस सुनूं कि वो क्या सोचता है, क्या चाहता है...कुछ भी. उसे अच्छी तरह जाने का मन कर रहा था, उतनी अच्छी तरह जैसे शायद वो मुझे जानता है. कैसे जानता है, मालूम नहीं
बालकोनी पे हलकी सी ठंढ बड़ी अच्छी लगी, कोहरे का झीना दुपट्टा गुडगाँव कि ऊँची इमारतों ने ओढा हुआ था, उसमें से कहीं कहीं गाँव की किसी अल्हड किशोरी की आँखों की तरह किसी की बालकनी में लाइट्स जल रही थी। मीठी मीठी ठंढ जब साँसों में उतर गई तो बालकोनी का मोह छोड़ना पड़ा.
उसे अपनी कवितायेँ पढ़ाई मैंने, अच्छा लगा। वो सारे वक्त आराम से नहीं बैठा था...एक हरारत दिख रही थी उसमें. मैं आधे वक्त बस हंसती रही थी, किसी तकल्लुफ के बगैर. कुछ कहना नहीं चाहती थी, बस देखना चाहती थी उन आंखों में क्योंकि पहली बार ऐसा हुआ था मैं किसी कि आँख से आँख मिला के बात नहीं कर पा रही थी, और मुझे बड़ा अजीब लग रहा था.
सिगरेट का धुआं मुझे अच्छा नहीं लगता...फ़िर आज क्यों लग रहा था। मुझे इतना तो पता था कि ये गंध मैं बस उससे जुड़े शख्स के कारण पसंद कर सकती हूँ. तो क्यों अच्छा लग रहा था अल्ट्रा माईल्ड का धुआं? उसके कारण? मेर दिल कर रहा था एक काश लेने का, मगर उस सिगरेट का जो वो पी रहा था, क्यों? पता नहीं. वैसे मेरा मन कभी नहीं करता कि मैं सुट्टा लागों, पर उस वक्त कर रहा था. मैंने मग भी पर उसने मना कर दिया. कि मैं फ़िर उसकी सिगरेट ख़राब कर दूंगी, थोड़ा दुःख हुआ. शायद आज तक जो चाहा लेने की आदत बन गई है, चाहे किसी कि उँगलियों में अटका अल्ट्रा माईल्ड क्यों न हो...
उसकी नज़रें बड़े गहरे कुछ तलाशती हैं, जैसे मेरा पूरा वजूद मेरी आंखों में दिख जायेगा। अहसास हुआ कि उससे कुछ भी छुपाना बड़ा नामुमकिन है और ख्वाहिश हुयी उसे वैसी ही नज़रों से देखूं...पर देख नहीं पायी.
डर लगा मुझे, कहीं उसने सुन तो नहीं लिया मेरी आंखों में, "आइ थिंक आई ऍम फालिंग फालिंग इन लव विथ यू।"